Alzheimer’s Disease: An Ayurvedic perspective

क्या आप 60 वर्ष से ऊपर की आयु के हैं और भूलने की समस्या से पीड़ित हैं? क्या आपको गुस्सा आने लगा है? क्या आप बोलने में भाषा संबंधी रुकावट महसूस करते हैं? क्या आप खुद के निर्णय के प्रति आश्वस्त नहीं रहते हैं? क्या आप अक्सर नींद में बाधा महसूस करते हैं? यदि आपको ये सब लक्षण हैं, तो हो सकता है अल्ज़ाइमर्स रोग आप पर अपना शिकंजा कस रहा हो। यह एक डिजनरेटिव रोग है, जिसमें मस्तिष्क की कोशिकाओं के बीच आपसी सम्पर्क खत्म होने लगता है। इससे स्मरण शक्ति ही कमजोर होना शुरू नहीं होती बल्कि धीरे-धीरे मस्तिष्क के अन्य कार्य भी कमजोर होते जाते हैं। स्मृतिभ्रंश यानी अल्जाइमर्स और कंपवात यानी पार्किन्सन नामक मस्तिष्क संबंधी 2 ऐसे रोग हैं, जो बुढ़ापे के साथ तेजी से दस्तक देने लगते हैं।

अल्जाइमर्स नामक यह रोग अब वृद्धावस्था का एक आम रोग बनता जा रहा है। जैसे-जैसे दुनिया भर में वृद्ध लोगों की संख्या में तेजी से वृद्धि होती जा रही है, वैसे-वैसे अल्जाइमर्स से पीड़ित लोगों की संख्या भी निरंतर बढ़ती जा रही है। हमारे देश में 60 साल से अधिक उम्र के वृद्धों की संख्या 6 करोड़ के लगभग है और उनमें से कम से कम 6 प्रतिशत वृद्ध स्मृतिभंश का शिकार हैं। इन रोगियों में कम से कम 20 प्रतिशत लोग अकेले अल्जाइमर्स रोग से पीड़ित हैं। इस तरह हमारे देश में इस रोग से पीड़ित रोगियों की संख्या 60 लाख से अधिक हो सकती है। अल्जाइमर्स पीड़ित अधिकांश से लोग शहरी ही हैं।

यह एक निरंतर बढ़ने वाला रोग है जो स्मरणशक्ति को नष्ट करने के साथ मस्तिष्क के अन्य कार्यों को भी प्रभावित करता है। इसमें मस्तिष्क की कोशिकाओं का अपक्षय (Degeneration) होता है। अमरीकी अल्ज़ाइमर्स संगठन के अनुसार 65 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में 10 में से एक तथा 85 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों में 50 प्रतिशत लोगों को यह रोग प्रभावित करता है। दुनिया में लगभग 2 करोड़ लोग अल्जाइमर्स से पीड़ित हैं।

कमजोर क्यों हो जाती है याददाश्त

आजकल अव्यवस्थित जीवनशैली व असमय खान-पान, तनावयुक्त व भागदौड़ का जीवन तथा व्यायाम के अभाव के कारण याददाश्त का कमजोर होना एक आम समस्या है। ज्यादातर लोग अपनी भूलने की आदत से परेशान हैं। हमारा दिमाग पूरे शरीर की जानकारियों का स्टोरहाउस है और हमारे मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों में जानकारियां इकट्ठी होती हैं। इन जानकारियों को विभिन्न हिस्सों में बांटा गया है जैसे शार्ट टर्म मेमोरी, रिसेन्ट मेमोरी और रिमोट मेमोरी।

  • शार्ट टर्म मेमोरी में हाल में घटित घटनाएं होती है या उन लोगों के नाम होते हैं, जिन्हें आप हाल में मिले हों।
  • रिसेन्ट मेमोरी में आपने सुबह क्या खाया है जैसी जानकारियां होती हैं।
  • रिमोट मेमोरी में वे जानकारियां होती हैं, जो सालों पहले हुई होती हैं जैसे बचपन की यादें।

समय के साथ जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमारा दिमाग भी बदलता रहता है। 20 वर्ष की उम्र की शुरुआत में दिमाग के सेल्स कम होने लगते हैं और हमारा शरीर भी हमारी दिमागी जरूरत से कम केमिकल्स बनाने लगता है। जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे हमारी याददाश्त पर इस बदलाव का असर होने लगता है। हमारा दिमाग जानकारियों को विभिन्न प्रकार से इकट्ठा करता है।

  • हमारी शार्ट टर्म और रिमोट मेमोरी पर उम्र का प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन हमारी रिसेन्ट मेमोरी उम्र से प्रभावित होती है। आप उन लोगों के नाम भूल सकते हैं, जिनसे आप हाल ही में मिले हैं, यह स्वाभाविक परिवर्तन है।
  • आप उस स्थिति की कल्पना नहीं कर सकते हैं ,जब आप कोई शब्द जानते हैं, लेकिन वह आपके ध्यान में नहीं आ रहा होता है। यह आपकी याददाश्त संबंधी एक समस्या का विषय है।

कारण

अल्जाइमर्स रोग का सही कारण ज्ञात नहीं है, लेकिन शोधकर्ताओं के अनुसार यह रोग शायद आनुवंशिक प्रभाव, जीवनशैली और पर्यावरण कारकों का परिणाम है, जो कि समय के साथ मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं।

विशिष्ट आनुवंशिक परिवर्तन कम से कम 5 प्रतिशत मामलों में रोग के विकास का नेतृत्व करने में मौजूद हैं। अल्जाइमर्स रोग के साथ अधिकांश लोगों में पारिवारिक इतिहास की स्थिति नहीं है, लेकिन अल्जाइमर्स रोग के विकास के जोखिम बढ़ जाते हैं, यदि आपके परिवार का एक सदस्य इससे ग्रस्त है। मस्तिष्क में एसिटिलकोलाइन और ऐसे ही दूसरे मस्तिष्कीय रसायनों के कम बनने लग जाने से भी इस रोग की शुरुआत होते देखी जाती है। बढ़ती उम्र के साथ रक्तवाहिनियां अंदर से कठोर और संकरी होने लगती हैं, जिससे मस्तिष्कीय कोशिकाओं को जब अपनी आवश्यकता के अनुसार रक्त नहीं मिल पाता, तो इसका सीधा प्रभाव न्यूरोन्स की कार्यक्षमता पर पड़ने लगता है तथा वह भी तेजी से नष्ट होने लग जाती हैं। इससे बहुत से व्यक्तियों में अल्जायमर्स जैसे लक्षण पैदा होने लग जाते हैं। इसके अलावा पार्किन्सन, ब्रेन ट्यूमर, हन्टिंगटनल डीज़ीज़, सबड्यूरल हीमैटोमा, हाईपोथारायडिज्म, विटामिन बी 12 और फोलिक एसिड व निकोटिनिक एसिड की कमी से भी अल्जाइमर्स रोग हो सकता है।

संक्षेप में प्रमुख कारण

  • उम्र के साथ मस्तिष्कीय कोशिकाओं का नष्ट होते जाना।
  • रक्तसंचार में बाधा आना।
  • रक्तचाप का बढ़ना।
  • न्यूरो केमिकल्स का स्तर घटने लगना।
  • पोषक तत्वों का अभाव होने लगना।
  • पारिवारिक निरादर का सामना करना।

लक्षण

शुरुआत में इसके जो लक्षण दिखाई देते हैं, वे उम्र से संबंधित या तनाव के कारण हैं, ऐसा समझा जाता है।

  • अलज़ाइमर्स के मरीजों की याददाश्त धीरे-धीरे कमजोर होती जाती है।
  • याददाश्त का ठीक तरीके से काम न कर पाना और भाषा का ठीक प्रकार से प्रयोग न कर पाना भी इस बीमारी के लक्षण हैं।
  • हालांकि अवसाद का पता मरीज को जल्दी नहीं लग पाता।
  • बीमारी की आगे की स्थितियों में मरीज उत्तेजित रहता है। इसके अलावा अनिद्रा, आपत्तिजनक मौखिक बातें बोलना, सेक्स से जुड़ी समस्याएं होना। हालांकि इस बीमारी का पता लगाने के लिए मरीज के व्यावहारिक लक्षण ही काफी नहीं होते हैं।

अल्जाइमर्स के 10 से 25 प्रतिशत मरीज हैल्युसिनेशन व डिल्यूशन (भ्रम) के शिकार होते हैं। यह बीमारी बहुत से दूसरे लक्षणों से जुड़ी है जैसे- साइकोसिस, डिप्रेशन, उत्तेजना। 30 से 50 प्रतिशत मरीज़ डिल्यूशन का शिकार होते हैं और 40 से 50 प्रतिशत मरीज़ अवसाद के शिकार होते हैं। जिन रुग्णों में मानसिक बीमारी जैसे विकार होते हैं, उन्हें स्मृतिभ्रंश (डिमेंशिया) का भी खतरा रहता है और ऐसे मरीज अक्सर अवसाद और कुंठा से परेशान रहते हैं। उनका व्यवहार और व्यक्तित्व परिवर्तित होता रहता है, यहां तक कि वे अपना ख्याल भी ठीक तरीके से नहीं रख पाते। स्वभाव में चिड़चिड़ापन आते जाना, बिस्तर पर घंटों पड़े रहने के बाद भी नींद न आना आदि कुछ ऐसे प्रमुख लक्षण हैं, जो अल्जाइमर्स रोग की शुरुआत में आमतौर पर देखे जाते हैं। इसके अलावा रोगी की मासपेशियां कडक हो जाती हैं, चलने में तकलीफ (Gait Disturbance)] रोगी हाइपर एक्टिव हो जाता है व झटके भी आते हैं।

अल्जाइमर्स नामक रोग में व्यक्ति कभी-कभी अपनी याददाश्त तेजी से गंवाने लगता है। वह उन लोगों (अपने बच्चों, पति-पत्नी, यार-दोस्त और सगे-संबंधियों) तक को भी नहीं पहचान जाता, जिनके साथ उसने अपनी जिंदगी का लंबा वक्त गुजारा था। कुछ रोगियों की हालत तो इतनी खराब हो जाती है कि वे स्वयं का नाम, अपने घर का पता, शयनकक्ष, अपने बिस्तर, सुबह क्या खाया, अपने मोहल्ले तक को भूल जाते हैं। अपने शरीर की स्थिति तक की उन्हें कोई सुध-बुध नहीं रहती है। इस से पीड़ित लोगों की याददाश्त ही नहीं घटती, उनकी निर्णय लेने की क्षमता में भी कमी आती जाती है। वे कपड़े बदलने, बटन बंद करने, खिड़कियां-दरवाजे बंद करने तक का निर्णय स्वयं नहीं ले पाते, खाना कब खाया याद नहीं रहता। ऐसे रोगी गर्मियों में कई-कई कपड़े पहन लेते हैं, जबकि सर्दियों में रजाई या कम्बल तक लेना भूल जाते हैं।

इन रोगियों को बातचीत करने में परेशानी आने लगती है। अपनी बात कहने के लिए उन्हें उपयुक्त शब्द ध्यान में नहीं आते है या वह शब्दों का सही चुनाव करना ही भूलने लग जाते हैं। वे पारिवारिक सदस्यों तक को गलत नामों या शब्दों से सम्बोधित करना शुरू कर देते हैं। इतना ही नहीं, उनकी लिखावट को ठीक से पढ़ पाना मुश्किल हो पाता है। अल्जाइमर्स से पीड़ित रोगियों के हस्ताक्षर तक बदल जाते हैं।

आयु बढ़ने का प्रभाव

ऐसा माना जाता है कि बुढ़ापे की शुरुआत के साथ ही लोगों की याददाश्त कमजोर पड़ने लगती है। 50 के ऊपर पहुंचते ही कम से कम 2 प्रतिशत लोगों में स्मृतिभ्रंश के स्पष्ट लक्षण प्रकट होने शुरू हो जाते हैं। यह लक्षण उम्र के साथ और भी तीव्र हो जाते हैं। 75 से 80 वर्ष के ऊपर पहुंचते-पहुंचते तो आधे से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आ जाते हैं। याददाश्त की कमी जिसे आमतौर पर डिमेंशिया (Dementia) के नाम से जाना जाता है, यूं तो उम्र के किसी भी पड़ाव पर दस्तक दे सकती है, लेकिन बढ़ती उम्र के साथ जब मस्तिष्क पर काम का बोझ बढ़ने लगता है तब इसके लक्षण तेजी से स्पष्ट होने लगते हैं। जब रोगी बार-बार याददाश्त में कमी की शिकायत करता है तो, वह डिप्रेशन व एन्जाइटी के कारण होता है, न कि डिमेंशिया के कारण, विशेषतः युवावस्था में रक्त में सोडियम की कमी (हायपोनेट्रेमिया) होने से भी रोगी को याद नही रहता और वह Confused (भ्रमित) रहता है। अतः ऐसी स्थिति में रक्त गत सोडियम की जांच अवश्य कर लें।

शास्त्रों में डिमेंशिया के 2 प्रकार बताए गए हैं। सिनाइल (Senile) व प्रिसिनाइल (Presenile ) यदि 65 वर्ष की आयु से पहले इस रोग की शुरुआत होती है, तो इसे Presenile हैं व 65 वर्ष के ऊपर यदि रोग की शुरुआत दिखे तो उसे Senile कहते हैं। इसे Cortical – Subcortical में भी विभाजित करते है। Cortical प्रकार में मस्तिष्क का Grey Matter प्रभावित होता है जैसे कि अल्जायमर्स व सिनाइल डिमेन्शिया, जब कि Subcortical प्रकार में मस्तिष्क का While Matter प्रभावित होने से मस्तिष्क के कार्यों में विकृति आती है। उदा. Multi Infact Dementia Normal Pressure Hydrocephacus

CLINICAL CLASSIFICATIONS OF DEMENTIA
1) Dementia as the only clinical manifestation

  • Senile dementia
  • Alzheimer’s disease
  • Pick’s disease

2) Dementia with other neurological signs

  • Multi-infarct dementia. – Brain tumour
  • Normal pressure hydrocephalus – Chronic subdural haematoma
  • Post head injury complications
  • Huntigton’s chorea
  • Creutzfeldt
  • Jacob Discase

3) Dementia with other medical disorders

  • Hypothyroidism
  • Cushing’s disease
  • Nutritional disorders- B1, B2, Nicotinic acid deficiency
  • Neuro-syphilis
  • Chronic alcoholism
  • Post renal-dialysis

उम्र के बढ़ने के साथ व्यक्ति के मस्तिष्कगत Parenchyma के सिकुड़ने से उसका आकार छोटा होता जाता है। Leptomeninges मोटी हो जाती है इस कारण Sub Arachnoid Space चौड़ा हो जाता है। Cerebral Vessel अर्थात मस्तिष्कगत धमनियों में Arteriosclerosis व Atherosclerosis के लक्षण दिखाई देते हैं, जिससे Neuron का क्षय होकर मस्तिष्क में Plaque जैसी रचना दिखती है। यह सब परिवर्तन मस्तिष्क में प्राकृत आयु अनुसार दिखाई देते हैं, जबकि अल्जायमर्स में Tangles व Granulovascular Degeneration दिखता है।

डिमेंशिया के अन्य रूप में व्यक्ति किसी घटना या बातचीत को पूरी तरह से नहीं भूलता। उसे बातचीत के कुछ अंश, उसमें शामिल रहे व्यक्तियों के नाम या घटनाओं से जुड़ी कुछ बातें कुछ हद तक याद रहती हैं, लेकिन अल्जायमर्स रोग में ऐसा नहीं देखा जाता।

याददाश्त जाने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन बुढ़ापे में याददाश्त जाने के 70 प्रतिशत से ज्यादा मामलों के पीछे अल्जाइमर्स रोग को ही प्रमुख कारण माना जाता है। थोड़ी देर पहले कही बात या घटी घटना का एकदम भूल जाना इस रोग का सबसे प्रमुख लक्षण माना जाता है। लेकिन अधिकांश को पुरानी बातें याद रहती है।

अल्जाइमर्स रोग में सबसे पहले व्यक्ति नामों को भूलने लगता है। धीरे-धीरे उसकी यह समस्या इस हद तक बढ़ जाती है कि उसे अपने सगे-संबंधियों और यार-दोस्तों तक के नाम याद नहीं रह पाते। वह कुछ देर पहले की गई बातचीत तक को भूलने लग जाता है। इस रोग में व्यक्ति की याददश्त धीरे-धीरे घटती है। एक बार वह जो भूल जाता है, उसे फिर कभी याद नहीं कर पाता। इससे व्यक्ति अपने निजी कामकाज तक के लिए दूसरों पर आश्रित हो जाता है। ऐसा देखा गया है कि कुछ लोगों में कुछ महीने के अंदर ही ऐसी गंभीर स्थिती पैदा होने लगती है, जबकि कुछ लोगों में इस रोग को पूरी तरह से विकसित होने में 5 से 6 साल तक का समय लग जाता है।

इस रोग की पहचान लगभग 100 साल पहले जर्मन के एक प्रसिद्ध मनोचिकित्सक न्यूरोपैथोलाजिस्ट डॉ. एलोइस अल्जाइमर ने की थी। अतः उसी के नाम से इस बीमारी का नाम रखा गया।

महिलाओं में अल्जाइमर रोग

अध्ययन से पता चला है कि अब पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में भी अल्जाइमर्स रोग तेजी से पनप रहा है। रजोनिवृत्ति हो चुकी महिलाओं की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं के शरीर में तेजी से बदलाव आने लगता है। उनके शरीर में डिम्ब ग्रंथियों में पैदा होने वाले एस्ट्रोजेन नामक एक हार्मोन का बनना एकाएक घट जाता है। एस्ट्रोजेन के स्तर में गिरावट आने से उनकी मानसिक और चयापचय क्रियाओं के साथ ही उनके मस्तिष्क पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। उनमें अल्जाइमर्स सहित डिमेंशिया और अन्य रोगों की तेजी से शुरुआत होने लगती है। अध्ययनों में एस्ट्रोजेन का कुछ संबंध अल्जाइमर्स के साथ देखा गया है।

परीक्षण

यह रोग न्यूरोडिजनेरेटिव प्रकार का है, जिसमें रोगी की मानसिक स्थिति का परीक्षण (MSE) किया जाता है, जिससे रोग के निदान के साथ डिप्रेशन रोग से भी अंतर कर सकते है। इसमें रोगी का निरिक्षण (Observation) किया जाता है, जिसमें Appearance, orientaion (Recent, Past), भाषा, मूड, याददाश्त व सोचने की क्षमता (Thinking Abilities) से निदान होता है। सामान्य बुद्धि का आकलन जैसे- गणना (Calculation), Judgement, Presence or absence of Hallucination Or Delusions (भ्रम) देखा जाता है।

जांच (Investigetions)

  • रक्त में T, T. Folate, B2, Estimation EEG (रोग की अवस्था का पता चलना- Prognosis )
  • PEG (Pneumo Encephalograhy)
  • MRI
  • CT Brain (मस्तिष्क में प्लेक्स (plaques) व टैन्गल्स (Tangles) मिलते हैं)
  • Brain Biopsy

रोगी की देखभाल

अल्जाइमर्स एक लाइलाज रोग है। एक बार इस रोग के लक्षण पूरी तरह से विकसित हो जाने पर रोगी के उपचार पर कम, उसकी देखभाल पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता रहती है। ऐसा देखा जा रहा है कि इस रोग की प्रारंभिक अवस्था में पर्याप्त ध्यान देना शुरू कर दिया जाए तो कुछ हद तक रोगियों को आगे चलकर आने वाली परेशानियों से बचाए रखने में मदद मिलती है।

अल्जाइमर्स के रोगी की देखभाल करना भी कोई आसान काम नहीं होता है क्योंकि अन्य रोगियों से हटकर इस रोग से पीड़ित हो जाने पर व्यक्ति की देखभाल करने के लिए 24 घंटे भी कम पड़ने लगते हैं।

  • इसके रोगियों के साथ हमेशा हमदर्दी के साथ पेश आना चाहिए। उनके साथ आदेशात्मक व्यवहार नहीं करना चाहिए और न ही उनके साथ व्यर्थ में उलझना या बहस करनी चाहिए। ऐसा करने पर रोगी अपने अंदर बेचैनी महसूस करता है। इस कारण उसकी परेशानी पहले से बढ़ जाती है।
  • इन मरीजों के साथ सदैव संक्षिप्त लेकिन स्पष्ट शब्दों में ही बात करनी चाहिए ताकि वह आपकी बात ठीक से समझ संकेत। बात करते समय रोगी की आंखों में आंख डालकर बात करना ठीक रहता है।
  • एक बार में उसे एक काम करने के लिए कहना चाहिए।
  • रोगी के साथ बात करते समय उसके हाथ को स्पर्श करना या उसके सिर पर प्रेम से हाथ फेरते रहने से वह अपने अंदर आत्मीयता का अनुभव करने लगता है। इससे उसे अपने को संभालने में मदद मिलती है।
  • मरीज की दिनचर्या को लगातार बदलते रहना चाहिए। इससे वह बोरियत महसूस नहीं करता और फिर से नया सीखने लगता है।
  • मरीज को दिमागी तौर पर व्यस्त रखने के लिए उसे शारीरिक श्रम करने के लिए प्रोत्साहित करते रहना चाहिए।

चिकित्सा

अल्जाइमर्स रोग की चिकित्सा की कोई विशिष्ट तकनीक नहीं है। कुछ दवाएं इसे नियंत्रित कर गंभीर होने से रोक सकती हैं। अल्जाइमर्स पीड़ितों के मस्तिष्क में एसिटाइल कोलिन का स्तर नियंत्रित रहे। जितनी जल्दी इस रोग के बारे में पता चलेगा, इसका उपचार उतना ही आसान होगा।

अभी तक रोग की शुरुआत में या थोड़ी- बहुत याददाश्त की समस्या को दूर करने के लिए ही डोनेपजिल जैसी दवाओं का सेवन रोगियों को करवाया जाता है। इस दवा से कुछ आराम मिल पाता है। आजकल मस्तिष्क संबंधी रोगों में जिंको बिलावा नामक एक चाइनीज जड़ी-बूटी का उपयोग भी बहुतायत से किया जा रहा है, जिसका मस्तिष्कीय कोशिकाओं पर सीधा प्रभाव होते देखा गया है।

उपयोगी वनौषधियां

  • हल्दी: इसके सेवन से बुढ़ापे में याददाश्त ठीक बनी रहती है और बुढ़ापा तेजी से अपना असर नहीं दिखा पाता। इस बात को आधुनिक ,खोजों ने भी सही सिद्ध कर दिखाया है। हल्दी में जो कुरक्युमिन नामक जैव सक्रिय रसायन रहता है, वह मस्तिष्कीय कोशिकाओं पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव डालता है।
  • अश्वगंधा: आयुर्वेद शास्त्र में अश्वगंधा को रसायन द्रव्यों में शामिल किया गया है। अश्वगंधा के जैव सक्रिय रसायनों में रोगप्रतिरक्षकशक्ति को मजबूत बनाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट, शोथ शामक, मूत्रल, एंटीबायोटिक, एंटीवायरल और एंटीफंगस जैसे अनेक गुण पाए हैं। इसके सेवन से शरीर में नया खून बनने लगता है। इसका असर शरीर की अंतःस्रावी ग्रंथियों पर भी सीधे होते देखा गया है। अश्वगंधा के यह सब गुण व्यक्ति को वृद्धावस्थाजन्य रोगों से सुरक्षित रखने में मदद करते हैं।
  • आयुर्वेदिक औषधि– आयुर्वेदानुसार अल्जाइमर्स रोग में रसायन चिकित्सा के बेहतर परिणाम मिलते हैं। रसायन का अर्थ है, जो वृद्धावस्था व व्याधि को दूर करे। उत्तम पोषण के माध्यम से प्रशस्त धातुओं के निर्माण के उपाय को ही रसायन कहा गया है।

‘‘लाभोपायो हि शस्तानां रसादींना रसायन’’ (च.चि.1)

शरीर में प्रशस्त (मजबूत) धातुओं के निर्माण के परिणामस्वरूप मनुष्य में दीर्घायु, व्याधि प्रतिरोध क्षमत्व, मेधाशक्ति, प्रभा, वर्ण, स्वर, स्मरणशक्ति आदि की प्राप्ति होती है। अतः वृद्धावस्था संबंधी विकार दूर करने में रसायन सशक्त चिकित्सा है। यह मात्र औषधि व्यवस्था न होकर औषधि, आहार-विहार एवं आचार का एक विशिष्ट प्रयोग है, जिसका उददेश्य शरीर में उत्तम धातु पोषण के माध्यम से दीर्घायु, व्याधि प्रतिरोध क्षमत्व एवं मेधाशक्ति को उत्पन्न कर रोगों से बचाना है।

अल्जाइमर्स रोग में मेध्य रसायन व आचार रसायन का प्रयोग किया जाता है। महर्षि चरक ने 4 वनौषधियां बताई हैं- मंडूकपर्णी, यष्टिमधु, गुडुची व शंखपुष्पी। इसमें से मंडूकपर्णी व गुडूची का रस प्रयोग करते हैं। यष्टिमधु को दुग्ध के साथ लिया जाता है व शंखपुष्पी का संपूर्ण पौधा (जड़ व फल सहित) को पीसकर प्रयोग किया जाता है। आचार रसायन के अंतर्गत सद्व्यवहार पालन का वर्णन आता है। यह मस्तिष्क के लिए पोषण का कार्य करता है।

इसके अलावा स्मृति सागर रस, ब्राह्मी वटी, सारस्वतारिष्ट, अश्वगंधारिष्ट इत्यादि औषधि चिकित्सक के परामर्श से लें।

  • सारस्वत चूर्ण में वचा व ब्राम्ही घटक द्रव्य होते है, अतः 1-1 चम्मच सुबह-शाम लें।
  • 125 gm कुंकुम केसर को कुनकुने घी व शक्कर के साथ लेने से लाभ होता है।
  • वचा मूल का चूर्ण 1-1 चम्मच सुबह-शाम गाय के घी या शहद के साथ लें।
  • ब्राह्मी घृत 1 चम्मच सुबह दूध के साथ या ब्राह्मी व मंडूकपर्णी 30 ml रस को सुबह खाली पेट शहद के साथ लें। ब्राह्मी का प्रभाव Neuro Humorsacetylcholine, Acetylease & Cholinestearease पर अधिक पड़ता है।
  • आमलकी का मुरब्बा, अचार, सलाद या सब्जी के रूप में प्रयोग करें।
  • 6 ग्राम ब्राह्मी (छाया में सुखाई हुई), 6 बादाम व आधा ग्राम काली मिर्च को पानी में पीसकर शक्कर के साथ सुबह खाली पेट 2 सप्ताह लगातार लें।
  • आयुर्वेद में मेध्यगण व जीवनीयगण की औषधियां स्मरणशक्ति के लिए बतायी गई है।
  • पंचगव्य घृत, वचादि घृत, ब्राह्मी घृत, तिक्त जीवनीय घृत का सेवन लाभकारी बताया गया है।
  • ज्योतिषमती तेल की मालिश याददाश्त बढ़ाती है।
  • पंचकर्म-अल्जाइमर्स के रोगी को स्नेहन, स्वेदन, बृहण बस्ति, शिरोधारा-शिरोबस्ति (माषादि व माषबलादि तेल) व नस्यकर्म से लाभ मिलता है। शिरोधारा व नस्य क्रिया कम से कम 21 दिन तक की जाती है। शिरोधारा के लिए ज्योतिषती व ब्राह्मी तेल का प्रयोग किया जाता है व नस्य हेतु बृहण नस्य जैसे- अणु तेल, पंचेन्द्रियवर्धन तेल या षड्बिंदू तेल का उपयोग करते हैं। वृद्धावस्था में नित्य प्रतिदिन 2-2 बूंद गाय का घी नाक में डालने से मस्तिष्क को तरावट मिलती है व याददाश्त अच्छी रहती है।

आहार-विहार

वृद्धावस्था के साथ शरीर में कई तरह के जरूरी पोषक तत्व व विटामिन की कमी से अल्जाइमर्स जैसे रोग होते हैं, अतः संतुलित व पोषक आहार का सेवन आवश्यक होता है।

आहार विशेषज्ञों ने बीटा-कीरोटिन (विटामिन-ए का प्राकृतिक पूर्वरूप), विटामिन-सी, विटामिन-ई और से सेलनियम जैसे कुछ पोषक तत्वों का वर्णन किया है जो अल्जायमर्स रोग को विकसित होने से रोकने में मददगार साबित होते हैं। इन पोषक तत्वों को ही आजकल एंटी ऑक्सीडेंट पदार्थ के नाम से जाना जाता है। यह एंटी ऑक्सीडेंट तत्व गाजर, हरी पत्तेदार सब्जियों, मौसंबी, संतरा, नींबू जैसे फलों और अंकुरित गेहूं आदि में पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं।

सप्ताह में एक से दो बार तक मछली को शामिल कर लें तो कुछ हद तक अपने को अल्जाइमर्स रोग से बचा सकते हैं। दरअसल, मछली में ओमेगा-3 नामक वसा अम्ल पाया जाता है। शरीर में इस वसा अम्ल की काफी जरूरत होती है। इसलिए मछली के सेवन से लोग अल्जाइमर्स जैसे अनेक रोगों से बचे रहते हैं। अलसी (Flex Seed) में भी ओमेगा-3 नामक वसा अम्ल पाया जाता है। अतः वृद्धावस्था में या अल्जायमर्स रोग में इसका नित्य सेवन करें। साथ ही रात को भिगोए हुए बादाम नित्य सुबह चबा-चबाकर खाने से स्मरणशक्ति उत्तम रहती है।

  • मानसिक थकान व याददाश्त की कमी में रोज़मेरी की चाय लाभकारी है।
  • बादाम, अखरोट, अंजीर, मुनक्का प्रत्येक 10 ग्राम मात्रा में लें।
  • प्रतिदिन 1 सेब का सेवन शहद के साथ करें।
  • फाॅस्फोरसप्रधान फल जैसे- अंजीर, अंगूर, संतरा, खजूर याददाश्त बढ़ाने में उपयोगी हैं।
  • जीरा पाउडर में शहद मिलाकर सुबह लेने से याददाश्त तेज होती है।
  • पिसी हुई 5 काली मिर्च सुबह-शाम शहद के साथ लेने से लाभ होता है।
  • फाॅस्फोरसप्रधान आहार जैसे- अंकुरित अन्न, दालें, अंडे का पीला भाग, फलों का रस व गाय का घी उपयुक्त मात्रा में सेवन करें।
  • शारीरिक श्रम का महत्व- शारीरिक सक्रियता और व्यायाम का हमेशा शरीर पर व्यापक असर होते देखा गया है। शारीरिक सक्रियता के अभाव में शरीर अपनी मांसपेशियांे को तेजी से गंवाना शुरू कर देता है। पैदल चलते या सैर करते समय हमारे मस्तिष्क की कोशिकाएं तेजी से सक्रिय होने लगती हैं।

  • व्यायाम- अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि भस्त्रिका प्राणायाम के अभ्यास से मस्तिष्कीय कोशिकाओं, विशेष रूप से भावना और याद्दाश्त को बनाए रखने वाली कोशिका पर सीधा प्रभाव पड़ता है। भस्त्रिका प्राणायाम के नियमित अभ्यास से मस्तिष्कीय कोशिकाओं तक ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन पहुँचने लग जाती है तथा इससे मस्तिष्क लंबे समय तक सामान्य हालत में स्वस्थ रहकर अपने समस्त कार्य करता रहता है।

नई-नई चीजें सीखें

कई शोधों ने यह साबित किया है कि मस्तिष्क भी मांसपेशियों के समान ही कार्य करता है। जितना ज्यादा आप इसका इस्तेमाल करेंगे, उतना ही यह शक्तिशाली होगा। मानसिक व्यायाम नई मस्तिष्क कोशिकाओं के निर्माण में मदद कर, मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त रखते हैं। नई जटिल चीजें सीखें जैसे- कोई नई भाषा, चुनौतीपूर्ण खेल शतरंज वगैरह खेलें। ब्रेन गेम सुडोकू, क्रॉस वर्ड आदि भी बेहतरीन मानसिक व्यायाम हैं।

मानसिक गतिविधि पर ध्यान दें

नियमित रूप से पढे़ं-लिखें, दिमाग सक्रिय रहेगा। आप अपने दिमाग से जितना काम लेगे वह उतना ही दुरुस्त रहेगा। इन बातों की ओर ध्यान दें-

  • वजन न बढ़ने दें।
  • धूम्रपान न करें।
  • शराब का सेवन न करें या कम करें।
  • ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखकर इस रोग के खतरे से बच सकते हैं।

बुढ़ापे में वृद्धजनों को प्रेम, आत्मीयता, अपनत्व और सम्मान की आशा रहती है। यदि उन्हें ऐसा आत्मसम्मान भरा वातावरण मिलता रहता है। तो वे अल्जायमर्स जैसे रोग से निश्चित रूप से बचे रहते हैं। किन्तु जब वृद्धों को तिरस्कार, घृणा, तनावयुक्त वातावरण में रहकर समय व्यतीत करना पड़ता है, तो वे तेजी से अपना मानसिक संतुलन गंवाने लगते हैं। उनमें आगे चलकर अल्जायमर्स हृदय रोग, पार्किंसन्स जैसे अनेक रोग पैदा होने लग जाते हैं। अतः बुढ़ापे में वृद्धजनों के साथ उपेक्षा या तिरस्कार भरा व्यवहार न कर, उनके साथ प्रेम, अपनत्व और आत्मीयता वाला व्यवहार करना चाहिए। इससे उन्हें अपने को प्रसन्न रखकर स्वस्थ बनाए रखने में मदद मिलती है। साथ ही संतुलित व पोषक आहार, उचित देखभाल व आयुर्वेदिक औषधियों व पंचकर्म के द्वारा इन्हें स्वस्थ रखा जा सकता है।

डॉ. जी.एम. ममतानी
एम.डी. (आयुर्वेद पंचकर्म विशेषज्ञ)

‘जीकुमार आरोग्यधाम’,
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