महिलाएं स्मार्ट दिखने के लिए कई विभिन्न तरीके इस्तेमाल vec H लाती हैं और इसी चक्कर में अपनी सेहत से खिलवाड़ करती है पर हमें यह बात हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि सेहत से खिलवाड़ हमें बहुत भारी पड़ सकती है और अगर बात पैरों की हो तो इसे कभी भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। फिर यहां तो उन एड़ियों की बात हो रही है जिन पर हमारे पूरे शरीर का भार रहता है। याद रखिए, सेहत है तो सब कुछ है, इस बात को हमेशा ध्यान रखना चाहिए। आइए जानते हैं एड़ी में दर्द हो तो कैसे करें उपचार ।
एड़ी का दर्द आम तौर पर पाई जाने वाली तकलीफ है। इससे हमारी दिन भर की गतिविधियां प्रभावित होती हैं क्योंकि पैरों के द्वारा ही चलना-फिरना, घूमना, दौड़ना, खड़े होना, सीढ़ियां चढ़ना आदि क्रियाएं होती हैं। एड़ी में दर्द होने की वजह से उपरोक्त क्रियाओं में तीव्र वेदनायुक्त कष्ट होता है। एडी पैर का छोटा सा किंतु महत्वपूर्ण अंग है। यह छोटी-छोटी हड्डियों से मिलकर बनती है। इसमें होने वाला दर्द रूग्ण को विचलित कर देता है।
एड़ी के दर्द से 2-3 वर्षों से परेशान हमारी एक परिचित पुष्पाबेन हर प्रकार का इलाज करा चुकी थीं। पेनकिलर लेने से तात्कालिक राहत तो मिलती थी परंतु उससे एसिडिटी भी होती थी। अतः निराश होकर हमारे हॉस्पिटल में आई। एक्सरे देखने पर पता चला कि एड़ी दर्द का कारण हील स्पर (Heel Spur) है। हमने उन्हें वातनाशक व कैल्शियम प्रधान आयुर्वेदिक औषधियां देते हुए अग्निकर्म कराया । मात्र 3 सिटिंग्स में ही उनका दर्द दूर हो गया। अब वे कोई पेनकिलर नहीं लेती। उन्हें पूरी तरह से दर्द से छुटकारा मिल चुका है।
आयुर्वेद शास्त्र में अलग से एडी के दर्द का वर्णन नहीं मिलता लेकिन वात व्याधि के अंतर्गत इसकी गणना की जाती है। यह दर्द पार्ष्णि शूल व वातकटक रोग के कारण हो सकता है। लक्षणों के आधार पर आधुनिक शास्त्र में पार्ष्णि शूल की प्लांटर फेसिटिस (Planter Fascitis) व वात कटक की हील स्पर से तुलना की जा सकती है। वात अर्थात् वायु कटक अर्थात् कांटे जैसी चुभन जिस रोग में काटे के चुभने जैसी पीड़ा हो, उसे वातकटक कहा जाता है।
प्लांटर फेसिटिस के 70 प्रतिशत रूग्णों में हील स्पर पाया जाता है जोकि एक्स-रे से दिखाई देता है। जबकि 50 प्रतिशत रूग्णों में बिना किसी दर्द के हील स्पर भी होता है। मध्य वय के स्त्री-पुरूष में हील स्पर के साथ प्लांटर फेसिटिस होता है, परंतु किसी भी उम्र के रूग्ण में भी यह हो सकता है।
कारण :- इसके कारणों में वातवर्धक आहार का अधिक सेवन, ठंडा मौसम, रात में जागना, पौष्टिक आहार का अभाव आदि का समावेश होता है। इसके अलावा ज्यादा देर तक नंगे पैर चलना, उबड़-खाबड, या पथरीली जमीन पर बिना चप्पल के घूमना व पत्थर से एडी में चोट लगने से भी वातकंटक रोग होता है।
एडी से संबंधित रोग प्लांटर फेसिटिस, (Plantar fascliitis) व हील स्पर (Heel spur) के कारण एड़ी दर्द होता है। इन दोनों का आपस में घनिष्ठ संबंध है। प्लांटर फसिटिस अर्थात प्लांटर फेशिया ऊतक (Plantar Fascia Tissue) में होने वाली सूजन। हील स्पर अर्थात् एडी में होनेवाले हड्डियों की अनावश्यक वृद्धि। प्लांटर फेशिया ऊतक पैरों को अर्धगोलाकार (Arch) बनाता है। हील स्पर एडी की हड्डी से जुड़ी एक हुक जैसी रचना है। यह प्लांटर फेशिया के कठोर हो जाने (Ossification) के कारण होता है।
अन्य कारण :- अधिकांश मामलों में तो इसका प्रमुख कारण मधुमेह है। मधुमेह से शरीर में वसा, प्रोटीन, खनिज, लवणों एवं कुछ विटामिनों की रासायनिक प्रतिक्रियाएँ गड़बडा जाती है। इससे रक्त कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती है। रक्त कोशिकाओं में रक्तसंचार में गड़बड़ी व ब्लॉकेज से एडी में सुई चुभने कंकड़ चुभने व एड़ी के भीतर ड्रीलिंग मशीन चलने जैसी हरकते होने लगती हैं। एडी वाली जगह पर चलते समय दर्द के साथ खिचाव एवं कभी-कभी सुन्नपन भी आ जाता है।
֍ खाने-पीने, उठने बैठने, चलने व खड़े रहने की गलत आदत भी एड़ी के दर्द का महत्वपूर्ण कारण है।
֍मोटापे के कारण भी एड़ी पर भार पड़ने से दर्द हो सकता है।
֍130 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं में बहुधा एड़ी दर्द के लक्षण पाए जाते है।
֍एडी में सूजन overline a दर्द साधारणत खराब किस्म के व पुराने जूते पहनने से भी होता है।
֍यूरिक एसिड के बढ़ने से एड़ी में सूजन व दर्द होता है। बात का यह प्रकार गाउट कहलाता है।
ऊंची एड़ी की सैडिल, चप्पल व जूतों का प्रयोग करना भी एड़ी पर सरासर अन्याय है। एक ताजा शोध में 64 फीसदी महिलाओं ने ऐसे जूतों व सैडिलों की वजह से एड़ी में दर्द की शिकायत की। महिलाओं को हाई हील वाले सैडिल पहनने से एड़ी दर्द इसलिए होता है क्योंकि उनकी संरचना पैरों की कुदरती बनावट के अनुरूप नहीं होती । सख्त रबर के सोल जूते पहनने पर पुरूषों को भी एड़ी का दर्द झेलना पड़ सकता है क्योंकि इससे शरीर के भार का गुरूत्वाकर्षण केंद्र बदल जाता है और पैर प्राकृतिक भार सहन नहीं कर पाते।
इसके अलावा पैरों में दर्द, सूजन, गठान आदि की भी प्रमुख वजह यही होती है। कभी-कभी तो इसका असर कूल्हे, रीढ़ की हड्डियों से होता हुआ कंधे और मस्तिष्क तक भी पहुंच जाता है और यह पीड़ा असहनीय हो जाती है। ऊंचाई बड़ी दिखाने के लिए ऐसे जुते चप्पल या सैंडिल पहनना ही उचित है, जो सभी तरफ से ऊंचे उठे हों। हाई हील न केवल पैरों के लिए परेशानी का कारण बनती है, अपितु कमर के निचले हिस्से में दर्द की समस्या भी पैदा करती है। शरीर का सारा वजन पैर के अगले हिस्से (पंजे) पर पड़ता है। यदि हम लंबे समय तक हाई हील पहनते हैं, तो शरीर के जोड़ो में भी तकलीफ होना शुरू हो जाती है।
लक्षण :- प्लांटर फेसिटिस के रूग्णों में सूजन व क्षयजन्य परिवर्तन (Degenerative Changes) मिलते हैं। जिससे रोगी को एडी में दर्द अधिक होता है। सबसे ज्यादा तकलीफ सुबह उठने के बाद होती है। सुबह-सुबह प्लांटर फेशिया बहुत टाइट होता है। थोड़ा चलने से भी दर्द अधिक होता है। प्लांटर फेशिया को व्यायाम के द्वारा धीरे-धीरे शिथिल (Relax) करते जाएं, तो दर्द कम हो जाता है परंतु ज्यादा खड़े रहने व चलने से बढ़ जाता है। एडी के दर्द से संबंधित रोग उन्हीं को होते हैं, जो ज्यादा खड़े रहते हैं या चलते हैं। प्लांटर फेसेटिस को पुलिसमैन्स हील (Policeman’s Heel) या टेंडरहील पैड (Tender Heel Pad) भी कहते है।
सुबह उठने पर या काफी देर बैठकर उठने के बाद पहला कदम जमीन पर रखते ही तीव्र वेदना की अनुभूति होना प्लांटर फेसिटिस का मुख्य लक्षण है। काफी देर आराम? करने के बाद अचानक दौड़ना अथवा भारी काम करना, लंबे समय तक खड़ा रहना आदि से एडी में तीव्र वेदना इतनी अधिक होती है कि रुग्ण चलने से कतराता है और एक ही जगह बैठना पसंद करता है। जमीन पर पैर रखना तक मुश्किल हो जाता है।
उपचार :- आधुनिक शास्त्र में इसके तीन उपचार वर्णित है- दर्द व सूजन से सम्बन्धित पेनकिलर (दर्द निवारक) दवाइयाँ, एडी में हाइड्रोकार्टीसोन के इन्जेक्शन लगाना या बढ़ी हुई हड्डी का ऑपरेशन करना। एडी में इन्जेक्शन लगाने को भी डाक्टर टालते है क्योंकि बढ़ी हुई हड्डी का ऑपरेशन भी जोखिमपूर्ण कार्य है. इसलिए इसे भी टालने की कोशिश की जाती है। एडी दर्द के लिए सर्वप्रथम एडी दर्द के कारण को जानना बहुत जरूरी होता है। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में दर्द निवारक औषधियों के अलावा एडी की लचीलापन उपधान (Resilient Cushion) से सुरक्षा की जाती है।
आयुर्वेद में एड़ी के दर्द के लिए प्रभावी चिकित्सा का वर्णन है। वातनाशक औषधियों का सेवन व पंचकर्म दर्द से राहत दिलाता है।
֍ औषधियों में त्रिफला गुग्गुल व वातविध्वंस रस की 2-2 वटी, महारास्नादि काढ़ा के साथ लेने से लाभ होता है। लाक्षादि गुग्गुल या कांचनार गुग्गुल आवश्यकतानुसार दे सकते है।
֍ 1 चम्मच सोंठ पाउडर को 2 चम्मच एरंड तेल में मिलाकर सेवन करे।
֍ अश्वगंधा चूर्ण 1 ग्राम, अजमोमदादि चूर्ण 1 ग्राम श्रृंग भस्म 250 मिग्रा, नरसिंह चूर्ण को 1 ग्राम, महावात विध्वंस रस 2 गोली, सिंहनाद गुग्गुल को मिलाकर दिन में 3 बार लें।
प्रभावी पंचकर्म
औषधि चिकित्सा के साथ-साथ पंचकर्म से भी एड़ी के 1/(4G) में राहत मिलती है। इसके अंतर्गत स्थानिक एड़ी की स्नेहन-स्वेदन उपनाह व पिंडस्वेद चिकित्सा करते हैं। एडी के दर्द को दूर करने में अग्निकर्म के भी उत्तम परिणाम पाए गए है।
स्नेहन-स्वेदन :- महानारायण तेल व महाविषगर्भ तेल से एडी की मालिश कर निम्न रीति से सिकाई करे-
֍ ईंट को गरम करके उसके ऊपर नीम के पत्ते रख दें। इन पत्तों के ऊपर पैर रखकर छाछ डालें, जिससे गर्म इंट से भाप निकलकर पीडित स्थान की सिकाई होती है।
֍ सूती कपड़े में रेत भरें व गेंद जैसे आकार की पोटली बनाकर उसे तवे पर गरम कर एडी पर नित्य 2 बार सेंक करने से राहत मिलती है।
पिंडस्वेद :- इसमें विविध प्रकार की ताजी जड़ी-बूटियों निर्गुडी पत्र, एरण्ड पत्र, अर्कपत्र, नीमपत्र, कढ़ाई में एकत्र कर तथा इसमें वातानाशक तेल या सरसों के तेल को मंद आग पर पकाकर व उसकी पोटली बनाकर दर्द के स्थान पर 10-15 दिन सिकाई करने से दर्द से तुरंत राहत मिलती है।
अग्निकर्म :- पंचकर्म की अग्निकर्म चिकित्सा से एड़ी के दर्द में लाभ होता है। पंचधातु से बनी शलाका को तपाकर प्रभावित स्थान पर चटके देने से दूर होता है। ऐसी 5 सिटींग्स लेनी पड़ती है ।
सामान्य उपचार
- एड़ी दर्द बढ़ाने वाले कारणों से बचें। जैसे- सीढ़ियां -चढ़ना – उतरना, ज्यादा चलना, पहाड़ों पर चढ़ना, भारी सामान उठाना, उबड़-खाबड़ रास्ते पर चलना आदि ।
- एरोबिक्स तथा तैराकी एड़ी के दर्द को दूर करने में मददगार साबित हो सकती है।
- बर्फ के द्वारा उपचार करें। पानी की बोतल में बर्फ जमाए। इसे जमीन पर रखकर 20 मिनट तक एडी को रगड़े। ऐसा दिन में 2 बार करें। इससे एडी की सूजन कम होती है और यह 48 से 72 घंटों तक नियत्रित रहती है।
- एक बाल्टी में बर्फ का ठण्डा पानी लें, उसमें एक मिनट तक एड़ी को डुबाएं, फिर नमक मिले गुनगुने पानी में तीन मिनट तक एड़ी को डुबोएं. ऐसे बारी-बारी से डुवाएं. ऐसा 15 से 20 मिनट तक प्रातः व रात्रि में करें।
- अगर एडी में चोट लग जाती है तो इस अवस्था में एडी की दस मिनट तक बर्फ से मालिश करनी चाहिए।
- कई दिनों से एडी दर्द परेशान कर रहा हो तो ठंडा-गर्म सेक अपनाएं। इसकी शुरूआत बर्फ से करें। 5 मिनट तक बर्फ के सेंक के बाद 5 मिनट के लिए गर्म पानी का सेक करें। इस क्रिया को सप्ताह में 3-4 बार दोहराने से अवश्य लाभ मिलेगा।
- टेनिस बॉल अथवा कोई मुदु बॉल जमीन पर रखकर, उस पर एड़ी को घुमाएं। यह क्रिया टी.वी. देखते देखते या समाचार पत्र पढते हुए भी की जा सकती है।
- सुबह उठते ही पिंडलियों (Calf Muscles) को खींचे। इससे एड़ी के दर्द में राहत मिलती है। यह क्रिया दिन में 30 सेंकड के लिए 10 बार करें।
- पैरों की उगलिया पहले तो अपनी तरफ खीचें फिर बाहर की तरफ खीचें ।
- एक्यूप्रेशर विधि से भी एडी में खून का दौरा बढ़ने से दुर्द में राहत मिलती है।
- पंजों और एड़ी के जोड़ों तथा मांसपेशियों की कसरत करनी चाहिए।
- एडी के दर्द के रोगी को इस रोग से छुटकारा पाने के लिए पौष्टिक आहार लेना चाहिए।
- बढ़ते हुए वजन को कम करें क्योंकि बढा हुआ वजन एडी पर दबाव डालता है, जो एड़ी के दर्द का कारण बनता है। रोगी को वसा रहित आहार लेना चाहिए। रोगी को ज्यादा मीठे खाद्य पदार्थ भी नहीं खाने चाहिए।
- थकान दूर करने वाली मैट्स (Mats) भी एडी पर पड़ने वाले दबाव को कम करती है।
- फ्लेट जूते पहनें, हील वाले जूते न पहनें, जूतों के नीचे आधा इंच अतिरिक्त हील लगाएं. इससे भी फर्क न पड़े तो पौन इंच हील लगाए। यह हील सदा इंच तक बढ़ाई जा सकती है। घर में पहनने वाले चप्पल में भी हील का प्रयोग न करें। आजकल एड़ी के दर्द को दूर करने के लिए विशेष जूते (Supportive Shoes) भी उपलब्ध है।
- ईंट के टुकड़े को गर्म करे उस पर पानी से भिगोया हुआ निचोड़ा तौलिया रखें और तौलिए के ऊपर एड़ी को रख दें. ऐसा 15 से 20 मिनट तक प्रातः व रात्रि में करें.
- नंगे पाँव बिल्कुल न रहें।
- रात को सोते समय एड़ी के नीचे तकिया रखकर सोए ।
- कई मामलों में जूतों के भीतर स्पंजदार एड़ी भी लगाई जा सकती है. यह मेडिकेटेड एड़ी दवाइयों की दुकान पर मिलती है।
- एक्यूप्रेशर पाइण्ट पर (कुछ बिन्दुओं पर प्रेशर देकर भी एड़ी दर्द को कम किया जा सकता है।
- किसी ऊंची जगह पर बैठकर लटकाकर पैरों के पंजों को गोल-गोल कई बार घुमाएं।
- रोज नमक के गर्म पानी में पैर चलाने की क्रिया करें।
इस प्रकार एड़ी के दर्द से बचने के लिए कुछ विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए। दैनंदिन जीवन में महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें जैसे पोषक व संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, एडी व पैरों का स्नेहन व स्वेदन कर्म करने से काफी हद तक बचाव होता है उसके बाद भी एड़ी की तकलीफ होने पर आयुर्वेदिक औषधि, योगोपचार व पंचकर्म के अग्निकर्म से निश्चित ही लाभ मिलता है।