मनुष्य शरीर के महत्व का प्रत्यंग हृदय (Heart) जिसका धड़कना ही जिंदगी हैं एक बार यह धड़कना बंद कर दे तो सब कुछ समाप्त हो जाता है। इंसान भी काम कर-कर के थक जाता है पर ईश्वर ने हृदय की रचना तो इस कदर मजबूती से की है कि आयुपर्यन्त उसे थकना नहीं, काम करना भूलना नहीं है। एक बार इंसान किसी चीज को किसी महत्वपूर्ण कार्य को करना भूल सकता है पर हृदय को तो अनवरत काम करना ही है, इसके धड़कने से ही हमारी जीवन की गाड़ी चलती है। इस दिल की धड़कन पर कवियों व शायरों ने न जाने कितनी रचनाएं लिखी है पर चिकित्सा विज्ञान में भी इस दिल के धड़कने को उतना ही महत्व है। आयुर्वेद ने तो इसे मर्म (Vital organ of body) कहा है। मर्म की व्याख्या आचार्यो ने इस प्रकार की है, ’’मारयन्ति इति मर्माणि’’ अर्थात शरीर की वह रचना जहां मार लगने से या आघात होने से तुरंत ही मृत्यु हो जाए। आयुर्वेद में तीन मर्म ये बताए गए हैं- मस्तिष्क, हृदय व बस्ति।
आयुर्वेदानुसार हृदय रोग के 5 प्रकार है- वातज, पित्तज, कफज, सन्निपातज व कृमिज।
कारण
इसका मुख्य कारण शारीरिक व मानसिक तनाव का अधिक होना है। आम तौर पर यह देखा जाता है कि हृदय रोग से डॉक्टर, वकील, राजनीतिज्ञ तथा फिल्मी कलाकार आदि पेशेवर लोग (Professional) ही मृत्यु को प्राप्त होते है। आजकल युवाओं में हृदय रोग का होना तो हमारे देश के लिए चिंताजनक स्थिति है क्योंकि यही युवा देश के कर्णधार है।
अन्य कारणों में मादक द्रव्यों का सेवन, अति श्रम, अति क्रोध, शोकादि मानसिक भाव, आहार में वसायुक्त व गरिष्ठ पदार्थों का अधिक सेवन, अति व्यायाम या व्यायाम का पूर्णतः अभाव, हायब्लडप्रेशर, डायबिटीज, मोटापे व हायपरकोलेस्ट्राल से पीड़ित व्यक्ति को हृदय रोग की संभावना अधिक होती है।
हृदय रोग के लक्षण
हृदय का मुख्य कार्य संपूर्ण शरीर को रक्त का प्रवाह सही व सुचारू रूप से देना है जिससे रक्त से शरीर के सभी कोषाणुओं को आवश्यकतानुसार ऑक्सीजन व पोषक तत्व मिलते रहें। यदि हृदय में विकृति हो तो शरीर में रक्तप्रवाह व्यवस्थित न होने पर ही अनेक व्याधियों के लक्षण मिलते हैं जिसमें मुख्यतः थकावट, घबराहट, धड़कन बढ़ना, छाती में दर्द, भारीपन या जकड़ाहट महसूस होना, चलने फिरने से श्वास फूलना, लेटने पर तकलीफ बढ़ जाना और बैठने पर कम होना, पैरों में सूजन आना, चेहरे का तेज कम हो जाना इत्यादि लक्षण हैं।
इन लक्षणों में से यदि आपको कोई लक्षण दिखाई देता है तो शीघ्र ही चिकित्सक से जांच करवाएं।
प्रभावकारी आयुर्वेदिक हृदय औषधियां
हृदय रोग की चिकित्सा करते समय उच्च रक्तदाब, मधुमेह, मोटापा, धूम्रपान, मानसिक तनाव, कोलेस्ट्राल पर नियंत्रण होना जरूरी है। आयुर्वेदिक संहिताओं में हृद्य औषधियों का वर्णन है, ये हृद्य औषधियां सीधा हृदय को प्रभावित कर उसे सक्षम बनाती है जिससे हृदय अपना कार्य सामान्य रूप से करता है, उनमें से एक औषधि है ’अर्जुन’। मुख्यतः सभी हृदय रोगों में अर्जुन छाल का चूर्ण प्रभावी पाया गया है। मार्केट में उपलब्ध अर्जुनारिष्ट 2 चम्मच सुबह-शाम भोजनोत्तर लें। हृदय रोग में पुष्करमूल चूर्ण भी अत्यंत उपयोगी है। पुष्करमूल चूर्ण को शहद के साथ चाटने से जी मिचलाना, खांसी, श्वास और छाती के दर्द में लाभ होता हैं।
रामबाण घरेलू नुस्खे
1. 150-200 ग्रॉम लौकी को बीज सहित पीसकर उसका रस निकाल लें। इसमें लहसून 3 कली, 5-6 तुलसी व पुदिना की पत्तियां मिलाएं। तैयार रस में उतनी ही मात्रा में पानी डालें। थोड़ा सेंधा नमक, काली मिर्च का पावडर मिलाकर नित्य सेवन करें।
2. जीकुमार आरोग्यधाम का कोलेस्ट्राल कम करने का अनुभूत नुस्खा
अर्जुनछाल 100 ग्रॉम, दालचीनी व लेंडीपिपली 50-50 ग्रॉम पीसकर मिलाकर रखें। प्रतिदिन सुबह 2 कली लहसुन, आधा चम्मच उक्त पावडर, 1 कप दूध व 1 कप पानी मिलाकर उबालें। 1 कप काढ़ा शेष रहने तक उबालें। तत्पश्चात छानकर खाली पेट पीएं। इस काढ़े के आधे घंटे पश्चात चाय या अन्य नाश्ता वगैरह लें। हायपर कोलेस्ट्राल व हृदयरोग के लिए अनुभूत नुस्खा है। जीकुमार आरोग्यधाम में कई रूग्णों के ब्लाकेज के ऑपरेशन तक इस नुस्खे से टल गए है।
3. सुखे आंवले का चूर्ण व सममात्रा में मिश्री पीसकर मिलाकर रखें व नित्य सुबह 1 चम्मच खाली पेट लेने से हृदय रोग में लाभ होता है।
हृदय विकारों में पंचकर्म
हृदय विकारों में पंचकर्म के प्रभावकारी परिणाम मिल रहे हैं। हृदय विकारों में पंचकर्म के अंतर्गत मुख्यतः स्नेहन (अभ्यंग), वाष्पस्नान, मात्राबस्ति, मृदु विरेचन व हृदय बस्ति करते हैं। यह चिकित्सा पंचकर्म चिकित्सक के मार्गदर्शन में 15-21 दिन करने से हृदय विकारों में प्रभावकारी परिणाम मिलते हैं। अतः उपरोक्त पंचकर्म चिकित्सा प्रत्येक हृदय रोगी को अपनी जारी औषधियों (एलोपैथिक / होमियोपैथिक / आयुर्वेदिक) के साथ अनिवार्यतः करना चाहिए, जिससे हृदय विकारों व उनके उपद्रवों से छुटकारा मिलता है।
हृदयरोग मुक्ति हेतु त्रिसूत्र
मानसिक तनाव व हृदय रोग से मुक्ति के लिए 3 सूत्रों का ध्यान रखना आवश्यक है-
1) आहार
आहार पर नियंत्रण रखना सबसे महत्व का सूत्र है। अन्यथा जो आहार हमारे रोगों का बढ़ावा दे, ऐसे आहार का क्या फायदा? उम्र के 30-35 वर्ष के पश्चात आहार में तेल, घी, मिर्च, मसाले, नमक का प्रमाण बहुत कम कर दें। कच्ची हरी सब्जियां, सलाद व फल का सेवन अधिक करें।
निम्नलिखित प्राकृतिक 10 खाद्य पदार्थ जो आपके दिल को स्वस्थ बनाए रखने में मददगार होते है-
1) ओट्स 2) विटामिन सी (संतरा, नींबू, आंवला इत्यादि) 3) प्रोटीन 4) एंटी-ऑक्सीडेंट 5) जैतून का तेल 6) मछली 7) हरी सब्जियां 8) अलसी 9) अनार 10) नट्स (बादाम, अखरोट) इत्यादि दिल के लिए अच्छे होते हैं।
2) व्यायाम
आहार के पश्चात व्यायाम का अपना महत्व है। हम स्वस्थ रहने पर व्यायाम पर ध्यान नहीं देते लेकिन जब शरीर में कोई तकलीफ होती है तो हमें लगता है व्यायाम करके हम जल्दी ठीक हो जाए ऐसा संभव नहीं है दरअसल हमें व्यायाम स्वस्थ अवस्था से ही प्रारंभ कर देना चाहिए। रोज कम से कम आधा घंटा या सप्ताह में 3 घंटे व्यायाम को जरूर देना चाहिए। व्यायाम के अतंर्गत योगासन, जिम, प्रतिदिन भ्रमण (Daily walk), खेलकूद इत्यादि करना चाहिए।
3) मेडिटेशन
तृतीय सूत्र अर्थात तनाव से मुक्ति प्राप्त करने का प्रयत्न। इसके लिए अनेक मार्ग उपलब्ध है- ध्यान, धारणा, ईश्वर चिंतन व प्राणायाम। हृदय रोग निवारण के लिए ध्यान का अत्यंत महत्व है। प्राणायाम से भी तनाव दूर होता है, इसके अलावा प्राणायाम से मन एकाग्र, बुद्धि व स्मरणशक्ति बढ़ती है। मन पर नियंत्रण प्राप्त होता है। इच्छाशक्ति बढ़ती है। ओंकार प्राणायाम के हृदय रोग से बचने व ब्लडप्रेशर कम करने में भारत के अलावा कई अन्य देशो में हुए अध्ययन में चमत्कारिक परिणाम मिले है। अतः न केवल हृदय रोगी बल्कि सभी ने जीवन शैली में इन त्रिसूत्रों को पालन अवश्य करना चाहिए।
जीकुमार आरोग्यधाम में कई हृदयरोग से ग्रस्त रूग्ण आते हैं जो आयुर्वेदिक औषधि, उपलब्ध पंचकर्म की क्रियाएं व योगोपचार से राहत पाते है। शुरूवात में उनकी माडर्न की औषधियां जारी रहती है जो धीरे-धीरे क्रमशः कम होती है व कईयों के ऑपरेशन तक टल गए है।
डॉ. जी.एम. ममतानी
एम.डी. (आयुर्वेद पंचकर्म विशेषज्ञ)
‘जीकुमार आरोग्यधाम’,
238, नारा रोड, गुरु हरिक्रिशनदेव मार्ग,
जरीपटका, नागपुर-14 फोन : (0712) 2646700, 2646600
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