मोटापे से परेशानी

स्थूलता निरन्तर चिन्ता उत्पन्न करनेवाली शारीरिक स्थिति है। केवल इसलिए नहीं कि वह जीवन को कम करती है, वरन् इसलिए भी कि वह अन्य अनेक कठिनाइयां उत्पन्न करती है। स्थूलता, यंत्रवाद एवं भोगवाद का परिणाम है। इसके अनेक नुकसान हैं, जैसे –

स्थूल व्यक्ति में आलस व सुस्ती रहती है। काम करने में ऐसे व्यक्ति को अधिक शक्ति का खर्च करना पड़ता है। थोड़ा सा काम करने पर वह हांफने लगता है। मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति के पैरों के पंजों में तीव्र पीड़ा होती है क्योंकि शरीर के अतिरिक्त भाग का दबाव उसके पैरों पर पड़ता है। इससे उनमें दर्द होता है। अतः घुटनों के दर्द में भी वजन कम करने की सलाह दी जाती है। अध्ययन में पाया गया है कि सामान्य वजन वालों की अपेक्षा मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति में फ्रैक्चर व हाथ पैर में चोट की संभावना अधिक रहती है।

स्थूल व्यक्ति के रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा अधिक रहती है। कोलेस्ट्रोल धमनियों को संकरा कर अवरोधजन्य हृदय रोग (Ischemic Heart Disease) उत्पन्न करता है। इसके अलावा हाई ब्लड प्रेशर व डायबिटीज़ का भी मोटापे से सीधा संबंध है

स्थूल व्यक्ति में श्वासोच्छवास की क्रिया उथली होती है। ठीक से श्वास नहीं ले पाने के कारण योग्य मात्रा में ऑक्सीजन का संचय नहीं होता व कार्बन डाइऑक्साइड का पूर्णतः निष्कासन नहीं हो पाता। यकृत पर भी स्थूलता का घातक प्रभाव होता है।

इसके निवारण में आहार महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। निम्नलिखित पदार्थ यथेष्ट मात्रा में लिए जा सकते हैं-
1) साग-भाजी, साग-भाजी का कचूमर (विशेषतः ककड़ी-टमाटर)
2) ताजे फल (केले को छोड़कर)
3) अंडे
4) मछली
5) चिकन

यह पदार्थ मर्यादित प्रमाण में लिए जा सकते हैं-
1) प्रतिदिन लगभग 250 मि.ली. अर्थात् आधी बोतल या डेढ़ कप दूध दिन भर में लें। चाय-काफी में मिलाने के लिए अतिरिक्त दूध न लें।
2) प्रतिदिन दो छोटे चम्मच मक्खन, घी, तेल अथवा मलाई।
3) दिनभर में 3-4 रूखी चपातियां या डबल रोटी के 3-4 स्लाइस या 3-4 रूखे खाखर अथवा 1 कटोरी भात या खिचड़ी।
(टिप्पणी: गेहूं के चोकर वाले आटे की रोटी या डबल रोटी स्वास्थ्य के लिए विशेष हितकर है)
4) दिनभर में एक छोटी कटोरी पतली मूंग की दाल ।
उपर्युक्त पदार्थों को छोड़कर अन्य कुछ भी न लें।
निषिद्ध वस्तुओं में निम्नलिखित खाद्य पदार्थ समाविष्ट हैं।
बिस्कुट, केक, आइस्क्रीम, शक्कर, चॉकलेट-पिपरमेंट, मिठाइयाँ, जाम, शहद, शराब और फलों का रस आदि।

दिनभर में अनुमानतः १,००० कैलरी की पूर्ति करने वाला आहार इस प्रकार है
1) प्रातःकाल – एक नींबू, नमक, पाव भर गुनगुने पानी में मिलाकर भूखे पेट प्रातः पीने से मोटापा कम होता है। यह लगातार 1-2 माह लें। गर्मी के मौसम में यह ज्यादा उपयोगी है। यदि शहद भी मिलाएं तो ज्यादा अच्छा होगा। इसके बाद दिन में जब भी प्यास लगे, पानी में नींबू और शहद मिलाकर पिएं। यदि शहद मिलाएं, तो नमक न मिलाएं।

2) प्रातःकाल का नाश्ता – नाश्ते में निम्नलिखित में से 1 या 2 वस्तुएं लें।
• बिना शक्कर वाला पौन कप दूध अथवा कम दूध वाली एक कप चाय या काफी। मिठास के लिए चाय या काफी में शक्कर के स्थान पर सैकरीन का उपयोग करें।
• सामान्य आकार की 1 मोसंबी या संतरा अथवा उतने ही आकार का कोई भी 1 फल (केले को छोड़कर)
• दो अंडे (पीला भाग निकालकर)
• 2-3 छोटे आकार के टमाटर या ककड़ियां।

3) दोपहर का भोजन –
• भोजन प्रारंभ करने से पहले साग-भाजी का 1 कप गर्म सूप। मांसाहारी व्यक्ति चिकन सूप ले सकते हैं।
• सलाद में ककड़ी, टमाटर, गाजर, पत्तागोभी, पालक लें। चाहे तो दही में मिलाकर ले सकते हैं। ये वस्तुएं अधिक मात्रा में भी ली जा सकती हैं।
• एक छोटी कटोरी-भर कम कैलरीवाली कोई भी एक तरकारी जैसे- हरे पत्तों वाली भाजी, गाजर, ककड़ी, कच्चे टमाटर, गोभी, बैंगन, चुकन्दर, मूली, लौकी, फनसी, भिंडी, परवल, टिण्डे आदि।
• 1-2 छोटी चपातियां। ज्वारी या बाजरे की रोटी अधिक फायदेमंद होती है।
• एक छोटी कटोरी मूंग अथवा मूंग की दाल जैसा दलहन ।
• मांसाहारी थोड़ा उबला हुआ या तंदुरी चिकन या मछली ले सकते हैं।
4) दोपहर / शाम : प्रातःकाल का नाश्ता ही दोहराएं।
5) शाम का भोजन : प्रातःकाल के भोजन के अनुसार ही रखें।
रोटी के बदले एकाध छोटी कटोरी भात या खिचड़ी ली जा सकती है।
अनेक लोगों के मन में यह गलत धारणा होती है कि चरबी कम करने के लिए डाइटिंग करना आवश्यक है अर्थात् भोजन बहुत कम मात्रा में किया जाए। वास्तव में यह एक गलतफहमी है। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि आहार कितना लिया जाता है, किन्तु आहार कैसा लिया जाता है, यह अहम है।
आहार में तेल का प्रमाण कम से कम होना चाहिए। नमकीन व तले हुए पदार्थ पूर्ण रूप से त्यागें। सप्ताह में एक बार ही मांसाहार लें। भोजन की शुरुआत तंतुमय पदार्थों अर्थात् कच्चे सलाद से करें। गाय के दूध का प्रयोग करें और मीठे पदार्थों का सेवन बंद कर दें। कम कैलरी व कम चर्बी वाला आहार लें।

आहार नियंत्रण संबंधी आवश्यक सूचना
• स्निग्ध पदार्थ स्वादिष्ट होते हैं, परंतु उनसे शीघ्र पेट नहीं भरता। अतः स्निग्ध पदार्थों का सेवन कम करें।
• तंतुमय पदार्थों से पेट जल्दी भरता है। अतः आहार की शुरुआत सलाद जैसे पदार्थों से करें। धीरे-धीरे खाने से पेट जल्दी भर जाने का एहसास होता है।
• नियमित व थोड़ी-थोड़ी देर के अंतर में आहार लें।
• दो समय के भोजन के बीच में खाना टालें, साथ ही रात में देर से भोजन न लें।
• आहार नियंत्रण के लिए भोजन लेना बंद न करें।
• भोजन के पश्चात् कम से कम 1 घंटा न सोएं।
• मक्खन, घी, क्रीम, आइसक्रीम, चाकलेट जैसे पदार्थों में ज्यादा कैलरी होती है। अतः इनका उपयोग आहार में कम मात्रा में किया जाना चाहिए।
• पके हुए फल जैसे- केला, आम, चिकू को छोड़कर सभी फल ले सकते हैं।

मोटापा निवारण के घरेलू अनुभूत उपचार
जिनका भार अधिक है व अन्नाहार पर नियंत्रण करते हैं, व्यायामों और योगासनों पर ध्यान देते हैं, उनके लिए टमाटर हितकारी है। कारण कि यह शरीर से विजातीय द्रव्य पदार्थ व आंतों में रुका या अटका खाना शरीर से बाहर निकालने में पूरी मदद करता है। नित्य कच्चा टमाटर, नींबू, नमक, लहसुन और प्याज के साथ खाने से निश्चय ही आपका बढ़ा हुआ भार धीरे-धीरे कम होने लगेगा।
• 100 ग्राम कुलथी की दाल नित्य खाने से मोटापा कम होता है।
• तुलसी के पत्तों का रस 10 बूंद एवं शहद दो चम्मच एक गिलास पानी में मिलाकर कुछ दिनों तक सेवन करने से मोटापा कम होता है।
• शरीर का वजन यानी मोटापा घटाने के लिए सप्ताह में एक बार केवल रस का सेवन कर उपवास करना चाहिए। रसोपवास से मोटापा घटता है।
• 12 औंस गाजर का रस और 4 औंस पालक का रस मिलाकर पिएं।
• जो चाहते हैं कि उनका शरीर अधिक मोटा न हो, उन्हें सदा कुनकुना पानी अधिक मात्रा में पीना चाहिए। भोजन से पहले एक गिलास कुनकुना पानी पी लिया जाए, तो भोजन अधिक नहीं किया जा सकता। इस प्रयोग से 2 महीने में ही चर्बी घटने लगेगी। डॉक्टर ल्यूकस की राय में सर्वोत्तम तरीका यह है कि 3 गिलास पानी में चुटकी भर नमक डालकर उबालकर रख लें और इस पानी का 1 गिलास प्रातः भूखे पेट, दूसरा दोपहर और तीसरा रात में सोने से पहले पिएं।
• चार पीपल का चूर्ण आधा चम्मच शहद में डालकर नित्य चाटें।
• अरणी की जड़ का काढ़ा बनाकर उसमें आधा ग्राम शोधन किया हुआ शिलाजीत मिलाकर नियमित पीने से भी मोटापा कम होता है।
• नियमित प्रातःभ्रमण कम से कम एक घंटा अवश्य करें।
• सुबह 10 मिली. गोमूत्र के नियमित सेवन से भी मोटापा दूर हो सकता है।
• गैस तथा कब्ज दूर करने के लिए पंचकोल, सौंठ, छोटी पीपल, पीपलामूल, चव्य तथा चित्रक का चूर्ण एवं त्रिफला के चूर्ण में काला नमक मिलाकर, रात में 1 से 2 चम्मच ताजे पानी से लें।
• 10-12 ग्राम बेर के ताजा पत्तों को पीसकर पानी में घोल लें। इसे छानकर सिंका हुआ जीरा और नमक मिलाकर पीने से चर्बी कम होती है।
• कुनकुने पानी के 1 गिलास में 20 ग्राम शहद तथा नींबू का रस डालकर प्रतिदिन सुबह पीना चाहिए।
• जौ, गेहूं या चावल को पानी में उबाल कर छान लें तथा ठंडा होने पर इसे प्रतिदिन पीने से भी अतिरिक्त चर्बी घटती है।
• त्रिफला के काढ़े में शहद तथा नींबू का रस डालकर ठंडा हो जाने पर नियमित पीना चाहिए।

आजकल मोटापा कम करने के चक्कर में लोग बिना सोचे-समझे डाइटिंग व अतिव्यायाम की राह अपनाते हैं। इससे वे स्वयं ही अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड करते हैं। बेहतर यही है कि वजन कम करने के लिए, शास्त्रीय तरीकों को समझकर इन्हें अपनाया जाए ताकि निरंतर वजन घटाने में कामयाब हुआ जा सके। आवश्यकता है केवल धैर्य की। आहार व व्यायाम के अति सरल तरीकों को अपनाने की ।
कुछ टिप्स
• वजन कम करने के इच्छुक व्यक्ति को ठंडा पानी, कोल्ड ड्रिंक्स या अन्य ठंडे पदार्थ नहीं लेना चाहिए।
• भोजन के तुरंत बाद कोल्ड ड्रिंक्स, लस्सी, आइस्क्रीम या अन्य ठंडे पदार्थ लेने से पाचक स्राव का परिमाण अत्यंत कम हो जाता है और चरबी जमा होने की संभावना अधिक रहती है।
• चाय-कॉफी जैसे शक्कर वाले पेय दिन में 1 बार से ज्यादा न लें।
• दिन में कम खाना खाएं। नाश्ते में कॉर्नफ्लेक्स खाएं क्योंकि इनमें फाइबर बहुत होता है।
• दोपहर के भोजन में केवल सलाद या सैंडविच ले सकते हैं।
• रात का भोजन 8 बजे तक कर लें। इसमें दाल, सब्जी व रोटी भरपूर मात्रा में लें। इसके अलावा दिनभर बीच-बीच में फल या फलों का रस लेते रहें।
• भोजन में नमक का प्रयोग कम करें।
इस तरह दुबला व छरहरा बनने के लिए आपको खाने-पीने पर विशेष ध्यान देना होगा, क्योंकि आहार ही हमारे उत्तम स्वास्थ्य का प्रमुख कारक है। संतुलित, शाकाहारी एवं सात्विक भोजन से आयु, बुद्धि, बल तथा तेज प्राप्त होता है।

पंचकर्म से आम व वृद्धिगत मेद धातु का निर्हरण होता है। मोटापे में पंचकर्म के अंतर्गत उद्वर्तन, बाष्प स्नान, वमन, लेखन-बस्ति व नस्यकर्म किया जाता है।

उद्वर्तन
इसमें मेदोहर जड़ीबूटियों का चूर्ण बनाकर शरीर पर जोर-जोर से रगड़कर लगाना अर्थात प्रतिलोम गति से, कुछ अधिक भार या पीड़न के साथ मालिश करना उद्वर्तन कहलाता है। मेदोरोग (चर्बीयुक्त रोग) में इससे मेद का विलयन होता है। इसके अलावा उद्यर्तन से त्वचागत विकारों में त्वचा का प्रसादन, पसीने की दुर्गंध कम होना, खुजली, वैवर्ण्य दूर होते हैं

वाष्प स्वेद (Steam Bath)
मोटापे में चर्बी कम करने के लिए वाष्प स्वेद का प्रभाव उपयोगी पाया गया है। इसमें पसीने द्वारा चर्बी विलयित होकर बाहर निकलती है। वाष्प संज्ञा से स्पष्ट है कि भाप द्वारा किसी विशिष्ट अंग का स्वेदन ही वाष्प स्वेदन है। इस प्रकार के स्वेद में वाष्प स्वेदन यंत्र द्वारा सेंक किया जाता है।
यह प्रक्रिया मुख्यतः मोटापा व वेदनायुक्त वात व्याधियों में बहुत उपयोगी पाई गई है। इसके अलावा दमा, मांसपेशीगत काठिन्य तथा जकड़ाहट, शोथ, हायपरकोलेस्ट्राल इत्यादि वातकफजन्य व्याधियों में भी प्रभावी है। रोगियों के अलावा सामान्य व्यक्ति द्वारा भी 15 दिन में या माह में एक बार स्वेदन लेने से शरीर के मलिन पदार्थ निकल जाते हैं, जिससे उसमें स्फूर्ति, उत्साह, उमंग का संचार होता है तथा थकावट दूर होने से वह तरोताजा महसूस करता है।

वमन
मोटापे में वमन कर्म करने से शरीर के भार में कमी पाई जाती है। मोटापे से ग्रस्त रुग्णों को वर्ष भर में 2 बार वमन कर्म करना चाहिए।
विशिष्ट आयुर्वेदिक औषधियों (वामक द्रव्यों) की सहायता से शरीरगत कफ व पित्त दोषों को विशिष्ट शास्त्रोक्त प्रणाली से उल्टी के द्वारा बाहर निकालना ही वमन है। आयुर्वेद संहिताओं में वमन प्रधानतः कफगत दोष की प्रमुख चिकित्सा बताई गई है। वैसे तो कफगत विकारों में शामक आयुर्वेदिक औषधियों से भी लाभ मिलता है, परंतु इसके साथ ही वमन कर्म करने से कफादि दोषों का समूल निर्हरण होता है व शरीर में कफ दोष का संतुलन बना रहता है। वमन कर्म से सिर्फ आमाशय के ही कफ दोष तथा मलों का निर्हरण नहीं होता, बल्कि शरीर के प्रत्येक कोषाणु (Cells and tissues) में स्थित प्रकुपित कफदोष व मल का निष्कासन होता है। वमन कर्म के द्वारा कोषाणुओं में स्थित दोष व मल, आमाशय में लाकर उन्हें उल्टी के माध्यम से बाहर निकाला जाता है। इसलिए वमन का कार्य सार्वदैहिक है, यह सिद्ध होता है।
इस प्रकार उपरोक्त तरीके से वमन कर्म कराते हैं। आम तौर पर सुनने में तो सिर्फ उल्टी कराना आसान है, परंतु यह वैज्ञानिक प्रक्रिया आयुर्वेदिक पद्धतिनुसार बहुत ही जटिल है। आम लोगों में भ्रम है कि उल्टी कराने से पेट में भारीपन, अजीर्ण इत्यादि लक्षण होते हैं, परंतु आयुर्वेदिक वमन कर्म करने से मोटापा दूर होता है तथा पूरे शरीर के छोटे से छोटे कोषाणुओं की शुद्धि व शरीरगत समस्त कफज रोग जड़सहित नष्ट होते हैं।

लेखनबस्ति
बस्तिकर्म याने विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा गुदा मार्ग से औषधि प्रविष्ट कर दोषों को बाहर निकालना। ऐसी बस्ति को, जो शरीर से मेद (चर्बी) धातु की वृद्धि को कम करे, लेखन बस्ति कहते हैं। इसमें चर्बी कम करनेवाली जड़ीबूटियों का प्रयोग किया जाता है। मुख्यतः विडंग, त्रिफला, मुस्तक, शिलाजीत के समभाग के 3 चम्मच चूर्ण का काढ़ा बनाकर उसमें गोमूत्र, शहद व सैंधा नमक मिलाकर लेखन बस्ति के लिए औषधि बनाई जाती है। मोटापा कम करने में इस बस्ति के आश्चर्यजनक परिणाम मिल रहे हैं। इसे माह में 10-15 दिन लेना चाहिए। फिर साल में 2-3 बार लेखन बस्ति का कोर्स करना चाहिए। इससे शरीर में से अनावश्यक मेद धातु का निर्हरण होता है।

बस्ति सम्यक लक्षण – बस्ति कर्म ठीक तरह से होने पर शरीर में हल्कापन, भूख लगना, इन्द्रिय प्रसन्नता, मल निर्हरण, वायु अनुलोमन, बलवृद्धि आदि लक्षण मिलते हैं।

नस्य कर्म
मोटापे में नस्य कर्म से सिर में से कफ दोषों का निर्हरण होकर अंतःस्रावी ग्रंथियां (Endocrinal Glands) के हार्मोन्स भी संतुलित होते हैं। विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा औषधिसिद्ध स्नेह द्रव्य को नाक में डालना ही नस्य है।
इस तरह मोटापे में चर्बी कम करने के लिए आहार-विहार, आयुर्वेदिक औषधि, व्यायाम के अलावा पंचकर्म के भी प्रभावकारी परिणाम मिलते हैं। इसलिए मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति को अन्य चिकित्सोपक्रम के साथ चिकित्सक के परामर्शानुसार पंचकर्म की क्रियाएं अवश्य ही करनी चाहिए।

Dr Anju Mamtani

डॉ. अंजू ममतानी
‘जीकुमार आरोग्यधाम’

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