Fatty Liver

हमारे शरीर की महत्वपूर्ण ग्रंथि यकृत अर्थात लिवर है। लिवर से शरीर में ब्लडशुगर, विषैले तत्व और कोलेस्ट्राल नियंत्रित होता है। लिवर ही फैट को तोड़कर बाइल का स्राव करता है, लेकिन अधिक चर्बी जमने से फैटी लिवर की समस्या हो जाती है। इस लिवर में कुछ प्रतिशत फैट रहता ही है। 5 प्रतिशत से ज्यादा फैट जमा हुआ तो वह फैटी लिवर कहलाता है। फैट जमा होने पर भी रोगी को किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता पर लंबे समय तक फैट रहने पर लिवर सिरोसिस अर्थात लिवर सिकुड़ जाता है, विकृत हो जाता है जिससे शरीर की पाचन क्रिया प्रभावित होती है।

अमेरिका के मुकाबले एशिया में फैटी लिवर की समस्या ज्यादा है। भारत और शेष एशिया के लोगों में आनुवांशिक तौर पर यह खतरा अधिक है।

जिस तरह मोटे होने पर हमारे शरीर के बाकी हिस्सों पर चर्बी चढ़ जाती है, ठीक उसी तरह हमारे लिवर में भी चर्बी जमा होनी शुरु हो जाती है। ऐसी स्थिति में लिवर में एकत्रित हुआ फैट लिवर के नॉर्मल सेल्स को खत्म करना शुरु कर देता है। नॉर्मल सेल्स के धीरे-धीरे खत्म होने और लिवर में फैट जमा होने के कारण लिवर विकारग्रस्त हो जाता है। यह स्थिति आगे चलकर हेपेटाइटिस, सिरोसिस, फाइब्रोसिस और कैंसर में भी बदल सकती है।

आमतौर पर फैटी लिवर दो प्रकार का होता है-पहला, अल्कोहलिक फैटी लिवर। यह शराब सेवन करने वाले (addict) लोगों को होता है। दूसरा खानपान में असावधानी और बदलाव के कारण नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर, यह परेशानी किसी को भी हो सकती है।

फैटी लिवर में सामान्यः व्यक्ति को कोई तकलीफ नहीं होती। हालांकि कुछ मामलों में लिवर की कोशिकाओं में सूजन शुरु हो जाती है। इस सूजन से लिवर के टिशू सख्त हो जाते हैं तब व्यक्ति को थकावट, हल्का पेट दर्द, चिड़चिड़ापन, भूख न लगने जैसे लक्षण होते हैं। इस स्थिति में अगर लिवर की कोशिकाएं खराब होनी शुरु हो जाएं तो पीलिया और आगे चलकर लिवर सिरोसिस हो सकता है। सिरोसिस लिवर कैंसर के बाद सबसे गंभीर बीमारी है, जिसका स्थाई इलाज मात्र लिवर ट्रांसप्लांट ही होता है। इस बीमारी में लिवर की कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं।

किन्हें है अधिक खतरा ?

फैटी लिवर की समस्या 40 वर्ष की उम्र के बाद ही अधिक देखने को मिलती है, हालांकि बच्चों को भी यह हो सकता है। खासकर बच्चों में मोटापा होने पर इसकी आशंका अधिक होती है। जिन पुरुषों की कमर का साइज 94 सेंटीमीटर और महिलाओं का 80 सेंटीमीटर से ज्यादा है, उनमें फैटी लिवर हो सकता है। डायबिटीज, थायरॉइड, हाई बीपी, हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या से ग्रसित लोगों में भी इसका खतरा रहता है। अधिक फैट वाले खाद्य पदार्थों का अधिक इस्तेमाल करने वाले और शारीरिक मेहनत से दूर रहने वाले लोग भी फैटी लिवर के शिकार हो सकते हैं। ऐसे लोगों को सोनोग्राफी जरुर करवा लेनी चाहिए। इसके अलावा इन्सुलिन के प्रति रेजिस्टेंट लोग, स्टेरॉयड जैसी दवाओं का अधिक इस्तेमाल करने वाले लोगों को भी जांच करवा लेनी चाहिए। स्मोकिंग, अल्कोहल के आदी लोगों को तो निश्चित तौर पर टेस्ट कराना ही चाहिए। फैटी लिवर की समस्या आनुवंशिक कारणों से हो सकती है। अगर परिवार में किसी को समस्या रही हो तो सोनोग्राफी करवाना ठीक होगा।

अवस्थाएं (Stages)

फैटी लिवर एक ही प्रकार का होता है, लेकिन इसकी तीन अवस्थाएं होती है।

  1. NASH(non alcohlic state of hepatitis) मोटापे के कारण होने वाले फैटी लिवर अर्थात नॉन अल्कोहलिक स्टेट ऑफ हेपेटाइटिस ।
  2. ASH(Alcohlic State of hepatitis) अल्कोहलिक स्टेटऑफ हेपेटाइटिस हैं।
  3. CASH(chemotherapy associated steatosis or steatohepatitis) तीसरी अवस्था उन लोगों में होती है जो कैंसर होने पर कीमोथेरेपी ट्रीटमेंट लेते है चूंकि इस तरह का इलाज कराने से लिवर डैमेज होता है और उसमें फैट डिपॉजिशन होना शुरू हो जाता है।


लक्षण :- आमतौर पर फैटी लिवर के शुरूआती लक्षण पता नहीं चल पाते है। दरअसल लिवर की सबसे बड़ी विशेषता व समस्या यह है कि जब तक यह 80 प्रतिशत तक क्षतिग्रस्त नहीं हो जाता तब तक इसके लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। जब लक्षण दिखाई देते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और फैटी लिवर की वजह से दूसरी गंभीर बीमारियां रोगी को हो चुकी होती है। ज्यादातर मामलों में फैटी लिवर की पहचान तब हो पाती है जब वह सिरोसिस में बदल चुका होता है।

वैसे पीलिया, भूख न लगना, पेट के अंदर पानी भर जाना आदि फैटी लिवर के ही लक्षण होते है। एडवांस स्टेज में पहुंच जाने पर रोगी के दिमाग पर भी दुष्प्रभाव होने लगता है। उसका दिमाग काम नहीं करता मरीज होश खोने लगता है। उसे खून की उल्टियां होने लगती है।

बीमारी की पहली अवस्था में लिवर में फैट जमा हो जाता है। दूसरी अवस्था में लिवर में सूजन हो जाती है। इसे स्टेट ऑफ हेपेटाइटिस कहा जाता है। इसकी तीसरी या अंतिम अवस्था फाइब्रोसिस या सिरोसिस की होती है। यह अवस्था तब आती है जब ज्यादातर नॉर्मल लिवर सेल्स मर गए होते है और फैटी सेल्स स्कार टिश्यू में परिवर्तित होते है। जैसे चोट लगने पर हमारी त्वचा पर निशान बन जाते हैं, उसी तरह इस स्थिति में लिवर पर निशान बनने शुरू हो जाते है।

जब लिवर के नॉर्मल सेल्स मृत होने लगते है, तो लिवर खुद को री-ग्रो (Re-grow) यानी पुनर्विकसित करना शुरू करता है। लिवर में ऐसा विशिष्ट गुण होता है कि लिवर में खुद को पुनर्विकसित करने की क्षमता होती है। यह गुण हमारे किसी भी अंग में नहीं होता है। जब अधिकांश सेल्स मर जाते है तो बाकी के बचे हुए सेल्स पुनः विकसित होने की कोशिश करते हैं। ऐसे लिवर सेल्स के पुनर्विकसित होने के क्रम में इनके सेल्स में अनियंत्रित वृद्धि यानी ग्रोथ होनी शुरू हो जाती है। सेल्स की यह ग्रोथ ही कैंसर में बदल जाती है।

परीक्षण

फैटी लिवर टेस्ट दो प्रकार का होता है। नॉन इनवैसिव टेस्ट और इनवैसिव टैस्ट। नॉन इनवैसिव टेस्ट में रोगी का नियमित चेकअप किया जाता है। अगर फैटी लिवर काफी एडवांस स्टेज में पहुंच चुका है, रोगी को फाइब्रोसिस हो चुका है तो इस स्थिति में रोगी का फाइब्रोस्कैन किया जाता है। इनवैसिव टेस्ट में लिवर बायोप्सी की जाती है। यह अंतिम टेस्ट है। इस टेस्ट के लिए लिवर में नीडिल डालकर लिवर की जांच की जाती है।

फैटी लिवर का आरंभिक पता सोनोग्राफी से ही चलता है। इसके साथ लिवर एंजाइम की रक्त जांचे जैसे एसजीपीटी (SGPT-serum glutamic-pyruvic transaminase) इत्यादि से यह देखा जाता है कि लिवर कोशिकाओं में इंफ्लेमेशन (सूजन) तो विकसित नहीं हो रहा है। इसके अलावा सीटी स्कैन और एमआरआई से भी इसका पता लगाया जा सकता है। शरीर का PET SCAN मेटास्टेटिक लिवर कैंसर का निदान करता है।

बचाव (Prevention)

  • तला खाना बहुत अधिक न खाएं। सैचुरेटेड फैट वाले खाद्य पदार्थ जैसे चीज, बटर, घी आदि कम से कम लें। रिफाइंड शुगर का सेवन न करें।
  • मौसमी फल, सब्जियों के साथ-साथ मेवे को भोजन में रोज शामिल करें।
  • हफ्ते में कम से कम 5 दिन कसरत जरुर करें। इसमें योग, एरोबिक्स, दौड़ना और वेट ट्रेनिंग कर सकते हैं।
  • मोटापा इसका एक बड़ा कारण है, डाइट कंट्रोल व व्यायाम से वजन कम करे।

आधुनिक उपचार

फैटी लिवर को ठीक करने के लिए अलग से कोई दवा नहीं दी जाती। यह ऐसी बीमारी है जो किसी दवा से ठीक नहीं होती। मात्र पोषक आहार और व्यायाम से ही इसे आगे बढने से रोका जा सकता है और नियंत्रित किया जा सकता है। फैटी लिवर के साथ जुड़ी दूसरी बीमारियों और उनके रिस्क फैक्टर को बढ़ाने वाले कारक जैसे शुगर, बीपी, थायरॉइड, कोलेस्ट्रॉल इत्यादि को कंट्रोल करने के लिए दवाएं जरुर दी जाती हैं।

लिवर कैंसर

जैसे पहले बताया है कि फैटी लीवर में सिरोसीस के बाद कैंसर की अवस्था आती है। प्रति वर्ष भारत में लीवर कैंसर के लगभग 40-50 हजार मरीज मिलते है। लीवर कैंसर के कारणों में हिपेटाइटिस बी व सी वायरस के अलावा शराब का दुर्व्यसन भी है। यहां तक कि शराब का सेवन न करने वालों को भी यह पाया गया है। यह कैंसर दो प्रकार का होता है।

1. मेटास्टेटिक (Metastatic) – यह फेफड़े, स्तन या कोलोन से होकर लीवर तक फैल जाते हैं।

2. हिपेटोसेल्यूलर (Hepatocellular) – यह मूल रुप से -लीवर का कैंसर होता है।

लक्षण :- शुरुवात में कोई लक्षण नहीं दिखाई देते सामान्य कैंसर में पेट दर्द, भूख न लगना, जी मिचलाना, उल्टी, कमजोरी, थकान होती है। इसके अलवा पेट में सूजन, पीलिया का तीव्र प्रकोप, सफेद शौच होता है। लीवर कैंसर का खतरा बी व सी वायरस, सिरोसीस, डायबिटीज, फैटी लीवर से बढ़ जाता है। फसलों को सही तरीके से सुरक्षित न रखने पर होनेवाले फफूंद से भी लीवर कैंसर का खतरा बढ़ता है। लीवर कैंसर खतरे को कम करने के लिए शराब का सेवन तुरंत कम करें, हिपेटाइटिस बी का वैक्सीन लगाएं व वजन कम करना आवश्यक है।

आयुर्वेदिक उपचार

आयुर्वेदानुसार फैटी लिवर में यकृत पर कार्य करनेवाली व मेदोहर (चर्बी कम करनेवाली) औषधि दी जाती है। फैटी लिवर के साथ होनेवाली डायबिटिज़, हायपरकोलेस्ट्राल, हाइपरटेंशन की औषधियां चिकित्सक परामर्शनुसार लेनी चाहिए। पंचकर्म के मेदोहर बस्ति व विरचेन के प्रभावी परिणाम मिलते है।

अतः परहेज का पालन, औषधि व पंचकर्म के द्वारा फैटी लिवर व अन्य लिवर के रोगों में लाभकारी परिणाम मिलते है।

Dr Anju Mamtani

डॉ. अंजू ममतानी
‘जीकुमार आरोग्यधाम’

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