शीतपित्त ददोड़ेयुक्त खुजली

Sheetpit

अक्सर कुछ व्यक्ति त्वचागत् जलन व लालिमायुक्त लाल चट्टों से परेशान रहते है। यह तकलीफ आयुर्वेदानुसार शीतपित्त है जिसे आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में अर्टिकेरिया कहते हैं, आधुनिक शास्त्रों ने इसे एलर्जी कहा हैं। एलर्जी या शीतपित्त शरीर की एक प्रतिक्रिया है जो उन पदार्थों के खाने या छूने से उत्पन्न होती है। जो उस व्यक्ति की प्रकृति के अनुकूल नहीं होते। आयुर्वेद शास्त्र अनुसार अनुकूल पदार्थो को सात्म्य और प्रतिकूल पदार्थ को असात्म्य पदार्थ कहते हैं। यही असात्मय पदार्थ शीतपित्त के कारणीभूत घटक है। मराठी में इसे गांधी उठणे व आमभाषा में पित्ती उठना कहते है।

हमारे शरीर में त्वचा शरीर का सबसे बड़ा अंग होता है जो कि अपने नीचे पाई जाने वाली कोशिकाओं, ऊतकों आदि को दूषित वायु, जल, बैक्टेरिया आदि हानिकारक तत्वों से बचाती है। किन्तु वर्तमान जीवनशैली में अनियमित दिनचर्या एवं आहार-विहार के दुष्प्रभाव से अनेकानेक त्वचा संबंधी रोग उत्पन्न हो रहे हैं। अर्टिकेरिया (Urticaria) नाम से त्वचा संबंधी व्याधि बहुत हो रही है। आधुनिक मत से यह एलर्जी संबंधित रोग है जो कि शरीर के लिये अहितकर द्रव्यों के सम्पर्क में आने या अहितकर भोजन में सेवन किये जानेवाले भोज्य पदार्थ से उत्पन्न होती है जिसके अंतर्गत मांस, अंडा, कुनैन के योग, कृमि आदि मुख्य है।
Urticaria is vascular reaction of skin characterized by the transcient appearance of elevated patches which are redder or paler than the surrounding skin and often attended by itching
कुछ वर्ष पूर्व आइसक्रीम फैक्ट्री के मालिक इसी समस्या से ग्रस्त जीकुमार आरोग्यधाम में आये थे। इस मरीज को ठंडे पदार्थो के संपर्क से शीतपित्त होता था। आधुनिक चिकित्सा पद्धति की हर दवा, हर तरीका आजमाया परंतु तात्कालिक लाभ के अलावा कुछ हाथ न आया। साथ ही परहेज के रूप में खान-पान की लंबी चौड़ी लिस्ट मिली, इसमें विशेषतः ठंडे पदार्थ के संपर्क में न आने की हिदायत दी गई। आइस्क्रीम फैक्ट्री का मालिक ठंडे पदार्थ से दूर रहे, यह असंभव था। घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो क्या खायेगा ? हमने उसे शास्त्रोक्त आयुर्वेदिक चिकित्सा दी, आज वह पूर्ण रूप से स्वस्थ है और आहार में कोई परहेज नहीं रखते। इसी तरह इनकी परिचित भी कई वर्षों से अत्यधिक दाह युक्त खुजली से त्रस्त थी, नागपुर के अनेक त्वचारोग विशेषज्ञों व नामी वैद्यों से औषधि लेने पर भी आराम तो नहीं हुआ उल्टा रोग बढ़ता गया। यहां तक कि अत्यधिक खुजली होने पर नींद की इंजेक्शन लगवाने की नौबत आयी। आरोग्यधाम के चिकित्सोपक्रम ने उन्हें चामत्कारिक परिणाम दिया। इस प्रकार त्वचागत रोग शीतपित्त का इलाज आयुर्वेद में है।
अर्टिकेरिया में पूरे शरीर की त्वचा पर खुजली सहित लाल रंग के चकते निकल आते है, यह व्यक्ति की दिनचर्या को प्रभावित करता है। वास्तविक तौर पर शीतपित्त अहितकर या असात्म्य पदार्थों की तुरंत प्रतिक्रिया है जिसमें हिस्टामिन का स्राव त्वचा की मास्ट कोशिकाओ द्वारा होता है फलस्वरुप कोशिकाओ के फैलने से रक्त वाहिकाओं की पारगम्यता (Permeability) बढ़ जाती है और खुजली सहित चकते उभर आते है। यह तीव्र (Acute) तथा जीर्ण (Chronic) भेद से दो प्रकार का होता है। यदि यह चकते एलर्जी से तुरंत या अचानक पूरे शरीर में हो तो यह तीव्र है और छः सप्ताह से ज्यादा हो तब जीर्ण है।

शीतपित्त के कारणीभूत घटक

कृमि रोग, मूत्रवह संस्थान में संक्रमण, यकृत जन्य रोग, मुख्यतः घास, पॉलन ग्रेन, धूल, आहारद्रव्य की एलर्जी, कुछ विशिष्ट रसायनों का त्वचा से संपर्क जैसे परफ्यूम, ठंडे पदार्थ, सीमेंट इत्यादि कुछ औषधि द्रव्य के साइड इफेक्ट के रूप में शीतपित्त होता है, जैसे एन्टीबायोटिक, एन्टीसेरा, एनालजेसिक, वैक्सीन इत्यादि। आयुर्वेदानुसार असात्म्य पदार्थ व विपरीत गुण वाले आहार के सेवन से शीतपित्त होता है। इसके अलावा किसी मच्छर के दंश से भी शीतपित्त होता है। कुछ व्याधियां जैसे पीलिया, मलेरिया व आमवातिक ज्वर के फलस्वरूप शीतपित्त होता है।
कई बार चोट लगने या कीड़ा आदि के काटने से वहां की त्वचा लाल रंग की हो जाती है। लेकिन यदि बार-बार वहां कीड़ा काटे या चोट लगे तो त्वचा लाल रंग की नहीं होती । ठीक उसी तरह किसी पदार्थ के खाने से यदि त्वचा पर चकते आते हैं। यदि वही पदार्थ अल्प मात्रा में कुछ दिनों तक लगातार प्रयोग किया जाए तो चकते निकलना बंद हो जाते हैं अर्थात इसका तात्पर्य है कि कोई भी नवीन पदार्थ शरीर के लिए हानिकारक या असहनीय होता है जिसे आयुर्वेद में असात्म्य कहते हैं किंतु कुछ समय के प्रयोग के पश्चात वह पदार्थ शरीर के लिए लाभदायक अर्थात सात्म्य हो जाता है। इसी प्रकार हमारे शरीर की एक प्रक्रिया है कि जीवाणुओं के आक्रमण करने पर वह उसके विपरीत एंटीबाडीज उत्पन्न करता है। जो शरीर को हानिकारक द्रव्यों के दुषप्रभाव से बचाता है। इसे ही शरीर की रोग निवारक शक्ति (Immunity Power) कहते हैं।

कई महिलाओं को गर्भावस्था में शीतपित्त के लक्षण दिखाई देते है। इसके अलावा साबुन, डिटर्जेंट, पेन्ट, सौन्दर्य प्रसाधन, कीटनाशक रसायन के त्वचा पर सीधे संपर्क से भी तीव्र एलर्जी हो शीतपित्त हो सकता है। शरीर के किसी स्थान पर उपस्थित ‘बी कोलाइ’ जीवाणु के खून में प्रविष्ट होने से भी शीतपित्त हो सकता हैं।

आयुर्वेद मत

आयुर्वेद में शरीर के स्वास्थ्य पर विशेष बल दिया गया है। इसी कारण विरुद्धाहार, दिनचर्या, आचार रसायन आदि का वर्णन किया गया है। एलर्जी हमारे शरीर की रोग

प्रतिरोधक क्षमता के फलस्वरुप होने वाली प्रतिक्रिया है जो कि कुछ पदार्थ का शरीर से संपर्क होने पर तेजी से होती है। ऐसे पदार्थों को एलर्जन कहा जाता है। जब तक हमारे शरीर में व्याधि क्षमत्व या रोगप्रतिरोधकक्षमता मजबूत रहती है तब तक एलर्जी नहीं होती। रसायन द्रव्यों के प्रयोग द्वारा रोगप्रतिरोधकक्षमता का विकास किया जा सकता है। इसी प्रकार आयुर्वेद में सभी रोगों का कारण अग्निमांद्य को माना गया है क्योंकि अग्निमांद्य होने पर सेवन किये हुये आहार से आम (Undigested Food) का निर्माण होता है जोकि एलर्जी में सहायक कारण बनता है क्योंकि यह आम रस-रक्त के साथ मिलकर पूरे शरीर में भ्रमण करता हुआ त्वचा के नीचे संचित हो जाता है और वहां पर उभार पैदा कर चकता या ददोड़ा बना देता है जिसे शीतपित्त कहा जाता है। आयुर्वेदानुसार उपरोक्त हेतु (एलजर्न / असात्मय पदार्थ) से कफ तथा वात प्रकुपित होकर पित्त के साथ मिलकर त्वचा तथा अन्दर की रक्तादि धातुओं में फैलकर शातपित्त रोग को उत्पन्न करते हैं। इसमें त्वचा में ततैया के काटने के समान चकते निकल आते है तथा अत्याधिक खुजली होती है। कभी-कभी सुई चुभोने के समान पीड़ा भी होती है। कफ दोष की प्रबलता होने पर रक्तवर्ण के खुजली युक्त चकते होते है।

विकृति (Pathology)

मनुष्य की अंतः त्वचा की रक्तवाहिनियों पर जब किसी विपरीत द्रव्य का विनाशक प्रभाव होता है तब शीतपित्त का रोग होता है। जब अंतः त्वचा के नीचे वसामय स्तर की रक्तवाहिनियों पर एंटीजन (Antigen) का दुष्प्रभाव होता है तब उभारयुक्त सूजन हो जाती हैं। त्वचा के इन अवयवों के विपरीत द्रव्य के द्वारा नष्ट होने पर एक पदार्थ उत्पन्न होता है जिसे हिस्टॉमिन (Histamin) कहते हैं जो रोग का कारण हो जाता है अतः यह हिस्टॉमिन विष पाया जाता हैं।
लक्षण :- इस व्याधि में मुख्यतः शरीर के किसी भाग में अत्यंत खुजली होकर वर्तुलाकार लाल चकता उभरता है व उसमें तीव्र जलन उत्पन्न होती है। यह तकलीफ 48 घंटे में स्वयं ही कम हो जाती है। परंतु ऐसा तीव्रावस्था में होता है। शीतपित्त के दो प्रकार कहे है तीव्र व जीर्ण। तीव्र शीतपित्त का रोगी 1-2 दिन में स्वयं ही रोगमुक्त हो जाता है, जबकि जीर्ण शीतपित्त दीर्घकाल तक शरीर में रहता है।
इस एलर्जी के और भी अनेक कारण हो सकते हैं। गंभीर होने पर एलर्जी त्वचा में एक्जिमा जैसी गंभीर रोगों को भी जन्म देती है। इसके अतिरिक्त कभी-कभी एलर्जी अपना कार्यक्षेत्र भी बदल लेती है, जैसे त्वचा की एलर्जी श्वसनतंत्र में भी प्रवेश कर जाती है फलस्वरुप दमा जैसे रोग हो जाते हैं। श्वसन तंत्र एलर्जी में अधिक छींक आना, नाक में खुजली, नाक से अधिक स्राव निकलना, खांसी एवं श्वास लेने में कष्ट अर्थात श्वासकष्ट जैसे लक्षण मिलते हैं। ये लक्षण यदि अधिक दिन तक रहें तथा बार-बार एलर्जी के अटैक होते रहें तथा एलर्जी के कारण दूर न हों, उनका बार-बार शरीर सम्पर्क होता रहे तो उसे एलर्जिक ब्रोन्काइटिस कहते हैं और तब कष्टदायक रोग श्वास रोग (Asthma) में बदल जाता है। अतः एलर्जिक घातकता को कम नहीं आंकना चाहिये।

एलर्जी से बचने के उपाय
इस रोग से बचने के लिये आहार एवं विहार पर विशेष ध्यान देना चाहिये, क्योंकि हर ऋतु में आयुर्वेद के बताये तरीके से रहन-सहन करने पर मनुष्य रोगों से बच सकता है।

  • सर्दियों में रजाई से उठकर एकदम बाहर न निकलें। गर्म पानी से स्नान कर, कपड़े पहनकर, शरीर ढककर बाहर निकलें।
  • गर्मियों में भी धूप से आकर पसीने से भीगे हुए एकदम स्नान या ठंडी जगह ए.सी.आदि में न जायें।
  • शरीर को एक साथ ठंड एवं गर्म से बचाव करना अर्थात ठंडे वातावरण से एकदम धूप में न जायें। कसरत या शारीरिक परिश्रम के तुरंत बाद नहीं नहाना चाहिए। ज्यादा गरम पदार्थो का सेवन न करना तथा जो पदार्थ विरुद्ध हो, उनका त्याग कर देना चाहिए।
  • विरुद्ध आहार, जैसे-मछली दूध कभी सेवन न करें।
    रासायनिक द्रव्यों व सौंदर्य प्रसाधन साम्रगी का सेवन सावधानी पूर्वक करें।
    . सिंथेटिक कपड़ों का प्रयोग कम करें।

चिकित्सा :- आयुर्वेद में चिकित्सा का प्रथम सिद्धांत यह है कि जिस कारण से रोग उत्पन्न हुआ हो उसका परिवर्जन या दूर करना ही चिकित्सा है। अतः जिस भोज्य पदार्थ के सेवन से या द्रव्य के स्पर्श से एलर्जी हो उससे दूर रहना एवं उसका पता लगाना।
इस रोग की चिकित्सा के लिये सामान्यतः व्यक्ति एंटी एलर्जी अर्थात एंडी हिस्टेमिन नामक गोलियां लेता रहता है, कभी-कभी तो स्टीराइड भी लेता है। इस प्रकार की दवाइयां एलोपैथिक चिकित्सा की होती हैं, परंतु यह सफल चिकित्सा नहीं है। आयुर्वेद में इसकी चिकित्सा का विस्तार से वर्णन मिलता है।

  • सबसे पहले रोगी की मन्दाग्नि होने पर जठराग्नि की चिकित्सा करें, जैसे चित्रकादि वटी, त्रिकटु चूर्ण दें।
  • कृमि होने पर कृमिघ्न चिकित्सा जैसे-कृमिकुठार, कृमिमुद्गरस का सेवन करें।
  • शरीर की प्रतिरोधकता बढ़ाने के लिये गिलोय तथा आंवले का प्रयोग करें।
  • स्वर्ण गैरिक (सोना गेरु) को घी में भूनकर चार-चार रत्ती की मात्रा में चार बार मधु से चटायें।

औषधि

चिकित्सक को शीतपित्त के कारण का निदान कर तद्नुसार चिकित्सा करनी चाहिए। सामान्यतः लाक्षणिक चिकित्सा में सूतशेखर व कामदूधा रस 1-1 वटी सुबह-शाम महामंजाष्ठिादि काढ़ा के साथ लेनी चाहिए। गुडुचीसत्व 2 चम्मच या गुडुची चूर्ण 1 चम्मच या गुडुची टेबलेट 1 सुबह खाली पेट लें।

  • मौक्तिक भस्म दूध या गुलकंद के साथ लें।
  • चंदनादि वटी 1-1 सुबह-शाम लें।
  • गुलकंद (प्रवाल युक्त) 1-1 चम्मच तीन से चार बार लेने से शरीर दाह में विशेष उपयोगी हैं।
  • चित्रक, वायविडंग, नागरमोथा का समभाग चूर्ण में से एक चौथाई चम्मच सुबह-शाम दूध के साथ लें।
  • स्वर्ण माक्षिक भस्म 125 मि.लि ग्राम पंचकोलासव 2-2 चम्मच के साथ सुबह-शाम लें।

शीतपित्त में मुख्यतः शास्त्रो में वर्णित हरिद्राखण्ड 1 चम्मच सुबह-शाम लेने से अच्छे परिणाम मिलते है। इसके अलावा चंदनबलालाक्षादि तैल लगाएं। कृमि होने पर कृमिकुठार रस 1 वटी विडुंगारिष्ट 2 चम्मच के साथ सुबह-शाम ले। लघु मालिनी वसंत व लघु सूतशेखर 1-1 वटी सुबह-शाम खाली पेट लें। कैल्शियम की कमी के कारण शीतपित्त में अन्य औषधियों के साथ प्रवाल भस्म 200 Mg दूध के साथ लें। महिलाओं में हॉर्मोन्स असंतुलन के कारण शीतपित्त होने से अन्य औषधियों के साथ अशोकारिष्ट लें। शीतपित्त के रूग्णों ने त्रिफला चूर्ण रात को सोते समय लें।

रक्तशोधक चूर्ण – उशब्बा, गोरखमुंडी, मंजिष्ठा, शरपुंखा की जड़, चिरायता, कुटकी, सफेद चंदन, लाल चंदन, शीशम की लकड़ी का बूरादा सबको बराबर लेकर चूर्ण बनाएं। प्रतिदिन 1-1 चम्मच चूर्ण सुबह-शाम ठंड़े पानी के साथ लें।

योगरत्नाकर के अनुसार

1) अमृतादि योग गुडूची, हल्दी, नीम की छाल तथा धमासा (यवासा), इनमें से किसी एक का क्वाथ पान करने से प्राणियों को प्रण देने वाला हैं तथा शीतपित्त को नष्ट करने वाला है।
2) अग्निमन्थ योग अग्निमन्थ (गनियारी) की जड़ को पीस कर घृत में मिलाकर पान करने से एक सप्ताह में शीतपित्त तथा अन्य त्वचा रोग को नष्ट करता है।
3) निम्बपत्र योग नीम की पत्तियों का चूर्ण घृत के साथ
प्रयोग करे या नीम की पत्ती तथा आंवला के चूर्ण को घृत के साथ प्रयोग करे। यह योग विस्फोटक, कोठ रोग, क्षत, शीतपित्त, कण्डू तथा रक्तपित्त को नष्ट करता है।

पंचकर्म

पंचकर्म के द्वारा दोषों को निकाल देने से उनके पुनः उभरने की संभावना नही रहती है जबकि लंघन-पाचन आदि औषधियों द्वारा शमन करने पर वे पुनः समय पाकर पुनः प्रकुपित हो जाते है। यह शरीर शुद्धि की विधि होती है जैसे गंदे कपड़े के रंगने से रंग नही चढ़ता परंतु स्वच्छ वस्त्र पर रंग शीघ्र चढ़ता है।
आयुर्वेदानुसार हर रोग की तरह शीतपित्त में भी तीनों दोषो की दुष्टि रहती है परंतु मुख्यतः दाह, लालिमा, पीडिकाएं आना पित्त दोष की दुष्टि के लक्षण है तथा कण्डू व ददोड़े होना कफ दोष की दुष्टि के कारण होता है, अतः पंचकर्म चिकित्सा के सिद्धांत के अनुसार वमन व विरेचन कर्म करना शीतपित्त में श्रेयस्कर है।
शीतपित्त में परवल के पत्ते, नीम तथा वासा के क्वाथ से वमन कराया जाता है तथा विरेचन (Purgation) के लिये त्रिफला, गुग्गुल तथा पिप्पली का प्रयोग आचार्यो द्वारा बतलाया गया है। महातिक्त घृत का पान कराकर रक्तमोक्षण भी किया जा सकता है।
सेंधा नमक, यवक्षार व सरसों का तेल सम भाग में लेकर शरीर पर मर्दन करें।

घरेलू नुस्खे

मुख द्वारा गुड़ के साथ अजवायन खाना, नवकार्षिक गुग्गुल (त्रिफला तीन भाग, गुग्गुल एक भाग, पिप्पली 1 भाग), त्रिकटु का चीनी के साथ सेवन, आंवलों का गुड़ के साथ सेवन, तथा नीम के पत्तों तथा आंवलों को एकत्र पीसकर घृत मिलाकर प्रयोग करना भी लाभप्रद है। इसके अलावा निम्नलिखित में से 1-2 नुस्खे सुविधापूर्वक अपनायें।

  • सब्जी इत्यादि में हल्दी अधिक उपयोग करें। दूध में हल्दी व शक्कर मिलाकर लें सकते है।
  • प्याज व लहसुन अधिक लें।
  • शहद में त्रिफला चूर्ण मिलाकर खाने से शीतपित्त में आराम होता है।
  • पुराने गुड़ में अदरक का रस मिलाकर पीने से मंदाग्नि में आराम होकर शीतपित्त ठीक होता है।
  • गाय के घी में कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर खाने से लाभहोता है।
  • त्रिकुट चुर्ण, अजवायन, सोंठ गुड़ में मिलाकर लेने से लाभ मिलता है।
  • खुरासानी अजवाईन 100 ग्रॉम दिन में 3 बार लें।
  • अजवाईन चूर्ण व गुड़ दोनों को 1-1 ग्रॉम सुबह- शाम लेने से शीतपित्त की समस्या से छुटकारा मिलता हैं।
  • एक कप पानी में 8-10 पुदीने की पत्तियां व 1 चम्मच शक्कर मिलाकर सेवन करें।
  • नीम की जड़ की छाल, गिलोय, कुटकी, हरड़, सोंठ, लालसाठी की जड़ बराबर लेकर कुल 5 से 20 ग्रॉम को आठ गुना पानी औटाकर चौथाई पानी बचने तक काढ़ा बनाकर पीने से शीतपित्त दूर होता हैं।
  • यदि बार-बार पित्ती निकलने की शिकायत हो तो कुछ दिन तक छोटी पिपल का चूर्ण, चौथाई से 1 ग्रॉम तक शहद मिलाकर चटाएं तथा ऊपर से दुध पिलाएं।
  • सोंठ, काली मिर्च, छोटी पिपल व अजवाईन का बारीक चूर्ण बनाएं। आधे से दो ग्रॉम की मात्रा में दिन में 3 बार पानी के साथ प्रयोग करने से शीतपित्त में लाभ मिलता है।

स्थानिक प्रयोग

  • शीतपित्त की तीव्र अवस्था में रोगी को सरसों के तेल में सेंधा नमक मिलाकर लगाकर बाद में धूप में बिठाएं। उसके बाद तांबे का सिक्का शरीर पर मले। इससे रोगी को राहत मिलती है। • झेंडू के पत्ते व फूल पीसकर (समभाग) उसका रस शरीर पर लगाएं। • घी में सेंधा नमक मिलाकर लगाने से लाभ होता हैं। • दूब व हल्दी एकत्र पीसकर लेप करने से शीतपित्त में आराम होता हैं। • अजवाइन व गेरू को सिरके में मिलाकर लगाने से लाभ होता है। • तिजारे (पोस्त) के डोडे 80 ग्राम को 700 ग्राम पानी में तब तक गरम करें जब तक आधा किलो शेष रह जाएं। पूरे शरीर में वह पानी मले और 6 ग्राम पानी पिये। दिन में 3-4 बार लगाने से पित्ती की खुजली मिट जावेगी। • धमासा को पानी में उबाल कर 4 दिन तक उससे नहाने से पित्ती दूर हो जाएगी। • नीमके पत्तें या अजवाइन की धूनी लेने से पित्ती मिटती हैं। नारियल तेल में कपूर मिलाकर लगाएं। • एलोवेरा जेल 30 मिनट तक लगाएं व फिर पानी से धोएं। इस तरह दिन में 2-3 बार लगाएं। पीसी हुई काली मिर्च घी में मिलाकर आक्रान्त त्वचा पर लगाएं। दुध तथा हल्दी को पिसकर लेप करें। • पित्त पर प्याज का रस लगाएं। कायफल को तिल के तेल में मिलाकर लगाएं। चक्रमर्द के बीज या तिल सफेद सरसों का बीज, हल्दी, को पिसकर सरसों के तेल में मिलाकर उबटन करें। सरसों तेल, नमक व कपूर के साथ मिलाएं।
  • सैन्धवादि लेप – सेन्धा नमक तथा कूठ समभाग, इन दोनों को घी के साथ मिलाकर लेप करें अथवा तुलसी के स्वरस को शरीर के ऊपर लेप करे। यह शीतपित्त आदि के लिये उत्तम औषध है। (योगरत्नाकर)

आहार चिकित्सा

शीतपित्त के ग्रस्त रोगी को आहार पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। पैसे आहार का सेवन नहीं करना चाहिये जिससे शीतपित्त हो।भोजन सादा सुपाच्य व ताजा सेवन करें। खिचड़ी, दलिया, गेहूं, बाजरा, सोयाबीन, अंकुरित मूंग, मोठ, चना, चोकरयुक्त आटे की रोटी लाभकारी है। सब्जियों में लौकी, तुरई, करेला, पत्तागोभी, टिंड़ा का प्रयोग करे। फलों में पपीता विशेष रूप से लाभदायी है। सब्जियों का सलाद सब्जियां उबालकर प्रतिदिन लें। एक ग्लास गाजर, लौकी अथवा ककड़ी का रस लें।

परहेज

आहार में तले भूने व खट्टे पदार्थ, मिर्च, मसाले, अचार, ब्रेड, बिस्किट तथा कोल्ड्रिक हानिकारक होते है। दही, चावल, बर्फ, अरबी, उड़द, मास, मछली, धुम्रपान, शराब इत्यादि से परहेज रखें। त्वचा पर केमिकल युक्त साबुन न लगाएं तथा नहाने के लिए ठंडे पानी का प्रयोग न करें साथ ही धूप से बचें।
अतः शीतपित्त के रूग्णों में दाहयुक्त खुजली से उपरोक्त आयुर्वेदिक औषधि व पंचकर्म द्वारा निश्चिय ही छुटकारा पाया जा सकता है।

Dr Anju Mamtani

डॉ. अंजू ममतानी
‘जीकुमार आरोग्यधाम’,
238, नारा रोड, गुरु हरिक्रिशनदेव मार्ग,
जरीपटका, नागपुर-14 फोन : (0712) 2646700, 2646600
9373385183 ( Whats App)