Paralysis – Ayurvedic Panchkarma Treatment

पक्षाघात अर्थात लकवा ऐसा रोग है, जिसका आक्रमण होते ही रोगी सहित उसके परिवार के सदस्य भी घबरा जाते हैं। वैद्यकीय अनुसंधानों से ज्ञात हुआ है कि इस रोग का आगमन बहुधा 35 वर्ष की आयु पूर्ण होने पर ही होता है किंतु कई बार अल्पवयीन लोगों को भी इसका शिकार होते देखा गया है। महिलाओं की तुलना में पुरूषों को यह रोग होने की संभावना 30 प्रतिशत अधिक आंकी गई है। चिकित्सा जगत की उत्तरोत्तर प्रगति के फलस्वरूप इस कष्टसाध्य रोग से मुक्ति पाई जा सकती है। पक्षाघात के विभिन्न पहलुओं को हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनका ज्ञान सभी को होना आवश्यक है।

सामान्यतया वृद्धावस्था में होने वाले रोग ‘पक्षाघात‘ के संदर्भ में कुछ अवधारणाएं हैं। यह माना जाता रहा है कि यह व्याधि मस्तिष्क से संबद्ध है, किंतु मूल रूप से हृदय की रक्त संचारण प्रणाली के सुचारू ढंग से कार्य न करने की स्थिति में पक्षाघात होता है। रक्त संचारण में अवरोध के फलस्वरूप मस्तिष्क के उस भाग तक रक्त पहुंच नहीं पाता, जहां रक्त धमनी द्वारा उसकी आपूर्ति की जाती है। हाल के शोधों से ज्ञात हुआ है कि रक्त धमनियों में जमाव होने से यह स्थिति उत्पन्न होती है। यह स्थिति 75 प्रतिशत रोगियों में पाई गई है। अन्य प्रकरणों में रक्त नलिका के फट जाने (Haemorrhage) से रक्तस्राव इतना अधिक होता है कि उसकी आपूर्ति मस्तिष्क को नहीं हो पाती। यही कारण है कि इस रोग के पनपने का केंद्रीय स्थल मस्तिष्क को ही माना जाता है।

एकाएक प्रकट होता है रोग
पक्षाघात अचानक होने वाला आघात है, उदाहरण के तौर पर रात में रोगी सभी दैनिक कार्य निपटाकर सोता है पर दूसरे दिन क्या देखता है, उसके हाथ-पैर ढीले पड़ गए हैं, काम नहीं कर रहे। अचानक शरीर में इस प्रकार का परिवर्तन देखकर रोगी घबरा जाता है। आजीवन वह पूर्णतः दूसरों पर अवलंबित हो जाता है। ऐसे विकट परिस्थिति में उसका आत्मविश्वास डगमगा जाता है। उसे प्रतीत होता है मानो उसका संसार ही उजड़ गया हो। अतः एक कुशल वैद्य ही रूग्ण को धैर्य देकर उसका आत्मविश्वास बढ़ा सकता है।

कारण
मानव शरीर में मस्तिष्क महत्वपूर्ण अंग है। जिसे हम रिमोट कंट्रोल कह सकते है। यदि मस्तिष्क न होता शरीर की सभी क्रियाएं-प्रतिक्रियाएं संपन्न नहीं होती। मनुष्य ने आज तरक्की की सभी सीमाओं को लांघ दिया है, वह सब मस्तिष्क के कारण ही है। मस्तिष्क में जीवन के लिए आवश्यक सभी क्रियाओं के केंद्र उपस्थित रहते हैं जैसे नींद आना, भूख लगना, प्यास लगना, सुनना, हाथ पैर हिलना, बोलना, सूंघना, देखना, विचारशक्ति, स्मरणशक्ति इत्यादि। शरीरगत सभी क्रियाएं मस्तिष्क द्वारा ही संचालित होती है। अतः हमारे जीवन का संचालक या रिमोट कंट्रोल मस्तिष्क ही है, इसमें कोई दो राय नहीं है। इस मस्तिष्क को भरपूर रक्तप्रवाह आबाध गति से होता रहता है, यदि इसमें कोई स्थान पर रुकावट आई तो उस संबंधित केन्द्र के अवयवों पर प्रभाव पड़ता है और उससे कई रोग होते है, जिसमें से एक पक्षाघात है, सामान्य भाषा में इसे लकवा कहते हैं। अतः पक्षाघात का प्रमुख कारण मस्तिष्क संबंधी ही है। मस्तिष्क अपना कार्य उस स्थिति में व्यवस्थित रुप से करता है, जब उसे रक्त प्रवाह के द्वारा आक्सीजन की निरंतर आपूर्ति होती है। यदि किसी कारणवश मस्तिष्क को रक्त प्रवाह बंद हो गया, तो लकवा हो सकता है।
लकवे के मुख्य कारणों में ब्लड प्रेशर का बढ़ना, शुगर का बढ़ना, मस्तिष्कगत रक्तप्रवाह किसी कारण से बाधित होना जैसे मस्तिष्क में थोम्बोसीस (रक्त का थक्का जमना) या एम्बोलिसम की स्थिति, मस्तिष्कगत शुद्ध रक्तवाहिनियों का फटना (ब्रेन हिमरेज़), रक्त में कोलेस्ट्राल की मात्रा बढ़ना (एथेरोस्कलेरासिस), व्यायामादि का पूर्णतः अभाव, रक्तगतविकार जैसे सिकल सेल, पालीसाइथेमिया, आहार -विहार का पालन ठीक से न करना, ज्यादा चिंतन, मादक द्रव्यों का अति सेवन, आघात। लकवा अधिकतर तंत्रिका तंत्र को क्षति उत्पन्न होने से होता है, विशेषकर मेरूदंड को क्षति होने से।

  • अन्य प्रमुख कारणों में स्ट्रोक, ट्यूमर और आघात लगना (गिरने या टकराने से) हैं।
  • मल्टीपल स्कलेरोसिस (एक रोग जो तंत्रिका कोशिकाओं की सुरक्षा परत को नष्ट कर देता है।)
  • सेरिब्रल पाल्सी (मस्तिष्क की बनावट में विकृति या उसे लगी चोट से उत्पन्न स्थिति)।
  • मेटाबोलिक विकार (इसमें शरीर की स्वयं को संतुलित रखने की क्षमता में अवरोध होता है)।
  • विष तथा विषैले तत्व।
  • विकिरण। इत्यादि कारण है जिनसे पक्षाघात होने की संभावना है।

लक्षण
पक्षाघात के लक्षणों में एक ओर के हाथ-पैर ढीले हो जाते हैं, उस ओर का भाग संवेदनाहीन, कोई हलचल नहीं होती, किसी चीज को पकड़ने में असमर्थता, उठने-बैठने में असमर्थता, चलने-फिरने में असमर्थ इस तरह रोगी का पूर्ण जीवन ही अपाहिज सा होता है। यदि मस्तिष्क के बांयी ओर इस पक्षवध का कारण उपस्थित होता है तो वहीं वाणी का केंद्र उपस्थित होता है। ऐसी स्थिति में दोनों हाथ पैर ढीले पड़ने के साथ जिव्हा व वाणी पर भी प्रभाव पड़ता है जिसे अर्दित (फेशियल पैरालिसिस) कहते हैं। इसमें रोगी का मुख एक ओर टेढ़ा हो जाता है, लार टपकती है, बोलने में असमर्थता, वाणी में अस्पष्टता इत्यादि लक्षण होते है।

पक्षाघात के अन्य लक्षण
इस रोग की प्रारंभिक अवस्था में मरीज की उंगलियों में कमजोरी आ जाती है। इसका समुचित कारण जानकर उपचार करना आवश्यक है अन्यथा कुछ घंटों में ही रोगी को यह व्याधि जकड़ लेती है। कई लोगों को यह आघात सोते समय पहुंचता है। जागने के बाद ऐसे रोगियों के आघातग्रस्त भाग में शक्ति शेष नहीं रहती, अंग हिलडुल नहीं सकते। जिन लोगों पर यह व्याधि जागते समय आक्रमण करती है, उनमें से कुछ अचेत होकर गिर भी पड़ते हैं। इससे वे कभी-कभी गंभीर रुप से घायल भी हो सकते हैं।

  • कुछ रोगियों के अंगों में आई दुर्बलता बिना किसी चिकित्सा के ही, कुछ दिनों में दूर हो जाती है किंतु कुछ दिनों के बाद पुनः यह आघात होता है अथवा शरीर का दूसरा हिस्सा कमजोर पड़ जाता है।
  • पक्षाघात के ऐसे रोगी भी पाए गए हैं जिनकी आंखों की दोनों पुतलियां एक ओर घूम जाती हैं। कुछ रोगियों को 2-2 वस्तुएं दिखने लगती हैं अथवा एक ओर की चीजें धुंधली दिखती हैं व चक्कर आते हैं।
  • जो रोगी बेहोशी की दशा में उपचारार्थ अस्पताल लाए जाते हैं, उनकी सांस तेज चलती है तथा शरीर का तापमान भी बढ़ जाता है। वे मल-मूत्र विसर्जन रोक नहीं पाते। इसके अलावा जी मिचलाना, शरीर कांपना, सिर में अत्यधिक पीड़ा आदि लक्षण भी दृष्टिगत होते हैं।

प्रकार
लकवा रोग निम्नलिखित प्रकार का होता है-
निम्नांग का लकवा (Paraplegia) – इस प्रकार के लकवा रोग में शरीर के नीचे का भाग अर्थात कमर से नीचे का भाग काम करना बंद कर देता है। इस रोग के कारण रोगी के पैर तथा पैरों की उंगुलियां अपना कार्य करना बंद कर देती हैं।
अर्धांग का लकवा (Hemiplegia) – इस प्रकार के लकवा रोग में शरीर का आधा भाग कार्य करना बंद कर देता है अर्थात शरीर का दायां या बायां भाग कार्य करना बंद कर देता है।
एकांग का लकवा (Monoplegia) – इस प्रकार के लकवा रोग में मनुष्य के शरीर का केवल एक हाथ या एक पैर अपना कार्य करना बंद कर देता है।
पूर्णांग का लकवा (Quadriplegia) – इस लकवा रोग के कारण रोगी के दोनों हाथ या दोनों पैर कार्य करना बंद कर देते हैं।
मेरूरज्जा-प्रदाहजन्य लकवा – इस लकवा रोग के कारण शरीर का मेरूरज्जा भाग कार्य करना बंद कर देता है।
मुखमंडल का लकवा (Facial Paralysis) – इस रोग के कारण रोगी के मुंह का एक भाग टेढ़ा हो जाता है जिसके कारण मुंह का एक ओर का कोना नीचे दिखने लगता है और एक तरफ का गाल ढीला हो जाता है। इस रोग से पीड़ित रोगी के मुंह से अपने आप ही थूक गिरता रहता है।
जीभ का लकवा – इस रोग से पीड़ित रोगी की जीभ में लकवा मार जाता है और रोगी के मुंह से शब्दों का उच्चारण सही तरह से नहीं निकलता है। रोगी की जीभ अकड़ जाती है और रोगी व्यक्ति को बोलने में परेशानी होने लगती है तथा रोगी बोलते समय तुतलाने लगता है।
स्वरयंत्र का लकवा – इस रोग के कारण रोगी के गले के अंदर के स्वर यंत्र में लकवा मार जाता है जिसके कारण रोगी व्यक्ति की बोलने की शक्ति नष्ट हो जाती है।
आजकल कुछ नीम- हकीम पक्षाघात के लिए बिना रोगी का परीक्षण कर व बिना कारण जाने सभी को एक समान चिकित्सा देते हैं जो कि सर्वथा गलत है। अतः रुग्ण का पूर्ण परीक्षण कर कारणानुसार चिकित्सा करनी चाहिए।

औषधि
औषधि में बृहत वात चिंतामणि 1 वटी सुबह-शाम, अश्वगंधारिष्ट 2 चम्मच के साथ नियमपूर्वक 3 माह तक लीजिए। हाइ ब्लड प्रेशर के कारण पक्षाघात होने पर उपरोक्त औषधि के साथ सर्पगंधाघन वटी सुबह-शाम सारस्वतारिष्ट 2-2 चम्मच के साथ लें। सामान्यतः पक्षाघात के रुग्णों को एकांगवीर रस 5 ग्राम, महायोगराज गुग्गुल 5 ग्राम, महावातविध्वंस रस 5 ग्राम, समीर पन्नग रस (सुवर्ण युक्त) 1 ग्राम व ब्राम्ही वटी 5 ग्राम की 40 पुड़ियाँ बनाकर सुबह-शाम बलारिष्ट 2 चम्मच के साथ नियमित 3 माह तक जारी रखें। कब्ज की शिकायत होने पर त्रिफला चूर्ण व एरण्ड तैल 2-2 चम्मच रात को सोते समय लें। चिकित्सा योग्य चिकित्सक के परामर्शानुसार ही लेना चाहिए।

परिजनों का दायित्व

चैतन्य अवस्था में :
आघातग्रस्त रोगी को तत्काल हवादार स्थान पर बिठाएं अथवा लिटा दें।

  • उसे सांत्वना देते रहें कि वह जल्द ही ठीक हो जाएगा ताकि अत्यधिक घबरा न जाए। यदि वह कुछ बोल न पा रहा हो तो भी ढाढ़स बंधाते रहें क्योंकि वह सुन तो सकता है।
  • रोगी को तुरंत अस्पताल में भर्ती करने की व्यवस्था करनी चाहिए। ले जाते समय वाहन धीमी गति से चलाएं।
  • उसे तब तक खाने-पीने की कोई भी वस्तु न दें, जब तक डॉक्टर न कहे।

रोगी यदि अचेत हो
इस स्थिति में भी स्थान का हवादार होना आवश्यक है।

  • ऑक्सीजन की आपूर्ति के साथ ही नाड़ी व हृदयगति का ध्यान रखें।
  • उसके आघातग्रस्त अंगों को नीचे की ओर रखें। उनकी सुरक्षा के लिए पैडिंग का उपयोग किया जा सकता है।
  • अचेत रोगी को शीघ्र अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था करें।

रोग से बचने हेतु सावधानियां

  1. पक्षाघात का प्रमुख कारण उच्च रक्तचाप है। अतः डाक्टर की सलाह से औषधि सेवन करते हुए इसे नियंत्रित रखना आवश्यक है।
  2. एकाएक दुर्बलता का आभास, एक ओर अंगों का सुन्न पड़ जाना, कुछ समय तक बातचीत अथवा सोचने-समझने में असमर्थ हो जाना, अचानक कम दिखने लगना आदि लक्षण प्रकट होने पर तुरंत चिकित्सकीय मार्गदर्शन आवश्यक है। कारण कि ट्रान्सीएन्ट इश्चेमिक अटैक (Transient Ischaemic Attack) के रोगियों को 5 वर्ष में पक्षाघात होने की आशंका बनी रहती है।
  3. आहार-विहार को संयमित रखकर कोलेस्ट्राल के स्तर को बढ़ने से सदैव रोकें।
  4. स्मरण रहे अधिक धूम्रपान करने से कैरोटिड आर्टरी (Carotid Artery) में अवरोध उत्पन्न हो जाता है, जो पक्षाघात का कारण बन सकता है। यथासंभव मद्यपान से भी दूर रहें।
  5. नियमित रूप से व्यायाम आवश्यक है। इससे शरीर का वजन संतुलित रहता है। वायुवीय व्यायाम (Aerobic Exercise) से शरीर का भार कम होता है। परिणामतः रक्तचाप नियंत्रित रहता है। इससे पक्षाघात के आक्रमण की संभावना नगण्य हो जाती है।
  6. क्षयरोग (टी.बी.) के लक्षण दिखने अथवा इस रोग की पुष्टि होने पर तत्काल में यह पक्षाघात का कारण बन सकता है।
  7. मधुमेह के रोगियों को पक्षाघात की संभावना अधिक रहती है। अतः नियमित औषधि के सेवन करते रहें।

सामान्यतया औषधियों व विशिष्ट क्रियाओं से पक्षाघात के रुग्ण पुनः अपनी दैनिक चर्या कष्टरहित व्यतीत कर सकते हैं। यह विशिष्ट क्रियाएं सेरिब्रल पाल्सी द पोलियों में भी लाभदायी पाई गई हैं।
जीकुमार आरोग्यधाम में पक्षाघात के कई रूग्णों को आशातीत परिणाम मिल रहा है। इमरजंसी चिकित्सा के पश्चात पक्षाघात के रूग्णों में आयुर्वेदिक औषधियों के साथ पंचकर्म की विशिष्ट क्रियाएं करने से रोगी पुनः अपनी दैनिक कार्य स्वयं करने में समर्थ हो जाते है। यह उपचार 7 से 21 दिन हॉस्पिटल में एडमिट करके किया जाता है।

डॉ. जी.एम. ममतानी
एम.डी. (आयुर्वेद पंचकर्म विशेषज्ञ)

‘जीकुमार आरोग्यधाम’,
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