

हाइपरटेन्शन (उच्च रक्तचाप) पूर्व काल में 40-50 वर्ष के बाद ही होता था, किंतु आज नवयुवकों को भी इसकी शिकायत रहती है। आज के यांत्रिक युग में मनुष्य दिन-रात काम में व्यस्त रहता है, जिससे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की तरफ उसका ध्यान नहीं रहता। व्यायाम का अभाव, मोटापा, अति महत्वाकांक्षा, होटलों में मिर्च-मसालेदार व अधिक तैलीय पदार्थो का सेवन, अत्यधिक मद्यपान, हमेशा तनावग्रस्त रहना, रात में देर तक जागकर काम करना, अनिद्रा, पारिवारिक अथवा व्यावसायिक चिंताओं से घिरा रहना, स्वभाव में चिड़चिड़ापन, काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या के कारण व्यक्ति को मानसिक शांति नहीं मिलती, जिसके कारण उच्च रक्तचाप होता है। आज हाई ब्लडप्रेशर एक गंभीर रोग होता जा रहा है, जिसके बारे में जानकारी प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है।
बदली जीवनशैली ने मनुष्य को उच्च रक्तचाप से लेकर हृदय संबंधी रोग, मधुमेह, दमा, अस्थिक्षय, कैंसर और मानसिक रोग उपहार में देने शुरू कर दिये हैं। यानी इन रोगों की शुरुआत प्राकृतिक जीवनशैली को त्यागने से हुई है। हम देख रहे हैं कि विगत कुछ शताब्दियों से हमारी जीवनशैली और खानपान की आदतों में जबरदस्त परिवर्तन हुआ है। हमारा रहन-सहन, खानपान और सोच-विचार, सब कुछ अचानक बदल गया। पहले लोग खूब शारीरिक श्रम करते थे, प्राकृतिक व सन्तुलित आहार का सेवन करते थे और 8 से 10 घंटे की गहरी नींद का आनंद लेते थे। उनके मन में अनावश्यक संघर्ष के लिये कोई जगह नहीं थी। इससे मनुष्य पूर्णतः स्वस्थ था। किन्तु जब से तथाकथित आधुनिक जीवन की शुरुआत हुई, सब कुछ बदलने लगा। प्राकृतिक आहार ने परिष्कृत खाद्य पदार्थों का रूप ले लिया। शारीरिक श्रम न कर व्यक्ति आरामपसंद होने लगा। साथ ही अनिद्रा, भागमभाग और मानसिक संघर्ष से शारीरिक रोग होने लगे। मनुष्य ने आज वर्तमान में अपने अथक परिश्रम और बौद्धिक क्षमता से इन रोगों के उपचार तो खोजे हैं, पर वह भी अप्राकृतिक कारणों के सहारे ही। अनुभव बताते हैं कि ऐसे उपचारों से लाभ तो मिलता है, पर अस्थायी रूप से और वह भी पार्श्व प्रभावों के साथ। अतः प्राकृतिक जीवनशैली के साथ हमारा स्वास्थ्य गहरे रूप में जुड़ा है।
उच्च रक्तचाप एक ऐसा रोग है, जो एक बार लग जाये तो पूरी उम्र व्यक्ति के साथ चिपका रहता है। इसको नियंत्रित करने के लिये कई प्रकार की कारगर दवायें बाजार में उपलब्ध हैं, पर उनका असर भी अस्थायी रूप से ही होता है। जब तक इनका सेवन किया जाता है, तब तक इनका प्रभाव बना रहता है, लेकिन जैसे ही इनका सेवन कुछ दिनों तक बंद रखा जाता है, रोग और भी भयंकर रूप धारण कर लेता है। इस तरह के उपचार से विषमताओं के साथ कई तरह के पार्श्व प्रभाव (Side Effects) भी देखने को मिलते हैं।
क्या होता है ब्लडप्रेशर ?
हृदय से रक्त को पूरे शरीर में रक्तवाहिनियां (नलियां) ले जाती हैं। उनमें रक्त का जो दबाव होता है, उसे हम रक्तचाप या ब्लडप्रेशर कहते हैं। इसके दो प्रकार होते हैं-सिस्टॉलिक व डायस्टालिक। सिस्टॉलिक अर्थात् हृदय के आकुंचन (Contraction) के समय रक्तवाहिनियों पर पड़ने वाला दबाव और डायस्टालिक का अर्थ हृदय के प्रसरण (Relaxation) के समय रक्तवाहिनियों पर पड़ने वाला दबाव होता है। यह रक्तचाप आयु तथा शरीर संरचना के अनुसार मामूली-सा अंतर लिये हुये होता है। सामान्यतः एक स्वस्थ और प्रौढ़ व्यक्ति का रक्तचाप 120/80 mmHg होता है। इसमें 120 सिस्टॉलिक व 80 डायस्टालिक ब्लडप्रेशर है। जब यह रक्तचाप 140/90 mmHg या इससे अधिक पर पहुंच जाता है, तो इसे हम उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन) कहते हैं।
रक्तचाप का सीधा संबंध हृदय से होता है। यह रक्तचाप एक ही दिन में कई-कई बार बदल सकता है। दौड़ना, मेहनत करना, रतिक्रियारत होना, मानसिक रूप से तनावग्रस्त होना, चिंता करना, अधिक नमक खाना, निद्रामग्न होना तथा ऐसी तमाम दूसरी स्थितियों में रक्तचाप घटता-बढ़ता रहता है। लेकिन इतना अवश्य है कि रक्तचाप की वृद्धि या कमी सामान्यतः 10 अंकों तक ही होती है। जैसे यदि किसी व्यक्ति का सामान्य रक्तचाप 120/80 है तो 130/90 तक बढ़ने पर उसे हम उच्च रक्तचाप का रोगी नहीं कह सकते क्योंकि यह वृद्धि परिस्थितिजन्य हो सकती है, लेकिन यदि रक्तचाप 140/90 तक पहुंच जाता है, तो इसे उच्च रक्तचाप ही कहना उचित होगा।
रोग के प्रकार
प्राथमिक उच्च रक्तचाप (Primary or Essential Hypertension) – यह उच्चरक्तचाप का सबसे आम रूप है। इसके सभी मामलों में 90-95 प्रतिशत यही होता है। दरअसल उम्र बढ़ने के साथ रक्तचाप बढ़ता है तथा बाद के जीवन में इससे ग्रस्त होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। कई पर्यावरणीय घटक रक्तचाप को प्रभावित करते हैं। हाल के अध्ययनों से यह भी पता चला है कि प्रारंभिक जीवन की घटनाएं (उदाहरण के लिए जन्म के समय कम वजन, धूम्रपान करने वाली मां तथा स्तनपान की कमी) आवश्यक उच्च रक्तचाप के लिये जोखिमकारक होती हैं।
द्वितीयक उच्च रक्तचाप (Secondary Hypertension) – यह किसी कारण की वजह से बढ़ने वाला रक्तचाप होता है। गुर्दे का रोग उच्च रक्तचाप के द्वितीयक कारणों में सबसे सामान्य है। इसके अन्य कारणों में अंतःस्रावी ग्रंथियों के विकार, मोटापा, एस्ट्रोजन (Oestrogen) से युक्त गर्भनिरोधक दवाओं व स्टीरॉयड दवाओं का सेवन, नींद के समय अल्पश्वसन, गर्भावस्था, महाधमनी का निःसंकुचन, अवैध दवाएं शामिल हैं। यदि इन कारणों को दूर किया जाए, तो रक्तचाप स्वयं ही सामान्य हो जाता है।
उच्च रक्तचाप के कारण

- वंशानुगत
- आहार में रेशे की मात्रा कम होना
- आहार में अधिक नमक की मात्रा
- अपर्याप्त श्रम
- मानसिक तनाव या चिंता
- कोलेस्ट्रॉल व शुगर
- आयु
- अधिक धूम्रपान व शराब
- चाय, कॉफी का अधिक सेवन
- व्यायाम का अभाव
- गुर्दो की खराबी
- अंतःस्रावी ग्रंथियों के विकार
- मोटापा
- मधुमेह
- मस्तिष्क की बीमारिया
अध्ययनों से पता चलता है कि धमनीय रक्तचाप में उम्र से ही बदलाव नहीं आता, वरन यह शरीर की विभिन्न अवस्थाओं, स्थितियों एवं मानसिक स्थिति के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है। ऐसा देखा जाता है कि शारीरिक परिश्रम से यह बढ़ जाता है, जबकि विश्राम की स्थिति में यह सामान्य से भी नीचे पहुंच जाता है। इसी तरह यह क्रोध, भावुकता और मानसिक उत्तेजना की स्थिति में बढ़ जाता है, जबकि कुछ समय तक खड़े रहने, शांत एवं प्रसन्नता की अवस्था में घट जाता है। पढ़ाई-लिखाई में व्यस्त रहने और संध्या के समय में भी इसमें थोड़ी वृद्धि हो जाती है।

उच्च रक्तचाप के लक्षण
सामान्यतः ऐसे कोई भी लक्षण नहीं हैं, जिनसे उच्च रक्तचाप के रोगी की पहचान हो सके। इसका पता तो व्यक्ति को तब चलता है, जब वह किसी और बीमारी का उपचार कराने के लिये अस्पताल जाता है और वहां चिकित्सक उसके रक्तचाप की भी जांच करता है या फिर जब इसके कारण दिल, दिमाग, गुर्दों, आंखों और खून की नाड़ियों में विकृति पैदा हो जाती है। सामान्यतः ब्लडप्रेशर बढ़ने पर सिरदर्द, चक्कर आना, चिड़चिड़ापन, बिना कारण बात बात पर गुस्सा होना, किसी काम में मन न लगना, हृदय की धड़कन बढ़ना, थोड़े श्रम से सांस फूलना, बाएं कंधे या छाती में दर्द, जल्दी थकावट होना, आंखों के आगे अंधेरा छाना, अनिद्रा आदि लक्षण होते है। किंतु सभी रुग्णों में यही लक्षण होंगे, यह आवश्यक नहीं है। रक्तचाप के पुराने और इसके निरंतर बढ़ते जाने से रोगी सुबह उठकर अपनी गर्दन तथा सिर के पिछले भाग में दर्द की शिकायत करता है।
उच्च रक्तचाप की गंभीर स्थिति में सिर का दर्द बढ़कर स्थायी हो जाता है और रात के समय सांस फूलने लगती है। बारबार मूत्र त्याग के लिये जाना और दृष्टि विकार भी इसकी तरफ इशारा करते हैं। अकारण उलटी होने लगना या नाक या मूत्र के द्वारा रक्त का जाना, पैरों में सूजन, वजन का निरंतर बढ़ते जाना भी उच्च रक्तचाप के लक्षण हैं। इसके कारण व्यक्ति की मानसिक स्थिति में भी बदलाव आने लग जाता है। उसकी याददाश्त कमजोर पड़ जाती है और स्वभाव शंकालु व झगड़ालू-सा होता जाता है।
जटिलताएं (Complications)
ब्लडप्रेशर का नियंत्रण में रहना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि हाई ब्लडप्रेशर ऐसा रोग है, जिसका ठीक से निदान कर उपचार करना बहुत जरूरी है अन्यथा इसके गंभीर परिणाम होते हैं। हाई ब्लडप्रेशर का परिणाम संपूर्ण शरीर पर पड़ता है, पर विशेष रूप से हृदय, किडनी, आंखों और मस्तिष्क पर इसके दुष्परिणाम अधिक होते हैं।
हृदय-रक्तवाहिनियों में लगातार उच्च रक्तचाप की स्थिति बनी रहने से हृदय को अत्यधिक दबाव की स्थिति में रहकर कार्य करना पड़ता है। उच्च रक्तचाप के फलस्वरूप पैदा हुए धमनी काठिन्यीकरण के कारण हृदयशूल (Angina Pectoris and Myocardial Infraction), हृदय विफलता (CCF) आदि विकार उत्पन्न होते हैं।
गुर्दे – उच्च रक्तचाप के कारण धमनियों के संकरा व स्थूल हो जाने से गुर्दे रक्त की सफाई ठीक से नहीं कर पाते तथा उनकी कार्यक्षमता कम हो जाती है और अंत में वे कार्य करना भी बंद भी कर सकते हैं। इसे गुर्दों की विफलता (Renal Failure) कहते हैं।
मस्तिष्क – उच्च रक्तचाप से पीड़ित रोगियों में मस्तिष्कीय जटिलताओं के पीछे दो तरह के कारण जिम्मेदार होते हैं।
1. रक्ताभाव (Ischemia)। 2. रक्तस्राव (Haemorrhage)।
यह दोनों ही स्थितियां मस्तिष्कीय आघात के पश्चात देखने को मिलती हैं। इनके कारण रोगी में दृष्टि विकार से लेकर, तीव्र सिरदर्द, वाक् विकार, दौरे पड़ना और पक्षाघात की शिकायत हो जाती है।
अनियंत्रित उच्च रक्तचाप मस्तिष्कीय आघात का प्रमुख कारण है। कई बार रक्तचाप इस हद तक बढ़ जाता है कि रक्तवाहिनियां रक्त के उस दबाव को सह नहीं पातीं और कमजोर जगह से फट पड़ती हैं। परिणामस्वरूप ब्रेन हैमरेज से मृत्यु तक हो सकती है। शरीर के आधे हिस्से को लकवा हो सकता है।
गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप – गर्भधारण के लगभग 8-10 प्रतिशत मामलों में उच्च रक्तचाप की समस्या होती है। गर्भावस्था में इस समस्या वाली महिलाओं में प्राथमिक उच्च रक्तचाप पहले से मौजूद होता है। गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप पूर्व-एक्लेंपशिया (Pre-eclampsia) का पहला संकेत हो सकता है, जो कि गर्भावस्था की दूसरे आधे भाग की तथा प्रसव के कुछ हफ्तों बाद की गंभीर स्थिति है। पूर्व एक्लॅपशिया के निदान में उच्च रक्तचाप तथा मूत्र में प्रोटीन की उपस्थिति शामिल हैं। पूर्व-एक्लॅपशिया गर्भधारण के लगभग 5 प्रतिशत मामलों में होता है और विश्व स्तर पर सभी मातृ मृत्यु के लगभग 16 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार होता है। यह बच्चों की मृत्यु का भी खतरा दोगुना कर देता है। आमतौर पर इसका कोई लक्षण नहीं होता है और यह नियमित जांच से ही पता चलता है। पूर्व-एक्लॅपशिया के लक्षणों में सिरदर्द, नेत्र संबंधी गड़बड़ी (अक्सर “चमकती रोशनी), उलटी, अधिजठर (पेट के ऊपरी मध्य भाग) में दर्द और सूजन आदि हैं। पूर्व-एक्लॅपशिया कभी-कभी जीवन के लिए खतरनाक स्थिति तक पहुंच जाती है। यह उच्च रक्तचाप से संबंधित आपात स्थिति है, जिसमें कई गंभीर जटिलताएं शामिल हैं। इनमें दृष्टिनाश, मस्तिष्क में सूजन, दौरे या कंपकंपी, गुर्दे की विफलता, फेफड़े की सूजन और एक या अधिक रक्तवाहिकाओं में खून का जमना (रक्त के थक्के का विकार) शामिल हैं।
आंखें – उच्च रक्तचाप की स्थिति में आंखों को पोषण देने वाली रक्तवाहिनियों की दीवारें संकरी हो जाती हैं और कभी कभी वे फट भी जाती हैं। इससे आंखों के पर्दे भी फट सकते हैं और उनकी रोशनी हमेशा के लिये जा सकती है।
उच्च रक्तचाप का उपचार
शोधकर्ताओं का कहना है कि आधुनिक पैथी की उच्च रक्तचापरोधी औषधियां (एंटी हाइपरटेन्सिव मेडिसिन्स) रक्तचाप को घटाने में तो शीघ्र कारगर सिद्ध होती हैं और इन औषधियों के कारण रोगी की आयु बढ़ती है, परंतु इन लोगों में उच्च रक्तचाप से पैदा होने वाली विषमताएं हॉर्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक की दर ज्यादा पायी जाती है। उनके अनुसार जो लोग उच्च रक्तचाप होने पर अपनी जीवनशैली सुधारकर, खानपान की आदतों में बदलाव लाकर एवं अन्य नैसर्गिक उपायों से नियंत्रण बनाये रखते हैं, उनका औसत जीवनकाल तो बढ़ता ही है, उनमें उच्च रक्तचापजन्य विषमताएं भी कम ही देखी जाती हैं। इन लोगों में रक्तचाप भी ज्यादा गंभीर रूप धारण नहीं कर पाता है।
आहार चिकित्सा
आहार विशेषज्ञों के अनुसार आहार में पोषक तत्वों की पर्याप्त मात्रा बनाये रखकर तथा उनकी मात्रा को संतुलित रखकर उच्च रक्तचाप पर काफी हद तक नियंत्रण रखा जा सकता है। उच्च रक्तचाप से पीड़ित रोगियों को आहार में निम्न तत्वों को शामिल करना आवश्यक है इत्यादि।
पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नेशियम, विटामिन ‘सी’, विटामिन ‘ए’, कोलीन, प्याज और लहसुन, केला व खजूर
उच्च रक्तचाप के घरेलू उपाय
सुविधानुसार 2-3 उपायों का प्रयोग करें।
- कच्चे लहसुन की एक-दो कली पीसकर प्रातःकाल खाने से उच्चरक्तचाप सामान्य होता है। लहसुन का रस धमनी काठिन्य में लाभकारी है।
- शहद में नींबू का रस मिलाकर सुबह-शाम चाटने से उच्च रक्तचाप कम होता है। मधुमेह होने पर शहद नहीं लें।
- नियमित पपीता खाने और ताजे मीठे सेब खाने से रक्तचाप कम होता है।
- पुदीने की पत्तियां, सेंधा नमक, काली मिर्च, किशमिश की चटनी बनाकर खायें।
- प्रातःकाल देशी गाय का मूत्र पीने से उच्च रक्तचाप कम होता है।
- तरबूज का रस सेंधा नमक के साथ लेने से काफी आराम मिलता है।
- सौंफ, जीरा और मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बनायें तथा सुबह-शाम सादे पानी से लें आराम मिलेगा।
- आंवले का रस सबसे अधिक लाभकारी है या आंवले का मुरब्बा भी ले सकते हैं। खाने में मूली का नियमित सेवन करें।
- रक्तचाप में रात्रि सोने से पहले बादाम के तेल की 5-5 बूंदें नथुनों में डालें। यह नुस्खा सिद्ध है।
- उच्च रक्तचाप के रोगी दो-तीन दिन तक केवल नारंगी के रस का ही सेवन करें और दूसरा कोई अन्न या पेय पदार्थ न लें, तो उच्च रक्तचाप सामान्य हो जाता है।
- लाल अनार का रस 1 लीटर, ताजे आंवले का रस 1 लीटर, मिश्री चूर्ण 4 Kg तीनों को स्टील के बर्तन में लेकर मंद आंच पर रखें। एक तार की चाशनी होने पर अनार के दाने का डेढ़ किलो चूर्ण उसमें मिलाकर आंच से नीचे उतारें। ठंडा होने पर इलायची चूर्ण 60 ग्राम, कपर्दिक भस्म 50 ग्राम, शंख भस्म 50 ग्राम, प्रवालपिष्टी 50 ग्राम को एक सार होने तक मिलाएं व स्वच्छ बोतल में भरकर रखें। इसे दाड़िमामलक योग कहते हैं। इसका 10 उस नियमित सेवन करने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है, साथ ही बढ़ा हुआ पित्त भी कम होता है।
- अदरक का मुरब्बा, गाजर का मुरब्बा भी सेवन कर सकते हैं।
- लहसुन के रस की 5 बूंदें आधा कप छाछ या पानी के साथ पिएं।
- उच्च रक्तचाप के कारण होने वाले सिरदर्द में भृंगराज का स्वरस लाभकारी है।
- शतवृत्त क्षीरबला तेल की 5 बूंदें 1 कप दूध में लेने से उच्च रक्तचाप के रोगी को आराम मिलता है।
- 1 कप दूध में 1 चम्मच बादाम का तेल रात को लेने से लाभ होता है।
- शिग्रु व अनंतमूल के सेवन से उच्च रक्तचाप कम होता है।
- प्याज का रस 1 चम्मच व शहद 1 चम्मच लेने से उच्च रक्तचाप कम होकर रक्त का थक्का नहीं जमता।
- मेथी दाना चूर्ण 3 ग्राम सुबह-शाम जल के साथ लें।
- 1 ग्राम सूखा धनिया, 1 ग्राम सर्पगंधा व 2 ग्राम मिश्री पीसकर सेवन करें।
- रुद्राक्ष की माला गले में पहनें।
- मलावरोध हो तो 4 चम्मच गुलकंद सत्व, इसबगोल 2 चम्मच, त्रिफला चूर्ण 1 चम्मच मिलाकर लें व 1 गिलास कुनकुना दूध पिएं। सप्ताह में यह योग 2-3 बार लें।
उच्च रक्तचाप का आयुर्वेदिक उपचार
आयुर्वेदिक संहिताओं में यूं तो हृदय रोग’ संबंधी विशेष अध्याय लिखे गये हैं, लेकिन उच्च रक्तचाप जैसे लक्षणों वाले किसी रोग का उल्लेख देखने को नहीं मिलता। इसका सबसे पहले उल्लेख काशी निवासी सुदर्शन शास्त्री ने अपनी ‘माधव निदान’ नामक पुस्तक की टीका में किया था। सुदर्शन शास्त्री लिखते हैं कि ‘रक्तवाहिनियों में प्रवाहित हो रहे रक्त को जब वायु दूषित करने लग जाती है, तब मानव मस्तिष्क में उत्तेजना की स्थिति पैदा होने लगती है। इसके कारण कई व्यक्ति तो पागल तक हो जाते हैं।’
वनौषधियां
उच्च रक्तचाप में प्रयुक्त होने वाली कुछ वनौषधियां इस प्रकार है –
सर्पगंधा, जटामांसी, पुनर्नवा, शंखपुष्पी, अर्जुन, गोटू कोला पुश्करमूल (Inmularesimosa), गुग्गल (Camiphora Mukul), ब्राह्मी, षतावरी (Asperagus Racemosus), लहसुन, हींग (Porulla Narthex) और आंवला, दमनक, हृत्पत्री, अदरक, सोंठ, पीपल, विडंग, पुष्कर मूल मकोय, अश्वगंधा इत्यादि का उपयोग भी किया जाता हैं ये समस्त वनौशधियां विभिन्न तरह से असर डालकर रक्तचाप घटाने का काम करती हैं

आयुर्वेदिक औषधियां
- सिरदर्द, चक्कर आने पर सूतशेखर रस 1 गोली तीन बार लें।
- जिन व्यक्तियों को हृदय में दर्द होता है और धड़कन बेचैनी एवं निम्न ब्लडप्रेशर की शिकायत रहती है तथा दुर्बलता बनी रहती है, उन्हें ‘बृहत्वात चिंतामणि’ की एक-एक गोली सुबह-शाम दूध के साथ लेनी चाहिए।
- जिन लोगों को घबराहट, बेचैनी, चक्कर आने की शिकायत और ब्लडप्रेशर अधिक रहता है, वे ‘जवाहर मोहरा’ एक-एक गोली सुबह-शाम शहद के साथ लें।
- मुक्तापिष्टी एक रत्ती, अकीक पिष्टी दो रत्ती और श्रृंग भस्म चार रत्ती की मात्रा में अलग-अलग या मिलाकर शहद के साथ सेवन करना लाभकारी होता है। इनके सेवन से स्थायी लाभ की आशा की जा सकती है।
- प्रभाकर वटी की 1-1 गोली की मात्रा सुबह-शाम दूध या शहद से सेवन करने पर हृदय को बल प्राप्त होता है। त्रिफला गुग्गुल तीनों दोषों को साम्य कर हृदय की धमनियों में बढ़े हुए मेद को कम करता है।
उच्च रक्तचाप में उपयोगी पंचकर्म
उच्च रक्तचाप के रोगी को पंचकर्म के अंतर्गत मृदु स्नेहन – स्वेदन, शिरोधारा, नस्य करने से लाभ मिलता है। स्नेहन (मालिश) से त्वचा में स्थित सूक्ष्म रक्तवाहिनियां, स्नायु तन्त्रिकायें आदि सीधे प्रभावित होती हैं। इससे त्वचा की ओर रक्त का संचार बढ़ता है, संकुचित हुयी सूक्ष्म रक्तवाहिनियां फैलती हैं, पसीना आने की गति बढ़ती है, रोमछिद्र खुलते हैं तथा रक्तवाहिनियों का पेरिफेरल वैस्कुलर रेजिस्टेन्स (Peripheral Vascular Resistance) घटता है। इससे हृदय की ओर रक्त की वापसी भी सुधरती है। मालिश से शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति भी बढ़ती देखी गयी है और रक्त में स्ट्रेस हॉर्मोन का स्तर भी घटता है। पंचकर्म की अन्य क्रियाओं से स्रोतावरोध दूर होकर रक्तवाहिनियां व अवयव अपने कार्य सुचारु रूप से करते हैं। शिरोधारा से मानसिक तनाव कम होकर उच्च रक्तचाप में लाभ होता है।
उच्च रक्तचाप में योग चिकित्सा
प्रातःकाल योगासन व प्राणायाम का अभ्यास करें। सर्वांगासन, भुजंगासन, पवनमकुतासन, योगमुद्रा, पद्मासन, दीर्घश्वसन, बायें नासापुट से भस्त्रिका प्राणायाम करने से बढ़ा हुआ रक्तचाप नार्मल होता है।
उच्च रक्तचाप को नियन्त्रित करने के लिए आजकल ड्रम चिकित्सा, संगीत चिकित्सा इत्यादि की भी मदद ली जा रही है। इस रोग पर विशेष संगीत का सीधा प्रभाव पड़ता है। आजकल कई ऐसी संगीतयुक्त कैसेट्स उपलब्ध हैं, जिन्हें सुनने मात्र से ही रक्तचाप में गिरावट आने लग जाती है।
उच्चरक्तचाप कोई रोग नहीं, रोग का लक्षण मात्र है, जो शरीर की व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित करता है। शरीर को भीतर ही भीतर घुन की तरह खोखला करता जाता है। कारणों से दूर रहना ही इसकी सर्वोत्तम चिकित्सा है। साथ ही स्वास्थ्य रक्षा के साधारण नियमों के पालन की आवश्यकता है। अतः दैनंदिन जीवन में आवश्यक परिवर्तन जैसे आहार-विहार, आचार-विचार में बदलाव व आयुर्वेदिक औषधियों के द्वारा हम उच्च रक्तचाप को नियंत्रित कर सकते हैं।

डॉ. जी.एम. ममतानी
एम.डी. (आयुर्वेद पंचकर्म विशेषज्ञ)
‘जीकुमार आरोग्यधाम’,
238, नारा रोड, गुरु हरिक्रिशनदेव मार्ग,
जरीपटका, नागपुर-14 फोन : (0712) 2645600, 2646600, 2647600
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