Kitchen – Pharmacy

हमारे इर्द-गिर्द कई ऐसी वस्तुएं होती हैं, जिनके गुणों की हमें जानकारी नहीं होती। न ही हम उनके प्रयोग की विधि जानते हैं। बीमारी आदि की स्थिति में तो ठीक है, परन्तु छोटी-मोटी शारीरिक समस्याओं से भी परेशान होकर, हम सीधा डॉक्टर की शरण में चले जाते हैं। कुछ तकलीफों का इलाज हम घर बैठे ही कर सकते हैं। वह भी घर के रसोईघर में ही । कैसे ? आप भी जानें……

क्या आपने कभी सोचा है कि रसोईघर में सब्जी बनाते समय हम जो मसाले प्रयोग में लाते हैं, उनका क्या उपयोग है ? भोजन को केवल स्वादिष्ट बनाने की दृष्टि से मसाले डालना उचित नहीं है। भोजन पाचन में लाभकारी हो, भोजन रुचिकर हो, इस दृष्टि से भी मसाले डाले जाते हैं। हम जो भोजन ग्रहण करते हैं, उसको पचाने के लिए जठराग्नि का प्रदीप्त होना आवश्यक है। साथ ही पाचक स्रावों की भी आवश्यकता होती है। सब्जी में प्रयुक्त होने वाले हल्दी, धनिया, मिर्च, जीरा इत्यादि के गुणों का गहराई से अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि मसालों के भिन्न-भिन्न गुणधर्म हैं, जो औषधि का कार्य करते हैं। हर मसाले में विटामिन, खनिज तथा दूसरे उपयोगी रासायनिक तत्व होते हैं। मसालों के इन्हीं गुणधर्मों के द्वारा जठराग्नि प्रदीप्त होती है व पाचन में सहायक स्रावों का निर्माण होता है। अतः भोजन से शरीर के लिए आवश्यक सार भाग का निर्माण करने व शरीर के लिए अनावश्यक मल भाग को शरीर से बाहर निकालने में सहायता के लिए मसालों का उपयोग होता है। मसालों में उक्त गुण तभी पाए जाएंगे, जब वे बिना मिलावट के या घर में पिसे हों क्योंकि मसाले ही अधिक प्रभावी तथा संवेदनशील होते हैं।

रसोईघर में प्रयोग में आनेवाले मसालों में हल्दी, धनिया, मिर्च, राई, जीरा, मेथीदाना, अदरक, पुदीना, सौंफ, अजवायन, काला नमक, हींग, लौंग, तेजपान, दालचीनी इत्यादि का समावेश होता है। अब आइए, संक्षेप में इनकी जानकारी प्राप्त करें।

राई
दाल, सब्जियों व अचार में अन्य मसालों के साथ इसका उपयोग होता है। राई का मुख्य गुण पाचक व रुचिकर है। पेट में कीड़े (जंतु, कृमि) होने पर इसके पानी सेवन से कीड़े मर जाते हैं। हैजा होने पर राई पीसकर पेट पर लेप करने से पेटदर्द व मरोड़ में राहत मिलती है। इसमें दर्द निवारक गुण पाया जाता है। इसे पुल्टिस बनाकर प्रयोग कर सकते हैं। राई का लेप लगाने से सूजन कम होती पाई गई है। दांतों की मजबूती के लिए राई के तेल नमक मिलाकर प्रयोग करें। इसे पीसकर शहद में मिलाकर सूंघने से जुकाम मिटता है। राई पीसकर सूंघने या तेल सूंघने से मिर्गी-मूर्च्छा दूर होती है। इस तरह राई अग्निदीपक, पाचक, उत्तेजक व पसीना लानेवाली औषधि है।

हल्दी
यह रक्तशोधक है, अतः त्वचा-विकार जैसे खुजली व फोड़े-फुन्सी में इसका प्रयोग करते हैं। इसके चूर्ण का उबटन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। गहरी चोट लगने पर हल्दी का चूर्ण दूध के साथ पिलाते हैं। चोट लगने पर सूजन व दर्द वाले स्थान पर सरसों के तेल, नमक, प्याज व हल्दी की पुल्टिस बनाकर प्रयोग किया जाता है। पेट में कृमि होनेपर हल्दी का काढ़ा पिलाया जाता है। खांसी होने पर हल्दी का टुकड़ा चूसने से लाभ मिलता है। इसके अलावा सर्दी, सिरदर्द, दांत दर्द, मूत्र विकार में भी यह अत्यंत उपयोगी है। आयुर्वेदानुसार हल्दी उष्ण, रक्तशोधक, कफवात नाशक, पित्तशामक व यकृत के लिए उत्तेजक है। प्रमेह में हल्दी के चूर्ण को आंवले के रस के साथ देने से लाभ मिलता है।

अदरक
अदरक का गुण पाचक होने के कारण पेट में कब्ज, गैस की तकलीफ, उल्टी, मितली, सर्दी, खांसी, जुकाम में उपयोगी है। अदरक का रस शहद के साथ मिलाकर चाटते रहने से दमा, श्वास, खांसी से लेकर क्षय तक में भी लाभ मिलता है। हिचकी व जंभाई ज्यादा आने पर भी इसका प्रयोग कर सकते हैं। दाढ़ के दर्द में भी यह उपयोगी है। भूख न लगने पर भोजन के पूर्व नींबू के रस के साथ अदरक का सेवन करने से खुलकर भूख लगती है। यह कब्ज व अतिसार दोनों में लाभ पहुंचाती है। अदरक का ताजा रस मूत्र-निस्सारक (डाययुरेटिक) का कार्य करता है। इसके अलावा अदरक विषमज्वर, हृदय रोग, अजीर्ण, पीठदर्द व कमरदर्द में भी उपयोगी है। यही अदरक सूखने पर ‘सौंठ’ कहलाती है।

सौंफ
यह शीतल प्रकृति की औषधि है। जिन रोगों में गर्मी की अधिकता का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है, उनमें सौंफ का प्रयोग कर सकते हैं। आयुर्वेदानुसार यह अग्निदीपक, वात, ज्वर एवं शूलनाशक, तृष्णा (अधिक प्यास) व उल्टी को शांत करनेवाली औषधि है। मूत्रदाह, अम्लपित्त व पेट की मरोड़ में सौंफ लाभदायी है। अतिसार में इसका मिश्री के साथ प्रयोग करने से लाभ मिलता है। बेल के गुदे के साथ सौंफ का सेवन अजीर्ण व अपचन दूर करता है ।

मेथी
गठिया रोग की जकड़न व सूजन में मेथी विशेष रूप से लाभकारी है। सर्दी जुकाम के अतिरिक्त बहुमूत्र जैसे रोगों में भी यह प्रभावी है। भूख खुलने के साथ-साथ अपचन भी दूर होता है। आयुर्वेदानुसार यह मूलतः वातनाशक है। नाड़ी की दुर्बलता (Neuritis) में भी इसका प्रयोग होता है। प्रसव के बाद इसे खिलाने का प्रयोजन यह है कि स्तनों के दुग्धवर्धक होने के साथ-साथ हार्मोन्स का असंतुलन इससे दूर होता है। साथ ही दुर्बलता, शरीरगत पीड़ा व थकान में भी यह टॉनिक का काम करता है। डायबिटीज़ में मेथी के दाने भिगोकर, इन्हें सुखाकर चूर्ण बनाकर एक चम्मच सुबह-शाम लेने से रक्तशर्करा नियंत्रित होती पाई गई है ।

जीरा
यह सुगंधित होने के साथ-साथ पाचक भी है। अरूचि, पेट फूलना तथा अपचन में इसका उत्तम प्रभाव देखा गया है। भुने हुए जीरे को सूंघने से जुकाम की छींकें बंद होती हैं। जुकाम के कारण बंद हुईं नासिकाएं खुल जाती हैं। प्रसूति के पश्चात इसका सेवन करने से गर्भाशय की शुद्धि होती है। साथ ही स्तनों में दूध अधिक मात्रा में आता है। भोजन के पश्चात भुना हुआ जीरा खाने से पाचक रसों का स्राव आरंभ हो जाता है। अतः भोजन के समय की गई जल्दबाजी के कारण मुखगत स्रावों की जो कमी रह जाती है, उनकी पूर्ति होती है ।
आयुर्वेदानुसार जीरा उष्ण गुणात्मक, रुचिवर्धक, अग्निदीपक, विषनाशक एवं पेट के अफारे को दूर करनेवाला है। साथ ही यह कृमिनाशक व जीर्ण ज्वर में लाभकारी है। जीरा उबालकर उस पानी से स्नान करने से खुजली दूर होती है। बवासीर में इसे मिश्री के साथ सेवन करते हैं व मस्सों पर लगाने के लिए पानी के साथ पीसकर लगाते हैं। जीरे का चूर्ण दही के साथ लेने से अतिसार दूर होता है। पथरी व जननेन्द्रिय के रोगों में मिश्री की चाशनी के साथ इसका सेवन करते हैं ।

डॉ. अंजू ममतानी
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