
वृद्धावस्था मानव जीवन का वह पड़ाव है, जहां व्यक्ति एकान्त में शान्तिपूर्ण जीवन बिता सकता है, उसकी शारीरिक शक्ति भले ही कम हो जाये, किन्तु अगर उसकी मानसिक शक्ति अर्थात इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो वह सभी कार्य कुशलता से कर सकता है। आयु बढ़ना एक स्वाभाविक प्राकृतिक प्रक्रिया है, इसलिये इससे बुढ़ापे की हीन भावना नहीं आनी चाहिए किमैं तो अब कमजोर हूं, लाचार हूं, दूसरों परनिर्भर हूं, बल्कि इसके विपरीत आत्मविश्वास के साथ आत्मनिर्भर होकर दूसरों का भीसहयोगी बनकरस्वंय को उपयोगी सिद्ध करना चाहिए. वृद्धावस्था जीवन की वह सांझ है, जहां अनुभव का प्रकाश दमकता है, जहां मधुर वाणी की बयार बहती है, जहां प्रेम और स्नेह की भागीरथी प्रवाहित होती है
बाल्यावस्था, युवावस्था एवं वृद्धावस्था ये मनुष्य जीवन की तीन अवस्थायें है। प्रथम अवस्था बाल्यावस्था है। आचार्यो ने बाल्यावस्था के अलग-अलग काल वर्णित किये है। काश्यपाचार्य 12 वर्ष तक और अरुणदत्त 16 वर्ष तक बाल्यावस्था का काल निर्धारित करते हैं। शरीर में तीन दोष रहते है वात, पित्त और कफ। जिस तरह अनिल (वायु), सूर्य और सोम (जल) यह तीन तत्व सृष्टि का धारण करते है उसी तरह वात, पित्त और कफ शरीर का धारण करते है। बाल्यावस्था में कफ का प्राधान्य रहता है। शरीर की वृद्धि इस काल में विशेष रूप से होती है। कफ दोष बल प्रदान कर शरीर वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देता है, इसलिए इस काल में कफ का प्राबल्य रहता है। द्वितीय अवस्था युवावस्था है, यह काल 16 से 35 वर्ष तक रहता है। इस काल में शरीर के सभी अंग प्रत्यंग एवं भावों की वृद्धि परिपूर्ण होती है। इसलिए मनुष्य की कार्यशक्ति उत्तम रहती है। इस अवस्था में पित्त का प्राबल्य रहता है। तृतीय अवस्था वृद्धावस्था है 160 वर्ष तक वृद्धावस्था एवं 60-70 वर्ष के आगे जर्जरावस्था कह सकते हैं। इस अवस्था में शरीरभावों का क्षय (ह्रास) होने लगता है और धातु क्षय होता है तो वात बढ़ता है। इसी कारण वृद्धावस्था में वात का प्राबल्य रहता है। यह वात प्रकोप वृद्धावस्था के अनेक विकारों का कारण बनता है।
प्राचीन काल में मनुष्य की आयु सौ वर्ष थी। 60 वर्ष के बाद ही जर्जरावस्था का अस्तित्व था। लेकिन आजकल के भागदौड भरे जीवन में आहार एवं विहार संबंधी नियमों का पालन नहींकिया जाता। ऋतुचर्या का पालन तो दूर की बात है, स्वास्थ्यविषयक नियमों का पालन न करना, कम समय में अधिक उन्नति पाने के लिए अपने सामर्थ्य से कई अधिक गुना भागदौड़ करना, रात्रि जागरण आदि बातें आम हो गई है। अधिक कार्य से थकावट आने पर व्यक्ति व्यसनाधीन हो जाता है। इन कारणों की वजह से शरीर में स्थित त्रिदोष का असंतुलन होता है। इनमें बहुत से ऐसे कारण है जो वात को बढ़ाते हैं, परिणामतः वृद्धावस्था को शीघ्र लाते हैं।
वृद्धावस्था को शीघ्र लाने वाले कारण
1) वातावरण – देखा गया है कि अति उष्ण वातावरण एवं अति शीत वातावरण शरीर के लिए घातक है। दोनों वजह से वातप्रकोप (वात बढ़ता) होता है। उष्ण कटिबंधीय लोगों की आयु समशीतोष्ण कटिबंधीय लोगों की आयु से कम रहती है। शीतल वातावरण एजिंग प्रोसेस कम करता है।
2) आहार – आजकल फास्टफुड (Fast Food) का जमाना है। फास्टफुड (Fast Food / Instant Food) ये सब आहारविधी नियमों के विपरीत है। ये सब वातवर्द्धक है। इस प्रकार के आहार से शरीर का पोषण कम होता है।
3) तनाव – आज ऐसा एक भी व्यक्ति नही मिलेगा जो तनावरहित हो । पाश्चात्य देश में तनाव एवं तज्जनित मानसिक विकारों का प्रमाण अधिक है। चिंता-चिता से बढ़कर है, चिंता मनुष्य को जीवितावस्था में भी हरपल मृत्यु का अनुभव प्रदान करती है। चिन्ता से वात का बढ़ना स्वाभाविक है।
4) निद्रा – आयुष्य के लिए आहार,निद्रा एवं ब्रह्मचर्य अत्यंत आवश्यक है। आयुर्वेद में इन तीनों को उपस्तंभ (जीवन के आधार के लिए आवश्यक तीन खंभे कहा गया है। अच्छी नींद मनुष्य के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है। निद्रानाश वातप्रकोप का एक महत्वपूर्ण कारण माना गया है।
5) ब्रह्मचर्य – ब्रह्मचर्य का पालन शरीर संरक्षणार्थ महत्वपूर्ण है। अधिक मैथुन करने से शुक्रधातु का क्षय होता है और जहाँ धातुक्षय है वहाँ वात बढ़ता है। शुक्रधातु बलप्रदान करता है। अति शुक्रक्षय से बलक्षय एवं वृद्धावस्थाजन्य लक्षणों की निर्मिती होती है। ग्रंथों में मैथुनविषयक जो सर्वसामान्य नियम बताये हैं, इनका पालन परमावश्यक है।
6) व्याधियाँ – ऐसी अनेक व्याधियाँ है जो वार्धक्यावस्था को शीघ्र लाती है। इन व्याधियों में एनिमिया (खून की कमी), पीलिया, शोष (टी.बी), कृमि ससंर्ग (जंतुओं का होना), अतिसार, प्रवाहिका ये प्रधान हैं। एनिमिया जैसी व्याधियों में सेवन किये गये आहार का उचित पाचन नहीं हो पाता। अतिसार में गुदमार्ग से जलीय अंश एवं मल अधिक निकलता है, इससे शरीर में द्रवांश की कमी होती है। परिणामतः त्वचा का स्नेहांश (चिकनापन) कम होता है और त्वचा झुर्रियोंयुक्त एवं कांतिहीन दिखती है। कृमि होने से शरीर में बुखार, पेटदर्द, अतिसार, दस्त, त्वचा में विवर्णता ये लक्षण मिलते है। टी.बी में तो सारे शरीर का बल कम होता है, शरीर अधिक कृश होता है,व्यक्ति प्रभाहीन दिखाता है। इनके अलावा डायबिटीज, हायपरटेंशन, हृदय रोग, मानसिक विकार, थायराइड इत्यादि वृद्धावस्था को शीघ्र लाती है।
स्त्री स्वास्थ्य व रजोनिवृत्ति

रजोनिवृत्ति अर्थात महिला मे आयु के 40-50 वर्ष के बाद मासिक रजःस्राव का बन्द होना। साधारणतः 40-50 वर्ष तक महिलाओं में रजःस्रावों का स्राव कम होना/दो रजःस्राव के बीच का काल बढ़ना ऐसे लक्षणों के बाद मेनोपाज आता है। इस अवस्था को प्रि मेनोपॉजल फेज़ (Premenopausal Phase) कहते है। शरीर में अन्तःस्रावों (Hormones) के बदलाव के कारण इन दिनों में स्त्री अधिक संवेदनशील होती है। शरीर या सिर्फ मुखप्रदेश में दाह (Hot Flushes), चिड़चिड़ापन (Irritability), नींद न आना (Insomnia), त्वचा रूक्ष एवं निस्तेज लगना,अस्थिभंगुरता (अस्टियोपोरोसिस) आदि लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं।
पुरुषों में अस्थिक्षय एवं भंगुरता के साथ-साथ प्रोस्टेट ग्रंथी (पौरूष ग्रंथी) की वृद्धि होती है। परिणामतः मूत्र के वेग अधिक आते है। रात में भी मूत्रविसर्जन अधिक बार करना पड़ता है इसलिये रात की नींद अच्छी तरह नही हो पाती और व्यक्ति अस्वस्थ हो जाता है।
इन बातों से स्पष्ट है कि आहार-विहार संबंधी नियमों के उल्लंघन से, कुछ व्याधियों की वजह से मनुष्य की आयु का मान कम हो रहा है। वृद्धावस्था के लक्षण आजकल 40-50 वर्ष की आयु में ही मिलते हैं। इसका जिम्मेदार मनुष्य स्वय ही हैं लेकिन इस प्रक्रिया को हम चाहे तो बदल सकते है।
कैसे जियें वृद्धावस्था

वास्तव में वृद्धावस्था को रोका नहींजा सकता लेकिन रोगों से सुरक्षा कर दीर्घायु सुखी एवं आनंदमय जीवन जिया जा सकता है। जिस तरह बच्चे को भरपुर प्यार और देखभाल की जरूरत होती है ठीक उसी तरह वृद्ध व्यक्ति को भी बीमारी और अकेलेपन में भरपुर प्यार और देखभाल की आवश्यकता होती है। उनकी बहुत सारी आदतें और व्यवहार भी बच्चों की तरह हो जाता है। भूल जाना, जिद्दी व चिड़चिड़ापन, छोटी-छोटी बात पर रूठ जाना, स्वाद और खाने की चीजों के लिए बिल्कूल बच्चों सा व्यवहार हो जाता है। इसलिए इसे बचपन की पुनरावृत्ति कहा जाता है।
सामान्यतः लोग सोचते हैं कि जैसे-जैसे इन्सान की आयु बढ़ती है, उसकी शारीरिक क्षमता, बल, काम करने की इच्छा, काम करने की शक्ति, योग्यता, मानसिक सामार्थ्य में कमी आने लगती है,विशेषकर 40 वर्ष की आयु के बाद तो लोग इसे प्राकृतिक अवश्यम्भावी मानते हैं किन्तु शोध के द्वारा अब यह सिद्ध हो चुका है कि ऐसी सोच, ऐसी धारणा, ऐसा विचार बिल्कुल गलत है
अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि जैसे-जैसे आयु बढ़ती है व्यक्ति का मस्तिष्क अधिक समर्थ बनता जाता है क्योंकि ब्रेन सेल्स न्युरान्स (Nuerons) का ज्यादा उत्पादन होता है और उसके पास वर्षों की बुद्धिमता एवं अनुभव की सम्पति भी होती है. इसलिए आयु बढ़ना,काउंटडाउन का प्रारम्भ नहीं, अपितु यह काउंट-अप का समय है बल्कि वृद्धजनों के योजनायुक्त स्किल और बौद्धिक योग्यता का दुनिया बहुत फायदा उठा सकती है। वास्तव में इस तरह से वृद्धजन अपना अनुभव और योग्यता आने वाली सन्तानों को भेंट रूप में दे रही हैं, ताकि वे उसका लाभ उठा सकें।
वृद्धावस्था का काल दूर करने के कुछ उपाय
1) आहार – वृद्धावस्था में अपने खानपान पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। योग्य समय पर भोजन करना चाहिए। भोजन में गेहूं, गाय का घी, दूध इन पदार्थों का समावेश आवश्यक है। मौसमी फल में अनार, अमरूद, संतरा अत्यंत आवश्यक है। आँवला का सेवन अधिक फायदेमंद है। इसमें विटामिन सी (Vit-C) प्रचुर मात्रा में होता है तथा यह Antioxidant का कार्य भी करता है। ‘क्षार क्षरणात्ः’ अर्थात क्षार क्षय के लिए (धातुक्षय) उतरदायी होता है इसी कारण भोजन में पहले से ही नमक की मात्रा मर्यादित रखे। अचार, पापड़, फास्ट फूड,बेकरी प्रॉडक्ट सेवन करने में अच्छे लगते है किन्तु परिणामतः वातवर्धक होते हैं, इनका सेवन वर्ज्य करें। तीखे व चटपटे पदार्थों का सेवन कम करें। वसा का सेवन कम करें।
भोजन में हरी सब्जियाँ, मूंग दाल, सलाद, पालक, मेथी की सब्जी, बथुआ, चौलाई का साग, काशीफल, तोराई, लौकी,जमीकंद और कटहल आदि का सेवन भरपूर मात्रा में करें। कब्ज के कारण अनेक वृद्ध व्यक्ति परेशान रहते है, हरी सब्जियाँ कब्जनाशक है। काला मुनुक्का (8 से 10) भोजन के बाद गुनगुने पानी या दूध में उबाल कर रात्रि में लिया तो कब्ज में अच्छा काम करता है। कब्ज की शिकायत न हो इसके लिए अनाज में चोकर सहित आटा, मिश्रित अनाज का आटा, दलिया, मिस्सी रोटी का उपयोग करें। गुड,मूँगफलियाँ खाने से खून बढ़ता है एवं ताकत बनी रहती है। भोजन के समय सदा प्रसन्न रहना चाहिए। रात को सोते समय 2 अंजीर, 2 अखरोट, 4 बादाम, 1 चम्मच मेथी दाना रात को भिगाकर रखे सुबह उठकर खाली पेट खाएं।
भोजन के संबंध में विशेष रूप से सतर्क रहें फास्ट फूड व जंक फूड की बजाय सादा व प्राकृतिक भोजन ही लें भोजन में ताजा फल-सब्जियों की मात्रा अधिक होनी चाहिए ताकि पर्याप्त मात्रा में एंटीऑक्सिडेंट मिल सकें।
2) विहार – जल्दी सोना एवं जल्दी उठना स्वास्थ्यकारक है। दांत मजबूत रहें इसलिए कषाय रस प्रधान (खदिर, निंबू, अर्जुन इ. जैसे द्रव्यों के क्वाथ मुख में धारण करना चाहिए। प्रतिदिन अभ्यंग (मालिश) करना चाहिये।
वृद्धो की देखभाल
बुजुर्गों की समस्याओं के प्रति समाज में जागरूकता फैलाना और सामूहिक प्रयास यही बेहतरीन उपाय हो सकता है। बुजुर्गों का सबसे बड़ा रोग हैं असुरक्षा और अकेलेपन की भावना।
देखभाल के लिए नौकर रख देने या उन्हें वृद्धाश्रम भेज देने से उनकी परिचर्या तो हो जाती है लेकिन भावनात्मक रूप से वृद्धजनों को खुशी और संतोष नहीं मिल पाता जो उन्हें अपने परिजनों के बीच रहकर मिलता है। वृद्धावस्था में हृदय संबधी रोग, ब्लडप्रेशर,मधुमेह, जोड़ों के दर्द जैसी आम समस्याए तो होती हैं लेकिन इससे बड़ी समस्या होती है भावनात्मक असुरक्षा की। भावनात्मक असुरक्षा के कारण ही उनमें तनाव, चिड़चिड़ापन, उदासी, बेचैनी जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है।
आज आवश्यकता इस बात की है परिवार में वृद्धजनों को संसाधन के रूप में माना जाए, लेकिन कुछ परिवारों में इन्हें बोझ के रूप में माना जाता है। परिवार की कल्पना यदि एक वृक्ष की तरह की जाए तो हमारे बुजुर्ग उसमें एक साख की तरह होते हैं। अतः उनका ख्याल रखना जरूरी है। वृद्धावस्था में शारीरिक परिवर्तन के साथ-साथ मानसिक परिवर्तन भी होते है। जिसके कारण वृद्धों की स्वाद इंद्रियों पर प्रभाव पड़ता है। प्रायः 50 से 60 वर्ष की आयु में शारीरिक शक्ति क्षीण होने लगती है। शरीर के सभी अंग शिथिल पड़ने लगते हैं। जैसे:आंखोंकी रोशनी कम होना, कम सुनाई देना, किसी कार्य को करने में समय अधिक लगना। इसका कारण उनमें कार्यक्षमता की कमी का होना। इसके अलावा वृद्धावस्था में शरीर में कोलेजन में वृद्धि के कारण शरीर के लचीलेपन में कमी आ जाती है। भूख में कमी तथा पाचन क्रिया का कमजोर होना संवेगात्मक भावों की भी कमी होने
लगती है। अतः उनका समय-समय पर चेकअप करवाते रहें। देखभाल के साथ-साथ उन्हें भरपूर प्यार दें फिर देखिए उन्हें अपनी उम्र का अहसास भी नहीं होगा और वे अपनी तकलीफ, दर्द को भूलाकर मुस्कराने लगेंगे। परिजन वृद्धो को समय दें उनके पास बैठें व बाते करें।
वृद्धों के लिए आवश्यक बातें
निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखकर हम बढ़ती उम्र के अहसास से मुक्त होकर, अत्यंत सक्रिय जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

- अपनी दिनचर्या को नियमित रखें तथा समय पर सब काम पूरे करें।
- पर्याप्त नींद लें, अधिक या कम सोना दोनों ही अच्छे स्वास्थ्य के शत्रु हैं।
- पर्याप्त आराम करें। थक जाने पर आराम जरूरी है लेकिन थकान भी जरूरी है ताकि आराम किया जा सके। थकान के बिना आराम का कोई मतलब नहीं इसलिए शारीरिक श्रम जरूरी हैं।
- नियमित रूप से व्यायाम तथा सैर करें, घर की साफ-सफाई और अपने काम खुद करें, पेड़-पाँधे लगाएँ और उनकी देखभाल खुद करें. बागवानी स्वयं में एक उपचारक होता है क्योंकि वे व्यक्ति को न केवल सक्रिय रखते है अपितु तनावमुक्त करने में भी सहायक होते हैं ।
- अधिकतर वृद्ध अपनी नासमझी, क्रोधी स्वभाव, लालसा, मोह के कारण अपने जीवन की खुशियों को समाप्त कर लेते हैं बल्कि परिवारों में बेटियों, बहुओं, बच्चों को हर बात में टोक कर अपना सम्मान स्वय कम कर लेते हैं
- नजदीक आने-जाने के लिए वाहन का प्रयोग करने के बजाय पैदल आएँ-जाएँ।
- अपना छोटा मोटा समान खुद उठाएँ, सीढ़ियों पर बार-बार चढ़ने उतरने और इधर-उधर आने-जाने को परेशानी का कारण न मानें, अपितु इसे व्यायाम के रूप में लें।
- हँसना न केवल एक अच्छा व्यायाम और तनावमुक्ति का साधन भी है.खूब ठहाके लगाइए।
- मन को सकारात्मक विचारों से ओतप्रोत रखें इसके लिए नियमित रूप से प्रेरणास्पद साहित्य पढ़े।
- आत्मविश्वास से भरपूर रहें विषम परिस्थितियों में अपने मनोबल को ऊँचा बनाए रखें।
- भावनात्मक संतुलन बनाए रखें छोटी-छोटी बातों पर भावुक न हों।
- मानसिक रूप से चुस्त-दुरूस्त बने रहने के लिए दिमागी कसरत करते रहें। वर्ग-पहेली भरने अथवा गणित के सवाल
हल करने से व्यक्ति दिमागी तौर पर अधिक सक्रिय रहता है। - कुछ न कुछ नया सीखते रहने का प्रयास करें. इससे व्यक्ति की रचनात्मकता के स्तर में वृद्धि होती है जिससे व्यक्ति जल्दी बूढ़ा नहीं होता और बुढ़ापे में भी चुस्त-दुरुस्त बना रहता है ।
- बुढ़ापे को दूर रखना है तो अकेलेपन से बचें। सामाजिक गतिविधियों में बढ़ बढ़कर भाग लें। हर उम्र के व्यक्तियों से, विशेष रूप से बच्चों से संवाद स्थापित करने का प्रयास करें।
- सुबह नींद खुलते ही तुरंत छोड़ खड़े न हो क्योंकि आँखे तो खुल जाती हैं मगर शरीर व नसों का रक्त प्रवाह पूर्ण चैतन्य अवस्था में नहीं हो पाता। अतः पहले बिस्तर पर कुछ मिनट बैठे रहें और पूरी तरह चैतन्य हो लें। कोशिश करें कि बैठे-बैठे ही स्लीपर/चप्पलें पैर में डाल लें और खड़े होने पर मेज या किसी सहारे को पकड़कर ही खड़े हों। अक्सर यही समय होता है डगमगाकर गिर जाने का। गिरने की सबसे ज्यादा घटनाएं बाथरूम /वॉशरूम या टॉयलेट में ही होती है। आप चाहे अकेले ही होते हैं।
- वृद्धावस्था में नियमित सत्संग प्रवचन में जाना चाहिए।
- याद रखें बाथरूम में भी मोबाइल साथ हो ताकि वक्त जरूरत काम आ सके।
- देशी शौचालय के बजाय हमेशा यूरोपियन कमोड वाले शौचालय का ही इस्तेमाल करें। संभव हो तो कमोड के पास एक हैंडिल लगवा लें। कमजोरी की स्थिति में इसे पकड़ कर उठने के लिए ये जरूरी हो जाता है। बाजार में प्लास्टिक के वेक्यूम हैंडिल भी मिलते हैं, जो टॉइल जैसी चिकनी सतह पर चिपक जाते हैं, पर इन्हें हर बार इस्तेमाल से पहले खींचकर जरूर जांच-परख लें।
- हमेशा आवश्यक ऊँचे स्टूल पर बैठकर ही नहाएं।
- बाथरूम के फर्श पर रबर की मैट जरूर बिछाकर रखें ताकि आप फिसलन से बच सकें
- गीले हाथों से टाइल्स लगी दीवार का सहारा कभी न लें, हाथ फिसलते ही आप डिस बैलेंस’ होकर गिर सकते हैं।
- बाथरूम के ठीक बाहर सूती मैट भी रखें जो गीले तलवों से पानी सोख लें। कुछ सेकेण्ड उस पर खड़े रहें फिर फर्श
पर पैर रखें वो भी सावधानी से। - अंडरगारमेंट हों या कपड़े, अपने चेंजरूम या बेडरूम में ही पहनें। अंडरवियर, पाजामा या पैंट खड़े-खड़े कभी नहीं
पहनें। हमेशा दीवार का सहारा लेकर या बैठकर ही उनके पायचों में पैर डालें,फिर खड़े होकर पहनें, वर्ना दुर्घटना घट
सकती है। कभी-कभी स्मार्टनेस की बड़ी कीमत चुकानी पड़ जाती है। - अपनी दैनिक जरूरत की चीजों को नियत जगह पर ही रखने की आदत डाल लें, जिससे उन्हें आसानी से उठाया या
तलाशा जा सके। - भूलने की आदत हो, तो आवश्यक चीजों की लिस्ट मेज या दीवार पर लगा लें, घर से निकलते समय एक निगाह
उस पर डाल लें, आसानी रहेगी। - जो दवाएं रोजाना लेनी हों, उनको प्लास्टिक के प्लॉनर में रखें जिससे जुड़ी हुई डिब्बियों में हफ्ते भर की दवाए दिन-वार के साथ रखी जाती हैं। अक्सर भ्रम हो जाता है कि दवाएं ले ली हैं या भूल गये। प्लॉनर में से दवा खाने में चूक नहीं होगी।
- सिढ़ियों से चढ़ते उतरते समय, सक्षम होने पर भी, हमेशा रेलिंग का सहारा लें, खासकर ऑटोमैटिक सीढ़ियों पर।
- ध्यान रहे अब आपका शरीर आपके मन का ओबिडियेंट सरवेन्ट नहीं रहा।
- बढ़ती आयु में कोई भी ऐसा कार्य जो आप सदैव करते रहे हैं, उसको बन्द नहीं करना चाहिए। कम से कम अपने से
सम्बन्धित अपने कार्य स्वयं ही करें।

- नित्य प्रातः काल घर से बाहर निकलने, पार्क में जाने की आदत न छोड़े,छोटी-छोटी एक्सरसाइज भी करते रहें। नहीं तो आप योग्य व व्यायाम से दूर होते जाएंगे और शरीर के अंगो की सक्रियता और लचीलापन कम होता जाएगा। हर मौसम में कुछ योग प्राणायाम अवश्य करते रहें।
- घर में या बाहर हुकुम चलाने की आदत छोड़ दें। अपना पानी, भोजन, दवाई इत्यादि स्वयं लें जिससे शरीर में सक्रियता बनी रहे। बहुत आवश्यकता होने पर ही दूसरों की सहायता लेनी चाहिए।

- घर में छोटे बच्चे हों तो उनके साथ अधिक समय बिताएं,लेकिन उनको अधिक टोका टाकी न करें। उनको प्यार से सिखायें।
ध्यान रखें कि अब आपको सब के साथ एडजस्ट करना है न कि सब को आपसे। इस एडजस्ट होने के लिए चाहे, बड़ा परिवार, छोटा परिवार हो या कि पत्नी / पति हो, मित्र हो, पड़ोसी या समाज ।
वृद्धजन एक मूल मंत्र सदैव उपयोग करें।
1 नोन अर्थात नमक । भोजन के प्रति स्वाद पर नियंत्रण रखें।
2 मौन कम से कम एवं आवश्यकता पर ही बोलें।
3 कौन (मसलन कौन आया, कौन गया, कौन कहां है, कौन क्या कर रहा है) अपनी दखलंदाजी कम कर दें। नोन, मौन, कौन के मूल मंत्र को जीवन में उतारते ही वृद्धावस्था प्रभु का वरदान बन जाएगी जिसको बहुत कम लोग ही उपभोग कर पाते हैं।
वास्तव में वृद्धावस्था को दूर रखने के लिए एंटी-ऑक्सिडेंट डाइट या एंटी एजिंग क्रीम की आवश्यकता नहीं होती है बल्कि एंटी एजिंग मानसिकता की आवश्यकता है। उम्र के अहसास को परिवर्तित करके ही हम हमेशा युवा बने रह सकते हैं क्योंकि वृद्धावस्था शारीरिक व मानसिक दो प्रकार की होती हैं। शारीरिक वृद्धावस्था को मन की शक्ति द्वारा रोकना संभव है लेकिन जो मन से बूढ़ा हो गया उसका कोई उपचार नहीं। बुढ़ापे से बचने का एकमात्र महत्वपूर्ण उपाय उसे स्वीकार ही न करना है। जब तक आप स्वीकार नहीं करेंगे आप बूढ़े हो ही नहीं सकते और ये स्वीकृति मन से होती है। मन से हमेशा युवा बने रहेंगे तो न बुढ़ापा दस्तक देगा और न शारीरिक कमजोरी।
अतः बुढ़ापे से बचने तथा चिरयुवा बने रहने के लिए मन में नियमित रूप से निम्नलिखित सकारात्मक भाव लाएं जैसे
- मैं एकदम युवा हूँ और मेरा स्वास्थ्य बहुत अच्छा है।
- हर तरह से मैं प्रतिदिन अधिकाधिक स्वस्थ हो रहा हूँ।
- निर्भय होकर मै अत्यंत सक्रिय, साहसी तथा अनुशासित जीवन व्यतीत कर रहा हूँ।
- मेरी प्रकृति में लचीलापन है तथा मैं जीवन में परिवर्तनों तथा चुनौतियों को स्वीकार करता हूँ। मैं आत्म विश्वास तथा उत्साह से परिपूर्ण हूँ।
- मैं विषाक्त मनोभावों तथा आदतों से मुक्त हूँ, नकारात्मक विचारों तथा नकारात्मक सुझावों का मेरे ऊपर तथा मेरे
- मन के किसी भी स्तर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।जीवन मेरे लिए एक अमूल्य उपहार है तथा मैं पूर्ण सचेतनता के साथ जीवन का आनंद उठाताहूँ।
इन उपरोक्त भावों को प्रतिदिन दो तीन बार दोहराएँ ।
वृद्धावस्थामें होने वाले रोग और उपाय
वृद्धावस्था में स्मरणशक्ति कम होना, भ्रम की स्थिति, अल्जाइमर रोग, रक्तचाप का उताव चढ़ाव, हृदय रोग की समस्याएं, जोड़ों दर्द, कैंसर, टी.बी,आंखों की समस्याएं आदि हो जाती हैं। इन रोगों की तकलीफों को कम करने के लिए कैल्शियम और विटामिन ‘डी’ का निर्धारित मात्रा में प्रतिदिन सेवन करना चाहिए। वृद्धावस्था में प्रोस्टेट वृद्धि व वात व्याधि होने पर तिल (1भाग),अजवाइन (1/2 भाग) व अलसी (1 भाग)को मिलाकर आधा चम्मच सुबह-शाम सेवन करें। नियमित व्यायाम करें। धूम्रपान और अल्कोहल से बचें। हड्डियों के घनत्व की जांच कराएं। अपना वजन सही रखें। खूब पानी पिएं। एक स्वस्थ आहार योजना बनाकर चलें। संतुलित आहार लें। विटामिन डी के लिये नियमित शरीर की मालिश कर धुपमें बेठें।
रसायन औषधियों काप्रयोग
चिरकालीन तारूण्यावस्था पाने के लिए आयुर्वेद शास्त्र में रसायन चिकित्सा वर्णित है। माना कि वृद्धावस्था काल का एक अटल परिणाम है किन्तु रसायन चिकित्सा से तारूण्यावस्था का काल बढ़ाकर वृद्धावस्था को दूर कर सकते है। आयुर्वेद में वयःस्थापनार्थ आमलकी (आँवला) सर्वश्रेष्ठ है। ऐसे ही च्यवनप्राश, अमृतप्राश, ब्राम्हरसायन, पिप्पली रसायन श्रेष्ठ है।
रसायन का अर्थ होता है ऐसी आयुर्वेदिक औषधियां जो शरीर की सातों धातुओं (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि,मज्जा और शुक्र) को परिपोषित कर व्यक्ति को दीर्घायु बनाएं। अतः इस तरह के रसायन का प्रयोग करें जो शारीरिक व मानसिक शक्ति को बढ़ाकर शरीर को सुरक्षा प्रदान करता है।
वृद्धजन हमारे समाज के अमूल्य धरोहर हैं। उन्हें चिकित्सा ही नहीं बल्कि स्नेह, देखभाल और सम्मान की भी जरूरत है। आज के परिवेश में जब रिश्ते टूटते जा रहे हैं, ऐसे में हमें अपनी प्राचीन मूल्य व्यवस्था को पुर्नस्थापित करने की जरूरत है। वृद्धजनों को भारतीय परिवार में गर्व का प्रतीक माना जाता है। अनुभवों और बुद्धिमता का भंडार होने के कारण ही वृद्धजनों को ‘ओल्ड इज गोल्ड’कहा जाता है।
व्यायाम, प्राणायाम, सन्तुलित पौष्टिक भोजन, सद्विचारों, सद्व्यवहार, सद्वाणी, सन्तुलन, ईश्वरपूजन, जप, योग-यज्ञ का जीवन में नियम बनाइये तो वृद्धावस्था एक वरदान बन जाता है वास्तव में वृद्धावस्था जीवन का वह स्वर्णिम काल है जब व्यक्ति के पास ज्ञान, अनुभव और परिपक्वता की अपूर्व सम्पत्ति होती है,जिससे वह समाज और धर्म की सेवा करते हुए अर्थ पूर्ण जीवन व्यतीत कर सकता है।

डॉ. अंजू ममतानी
‘जीकुमार आरोग्यधाम’
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