मधुमेह का त्वचा पर प्रभाव

मधुमेह से ग्रस्त रुग्ण को निम्न त्वचा के विकार आसानी से हो सकते है।

  1. संक्रमण (Bacterial Infection)
  2. फंगस (Fungal Infection)
  3. खुजली (Itching)

उपरोक्त त्वचा के विकार किसी को भी हो सकते हैं पर अन्य त्वचा के विकार अधिकांशतः मधुमेही को ही होते है जैसे

  1. डायबिटिक डर्मोपैथी (Diabetic Dermopathy)
  2. नेक्रोबॉयोसिस लिपायोडिका डायबेटीकोरम (Necrobiosis Lipoidica Diabeticorum)
  3. डायबिटीक ब्लिस्टर्स (Diabetic Blisters)
  4. इरप्टीव जैन्थोमेटोसिस (Eruptive Xanthomatosis)

सामान्य त्वचा के विकार

जीवाणुगत संक्रमण (Bacterial Infection)

डायबिटीज़ से ग्रस्त रुग्ण को निम्न संक्रमण हो सकता है।

  1. गुहेरी (Stye) – आंखों की पलकों पर होनेवाला संक्रमण ।
  2. फोड़ा-फुंसी
  3. Folliculitis (Hair Follicle का संक्रमण)
  4. Carbuncle (त्वचा का Deep संक्रमण)
  5. नाखून के चारों और संक्रमण

उपरोक्त प्रकार के संक्रमण में सूजन आती है और वहां की त्वचा गरम,सूजी हुई लाल व वेदना युक्त रहती है। यह संक्रमण सामान्यत: Staphylococus Bacteria के कारण होता है।

डायबिटीज ग्रस्त के लिए एक समय ऐसा भी था जब बैक्टेरियल संक्रमण घातक होता था पर आज एन्टीबॉयोटिक्स व शुगर कंट्रोल की उत्तम विधि के कारण संक्रमण आसानी से ठीक होता है। परंतु आज भी डायबिटीज ग्रस्त को अन्य रुग्णों की अपेक्षा अधिक बैक्टेरियल इन्फेक्शन होता है। मेडिकल शास्त्र के अनुसार त्वचा की उत्तम तरीके से देखभाल कर इन्फेक्शन की भावना कम रहती है। अतः बैक्टेरियल इन्फेक्शन होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

रुक्ष त्वचा
(Dry Skin)

मधुमेह ग्रस्त रोगी की त्वचा रूखी (रुक्षता) होती जाती है बहुमूत्रता के कारण शरीर में जलांश की कमी होती है। इसमें शरीर में रूक्षता व कठोरता उत्पन्न होती है। सामान्य चोट से भी यह जख्म का रूप ले लेता है। पकने के कारण शीघ्र ठीक नहीं होता ।

फंगल इन्फेक्शन

डायबिटीज़ ग्रस्त को कैन्डीडा अल्बीकन्स (Candida Albicans) फंगल इन्फेक्शन होता है। यह फन्गस यीस्ट (Yeast) के समान होता है जिसमें खुजली युक्त लाल चकते होते है यह इन्फेक्शन संधिगत स्थान (Fold वाली त्वचा) में अधिकतर होता है जैसे कांख या जांघ में। इसके अलावा स्तन के नीचे, नाखून के चारों ओर, अंगुलियों व अंगूठों के बीच में, मुख के किनारों पर होता है।

सामान्यतः होनेवाले फन्गल इंफेक्शन में Jockitch, Athletes Foot, Ringworm व योनि संक्रमण होता है जिसमें खुजली अधिक होती है। फन्गल इंफेक्शन होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। फंगल इंफेक्शन में खुजली डायबिटीज़ के कारण होती है। यह यीस्ट संक्रमण (Yeast Infection), सूखी त्वचा (Dry Skin) या रक्तप्रवाह पर्याप्त न होने के कारण (Poor Circulation) होती है।

खुजली
Itching

मधुमेह से ग्रस्त रुग्ण में पर्याप्त रक्तप्रवाह न होने के कारण खुजली होती है। वह खुजली पैरों के निचले हिस्से पर होती है। स्त्रियों को जननांग में खुजली के साथ ही पुरुषों के शिश्न मुंड पर सूजन उत्पन्न होती है जो अति कष्टदायी होती है। ऐसी स्थिति में सौम्य प्रकार का साबुन प्रयोग करें व नहाने के बाद कोई सौम्य क्रीम या नारियल तेल नहाने के पूर्व प्रयोग करें। निम्ब के पत्ते पानी में उबालकर पानी से गुप्तांग धोने चाहिए। गुप्तांग के अंदर – बाहर निम्ब का तेल लगाना चाहिए।

गैंग्रीन (सड़न)
मधुमेह रोगी को रक्त वाहिनियों की विकृति, नर्व डॅमेज के कारण अल्सर होकर गैंग्रीन उत्पन्न होता है। त्वचागत ज्ञानतंतु विकृत होकर त्वचा शून्यता होती है। यह वृद्धावस्था में विशेष रूप से होता है। हल्की चोट लगने से भी जख्म हो जाता है जो आसानी से भरता नहीं है। यह अत्यंत कष्टदायक और गंभीर होता है मधुमेह रोगी की जब रक्तशर्करा बढ़ती है, रोगी के पैरों की अंगुलियों व अंगूठों में गैंग्रीन होता है। उसमें काफी तीव्र जलन होती है। धीरे-धीरे जलन (दाह) बढ़ती जाती है। काफी बढ़ जाने पर अंगुली या अंगूठे को काटना ही पड़ता है। कुछ समय बाद ऐसे लक्षण फिर प्रकट होते है। किसी किसी रोगी के घुटने व जंघाओं तक का हिस्सा काटना पड़ता है। अंगों को काट देने से भी यह रोग मिटता नहीं। यह टाइप 1 डायबिटीज़ विटिलिगो की वजह से होता है। इसमें मिलेनिन पिगमेंट की कमी के कारण छाती, चेहरे और हाथ में सफेद दाग नजर आते हैं। इसके लिए लाइट थिरेपी का प्रयोग किया जाता है व जब भी धूप में जाए सनस्क्रीन लगाकर जाएं।

वैसे तो गैंग्रीन अति गंभीर व असाध्य बीमारी है, फिर भी प्रथम अवस्था में उपचार करने से सफलता मिल भी सकती है। आवला, हल्दी,गुलवेल चूर्ण 5-5 ग्राम दिन में तीन बार चिकित्सक की देखरेख में ले सकते है।

डायबिटीज़ से संबंधित त्वचा विकार

1. एकेन्योसिस निग्रीकन्स (Acanthosis Nigricans)
इस प्रकार में कत्थई या गहरी रंग के उभार गर्दन, कांख व वक्षण (जांघ के उपरी भाग) में होते हैं। कभी-कभी वे हाथ, घुटने व कुहनी में भी हो सकते हैं। यह उन लोगों में अधिक होता है जिनका शरीर स्थूल होता है। इसका सबसे उत्तम उपचार है बढ़े हुए वजन को कम करना।

2. डायबिटिक डर्मोपैथी (Diabetic Dermopathy)
डायबिटीज के कारण छोटी रक्तवाहिनियों में परिवर्तन आता है। इससे त्वचा में परिवर्तन आता है जिसे डायबिटिक डर्मोपैथी कहते है। इसमें हल्के कत्थे रंग के पैच अंडाकार या गोलाकार होते है। कभी-कभी यह गलतफहमी हो जाती है कि यह पैच बढ़ती उम्र के कारण है। यह त्वचा विकार पैरों के अग्रभाग में होता है। इन पैचेस के कारण वेदना, खुजली या किसी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं होती। इस प्रकार डर्मोपैथी से शरीर को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती।

3. नेक्रोबॉयोसिस लिपायोडिका डायबेटीकोरम (Necrobiosis Lipoidica Diabeticorum)
रक्तवाहिनी की विकृति के कारण होनेवाला दूसरा विकार है Necrobiosis Lipoidica Diabeticorum (NLD)। इसमें भी डर्मोपैथी की तरह त्वचा पर कुछ चिन्ह बनते है पर वे आकार में बड़े,गहरे व कुछ कम होते हैं।
शुरुवात में इसमें लालवर्ण के बढ़े हुए पैच दिखते है। इसके बाद वहां चमकीला चिन्ह (Scar) बैंगनी बार्डर के साथ बनता है। त्वचा के नीचे की रक्तवाहिनी आसानी से देखी जा सकती है। कभी-कभी इसमें खुजली व दर्द भी होता है। कभी-कभी त्वचा परप होनेवाले स्पॉट खुल भी जाते है।
यह स्थिति बहुत कम पाई जाती है। वयस्क स्त्रियों में यह अधिक होता है। जब इसमें होनेवाले पैच का हिस्सा खुल जाता है, तब डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

4. एलर्जिक रिएक्शन्स (Allergic Reactions) – कभी-कभी किसी औषधि या अन्य बाह्य कारण से एलर्जिक स्किन रिएक्शन होते है जैसे इन्सुलिन या डायबिटीक पिल्स या पालेन ग्रेन इत्यादि के कारण। ऐसा होने पर तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें।

5. डायबिटीक ब्लिस्टर्स (Diabetic Blisters) – डायबिटीज़ ग्रस्त रुग्ण को कभी फफोले (Diabetic Blisters) भी हो सकते हैं। ये अंगुलियों के पिछले भाग हाथ, अंगुठा,पैर या हाथ में भी हो सकता है। यह जले हुए फफोले की तरह दिखता है। जिन रुग्णों को डायबिटिक न्यूरोपैथी होता है, उन्हें यह अधिकतर होता है। कभी-कभी ये आकार में बड़े लालिमा रहित, वेदनारहित खुद ही ठीक होने वाले (Heal by Themselves),बिना स्कार के,तीन सप्ताह में ठीक होते है। इसमें केवल रोगी का ब्लड शुगर नियत्रण में करना होता है।

6. इस्टीव जैन्थोमेटोसिस (Eruptive Xanthomatosis) – डायबिटीज़ के कारण होनेवाले इस त्वचा विकार में पीले वर्ण का मटर (Pea) के समान वृद्धि दिखाई देती है। हर वृद्धि में लाल रंग की रचना होती है, खुजली भी हो सकती है। हाथ के पिछले हिस्से, बांह, पैर व नितंब (Buttocks) पर होती है। युवावस्था में होनेवाला विकार है जिन्हे टाइप-1 डायबिटीज व कोलेस्ट्राल बढ़ा हो उन्हें ही यह त्वचा विकार होता है। शुगर कन्ट्रोल होने पर यह स्वयं ही गायब हो जाता है, डायबिटिक ब्लिस्टर्स की तरह ।

7. डिजिटल स्क्लेरोसिस (Digital Sclerosis) – मधुमेह ग्रस्त रोगी के हाथों के पिछले भाग पर कभी-कभी मोटी, कसी हुई वैक्सयुक्त त्वचा (Tight Thick and Waxy Skin) होती है। पैर के अंगुठे व मस्तक की त्वचा मोटी हो जाती है। अंगुलियों की संधियां जकड़ जाती है, हलचल करने में तकलीफ होती है। बहुत कम घुटने कुहनी व टखना (Ankle) जकड़ते है।
टाइप-1 डायबिटीज़ से ग्रस्त एक तिहाई लोगों को यह तकलीफ होती है। इसमें शुगर कन्ट्रोल करना आवश्यक है।

8. डिसएमीनेटेड ग्रेन्यूलोमा एन्यूलेर (Disseminated granuloma Annulare) – इसमें रोगी की त्वचा पर अंगुठी के आकार की वृद्धि दिखाई देती है। शरीर के जो अवयव छाती (Trunk) से दूर हैं जैसे अंगुलियां या कान उनमें होती है। कभी-कभी ये उभार छाती या पेट (Trunk) पर भी लाल, कत्थई या त्वचा के रंग के दिखाई देते है। ऐसा होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

आयुर्वेदानुसार मधुमेहगत त्वचा रोग

प्रमेह रोग की समुचित चिकित्सा न होने पर प्रमेह पीड़िकाएं ( सिया) उत्पन्न हो जाती हैं जो कि जोड़ों, नाजुक अंगों व शरीर के मांसल स्थानों पर होती हैं। प्रमेह पीड़िकाएं दस प्रकार की होती हैं जो निम्न है –

शराविका – यह पीड़िका सकोरा के आकार की होती हैं, जो नीचे से उभरी हुई व बीच से गहरी होती हैं।
सर्षपिका – यह सफेद या पीली सरसों के दाने के आकार की होती हैं।
कच्छपिका – यह कछुए के आकार की होती हैं और इनमें जलन होती है।
जालिनी – इनमें तीव्रदाह व पीड़ा होती है और चारों ओर से मांस के जाल से घिरी होती हैं।
विनता – ये पेट या पीठ पर होती हैं और इनमें अत्यंत दर्द होता है। यह बड़े आकार की एवं नीले रंग की होती हैं।
पुत्रिणी – यह भी आकार में बड़ी होती है लेकिन इसके चारों ओर छोटी-छोटी फुंसियां रहती हैं अतः इसे पुत्रिणी कहा जाता है।मसूरिका – यह मसूर के समान एवं उसी के आकार की होती है।
अलजी – यह लाल तथा सफेद फफोलों से घिरी रहती व अत्यंतपीडादायक होती है।
विदारिका – यह विदारीकंद के समान लंबी गोल व स्पर्श में कठोर होती है।
विद्रधि – इसमें प्रसिद्ध विद्रधि (Abscess) के सभी लक्षण पाए जाते हैं।

चिकित्सा – सर्वप्रथम इसमें मधुमेह को नियंत्रण में रखना चाहिये।
1. अपक्व शराविका आदि पिडकाओं की चिकित्सा शोफ की भांति करनी चाहिए। पकने पर व्रण की भांति चिकित्सा करें।
2. इन पिटिकाओं के पूर्वरुप में ही पीने के लिए बरगद आदि क्षीरी वृक्षों का क्वाथ या बकरे का मूत्र तथा तीक्ष्ण विरेचन उत्तम है। प्रमेह रोगी को कठिनाई से विरेचन होता है।
3.पाठा, चित्रक, मंजीठ, सारिवा, कटेरी,सप्तपर्ण, कुटजमूल श्वेतखैर, अमलतास इनका चूर्ण करके मधु से चाटें। इसी प्रकार नवायस चूर्ण को मधु से चाटें।
4. त्रिफला चूर्ण का काढ़ा :- 4 कप पानी में दो चम्मच चूर्ण डालकर उबालें व दो कप शेष रह जाने पर उतार कर ठंडा
कर लें। जख्म को बार-बार धोकर उस पर त्रिफला चूर्ण या निम्ब साल चूर्ण लगाएं।
5. त्रिफला गुग्गुल, कैशोर गुग्गुल, आरोग्यवद्धिन वटी, गंधक रसायन, कांचनार गुग्गुल, इन सभी की 2-2 गोली दिन में तीन बार सेवन करें।
6. महामंजिष्ठादि काढ़ा दो-दो चम्मच दिन में दो बार वैद्य की सलाह लेकर दिया जा सकता है।
7. त्वचा पर मरीच्यादि तेल से अभ्यंग करावें।
8. पंचकर्म के द्वारा शुद्धि करनी चाहिए।
9. विरेचन, रक्तमोक्षण (जलोकावचरण) से त्वचा रोग पर प्रभावी परिणाम मिलते है।
इस प्रकार मधुमेह ग्रस्त को शुगर कंट्रोल न होने पर उपरोक्त त्वचा विकार होने की संभावना रहती है। अतः मधुमेह ग्रस्त रुग्ण ने आहार-विहार का पथ्य पालन कर शुगर नियंत्रण पर ध्यान देना आवश्यक है। त्वचा विकार होने पर शीघ्र ही अपने चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहियें।

डॉ. जी.एम. ममतानी
एम.डी. (आयुर्वेद पंचकर्म विशेषज्ञ)

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