
विवाह निश्चित करते समय हम पहले वर वधु की कुंडली मिलाते हैं पर यह उतना आवश्यक नहीं जितना कि परीक्षण । मनुष्य का स्वास्थ्य उत्तम है तो वह आगे का जीवन उत्तम रीति से जी सकता है। पर बीमारी के कारण जीवन की गति थम जाती है। अतः अनुवांशिक रोग पीढ़ी दर पीढ़ी फैलने पर रोग लगाएं और यह सभी परीक्षण अवश्य कराएं।
भारतीय संस्कृति में मनुष्य के लिए गर्भस्थ जीवन से लेकर अंत तक कुल 16 संस्कारों का समावेश किया गया है। विवाह एक संस्कार है। इसके पश्चात गृहस्थ आश्रम की शुरुवात होती है। विवाह के पश्चात ही लड़की को स्त्री व लड़के को पुरुष संज्ञा प्राप्त होती है। विवाह एक महत्वपूर्ण बंधन है जिसमें दो परस्पर लिंगी व्यक्ति एकत्र होकर जीवन साथी के रुप में जीवन व्यतीत करते हैं। एक दूसरे के सुख दुख में सहभागी होते हैं। कहते हैं पति पत्नी गाड़ी के दो पहिए हैं। दोनों का योग्य सुसंस्कृत निरोगी रहना आवश्यक है, तभी जीवन की गाड़ी आगे बढ़ सकती है।
चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से विवाह योग्य व्यक्ति में कुछ महत्वपूर्ण घटकों का होना आवश्यक है। आज विज्ञान ने प्रचंड प्रगति की है परंतु रोगों का सर्वत्र तांडव मचा हुआ है – और कुछ रोग ऐसे होते हैं जो अनुवांशिक रुप से माता पिता के कारण बच्चों में आते हैं। इन रोगों पर नियंत्रण आवश्यक है। माता-पिता रोग ग्रस्त न हों इसलिए विवाह पूर्व कुछ रक्तपरीक्षण आवश्यक हैं। इससे रोग का निदान होकर स्त्री-पुरुष का आरोग्य टिका रहता है व आगे होने वाली संतान का स्वास्थ्य कायम रहता है। विवाह पूर्व किए जानेवाले रक्त परीक्षण में हिमोग्लोबिन, रक्तगट, थैलेसिमिया का ए-2 एस्टीमेशन, सिकलिंग टेस्ट, एच. आय. वी टेस्ट, हेपेटायटिस बी, हेपेटायटिस सी., वी.डी.आर.एल., रक्तशर्करा, थायराईड हार्मोन परीक्षण किया जाना चाहिए।
मानव शरीर में 5 से 6 लीटर रक्त का प्रमाण होता है। लाल और श्वेत रक्त कण, प्लेटलेटस् व प्लाज़मा रक्त के प्रमुख घटक हैं। लालरक्तकण में हिमोग्लोबिन होता है। इसके कारण प्राणवायु अर्थात ऑक्सीजन प्रत्येक पेशी में पहुंचता है। रक्त में हिमोग्लोबिन का प्रमाण प्रति 100 ml में 12 से 14 ग्रॉम होता है। यह प्रमाण कम होने पर रक्ताल्पता अर्थात एनिमिया कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की एक रिपोर्ट के अनुसार संपूर्ण विश्व में सिर्फ भारत ही एक ऐसा देश है जहां रक्ताल्पता के रोगी अधिक हैं। भारत में करीब 88 प्रतिशत गर्भवती स्त्रियां एनिमिया से ग्रस्त हैं। गर्भवती स्त्री के शरीर में रक्त की कमी होना प्रसुति के लिए चिंताजनक स्थिती है। अतः हिमोग्लोबिन का परीक्षण विशेषतः स्त्रियों में अवश्य होना चाहिए।
थैलेसिमिया : बालकों में पाया जानेवाला यह अनुवांशिक रोग है। इस रोग का डॉक्टर आज तक अचूक उपचार नहीं खोज पाए हैं। इस रोग से ग्रस्त बालक 5 से 25 वर्ष तक मृत्यु को प्राप्त होते हैं। सिंधी, लोहाणा, पंजाबी, गुजराती समाज में यह रोग मुख्यतः पाया गया है। इसमें जीन्स की भूमिका महत्वपूर्ण है। थैलेसिमिया ग्रस्त माता-पिता से उनकी संतान में थैलेसिमिया माईनर या थैलेसिमिया मेजर होने की संभावना होती है। अतः विवाह पूर्व जन्म कुंडली न देखकर थैलेसिमिया का परीक्षण अवश्य करें क्योंकि यह रोग अनुवांशिक रुप से गुणसूत्रों के द्वारा आगे की पीढ़ी को होता है। थैलेसिमिया माईनर से ग्रस्त व्यक्ति वैसे तो सुदृढ़ होते हैं पर इस रोग के वाहक होते हैं। थैलेसिमिया माईनर के पुरुष या स्त्री जब विवाह करते हैं तब उनकी संतान घातक थैलेसिमिया मेजर से ग्रस्त हो सकती हैं। थैलेसिमिया मेजर प्राणघातक रोग है। इससे रक्त में हिमोग्लोबिन का प्रमाण कम होकर बालकों को समय-समय पर रक्त देना पड़ता है।

उसी प्रकार इससे उनकी आयु भी कम होती है क्योंकि रक्तदान के कारण कुछ अवयवों में अनावश्यक लौहतत्व एकत्रित होता जाता है। जिससे अवयव विकृत होकर फलस्वरुप मृत्यु भी हो सकती है। अधिकांश रुग्णों की मृत्यु रक्ताल्पता, हृदयाघात, बार बार संक्रमण इत्यादि कारणों से भी हो सकती है। अतः थैलेसिमिया माईनर से ग्रस्त व्यक्ति ने दूसरे थैलेसिमिया माईनर ग्रस्त व्यक्ति से विवाह नहीं करना चाहिए। पति पत्नी में से एक थैलेसिमया माईनर से ग्रस्त है तो कदाचित उनकी संतान निरोगी हो सकती है। अतः थैलेसिमिया ए-2 एस्टीमेशन रक्त परीक्षण द्वारा इस घातक रोग को आगे बढ़ने से रोकें।

सिकलसेल एनिमिया : सिकलसेल तथा थैलेसिमिया रोग हिमोग्लोबिन से संबंधित है। अतः चिकित्सीय भाषा में इसे हिमोग्लोबिन पैथी कह सकते हैं। विश्व की जनसंख्या का 4.5 प्रतिशत जनता हिमोग्लोबिन पैथी से ग्रस्त है। सिकलसेल रोग होने के अनेक कारण हैं। बालक के माता-पिता या दोनों में से एक को यह रोग हो तो माता को बालक की विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है। निरोगी व्यक्ति के लाल रक्तकण आर.बी. सी. 120 दिन जीवित रहते हैं तो सिकलसेल ग्रस्त रोगी के कण 40 से 50 दिन रहते हैं। यह रक्तकण कड़क, चिकने व हसिए के आकार के समान तिरछे होते हैं। इसके कारण रोगी को संबंधित अंग में वेदना होती है। यह वेदना कुछ घंटे, दिन या सप्ताह तक होती है। इस वेदना से प्राण हानि नहीं होती पर डॉक्टर का मार्गदर्शन लेना आवश्यक होता है। ऐसे रोगी को रक्तकण निर्मिती बढ़ाना आवश्यक होता है। अतः ऐसे रोगी को फॉलिक एसिड, बी कॉम्पेलक्स, मल्टी विटामिन, पौष्टिक आहार, खनिज द्रव्य आदि देना चाहिए। इन औषधियों का सेवन न करने से रक्तनिर्मिती मंद गति से होती है। इससे रोगी को खतरा होता है। 5 वर्ष से छोटे बालकों को निमोनिया, मस्तिष्क का विकार हो सकता है। 5 से 8 वर्ष के बालकों को अस्थि व स्नायु के विकार होकर अपंगता आती है। प्लीहा के अचानक बढ़ने से बालक मृत्यु को प्राप्त होता है। अतः सिकलसेल रोग पर रामबाण उपाय नहीं है परंतु प्रतिबंधात्मक रुप से निम्न उपाय अमल में ला सकते हैं।
- वर-वधुं ने विवाह पूर्व रक्त परीक्षण अवश्य करना चाहिए।
- सिकलसेल रोग तथा सिकलसेल ट्रेट से ग्रस्त स्त्री-पुरुष ने आपस में विवाह नहीं करना चाहिए।
सिकलसेल एनिमिया प्रमुख रुप से बौद्ध समाज में पाई जाती है। रक्त की सिकलिंग जांच करने पर ही पता चलता है कि व्यक्ति को सिकलिंग ट्रेट (माईनर) है या डिसीज़ (मेजर) माता-पिता दोनों सिकलसेल एनिमिया से ग्रस्त हैं तो बच्चों में भी यह पाई जा सकती है। अतः स्पष्ट है विवाह पूर्व रक्त की सिकलिंग जांच अवश्य होनी चाहिए।

रक्तशर्करा (ब्लड शुगर) परीक्षण : आज डायबिटीज़ ने विकराल रुप धारण किया है। अनेक परिवारों के व्यक्ति इससे ग्रस्त है। बच्चों में भी यह जन्मजात रुप में पाई जाती है। गर्भावस्था में मधुमेह होना मां व बच्चे के लिए हानिकारक होता है। इसके अलावा यह रोग अनुवांशिक होने के कारण माता पिता यदि मधुमेह पीड़ित हैं तो बच्चों को भी मधुमेह होने की संभावना होती है अतः रक्तशर्करा परीक्षण निश्चित ही होनी चाहिए। 70 प्रतिशत मधुमेही की मृत्यु हृदय विकार के कारण होती है। मधुमेह के कारण नेत्र, किडनी, मस्तिष्क, यकृत, आतें व नाड़ी संस्थान पर प्रभाव पड़ता है। मधुमेही के अवयवों को जखम होने पर गैंगरेन नामक घातक रोग होता है। अतः विवाह पूर्व ब्लड शुगर टेस्ट अवश्य होना चाहिए। इसके अलावा किसी व्यक्ति ने कभी ब्लड ट्रान्सफयुसन या रक्तादान किया हो तो उसकी वी.डी.आर.एल. एच.आय.वी, हेपेटायटिस बी, हेपेटायटिस सी का भी परीक्षण होना चाहिए। साथ ही ब्लड ग्रुप टेस्ट पॉज़िटिव या निगेटिव का परीक्षण आवश्यक है।
एड्स : इक्कीसवीं सदी में एक ओर विज्ञान, तंत्रज्ञान तथा वैद्यकीय क्षेत्र में प्रगति हुई है तो दूसरी ओर एच.आय.वी. एड्स महारोग के रुप में संपूर्ण विश्व में फैला हुआ है। आज एड्स ने विश्व के सभी देशों में अपने पैर फैलाए हैं। विश्व में करीबन 50 लाख से अधिक रोगी हैं जिनका एड्स पूर्णतः विकसित अवस्था में है तथा वे अपने-मृत्यु का इंतजार कर रहे हैं। विश्व में करोड़ों लोग ऐसे हैं जो एड्स विषाणु से संक्रमित हैं पर अभी भी उनके रोग के लक्षण प्रकट नहीं हुए हैं। ऐसे लोगों के द्वारा भी एड्स का संक्रमण हो सकता है क्योंकि एड्स के विषाणु रोगी के रक्त में होते हैं तथा इंजेक्शन लगाने पर वह सुई को चिपक जाते हैं। ये विषाणु साधारण उबले पानी में भी नहीं मरते। अतः इस संक्रमित सुई से दूसरे व्यक्ति को इंजेक्शन लगाने पर उसे भी एड्स हो सकता है। भारत में इंजेक्शन के कारण एड्स ग्रस्त रुग्णों की सर्वाधिक संख्या उत्तर पूर्वी राज्यों में अधिक है। मणिपुर में ऐसे रोगी सर्वाधिक हैं। रक्त ग्रहण करने के पहले एच.आय.वी. परीक्षण अवश्य होना चाहिए। क्योंकि 3 से 4 प्रतिशत एड्स ग्रस्त रोगी दूषित रक्त ग्रहण करने के कारण एड्स के शिकंजे में आते हैं। पुरुषों की तुलना में स्त्रियां शीघ्र ही एड्स ग्रस्त होती हैं। भारत में व्यावसायिक रक्तदाताओं की संख्या अधिक है। ये व्यावसायिक रक्तदाता अधिक संख्या में एच.आय.वी. से ग्रस्त पाए गए हैं। अतः रक्त की आवश्यकता होने पर अपने रिश्तेदारों अथवा परिचित व्यक्ति से ही रक्त लें और सबसे महत्वपूर्ण रक्त लेने से पहले परीक्षण अवश्य करवाएं।
हेपेटायटिस : आज हेपेटायटिस बी व सी ने गंभीर स्वरुप धारण किया है। भारत में 2 करोड़ से अधिक लोग हेपेटायटिस बी से संक्रमित हैं। इस रोग का संक्रमण एड्स विषाणु की तुलना में अधिक घातक है। हेपेटायटिस बी का संक्रमण रक्त के कारण होता है। रक्तदान करते समय संक्रमित सुई लगाने से यह रोग फैलता है। विकसित देशों में 90 प्रतिशत तक रक्तदान के पश्चात इस रोग का संक्रमण पाया गया है। इस विषाणु से संक्रमित रोगी दीर्घ काल तक यकृत रोग से पीड़ित होता है। हेपेटायटिस बी जन्य पीलिया गंभीर रोग है। अतः इंजेक्शन लगाते समय नई सुई का प्रयोग करें और सबसे महत्वपूर्ण रक्तदान के पहले हेपेटायटिस बी व हेपेटायटिस सी का परीक्षण अवश्य करें।
वी.डी.आर.एल. परीक्षण : गोनोरिया, सिफिलिस के निदान के लिए रक्त परीक्षण द्वारा वी.डी.आर.एल. टेस्ट की जाती है क्योंकि यह संक्रमण पति द्वारा पत्नी को या पत्नी द्वारा पति को होने की संभावना होती है। अतः विवाह पूर्व वी.डी.आर.एल परीक्षण कर इस संक्रमण की जांच करवा लेनी चाहिए।
थायराईड परीक्षण : वजन अचानक कम या अधिक हो तो थायराईड की टी. 3. टी. 4 तथा टी. एस.एच. परीक्षण अवश्य करवाएं। यह हार्मोनल परीक्षण है। विवाह पश्चात हार्मोनल समस्या न हो इसके लिए यह परीक्षण आवश्यक है।
अतः विवाह पूर्व उपरोक्त सभी परीक्षण करने आवश्यक हैं। परीक्षण के द्वारा निदान होकर समय पर योग्य उपचार होगा तथा जीवन सुखमय होकर बच्चों का भविष्य भी सुखद व निरोगी होगा। विवाह निश्चित करते समय हम पहले वर-वधु की कुंडली मिलाते हैं पर यह उतना आवश्यक नहीं जितना कि रक्त परीक्षण। मनुष्य का स्वास्थ्य उत्तम है तो वह आगे का जीवन उत्तम रीति से जी सकता है। पर बीमारी के कारण जीवन की गति थम जाती है। अतः अनुवांशिक रोग पीढ़ी दर पीढ़ी फैलने पर रोग लगाएं और यह सभी परीक्षण अवश्य कराएं।

डॉ. जी.एम. ममतानी
एम.डी. (आयुर्वेद पंचकर्म विशेषज्ञ)
‘जीकुमार आरोग्यधाम’,
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जरीपटका, नागपुर-14 फोन : (0712) 2645600, 2646600, 2647600
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