किडनी विकार (कारण व निवारण)

आज देश में लगभग 5 लाख ऐसे मरीज हैं, जिनकी किडनी पूरी तरह खराब हो चुकी हैं। हर साल एक लाख नए मरीज बढ़ जाते हैं। देश के प्रत्येक 2,000 परिवार में से एक परिवार इस बीमारी से ग्रसित है। केवल दो प्रतिशत लोगों को ही उचित उपचार मिल पाता है।

प्रकृति का यह नियम है कि जो पदार्थ शरीर के लिए आवश्यक है, केवल उन्ही का संचय शरीर में साररूप में करती है जो पदार्थ शरीर के लिए अवांछनीय व अनावश्यक है, उन्हें मलरूप में शरीर से बाहर विसर्जित कर देती है। विसर्जन कार्य करने वाले इन अंगों को उत्सर्जक अंग (Excretory Organ) कहते हैं। शरीर में गुदा (Anus), वृक्क (Kidney) व त्वचा (Skin) मुख्यतः उत्सर्जक अंग कहलाते हैं जो शरीर से मलों को बाहर निकालने का कार्य कर शरीर को अनुग्रहित करते रहते हैं।
उत्सर्जक अंगों में किडनी मानव शरीर का महत्वपूर्ण अवयव है जिसमें मल स्वरूप मूत्र निर्मिती की प्रक्रिया होती है जो कि सेम की फल्ली के आकार की उदर में एक दायीं तथा एक बायीं ओर संख्या में दो होती हैं। किडनी को आयुर्वेद में वृक्क व आम भाषा में गुर्दा कहते हैं। प्रत्येक किडनी की लंबाई चार इंच, चौड़ाई 2.5 इंच तथा भार लगभग 120 से 130 ग्रॉम तक रहता है।

किडनी की आंतरिक संरचना

प्रत्येक किडनी में 10 लाख छलनियों के आकार की रचना होती है जो माइक्रोस्कोप से देखी जा सकती है, इसे नेफ्रोन्स (Nephrons) कहा जाता है। यही नेफ्रोन्स रक्त के पोषक तत्व को सुरक्षित छोड़ देता है व रक्त में उपस्थित अवांछित लवण, यूरिया तथा अशुद्ध जल को छानकर मूत्र की निर्मिती करता है। नलिकाएं छने हुए द्रव में से शरीर के लिए उपयोगी सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम इत्यादि को दोबारा सोख लेती हैं। हर दिन औसत 1.5 लीटर मूत्र में बाहर निकलता है। शेष शुद्ध रक्त में प्रोटीन, ग्लूकोस, अमीनोएसिड इत्यादि पोषक तत्व होते हैं। यह पोषक तत्व रक्त वाहिनी धमनियों के द्वारा शरीर के अन्य भागों में परिभ्रमित कर दिए जाते हैं। यूरेटर और ब्लैडर (मूत्राशय) के मिलने के स्थान पर एक वाल्व होता है जो मूत्र छनने के बाद स्वयं ही खुलकर उसमें बूंद-बूंद मूत्र जमा होता रहता है। मूत्राशय की मूत्र जमा करने की क्षमता आधे से एक लीटर तक होती है। मूत्राशय के निचले हिस्से में एक अन्य वॉल्व होता है जो मनुष्य की इच्छा पर निर्भर होता है। पुरुषों में पाया जाने वाला वॉल्व इसी मूत्राशय के निचले भाग में होता है। छोटे बच्चों का इस वॉल्व पर ठीक से नियंत्रण नहीं रहता। अतः उनमें बिस्तर पर पेशाब करने की आदत बनी रहती है। पुरूषों में प्रोस्टेट ग्लैंड मूत्राशय के निचले भाग के पास रहती है। अतः प्रोस्टेट ग्लैंड में वृद्धि होने पर दबाव की वजह से मूत्र संबंधी लक्षण मिलते हैं। जिसमें मूत्र मार्ग में वेदना, संक्रमण व मूत्र त्याग में बाधा इत्यादि लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं।

अतः किडनी में निरंतर रक्तवाहिनियों द्वारा अशुद्ध रक्त आता रहता है व किडनी में उपस्थित असंख्य छलनियों (Nephrones) द्वारा यह रक्त छनता रहता है अर्थात शरीर के लिए आवश्यक पदार्थ अलग होकर उत्सर्जक पदार्थ (युरिया, क्रिएटिनिन, अम्ल इत्यादि हानिकारक पदार्थ) युक्त मूत्र बनता हैं, यह मूत्र गविनियों से मूत्राशय में जाकर शरीर के बाहर उत्सर्जित कर दिया जाता है। यदि किडनीज या रक्त में कोई विकृति हो तो शरीर में इन अनावश्यक पदार्थों के संचित रहने से गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं। इस प्रकार किडनी हानिकारक पदार्थों को शरीर से बाहर निकालती है व शरीर में जल, सोडियम व पोटेशियम जैसे आवश्यक घटकों के संतुलन को बनाए रखती है।
रक्तचाप को नियंत्रित करना, अम्ल क्षार की मात्रा का निर्धारण करना, विटामिन डी को सक्रिय बनाने का काम किडनी करता है जो हड्डियों के लिए आवश्यक है।
आयुर्वेदानुसार 8 प्रकार के मूत्रकृच्छ व 13 प्रकार के मूत्राघात के अंतर्गत अधिकांश वृक्क रोगों का वर्णन किया गया है।

किडनी खराब होने के कारण

अनावश्यक व अधिक दवाओं के सेवन से किडनी क्षतिग्रस्त होकर विकृत होती है। किडनी की छलनियों (Nephrones) में सूजन, संक्रमण, शरीर में पानी की कमी, मधुमेह व ब्लडप्रेशर कम या ज्यादा होने से किडनी के कार्य प्रभावित होकर विकार उत्पन्न होते हैं। इसके अलावा नमक का अधिक प्रयोग, पानी कम पीना, मूत्रवह संस्थान में संक्रमण, प्रोस्टेट ग्रंथि के विकार अधिक वसायुक्त व शर्करा युक्त भोजन आदि वृक्क रोगों के प्रमुख कारण है। इनमें से मुख्य कारणों का विस्तृत वर्णन निम्नलिखित है –

ब्लड प्रेशर का बढ़ना :- ब्लड प्रेशर के बढ़ने से किडनी में रक्त का दबाव बढ़ जाता है परिणाम स्वरूप किडनी की धमनियां कठोर हो जाती हैं और किडनी का कार्य बढ़कर नेफ्रोन्स के निष्क्रिय होने की संभावना भी बढ़ जाती है।

मधुमेह :- इस रोग में अग्न्याशय (पैन्कियास) के निष्क्रिय होने से इन्सुलिन की मात्रा कम हो जाती है। अतः रक्त में शर्करा का प्रमाण बढ़ने लगता है। जैसे-जैसे शर्करा का स्तर किडनी की स्वाभाविक शर्करा के अवशोषित करने के स्तर से अधिक होता है। तब किडनी को अपनी क्षमता को बढ़ाना पड़ता है। जरूरत से ज्यादा कार्य करने से किडनी निष्क्रिय हो जाती है। यह निष्क्रियता रक्त में यूरिया, क्रिएटिनिन की मात्रा बढ़ाकर किडनी रोग को उत्पन्न करती है।

नमक का अति प्रयोग :- नमक का अधिक सेवन हाय ब्लड प्रेशर उत्पन्न करता है। नमक का अतिअल्प प्रमाण शरीर में अभिशोषण होता है। शेष किडनी को अधिक कार्य करना पड़ता है। नमक (Sodium Chloride-NaCl) पानी (H₂O) से मिलकर हायड्रोक्लोरिक एसिड व सोडियम हाइड्रोक्साइड (Sodium Hydroxide) बनाता है।
NaCl + H2O = HCI + NaOH
रक्त में अम्लता बढ़ने से यूरिक एसिड व यूरेट्स की पथरी बनने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। अतः किडनी की स्वाभाविक क्रिया में विकृति आ जाती है।

किडनी रोग ग्रस्त होने की प्रक्रिया

किडनी में रक्त का दबाव बढ़ने से, रक्त में यूरिया, क्रिएटिनिन व कोलेस्ट्राल की मात्रा बढ़ने से किडनी को आवश्यकता से अधिक कार्य करना पड़ता है। किडनी के रोग ग्रस्त होने से मूत्र से एल्यूमिन प्रोटीन आने से रक्त में प्रोटीन का स्तर घट जाता है परिणामस्वरूप रक्तगत हिमोग्लोबिन की मात्रा कम होती रहती है। हिमोग्लोबिन के कम होने से नेफ्रोन्स निष्क्रिय हो जाते है। फलस्वरूप गुर्दे सिकुड़ने की अवस्था आ जाती है तथा मूत्र बूंद-बूंद व जलन के साथ आता है। जिससे नेफ्रोन्स के निष्क्रिय हो जाने से धमनियों में कठोरता आ जाती है। धमनियां कठोर होने से किडनियों के द्वारा रक्त छनने का कार्य बराबर मात्रा में नहीं मिलते। इससे नेफ्रोन्स निष्क्रिय हो जाने से धमनियों में कठोरता आ जाती है। धमनियां कठोर होने से किडनियों के द्वारा रक्त छनने का कार्य बराबर नहीं हो पाता। इससे मूत्र में प्रोटीन, एल्यूमिन, कैल्शियम इत्यादि पोषक तत्वों का निर्हरण होता रहता है। मूत्र द्वारा पोषक तत्व निकल जाने से हिमोग्लोबिन की कमी निरंतर बनी रहती है, जिससे ह‌ड्डियों में कमजोरी व दर्द रहता है। नेफ्रोन्स की क्रियाशीलता कम होने से मल पदार्थों को निकालने की क्षमता कम हो जाती है। इससे मूत्र अत्यंत पतला होकर बहुमूत्रता रोग होने की संभावना रहती है।
मूत्र में अधिक प्रोटीन जाने से शरीर में इसकी मात्रा कम रह जाती है। यह प्रोटीन शरीर के विजातीय तत्वों को बाहर निकालने का कार्य करता है। प्रोटीन न रहने की स्थिती में विजीतीय तत्व शरीर में एकत्रित होकर सूजन का कारण बनते हैं। इसके अलावा नमक का अधिक सेवन करने से भी शरीर में सूजन बढ़ती है।

लक्षण

किडनी खराब होने का सबसे पहला संकेत यूरीन के जरिये मिलता है इसका रंग बदल गया है और साथ में जलन महसूस हो रही है तो इसका साफ मतलब है कि किडनी ठीक से काम नहीं कर पा रही है।
1) किडनी विकार ग्रस्त होने पर रात को कई बार मूत्रत्याग के लिए जाना पड़ता है। थकावट व श्वास लेने में तकलीफ होती है। इस प्रकार के लक्षण मधुमेह से ग्रस्त रूग्ण में अधिक प्रमाण में मिलते हैं।
2) शरीर में प्रोटीन तथा एल्यूमिन की मात्रा कम होने पर जलोदर (Ascites) रोग हो सकता है। इसमें शरीर फूला हुआ तथा शरीर का तापमान अधिक रहता है। शरीर भारी हो जाता है व भोजन खाने की इच्छा नहीं रहती।
3) किडनी में सूजन होने पर सिर दर्द, बुखार, रूक्ष त्वचा, उल्टी होना, पेट व कमर में तीव्र वेदना, खुजली, शरीर में पीड़ा इत्यादि लक्षण होते हैं।

किडनी के मुख्य रोग

1) नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम (Nephrotic Syndrome) :- यह वृक्क की वह अवस्था है जिसमें मूत्र मार्ग से मूत्र के साथ प्रोटीन भी बहुत अधिक मात्रा में क्षरित होने लगता है। मूत्र निर्माण करनेवाली नलिकाओं व छलनियों में विकृति आ जाने से यह स्थिति निर्मित होती है। यह रोग बच्चों को बहुत अधिक प्रमाण में होता हैं। इस रोग में सूजन आना प्रमुख लक्षण है। यह सूजन विशेषतः चेहरे, पैरों व एड़ी पर रहती है। रुग्ण का चेहरा फुला हुआ, मुरझाया सा लगता है, मूत्रमार्ग से अत्याधिक प्रमाण में प्रोटीन का क्षरण हो जाने से रक्त में प्रोटीन की मात्रा कम हो जाती है, जिसके कारण कभी-कभी नाखूनों में दुधिया श्वेत रंग नजर आता है. कभी-कभी ब्लडप्रेशर भी बढ़ा हुआ रहता है। बच्चों में बहुत दिनों तक यह रोग बना रहे तो उनकी विकास दर कम हो जाती हैं।

2) रीनल फेल्युअर (Renal Failure) :- गंभीर रोग में किडनी फेल हो सकती है। इसमें किडनी सामान्य गतिविधयों का 15 प्रतिशत से भी कम काम कर पाती है। इसे एंड स्टेज रीनल डिसीज (ईएसआरडी / End Stage Renal Disease) कहते है। इस अवस्था में वृक्क अल्प कार्य करते है या कभी-कभी अत्यंत उग्रावस्था में बिल्कुल ही काम करना बंद कर देते है। कारण किड़नी खराबी के यूं तो बहुत सारे कारण हैं लेकिन मुख्य कारण निम्न हैं-
पेशाब को रोकने, पानी कम मात्रा में पीने, बहुत ज्यादा नमक खाने से किडनी खराब या रोग ग्रस्त हो सकती है। अधिक मात्रा में सॉफ्ट ड्रिंक्स और सोडा पीने से किडनी फेल्योर हो सकती है।
डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, किडनी में पथरी, किडनी रोगों का पारिवारिक इतिहास, मोटापा, कोलेस्ट्रॉल बढ़ना, प्रोस्टेट की बीमारियां। पेनकीलर और दूसरी कई दवाओं का अधिक प्रयोग। किसी कारणवश वृक्क की ओर रक्त का कम बहाव होना, रक्त में खुन का थक्का जम जाना आदि कारणों से भी रीनल फेल्युअर हो सकता है।

किडनी फेल्योर के दो प्रकार है।
1. एक्यूट रिनल फेल्योर (Acute Renal Failure) – इसका अर्थ है कि किडनी अस्थायी रूप से बंद हो गई है। ये किडनी फेल्योर आमतौर पर पूरी तरह ठीक हो जाती है। इसका मुख्य कारण डायरिया या अतिसार के कारण शरीर से पानी निकल जाने की वजह से किडनी को हानि होती है। अन्य कारणों में पेन किलर व एंटिबायॉटिक्स दवाएँ मूल औषधियां शामिल है।
2. क्रोनिक रिनल फेल्योर (Chronic Renal Failure) – डायबिटीज और हाईब्लडप्रेशर इसके मुख्य कारण है। जीर्ण वृक्कशोथ, पोलीसिस्टिक किडनी रोग, गुर्दे की पथरी तथा पौरुष ग्रन्धि के रोग आदि कारण भी होते है।
लक्षण : इसमें शरीर में सूजन, उल्टी, खून की कमी, हड्डियां कमजोर, थकान, सांस फूलना, ब्लड प्रेशर का बढ़ जाना, मूत्र में रक्त आना। इसमें मूत्र कम आने लगता है जिससे अनावश्यक पदार्थ बाहर न निकलने से रक्त में उनका संतुलन बिगड जाता है व विभिन्न उपद्रव होते है। यूरिया बढ़ने पर भूख न लगना, जी मिचलाना, आंतो से रक्तस्राव, हिचकी, मुख में धातु जैसा कड़वा स्वाद आना (Metalic Taste), श्वास में अमोनिया जैसी गंध आना, आलस्य, स्मृतिनाश, हाथ पैरों का झटकना, अनावश्यक गतियां करना, असंबद्ध बड़बड़ाना, खुजली आदि लक्षण होते है।

Kidney Stone, Ashmari (Pathri)

3. अश्मरी (पथरी) – पथरी के कारण कमर (कटि प्रदेश) में रूक-रूक कर बहुत तीव्र वेदना होती है जो अधिक हिलने-डुलने से बढ़ जाती है, तीव्र वेदना के समय पसीना आना, बुखार, उल्टी, चेहरा फीका पडना, माथे पर ठंडा पसीना आना इत्यादि लक्षण वेग के समय होते हैं।

4. मूत्रवह संस्थान में संक्रमण (Urinary Tract Infection – UTI) – मूत्रवह संस्थान में बैक्टेरिया का संक्रमण पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में विशेषतः युवावस्था व गर्भावस्था में अधिक होता है। ग्रीष्मऋतु में पानी कम पीने, डायबिटीज मूत्र में ग्लूकोज की उपस्थिती, भगप्रदेश का अस्वच्छ वस्तुओं व अस्वच्छ हाथों से संपर्क आने पर प्रायः यह संक्रमण होता है।इसमें ठंड लगकर बुखार आना, बार-बार मूत्र प्रवृत्ति होना, जंघाओं में पीड़ा होना, मूत्रप्रवृत्ति के समय दाह या कष्ट होना, कभी-कभी मूत्र के साथ रक्त भी आना, भूख न लगना व जी मचलाना, पतले दस्त होना आदि लक्षण पाए जाते हैं।
5. वृक्कशोथ (Nephritis) – इसमें किडनी की फिल्टरिंग इकाइयों में सूजन आ जाती है वे क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। ये डिसआर्डर तीसरा सबसे आम है। इसे ग्लोमेरूलोनेफ्रिटाइटिस कहते हैं।

सेप्टीसिमिया (रक्त संक्रमित होना), उपदंश आदि दीर्घकालीन व्याधियों के कारण गुर्दों में शोथ (सूजन) हो जाता है। यह दो प्रकार का होता है। एक तो शोथ की प्रारंभिक अवस्था तीव्र वृक्कशोथ (Acute Nephritis) व दूसरी बिमारी पुरानी हो जाने की अवस्था जीर्ण वृक्कशोथ (Chronic Nephritis) है

तीव्र वृक्कशोथ – इस व्याधि में रूग्णों को ठंड लगकर बुखार, बार-बार बूंद-बूंद कर मूत्रप्रवृत्ति, शरीर में सूजन आदि लक्षण मिलते हैं।
जीर्ण वृक्कशोथ – गुर्दे की यह बीमारी दो प्रकार की होती है एक क्रोनिक पेरानेफराइटिस (Chronic Para Nephritis) तथा दूसरी इंटरस्टिशियल नेफराइटिस (Intertitial Nephritis)
क्रोनिक पेरानेफराइटिस बीमारी प्रायः मलेरिया, खून की कमी, उपदंश, टी.बी, कैंसर इत्यादि बीमारियों के कारण और बिमारी की आरंभिक अवस्था में धीरे-धीरे रूप उग्रता को प्राप्त करता है। इसमें आखों व चेहरे पर सूजन जो कि सुबह अधिक दिखती है व दिन में क्रमशः कम होती जाती है। इसके साथ कमजोरी, भूख न लगना, पेशाब में एल्यूमिन की मात्रा बढ़ जाना इत्यादि लक्षण मिलते है।
क्रॉनिक इंटस्टीशियल नेफराइटिस में उपरोक्त प्रकार के ठीक विपरीत लक्षण मिलते हैं। जैसे एल्यूमिन की मात्रा एकदम कम होना, सूजन न होना इत्यादि। आमतौर पर यह बीमारी शराब पीने, उपदंश व गठियावात रोग आदि के कारण होती है। लक्षणों में श्वास में कष्ट, भूख न लगना, सिरदर्द, उच्चरक्तदाब, रात में बार-बार पेशाब आना इत्यादि लक्षण मिलते हैं।
6. वृक्क के सहज विकार – जन्म से ही कुछ वृक्क विकार होते हैं उसमें मुख्य रूप से बहुपुटीय वृक्क (Polycstic Kidney), घोड़े की नालाकार वृक्क (Horse Shoe Shaped Kidney), एक वृक्क का अभाव, एक बाजू दोनों वृक्क, अनावरोधी वृक्क (Unascended kidney)
वृक्क में पथरी व जलवृक्कता रहने पर कभी-कभी पूयवृक्कता (Pyonephrosis) उत्पन्न हो जाती है, जिसमें वृक्क का आकार बढ़ जाता है, ज्वर तथा मूत्र में पूय भी आता है।

किडनी रोग का सूचक

  • मूत्र में रक्त आना
  • मूत्र में एल्बूमिन का मिलना
  • रक्त में यूरिया, क्रिएटिनिन की मात्रा बढ़ना
  • हिमोग्लोबिन का कम होना

मधुमेह में किडनी विकार

मधुमेह रोगियों में किडनी का पूरी तरह से खराब हो जाना एक आम समस्या है मधुमेह के कई रोगी वृक्कीय विफलता (रनल फैल्युअर) के कारण ही मौत के मुंह में चले जाते हैं शुरूवाती दौर से ही एहतियात बरतकर काफी हद तक समस्या से बच सकते हैं।
शुरूवाती लक्षण: मूत्र वाहिका में इंफेक्शन के कारण बुखार, चेहरे, पैर पर सूजन, रक्त की कमी से चेहरा पीला पड़ना आदि कई मधुमेह रोगियों में यह लक्षण नहीं भी हो सकते हैं। लक्षणों के अभाव में किडनी विकार की पहचान निम्न परीक्षण से करें
1. पेशाब में एल्बुमिन के अंश पाए जाते है।
2. किडनी फंक्शन टेस्ट में क्रिएटिनिन वैल्यू बढ़ी हुई मिलती है।
3. मधुमेह में आंख (रेटिना) और किडनी दोनों पर एक साथ असर देखा जाता है।
इसलिए मधुमेह के रोगी में संभवतया साल में एक बार ब्लड, यूरिन, रेटिना, लिपिड प्रोफाइल, ब्लड प्रेशर की जांच बेहद जरूरी है
मधुमेह ग्रस्त रोगी के किडनी को नुकसान से बचाने के लिए निम्न सावधानियां जरूरी है।
1. ब्लड शुगर पर नियंत्रण सबसे जरूरी है किडनी की परेशानी से बचने के लिए फास्टिंग ब्लड शुगर 100-120 एमजी, स्टमील 140-160 और एचबीए (HbA, C) 6.5 होना नॉर्मल है।
2. ब्लड प्रेशर 135/85 mmhg हो। ब्लड प्रेशर नियंत्रण से नुकसान की गति धीमी हो सकती है
3. अगर आप मधुमेह रोगी हैं तो कोलेस्ट्रॉल 100 एमजी से नीचे होना चाहिए।
4. धूम्रपान या तंबाकू सेवन छोड़ दें।
5. नियमित वॉकिंग, एक्सरसाइज करें।
6. वजन कम कर उस पर नियंत्रण रखें।
7. डिहाइड्रेशन टालें।
8. दर्द निवारक दवा डॉक्टर के मार्गदर्शन में ही लें. गैर एलोपैथिक दवाएं भी विशेषज्ञ की सलाह के बाद ही लें.
मधुमेह से किडनी पर प्रभाव :- किडनी का आकार बढ़ जाता है। किडनी की छोटी रक्त नलिकाएं मोटी हो जाती हैं और क्षतिग्रस्त भी हो जाती है। इससे पेशाब के साथ एल्बुमिन भी निकलने लगता है। किडनी की फिल्टर करने की क्षमता कम होने से शरीर में पानी का जमाव बढ़कर विभिन्न हिस्सों में सूजन की वजह बनता है। ब्लड यूरिया और क्रिएटिनिन वैल्यू बढ़ने से उल्टी, भूख कम होने और हिचकियों जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।
शुरूवाती दौर में उपाय :- ब्लड ग्लूकोज नियंत्रण वाली दवाओं का डोज कम करें। हाइपोग्लाइसीमिया की पुनरावृत्ति के कारण डोज का पुनर्निधारण जरूरी है। नमक – प्रोटीन का सेवन कम करें और हाइपरटेंशन पर उचित नियंत्रण करें।
रेनल फैल्युअर वाले अधिकांश मधुमेह रोगियों में किडनी बायेप्सी की जरूरत नहीं पड़ती है। ब्लड टेस्ट और पेशाब के विश्लेषण से ही सब कुछ हासिल हो जाता है।

आयुर्वेदिक चिकित्सा

चिकित्सक के मार्गदर्शन में निदान कर निम्नलिखित चिकित्सा लेनी चाहिए।
सामान्यतः किडनी के विकारों में चंद्रप्रभावटी 2-2 सुबह-शाम गोखरू काढ़ा 2 चम्मच के साथ लेना चाहिए। शरीर में सूजन होने पर पुनर्नवादि मंजूर की 1-1 वटी पुनर्नवासव 2-2 चम्मच के साथ सुबह-शाम लें। पेट साफ न होने पर त्रिफला चूर्ण 1 चम्मच सुबह व रात में कुनकुने पानी के साथ लें। किडनी में पस या मूत्र में एल्बुमिन आने पर साथ में वंग भस्म व तारकेश्वर रस 125 मि.ग्रा की मात्रा में सुबह-शाम लेना चाहिए। किडनी में पथरी होने पर त्रिविक्रम रस 5 ग्रॉम, हजरत यहूद भस्म 5 ग्रॉम, चंद्रप्रभावटी 5 ग्रॉम, श्वेत पर्पटी 5 ग्रॉम की 40 पुड़िया बनाकर सुबह-शाम अश्मरीहर काढ़ा 2 चम्मच के साथ नियमित 3 से 6 माह तक लेना जारी रखें। किडनी विकारों में गोक्षुरादि गुग्गुल, श्वेतपर्पटी, गिलोय, मुक्ता, मुक्तापंचामृमरस, वायविडंग, पुनर्नवा व कासनी का अर्क विशेष लाभदायक है।

किडनी विकारों में घरेलू नुस्खे

गुर्दे की खराबी में यदि पेशाब आना बंद हो जाए।

  • किसी भी कारण से पेशाब आना बंद हो जाए तो एरंड का तैल 25-50 ग्रॉम गरम पानी में मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर आने लगता है।
  • आवले के रस में शहद व हल्दी डालकर पीने से पेशाब में मवाद आना बंद होता है।
  • मूत्र में खून आने पर गोखरू, गुडूची, शिलाजीत के प्रभावकारी परिणाम मिलते हैं।
  • वृक्क विकारों में कुलथी का काढ़ा रोज पीना चाहिए।
  • तुलसी के पत्ते 20 ग्रॉम, अजवाईन 20 ग्रॉम, सेंधा नमक 10 ग्रॉम, तीनों का चूर्ण बना लें तथा गुर्दे के दर्द में आधा चम्मच सुबह-शाम कुनकुने पानी के साथ पीना चाहिए।
  • पीसी हुई 2 छोटी इलायची को दूध में मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर आता है तथा मूत्र दाह भी बंद होता है।
  • 2 ग्रॉम जीरा व 2 ग्रॉम मिश्री दोनों को पीसकर लेने से रूका हुआ पेशाब खुलकर आता है।
  • शतावरी व गोखरू से सिद्ध दूध का सेवन मूत्र के लिए लाभकारी है।

मूत्र में जलन होने पर

  • शीतल जल, छाछ, जल में नींबू का रस, नारियल पानी, अनार का रस, गन्ने का रस, फालसे का शरबत, जौ का सत्तु अधिक मात्रा में सेवन करने से मूत्र खूलकर आता है व जलन दूर होती है।
  • गुलाब के फूलों के साथ 3 ग्रॉम मिश्री सुबह-शाम खाने से जलन दूर होती है।
  • तुलसी की 3-4 पत्तियां दिन में दो बार चबाकर खाए व ऊपर से पानी पीएं।
  • कलमी शोरा, नाभि पर रखने से मूत्रदाह दूर होता है।
  • मूली और मूली के पत्तों का रस 60 ग्रॉम की मात्रा में पीने से मूत्र फिर से बनने लगता है। इससे पेशाब की जलन व वेदना भी नष्ट होती है।

मूत्र में रूकावट होने पर

  • नारियल पानी, मूली का रस, गाजर का रस व अडूसे का रस सेवन करने से मूत्र की रूकावट दूर होकर खुलकर मूत्र आता है।
  • सोंठ के बारीक चूर्ण 3 ग्रॉम की मात्रा में दूध के साथ लेने से मूत्र की रूकावट दूर होती है।
  • 20 ग्रॉम आवंले को 300 ml जल में उबालें। 50 ml शेष रहने पर छान लें। गुड़ मिलाकर पीने से मूत्र का अवरोध दूर होता है।
  • दारू हल्दी व मुलेठी का चूर्ण 3 ग्रॉम शहद के साथ सेवन करने से मूत्र खुलकर आता है।
  • बार-बार मूत्र में अवरोध होने पर भोजन के पश्चात छाछ में हरा धनिया मिलाकर पीने से राहत मिलती है।
  • तिल तैल 20 ml में 5 ग्रॉम सेंधा नमक डालकर धीमी आंच में पकाएं। इस तैल को नाभि के नीचे हल्के हाथों से मालिश करने के पश्चात गरम पानी से सेंक करें।

गुर्दे का कार्य ठीक से न होने पर
(क्रोनिक रीनल फेल्युअर)

  • ककड़ी बीज, मुलेठी, दारू हरिद्रा का सममात्रा का चूर्ण 5-5 ग्रॉम सुबह-शाम पानी के साथ लेने से लाभ मिलता है।
  • शतावरी, गोखरू, विदारीकंद, कशेरू तथा पंचतृण मूल के समभाग का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीएं।
  • शुद्ध शिलाजीत 500 मि.ग्रॉम, शक्कर 1 ग्रॉम मिलाकर 2-3 बार पानी के साथ लें।

पथरी

  • पेठे के 100 ग्रॉम रस में 3 ग्राम यव क्षार और 2 ग्रॉम पुराना गुड़ मिलाकर पिलाने से मूत्र की जलन व रूकावट दूर होकर पथरी नष्ट होती है।
  • कुलथी चूर्ण 5-5 ग्रॉम सुबह-शाम लें।
  • पाषाण भेद के 3-3 पत्ते चबाकर खाली पेट खाएं व उसके बाद भरपूर पानी पीएं।
  • अपथ्य दाल, मांस, अंडा, पनीर आदि प्रोटीन प्रधान आहार, लवण, कॉफी, मसाले, सिरका, पुरी, पराठे, चिप्स, नमकीन, कोल्ड्रींक, अचार, पापड़ फास्ट फुड आदि विक्षोभक पदार्थ तथा लवण प्रधान होने के कारण सब्जियों के सूप इस रोग में अपथ्य होते हैं।
  • पथ्य मलाई रहित दूध, अंकुरित अन्न, शहद, चावल, रोटी, खीर, सूजी, हलवा, लौकी, आलू, दलिया आदि का यथायोग्य मात्रा में सेवन किडनी विकारों में लाभदायक है। किडनी के विकारों में राजगिरी चावल व ज्वारी की लाही व मांड का सेवन लाभदायक है। अंगूर खाएं क्योंकि ये किडनी से फालतू यूरिक एसिड निकालते हैं। मैग्नीशियम किडनी को सही काम करने में मदद करता है, इसलिए ज्यादा मैग्नीशियम वाली चीजें जैसे कि गहरे रंग की सब्जियां खाएं। इसके अलावा ककड़ी, पत्ता गोभी, गाजर, मूली, आलु, चेरी, तुरई, टिंडे, शलजम, तरबूज, खरबूज, अनानस, सेब का रस, संतरा, सलाद, उबली सब्जियां, नींबू इत्यादि रस वाली सब्जियों व फल का प्रयोग अधिकाधिक मात्रा में करें। नियमित रूप से ऐलोवेरा व ज्वारे व गिलोय का जूस पीने से हीमोग्लोबिन बढ़ता है। किडनी संक्रमण रोग (UTI से ग्रस्त रूग्ण को कम से कम दिन में 3-4 लीटर पानी पीना चाहिए।
  • मूत्र में यदि प्रोटीन या एल्यूमिन आता है तो उसकी पूर्ति के लिए प्रोटीन युक्त भोजन का सेवन करें। उच्चरक्तदाब से ग्रस्त रूग्ण नमक का सेवन कम कर दे। दिन में 2 से 3 ग्रॉम सेंधा नमक लें।

आधुनिक उपचार

उपचार के विकल्प : अगर गुर्दे पूरी तरह से खराब हो गए हों, तब भी डाइलिसिस और गुर्दा प्रत्यारोपण की मदद से पीड़ित व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं
डायलिसिस : यह प्रक्रिया स्वस्थ किडनी के समान कार्य करती है। इससे शरीर से अतिरिक्त तरल और व्यर्थ पदार्थों को निकालकर इलेक्ट्रोलाइट का संतुलन रखा जाता है।
हीमोडायलिसिस : इसमें कृत्रिम किडनी / फिल्टर द्वारा मशीन से रक्त साफ किया जाता है। इसमें दो सुइयां इस्तेमाल होती हैं एक सुई से गंदा खून मशीन व कृत्रिम गुर्दे में जाता है दूसरी सुई से साफ खून वापस शरीर में लौटाता है। एक व्यक्ति को औसतन प्रति सप्ताह दो से तीन बार 3-4 घंटे के लिए हीमोडायलिसिस करवाना होता है।
गुर्दा प्रत्यारोपण (Kidney Transplant) : उपरोक्त डायलिसिस से आराम नहीं होने पर गुर्दा प्रत्यारोपण करते है। उपयुक्त दाता डोनर से गुर्दा खराब हो चुके रोगी के अंदर प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। जीवन को बनाए रखने के लिए एक गुर्दा ही पर्याप्त होता है इसलिए रोगी और दाता दोनों स्वस्थ जीवन जीते हैं। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद मरीज को सामान्य जीवन की ओर आने में दो से तीन माह का समय लगता है। इसमे औसत खर्च 4 से 5 लाख रू. आता है।

पेशंट खाने में रखें ख्याल

  • किसी शख्स की किडनी कितना फीसदी काम कर रही है, उसी के हिसाब से उसे खाना दिया जाए तो किडनी को खराब होने से रोका जा सकता है।

प्रोटीन : 1 ग्राम प्रोटीन /किलो मरीज के वजन के हिसाब से लिया जा सकता है नॉनवेज खाने वाले 1 अंडा या 30 ग्राम मछली या 30 ग्राम चिकन और वेज लोग 30 ग्राम दाल और 30 ग्राम टोफू रोजाना ले सकते हैं।

कैलरी : दिन भर में 7-10 सर्विंग कार्बोहाइड्रेट्स की ले सकते हैं 1 सर्विंग बराबर होती है 1 स्लाइस ब्रेड या आधा कप चावल या आधा कप पास्ता।
विटामिन : दिन भर में 2 फल और 1 कप सब्जी.
सोडियम : एक दिन में चौथाई छोटे चम्मच से ज्यादा नमक न लें। अगर खाने में नमक कम लगे तो नींबू, इलायची, तुलसी आदि का इस्तेमाल स्वाद बढ़ाने के लिए करें। पैकेटबंद चीजें जैसे कि सॉस, अचार, चीज, चिप्स, नमकीन आदि न लें.
फॉस्फोरस : दूध, दूध से बनी चीजें, मछली, अंडा, मीट, बीन्स, नट्स आदि फॉस्फोरस से भरपूर होते हैं इसलिए इन्हें सीमित मात्रा में ही लें. डॉक्टर फॉस्फोरस बाइंडर्स देते हैं, जिन्हें लेना न भूलें.

कैल्शियम : दूध, दही, पनीर, टोफू, फल और सब्जियां उचित मात्रा में लें ज्यादा कैल्शियम किडनी में पथरी का कारण बन सकता है
पोटेशियम : फल, सब्जियां, दूध, दही, मछली, अंडा, मीट में पोटैशियम काफी होता है इनकी ज्यादा मात्रा किडनी पर बुरा असर डालती है इसके लिए केला, संतरा, पपीता, अनार, किशमिश, भिंडी, पालक, टमाटर, मटर न लें। सेब, अंगूर, अनानास, तरबूज, गोभी, खीरा, मूली, गाजर ले सकते है।

रोग से बचाव

कुछ सुझावों पर अमल कर किडनी संबंधी बीमारियों से बच सकते हैं।
पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ लें : स्वस्थ लोगों को रोजाना 2 से 4 लीटर तक पानी व तरल पदार्थ ग्रहण करने चाहिए। इसके विपरीत जो लोग गुर्दे के विकारों से ग्रस्त हैं उन्हें पानी व अन्य तरल पदार्थों का सेवन गुर्दा रोग विशेषज्ञ (नेफ्रोलाजिस्ट) के परामर्श से करना चाहिए, पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थों को ग्रहण करने से गुर्दों को शरीर से सोडियम, यूरिया और अन्य नुकसानदेह पदार्थों को बाहर निकालने में मदद मिलती हैं।
प्रोटीन कम लें : जब गुर्दे कमजोर हो जाते हैं तब शरीर में यूरिया व अन्य नुकसानदेह तत्वों का स्तर बढ़ने लगता है। इस स्तर को कम करने के लिए प्रोटीन का सेवन कम कर देना चाहिए। प्रोटीन, पनीर, दालों, फलियों, सोयाबीन और मांसाहारी खाद्य पदार्थों में पाया जाता हैं।
नमक का सेवन कम : विभिन्न खाद्य व पेय पदार्थों के द्वारा शरीर में रोजाना 5 ग्राम एक छोटे चम्मच तक नमक पहुंचना चाहिए। इससे ज्यादा नमक न लें। खाद्य पदार्थों में अलग से नमक नहीं डाले.
धूम्रपान से परहेज : धूम्रपान गुर्दों से रक्त के प्रवाह को धीमा कर देता है। जब गुर्दे में कम रक्त पहुंचता है, तो ये सही ढंग से कार्य नहीं कर पाते। धूम्रपान गुर्दे के कैंसर के खतरे को भी 50 प्रतिशत तक बढ़ा देता हैं।
शराब का सेवन कम : बहुत ज्यादा शराब पीने से गुर्दों को शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकलने के लिए अधिक कार्य करना पड़ता है।
ब्लडप्रेशर नियंत्रण : कई लोगों को लगता है रक्तचाप ब्लड प्रेशर का अनियंत्रित रहना सिर्फ दिल के लिए ही नुकसानदेह है। सच तो यह है कि उच्च रक्तचाप गुर्दे की बीमारी का एक मुख्य संकेत हो सकता है। यदि आपका ब्लडप्रेशर अधिक है तो गुर्दे की पूरी जांच कराएं। जीवनशैली में परिवर्तन लाएं यदि आवश्यक हो तो अपने रक्तचाप को कम करने के लिए डाक्टर के परामर्श से दवा का सेवन करें.
इसके अलावा मधुमेह व कोलेस्ट्राल नियंत्रण भी आवश्यक है।
खुद को फिट रखें : सप्ताह में कम से कम 5 बार घूमना, साइकिल चलाना या तैराकी जैसे सामान्य तीव्रता वाले व्यायाम करें। योग विशेषज्ञ के परामर्श से योगासन-प्राणायाम करें।
आयुर्वेद शास्त्र में किडनी विकार के लिए प्रभावकारी औषधियां उपलब्ध है। इनके साइड इफेक्ट भी नहीं के बराबर है। इनसे स्थायी लाभ भी मिलता है। जीकुमार आरोग्यधाम में क्रॉनिक रिनल फेल्योर के कई रोगी आते है जो कि डायलिसिस पर चल रहे हैं। इन आयुर्वेदिक औषधियों से उनकी डायलिसिस कम हुई है और कुछ रूग्णों को डायलिसिस की भी जरूरत नहीं पड़ी है। इतना ही नहीं हमारे जीकुमार आरोग्यधाम में पथरी के रुग्ण की पथरियां निकली है साथ ही पथरी बनने की पुनरावृत्ति भी नहीं हो रही। अतः किडनी विकार का निदान होते ही शुरुवात में आयुर्वेदिक औषधि सेवन किया तो तुरन्त लाभ मिलता है।

Dr. Gurmukh Mamtani

डॉ. जी.एम. ममतानी
एम.डी. (आयुर्वेद पंचकर्म विशेषज्ञ)

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