वर्तमान में जीवनशैली को कथित रूप से आधुनिक बनाकर हम तंदुरुस्ती से दूर होते जा रहे हैं, जो विडंबना ही है। वर्तमान की भागदौड़ भरी जिंदगी में अनेक तरह की बीमारियां हमें घेर चुकी हैं लेकिन सबसे ज्यादा परेशान करती हैं- पेट की बीमारियां। आज ज्यादातर लोग कब्ज, पेट दर्द, एसिडिटी, जलन, खट्टी डकारों जैसे पेट के विकारों से त्रस्त हैं। इस तरह की समस्याएं रेशेदार भोजन न करने से होती हैं।
रेशेदार आहार अपचनीय पॉलीसेकेराइड है जो वनस्पतियों से प्राप्त होते हैं। इनमें सेलूलोज़, पेक्टिन और प्रतिरोधी स्टार्च शामिल हैं। खाना पकाने की प्रक्रिया के दौरान ये पदार्थ ज्यादा नहीं बदलते हैं। फलों और सब्जियों में घुलनशील फाइबर पाए जाते हैं जबकि अनाज और साबुत अनाज में अघुलनशील फाइबर पाए जाते हैं।
रेशेदार खाद्य पदार्थ सिर्फ कब्ज ही नहीं, डायबिटीज, अस्थमा, हृदय रोग और कैंसर को दूर भगाने में भी सहायक होते हैं। फलों को छिलके समेत खाने से भी हमारे शरीर को फाइबर ( रेशेदार भोज्य पदार्थ) प्राप्त होता है, जो हमारी पेट संबंधी बीमारियों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसा भोजन आसानी से पच जाता है, जिससे शरीर को न केवल अतिरिक्त ऊर्जा मिलती है, बल्कि पेट भी साफ रहता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहती है। फाइबर के अभाव में बार-बार मुंह में छाले होना, पेट खराब रहना, कब्ज, आंतों में जलन आदि विकार उत्पन्न हो जाते हैं। फाइबर हमारे शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को सुचारु रखने में प्रमुख भूमिका निभाता है। यह भोजन को इकट्ठा करके बड़ी आंत तक ले जाता है। यहां मौजूद बैक्टीरिया इसे ऊर्जा में बदल देते हैं, जिसे फैटी एसिड कहा जाता है। पेट खराब रहने के कारण होने वाली बीमारियों से दूर रखने का काम दरअसल हमारी आंत में मौजूद बैक्टीरिया ही करते हैं। इन्हें रेशेदार भोज्य पदार्थों के द्वारा ही कायम रखा जा सकता है।
हम भूल रहे परम्परा
तथाकथित आधुनिकता की दौड़ में हमने अपनी थाली से रेशेदार भोजन को दूर कर दिया है। यहां तक कि भारतीय परम्पराओं को भी भुला बैठे हैं। पुरातन काल में स्थूल आहार ही प्रचलित था। आटा भी मोटा पिसवाया जाता था। इसमें चना या दूसरी चीजें मिलाई जाती थीं, जिसे छानने की भी जरूरत नहीं होती थी। गांवों में तो नाश्ते में भूजा या -चबेना खाने की परम्परा अब भी कहीं-कहीं कायम है। लेकिन विडंबना यह है कि इन दिनों छिलके वाली दाल, छिलके समेत खाए जाने वाले फल और सब्जियां ही रेशेदार आहार यानी फाइबर के गिने-चुने स्रोत रह गए हैं। गेहूं को भी बारीक पिसवाए जाने उसमें रेशा नहीं रह जाता। रेशाविहीन भोजन बड़ी आंत तक पूरी तरह से नहीं पहुंच पाने के कारण ठीक से पच नहीं पाता और पेट खराब रहता है। इससे कई तरह की बीमारियां पनपने लगती हैं। प्रतिदिन के भोजन में पोषक तत्वों वाले रेशेयुक्त पदार्थों को शामिल करना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। हालांकि इनमें लाभकारी खनिज लवण एवं विटामिन्स नहीं पाए जाते, फिर भी कब्ज आदि से हमारा बचाव कर इस रोग से मुक्ति भी दिलाते हैं। ‘रफेज’ कहा जाने वाला आहारीय रेशा, शाकाहारी भोजन का वह भाग होता है, जिसे न तो हमारा पाचनतंत्र पचा पाता है, न ही अवशोषित कर पाता है। यह भोजन के अन्य पोषक तत्वों (कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, वसा आदि) की तरफ अवशोषित न होकर बिना पचे आमाशय और छोटी आंत से होते हुए बड़ी आंत में पहुंचता है और वहां से शरीर के बाहर निकाल दिया जाता है। यह आहार खनिजों और विटामिन्स के अवशोषण में सहायक होता है।
प्रमुख स्रोत
रेशेयुक्त आहार के प्रमुख स्रोत हैं– गेहूं एवं जई का चोकर, गेहूं का चोकरयुक्त आटा, दलिया, गेहूं की रोटी और सेवइयां, सब्जियां जैसे- टमाटर, गाजर, शलजम, फूलगोभी, मटर के दाने, मौसमी फलों में मोसंबी, संतरा, अनार, छिलकासहित सेब, रसभरी, अनानास, नाशपाती, केला, सूखा अंजीर आदि । सब्जियों को अपने नाश्ते एवं भोजन में शामिल कर हम पर्याप्त मात्रा में रेशे प्राप्त कर सकते हैं। रेशे की मात्रा अनाजों के छिलके या चोकर में ज्यादा होती है। उसी प्रकार ज्यादातर फलों एवं सब्जियों को छिलकासहित खाने से अधिक मात्रा में रेशा प्राप्त होता है। अलग-अलग प्रकार के खाद्य पदार्थों में 2 प्रकार के रेशे पाए जाते हैं- पानी में घुलनशील और पानी में न घुलने वाले। इसलिए हमें अपने भोजन में भिन्न-भिन्न पदार्थों को शामिल करना चाहिए।
घुलनशील रेशों के प्रमुख स्रोत हैं– मटर, सोयाबीन, सेम आदि फलियां, जई, बाजरा, कुछ फल एवं उनके जूस जैसे- रसभरी, केला तथा बिना छिलके का सेब एवं नाशपाती, सब्जियां जैसे- हरी सेम, फूलगोभी, कुछ छिलकेसहित फल कीवी, टमाटर, सेब आदि। रेशेयुक्त भोज्य पदार्थ कब्ज को रोकने, वजन को नियंत्रित करने, कोलेस्ट्रॉल को कम करने, रक्त में ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित करने तथा पाचनतंत्र की नियमितता बनाए रखने आदि महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।
वजन नियंत्रित करने में सहायक
फाइबरयुक्त पदार्थ मल के पानी को सोखकर उसे मुलायम करते हैं, जिससे उसका त्याग आसानी से हो जाता है एवं कब्ज की संभावना कम रहती है। इनका दूसरा लाभ यह है कि वे मल के पाचनतंत्र मार्ग से गुजरने में लगने वाले समय को कम करते हैं, जिससे आंतों की गतिशीलता नियमित रहती है और मलत्याग समयपूर्वक होता है। रेशेयुक्त पदार्थ शारीरिक वजन को नियंत्रित कर आहार के आयतन को बढ़ाते हैं, जिससे पेट जल्दी नहीं भरता और ज्यादा समय तक भरा हुआ महसूस होता है। इससे काफी समय तक भूख नहीं लगती तथा ज्यादा खाने की संभावना कम हो जाती है। एक विशेष बात यह है कि रेशेयुक्त आहार उसी मात्रा के अन्य आहार की तुलना में कम ऊर्जा वाला होता है।
डायबिटीज
हाई ब्लड ग्लूकोज लेवल आजकल अधिकतर लागों को अपनी चपेट में लिए हुए है। हेल्थ एक्स्पर्ट्स के अनुसार, कई हेल्थ बेनिफिट्स प्रदान करने के साथ डायबिटीज से बचाव और हाई ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में फाइबर्स एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। डायबिटीज के मरीजों को हार्ट संबंधित बीमारियों का खतरा काफी ज्यादा होता है। उचित मात्रा में फाइबर का सेवन करने से शरीर में एलडीएल कोलेस्ट्रॉल लेवल कंट्रोल में रहता है और हार्ट संबंधी परेशानियों से बचाव किया जा सकता है। डायबिटीज के मरीजों को अपनी डाइट में ज्यादा से ज्यादा फाइबर्स को शामिल करना चाहिए, जैसे दही, सेब, बैरीज, अनसाल्टेड नट्स, चिया सीड्स, छोले का सलाद, साबुत अनाज, ताजे फल और हरी पत्तेदार सब्जियां।
कोलोरेक्टल कैंसर से बचाव
कोलोरेक्टल कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसा माना जाता है कि डायटरी फाइबर से इन मामलों में कमी लाई जा सकती है। ये आंतों में मौजूद कार्सिनोजेन्स को पतला करते हैं जिससे मल तेजी से बाहर निकल जाता है। इस कारण इन कार्सिनोजेन्स का आंत की दीवार से संपर्क समय बहुत कम हो जाता है। ये आंतों की सूजन को भी कम करते हैं। कुल मिलाकर पेट की सेहत को सुधारकर रखते हैं।
अन्य लाभ
विभिन्न आयु वर्ग के लोगों द्वारा लिए जाने वाले रेशेयुक्त पदार्थों की मात्रा भी भिन्न-भिन्न होती है। एक सामान्य व्यक्ति को प्रति 1000 कैलोरी में 20-25 ग्राम रेशेदार आहार ग्रहण करना चाहिए। रेशेयुक्त पदार्थ शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। साथ ही हृदय रोग से भी बचाव करते हैं क्योंकि घुलनशीन रेशों से कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम हो जाती है, जिससे रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर नियंत्रित होने में सहायता मिलती है।
इस प्रकार आहार में रेशेदार पदार्थों का होना आवश्यक है हालांकि आहार की पोषणता के हिसाब से इसका गुण अन्य से कम है परंतु इसके कई लाभ हैं। शरीर में आहार के पोषक तत्वों का अवशोषण करने में लाभदायी है और वेस्टेज को बाहर निकालने में सहायक है।
डॉ. जी.एम. ममतानी
एम.डी. (आयुर्वेद पंचकर्म विशेषज्ञ)
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