Hyper acidity due to fast food

वर्तमान भाग-दौड़ के युग में मनुष्य के आहार-विहार में काफी परिवर्तन आ गया है। आयुर्वेद में आहार के विधान का विशेष रूप से वर्णन किया गया है। षड्स का वर्णन आयुर्वेद के अंतर्गत ही आता है। मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त व कषाय इन 6 रसों का आहार में समावेश होना स्वास्थ्य के लिए हितकारी है, ऐसा आयुर्वेद के मनीषियों का कथन है। परंतु आज स्थिति विपरीत है। भोजन में मसालेदार, तीखे, खट्टे, चटपटे पदार्थों का ज्यादा समावेश कर उसे स्वादिष्ट बनाया जाता है, जो हमें उस समय तो स्वाद के कारण रोचक लगते हैं, किंतु कालांतर में रोगकारी सिद्ध होते हैं।

आज फास्ट फूड का जमाना है। नूडल्स, मंचूरियन, बर्गर, पिज्जा व अन्य चाइनीज व्यंजन हायपर एसिडिटी के लिए जिम्मेदार हैं। आज आए दिन होटलों की सैर व पार्टियों का आयोजन हो रहा है। जहां कोल्ड ड्रिंक्स तथा मद्यपान की व्यवस्था आम बात हो गई है। इससे व्यक्ति के स्वास्थ्य का स्तर दिन-प्रतिदिन गिर रहा है। भोजन की इन्हीं अनियमितताओं का परिणाम है ‘हायपर एसिडिटी जिसका मुख्य कारण कब्ज भी है। आधुनिक दर्द निवारक औषधि के अति प्रयोग से भी एसिडिटी होती है।

हायपर एसिडिटी से सभी भली-भांति परिचित हैं। आयुर्वेद में इसे अम्लपित्त कहते हैं। आयुर्वेदानुसार पाचन के लिए पित्त तत्व जरूरी है। पित्त-जिसे अंग्रेजी में बाइल (Bile) के नाम से जाना जाता है, आयुर्वेद में विस्तृत अर्थों का परिचायक है। यह केवल पाचन का ही काम नहीं करता, शरीर की समस्त ऊर्जा का संवाहक भी होता है। पित्तदोष के बढ़ने से ही हायपर एसिडिटी होती है। पित्त की वृद्धि आहार में संयम बरतने से होती है।

कारण :- अम्लपित्त सामान्य रूप से पाया जाने वाला लक्षण है । आजकल जर्दे का गुटका प्रचलित है। इसका भी परिणाम एसिडिटी है। अत्यंत खट्टे, गर्म पदार्थों का सेवन, मद्यपान की लत होना, अति स्निग्ध व पिष्टान्न का सेवन भी एसिडिटी को जन्म देता है। कभी-कभी अपचन की स्थिति में भी व्यक्ति पुनः अन्न सेवन करता है, जिससे भी एसिडिटी होती । कुलथी का अधिक सेवन, वेग धारण के कारण भी यह समस्या होती है। इसके अलावा मानसिक कारणों में अत्यधिक तनाव की स्थिति एवं अवसादावस्था भी एसिडिटी के लिए जिम्मेदार हैं। अतः यह केवल अहितकर आहार से ही होने वाली शारीरिक व्याधि नहीं है, बल्कि इसे मानस शारीरिक व्याधि (Psychosomatic Disorder) भी कहा जाता है। क्योंकि अम्लपित्त के रुग्णों में भय, चिंता, नींद न आना, बेचैनी, अनुत्साह इत्यादि मानसिक लक्षण भी मिलते हैं। कई चिकित्सक उन्हें निद्राजनक या मानसिक औषधियां देते हैं, जबकि उनके यह लक्षण पित्तदुष्टि की वजह से होते हैं। इसलिए उन्हें पित्तशामक औषधि देनी चाहिए ।

लक्षण :- इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति में मुख्यतः अपचन, खट्टी डकारें आना, भोजन के पश्चात पेट में हल्का दर्द, गले में जलन, छाती में जलन, सुबह उठते ही खट्टा व कसैला पानी आना, भोजन के प्रति अनिच्छा, उल्टी जैसा लगना, बिना परिश्रम के थकावट, सुस्ती, हल्का बुखार महसूस होना इत्यादि लक्षण मिलते हैं। आयुर्वेद में अम्लपित्त का संबंध देश, काल व ऋतु से भी बताया गया है। एसिडिटी मुख्यतः मध्यम आयु तथा शरद ऋतु में अधिक होती है। प्रकार :- आयुर्वेदानुसार अम्लपित्त के 2 प्रकार हैं ऊर्ध्वगामी व अधोगामी ।

ऊर्ध्वगामी
जिस अम्लपित्त में हरी, पीली, नीली तथा काले वर्ण की, थोड़ी या अत्यंत लाल वर्ण की खट्टी, मांस के धोवन के समान, अत्यंत चिपचिपी, कफयुक्त तथा अनेक रसयुक्त उल्टी हो, भोजन करने पर या भोजन के विदग्ध अवस्था में रहने या कभी-कभी भोजन नहीं करने पर भी तिक्त या अम्ल रसयुक्त उल्टी होती हो और गले तथा पेट में जलन हो, सिर दर्द हो, तो इन लक्षणों से युक्त अम्लपित्त को ऊर्ध्वगामी अम्लपित्त कहते हैं।

अधोगामी
जिस अम्लपित्त में प्यास, जलन, मूर्च्छा, चक्कर, दुर्गंधयुक्त मल प्रवृत्ति, उबासी, खुजली, अपचन, शरीर में कांटे आना, पसीना आता हो और कभी-कभी शरीर भी पीला होता हो, तो इन लक्षणों वाले रोग को अधोगामी अम्लपित्त कहते हैं ।

चिकित्सा – पाचन संस्था के कष्टकर रोगों में अम्लपित्त की चिकित्सा आयुर्वेद की महान उपलब्धि है।

औषधि
एसिडिटी के रुग्णों को सामान्यतः सूतशेखर, प्रवाल पंचामृत व कामदुधा रस की 1-1 वटी सुबह-शाम दाडिमावलेह या भूनिंबादि काढ़ा 2 चम्मच के साथ लेनी चाहिए। शतावरी चूर्ण दूध साथ सेवन करें। कब्ज व अपचन की स्थिति में अविपत्तिकर चूर्ण 1-1 चम्मच सुबह-रात लेना चाहिए। अम्लपित्त में लीलाविलास रस के उत्तम परिणाम पाए जाते हैं।
यवादि काढ़ा – यव, पीपर तथा परवल के पत्ते समभाग इन सबके काढ़े में शहद मिलाकर पिलाएं। इससे अम्लपित्त, अरुचि तथा उल्टी दूर होती है।
गुडुच्यादि काढ़ा – गुडुची, चित्रकमूल, नीम की छाल तथा परवल के पत्तों का समभाग काढा शहद मिलाकर लें। यह अम्लपित्त के कारण होने वाली उल्टी को शांत करता है।
पटोलादि काढ़ा – परवल के पत्ते, त्रिफला तथा नीम की छाल समभाग लेकर काढ़ा बनाकर शहद के साथ लें। इससे उल्टी, जलन व दर्द दूर होते हैं।
एलादि चूर्ण – इलायची, वंशलोचन, दालचीनी, आंवला, हरीतकी, पिपरामूल, चंदन, तेजपान तथा अकरकरा का समभाग चूर्ण बनाएं। उसमें समभाग शक्कर मिलाकर सुबह सेवन करने से पुराना व प्रबल अम्लपित्त भी नष्ट होता है।

पंचकर्म
पंचकर्म चिकित्सा के अंतर्गत वमन विरेचन के सुपरिणाम पाये गये हैं। वमन में यष्टिमधु का फांट पिलाकर पित्त दोष को ऊर्ध्व मार्ग से बाहर निकालना चाहिए। शास्त्रों में पित्त दोष की प्रधान चिकित्सा विरेचन कर्म बतायी गई है। एसिडिटी पित्तप्रधान व्याधि है, अतः इसमें विरेचन लाभदायी है। विरेचन में इच्छाभेदी रस, त्रिवृत्ता चूर्ण, अविपत्तिकर चूर्ण, एरंड तेल इत्यादि औषधियों द्वारा जुलाब कराके पित्त दोष को अधोमार्ग से बाहर निकाला जाता है। परवल के पत्तों तथा नीम की छाल के काढ़े में मदनफल का चूर्ण शहद तथा सेंधा नमक मिलाएं व रुग्ण को पिलाकर वमन कराएं। तत्पश्चात त्रिफला के काढ़े में निशोथ का चूर्ण तथा शहद मिलाकर रुग्ण को पिलाएं व विरेचन से कराएं। उक्त वमन व विरेचन के पहले पूर्वकर्म स्नेहन-स्वेदन (मालिश – सिंकाई ) करना आवश्यक है।

रुग्ण को वमन व मृदु विरेचन के पश्चात स्नेहन औषधियों से स्निग्ध कर अनुवासन बस्ति दें। अम्लपित्त के पुराना होने पर आस्थापन बस्ति दें। इसके अलावा एसिडिटी में आभ्यंतर घृतपान (देशी घी का सेवन) के भी अच्छे परिणाम मिलते हैं। घृत गुणानुसार पित्तशामक है।

नेचरोपैथी
एसिडिटी का उपचार सात्विक आहार-विहार ही है। प्राकृतिक चिकित्सा के अंतर्गत एसिडिटी के लिए दुग्ध कल्प विशेष रूप से लाभदायी है। इसमें भोजन के स्थान पर केवल दुग्ध – सेवन का विधान है। लगातार एक-डेढ़ माह के दुग्ध-कल्प से एसिडिटी का पूर्णतः निवारण होता है। इसके अलावा नेचरोपैथी की अन्य क्रियाएं जैसे मिट्टी-पट्टी, जल चिकित्सा के अंतर्गत गरम-ठंडा सेंक, स्टीम बाथ, सर्वांग चादर लपेट, फुट-बाथ के श्रेष्ठ परिणाम मिलते हैं। मालिश व सूर्यकिरण चिकित्सा की जाती है। योगासन, प्राणायाम, ध्यान से भी मानसिक तनाव दूर होकर एसिडिटी में लाभ होता है। इस तरह शरीर की आभ्यंतर क्रियाओं को प्राकृत करने का कार्य नेचरोपैथी करती है। साथ ही नियमित योगाभ्यास करने से पित्त दोष शांत होकर एसिडिटी में लाभ मिलता है।

घरेलू नुस्खे

  • मुलेठी का चूर्ण 3-4 ग्राम की मात्रा में अनार के रस के साथ 3 बार दें।
  • आंवले का रस 10ml या आंवले का चूर्ण 3gm शहद में मिलाकर चटाएं।
  • 5 नग मुनक्का बीज निकालकर मिश्री के साथ अच्छी तरह चबाकर खाने से अम्लपित्त में लाभ मिलता है।
  • नारियल की गिरी को मिश्री के साथ चूसने से लाभ होता है। इस रोग में नारियल का पानी पीना लाभदायी होता है।
  • अम्लपित्त में आहार में केवल दूध लेने से लाभ होता है।
  • आंवले का 50 ग्राम चूर्ण तवे पर सेंककर काला कर उसमें 5-6 चम्मच मक्खन मिलाएं व मिश्रण को बोतल में भरकर रखें। यह औषधि 3 बार शहद के साथ लें।
  • पत्ता गोभी का रस 1/2 कप व शहद 2 चम्मच सुबह खाली पेट लेने से लाभ होता है।
  • लौकी का रस (4-6 चम्मच) जीरा मिलाकर सुबह लें ।
  • हरीतकी व इसबगोल का चूर्ण मिलाकर रात को सोते समय लेने से लाभ होता है।

पथ्य
एसिडिटी का निवारण आहार-विहार के नियंत्रण के बिना असंभव है। अतः पूर्णतः सादा, सात्विक, सुपाच्य
आहार लेना चाहिए।
यव, अंकुरित मूंग, पुराना लाल चावल, गर्म कर ठंडा किया हुआ जल, शक्कर, मधु, सत्तू, करेला, केले का फूल, बथुआ शाक, श्वेत कुष्मांड, परवल, अनार, हल्दी, अदरक, सिंघाड़ा, दूध, मक्खन, घी, आंवला, अंजीर, नारियल, ककड़ी, लौकी, गेहूं ज्वारी इत्यादि आहार पदार्थ सेवन योग्य हैं।

अपथ्य (वर्ण्य)
उल्टी का वेग रोकना, तिल, उड़द व तिल से बने पदार्थ, बकरी का दूध, कांजी, नमकीन, खट्टे व कड़वे आहार द्रव्य, भारी अन्न, दही, शराब इत्यादि को त्यागें। ज्यादा मसालेदार, उष्ण, तीक्ष्ण, चटपटे पदार्थों का सर्वथा त्याग करना चाहिए। जर्दे के गुटका का सेवन पूर्णतः बंद करें। रात्रि जागरण, मानसिक तनाव, अवसाद आदि कारणों से दूर रहें।
इस प्रकार एसिडिटी या अम्लपित्त के रुग्णों में आहार-विहार नियंत्रण, आयुर्वेदिक औषधियों व पंचकर्म से लाभ मिलता है।