‘‘बालकफ से बच्चों को सांस में परेशानी’’
जीवन का स्वर्णिम काल बाल्यकाल होता है। इस उम्र में हंसने, खेलने, खाने-पीने, मौज-मस्ती करने के सिवा और कुछ नहीं सूझता। एक प्रकार से अलमस्त समय रहता है। कुल मिलाकर बचपन हर किसी के लिए महत्वपूर्ण व यादगार होता है परंतु इस स्वर्णिम काल में बालक यदि बालकफ से ग्रस्त हो तो माता पिता के लिए परेशानी का विषय हो जाता है।
बालकफ बच्चों को होनेवाला पीड़ादायक है। आयुर्वेद में अवस्थानुसार दोषों की स्थिति का वर्णन है बाल्यावस्था में कफ का प्रकोप, युवावस्था में पित्त का प्रकोप व वृद्धावस्था में वात का प्रकोप होता है। बाल्यावस्था में वैसे ही कफ की बढ़ोत्तरी रहती है और इस काल में यदि माता कफवर्धक आहार-विहार का सेवन अधिक करे तो बालक में कफ विकृत होकर बालकफ जैसी व्याधि के लक्षण मिलते हैं।
इसमें बच्चे को निरंतर सर्दी, खांसी, खांसते-खांसते उल्टी करना, उल्टी में कफ, सांस लेने में कष्ट, नित्य हांफना, सांस लेते समय घुर्र-घुर्र आवाज, बालक का रात में रोना, कभी-कभी बुखार, शरीर में कमजोरी की वजह से सुस्ती, चेहरा निस्तेज, खाने में अरूचि, शरीर शिथिल, कभी कब्ज तो कभी अतिसार, पेट फुला, वजन कम इत्यादि लक्षण पाए जाते है। एंटीबायोटिक्स लेने से बच्चा कुछ दिन चैन की सांस लेता है पर मौसम परिवर्तन, माता के शीतल व कफवर्धक आहार के सेवन से पुनः-पुनः सर्दी-खांसी की पुनरावृत्ति होती है। बच्चों में बालकफ के लक्षण मुख्यतः 6 माह से 6-7 वर्ष तक पाए जाते है।
बार-बार बालकफ से आक्रान्त होने पर बच्चे को ब्रॅान्काइटीस, कान बहना, टॅान्सीलाइटीस, ग्रोथ रिटार्डेशन इत्यादि उपद्रव स्वरूप व्याधियां होती है। इसकी उचित चिकित्सा न करने पर यह दमा में परिवर्तित हो जाता है। यह बालकफ बालक की वृद्धि में बाधक होता है।
एंटीबायोटिक बार-बार लेने से इसके दुष्परिणामों का बच्चे को अलग सामना करना पडता है। इससे पाचन संस्थान की विकृति जैसे मुंह में छाले आना, कभी दस्त, कभी कब्ज, भूख न लगना (अरूचि) इत्यादि लक्षण पाए जाते है। बार-बार एंटीबायोटिक लेने से आगे चलकर यह असर भी नहीं करती।
बार-बार सर्दी, खांसी, टाॅन्सीलाइटिस, अस्थमा, न्यूमोनिया की वजह से बच्चों को बालकफ की संभावना अधिक होती है।
न्यूमोनिया
आधुनिक शास्त्रानुसार बाल कफ को निमोनिया कहा जाता है। बैक्टीरिया, वायरस, फफूंद और परजीवियों द्वारा उत्पन्न फेफड़ों का संक्रमण हैं। जब यह जीवाणु श्वास के माध्यम से फेफड़ों में भीतर चले जाते हैं, तब वे हवा की थैलियों अल्वेओली(Alveoli) में जम जाते हैं और उनकी संख्या अत्याधिक बढ़ जाती हैं जिससे थैलियां तरल और पस से भर जाती हैं। यह अल्वेओली (Alveoli) फेफड़ों में उपस्थित हवा हेतु थैलीनुमा सूक्ष्म रचनाएं जो आॅक्सीजन अवशोषित करती हैं।
लक्षण
- खांसी
- जंग के रंग जैसा या हरा बलगम
- बुखार और ठिठुरा देने वाली कपकपी
- सांस का तेज चलना और सांस लेने में कमी होना
- छाती का दर्द
- तेज हृदयगति
- थकावट और अत्यंत कमजोरी का अनुभव
- मतली और उल्टी
- अतिसार
- पसीना निकलना
- सिरदर्द
- मांसपेशियों में दर्द
- असमंजस
- रक्त में आॅक्सीजन की कम मात्रा के कारण त्वचा का रंग गहरा या जामुनी होना (सायनोसिस)
- भूख में कमी
जांच और परीक्षण
निमोनिया के संकेत और लक्षण अक्सर अनिश्चित होते हैं, रोगी की आयु और संक्रमण करने वाले जीवाणु के आधार पर विस्तृत रूप से बदलते हैं। रोग निदान हेतु निम्न परीक्षण आवश्यक है।
श्वसन तंत्र का शारीरिक परीक्षण।
- आॅक्सीजन संतृप्तता का विश्लेषण।
- स्टेथोस्कोप द्वारा रोग को निर्धारित करना।
- कल्चर
- सीरोलाॅजी
- संपूर्ण रक्त परीक्षण (सीबीसी)
- छाती की रेडियोग्राफी।
बालकफ ग्रस्त के लिए योग्य आहार
यदि आपका बच्चा 12 माह से कम आयु का है तो स्तन दुग्ध दिया जा सकता है।
यदि आपका शिशु 12 माह से अधिक आयु का है तो गाय का दूध हल्दी मिश्रित दिया जा सकता है।
गर्म चाय, सेब का रस या चिकन का शोरबा, हवा आने-जाने वाले मार्ग को आराम देता है और बलगम को ढीला करता है।
उच्च कैलोरी और उच्च प्रोटीन वाले आहार जैसे मांस, मछली, अंडे, फलियां, पनीर, तेल, मक्खन, सलाद की ड्रेसिंग और पीनट बटर।
फल और सब्जियां जैसे ब्रोकोली, टमाटर, गाजर, शिमला मिर्च, संतरे, सेब और खरबूज-तरबूज आदि।
साबुत अनाज जैसे नाश्ते वाला दलिया, संपूर्ण आटे की ब्रेड, पास्ता और चावल।
पथ्य
तुलसी के पत्ते, पुदीना, अदरक, लहसुन, गीली हल्दी, कडू जीरा, मुनक्का, सौंठ का पानी, भुने चावल, एलोवीरा पल्प।
अपथ्य (परहेज)
मैदा, सफेद शक्कर और उनसे बने उत्पाद ना लें।
वसायुक्त और मसालेदार आहार ना लें।
रिफाइंड स्टार्च और शक्कर के सभी प्रकार, पाश्चुरीकृत दूध, डेरी के सभी उत्पाद, पके हुए सभी आहार।
सावधानियां
- नमीकरक यंत्र के प्रयोग द्वारा गर्म और नम की गई हवा चिपचिपे बलगम को ढीला करने में सहायता करती है।
- तरल पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन उपयोगी होता है।
- उचित प्रकार से स्वच्छता बनाए रखना।
- एंटीबायोटिक का उचित प्रकार व समय तक सेवन।
- अपने बच्चे के आसपास किसी को भी धूम्रपान ना करने दें। धूम्रपान खांसी या श्वसन को बढ़ा देता हैं।
- सर्दी से बचाव ।
- जीवाणुओं के फैलने को रोकने के लिए अपने और अपने बच्चे के हाथों को साबुन से धोते रहें।
- दूसरों से भोजन, पेय पदार्थ या बर्तन बांटकर प्रयोग ना करें।
- निमोनिया का संक्रमण उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया और वायरस के विरूद्ध बच्चों का टीकाकरण।
- बच्चो को जानवरों के साथ खेलते समय सावधानी बरतनी चाहिए।
यदि निम्नलिखित स्थितियां दिखाई पड़ें तो तुरंत चिकित्सीय सहायता लें-
अत्यधिक या तेज बुखार।
- लगातार खांसी चलना।
- अतिसार और उल्टी।
- श्वास लेने में कठिनाई और छींकना।
- सूखा मुंह या तड़के होंठ।
- मूत्र की मात्रा कम या बिलकुल नहीं होना।
- सोने में कठिनाई।
- थकावट और भूख कम होना। नाखूनों और होंठो का नीला पड़ना।
- हर सांस के साथ पसलियों के बीच की और गर्दन के आस-पास की त्वचा का भीतर खिंचना।
- शरीर में पानी की अत्यधिक कमी।
बच्चे को अधिक से अधिक आराम दें। उसे ऐसी जगह पर रखें जहां शुद्ध हवा पर्याप्त मात्रा में आती हो और वहां धूप का प्रवेश हो। बच्चे को जिस पदार्थ से एलर्जी हो उसे दूर रखें।
चिकित्सा-
बालकफ की चिकित्सा करते समय 2 महत्वपूर्ण बिंदूओं पर ध्यान देना पडता है। दुग्धपानावस्था में सर्वप्रथम माता का आहार-विहार परिवर्तन करें जैसे अति शीत, कफवर्धक आहार-विहार का पूर्णतः त्याग करें, हल्का, सुपाच्य आहार ले। बच्चे को भी शीत आहार-विहार से बचाएं। बालकफ के रूग्णों में अदरक के रस 2-3 बूंद शहद के साथ लेनी चाहिए। हल्की सर्दी खांसी होने पर सितोपलादि चूर्ण आधा चम्मच का सेवन शहद के साथ कराएं साथ ही छाती पर अजवायन गरम कर पोटली बनाकर हल्का सेक करें।
आयुर्वेदिक उपचार
- मुलेठी का चूर्ण मधु के साथ दें।
- मुलेठी के चूर्ण में थोड़ी-सी भुनी लौंग मिलाकर मधु के साथ दें।
- बार-बार बालकफ होने पर इम्युनिटी बढ़ाने के लिए पिप्पली सिद्ध दूध व तुलसीरस शहद के साथ वेग आने पर बार-बार चटाएं।
- खांसी अधिक आने पर एलादि वटी चबाकर खाने के लिए दें।
- पेट साफ न होने पर बहावा व बाल हिरड़ा का काढ़ा हफ्ते में दो-तीन बार दें। इसके अलावा गंधर्व हरीतकी, त्रिफला चूर्ण नियमित दें।
- सर्दी खांसी रोकने के लिए सौंठ वेखंड उबालकर कपाल व नाक पर गर्म गाढ़ा लेप लगाएं।
- भुना हुआ चैकिया सुहागा और भुनी हुई फिटकरी का चूर्ण समभाग में माता के दूध या मधु में मिलाकर दें।
- काकड़ाश्रंगी, यष्टिमधु, भारंगी मूल व हिरड़ा से निर्मित क्वाथ।
- सौंठ व भरंगीमूल का काढ़ा।
रसायन चिकित्सा –
वर्धमान पिप्पली योग – प्रतिदिन पिप्पली की 1-1 मात्रा बढ़ाकर सातवें दिन सात पिप्पली लेकर 1 कप दूध व ऐ कप पानी में उबालकर दूध शेष रहने तक उबालें। तत्पश्चात छानकर रोगी को पिलाएं। आठवें दिन से एक-एक पिप्पली कम करते जाएं व उपरोक्त तरीके से योग निर्माण करें। यही वर्धमान पिप्पली योग है।
बालकफ में उपयोगी योग-
शृंगभस्म, अभ्रकभस्क, बालपंचभद्र, बालरोगान्तकरस, बालार्करस, बृहत् श्वासकासचिन्तामणि रस, श्वासकुठार रस, चंद्रामृत रस, कनकासव, कफकेतु रस, सोमासव, पिप्पल्यादि काढ़ा, तालीसादि चूर्ण, माणिक्य रसादि गुटिका, बालजीवनवटी इत्यादि का सेवन चिकित्सक परामर्शानुसार करें।
योग
र्घश्वसन, प्राणायाम, सूर्य नमस्कार।
पंचकर्म-
स्नेहन, स्वेदन, वमन, विरेचन, नस्य।
बालकफ से पीडित बच्चे की वृद्धि हेतु व रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने के लिए आयुर्वेदिक बल्य औषधि के बेहतर परिणाम पाए गए है। यह औषधि चिकित्सक द्वारा निर्देशित अन्य औषधियों के साथ देने से बच्चा हुष्ट, पुष्ट व रोगमुक्त होता है। इस तरह आयुर्वेदिक उपचार से कई बच्चे बालकफ से मुक्त होकर हुष्ट पुष्ट होते है। बस, जरूरत है उन्हें योग्य चिकित्सक के मार्गदर्शन की।