कंपवात स्नायु संस्थान का रोग है। इसमें मांसपेशियों से मस्तिष्क का नियंत्रण हट जाता है, जिससे शरीर में कंपन की शिकायत शुरू हो जाती है। चूंकि मस्तिष्क ही शरीर के प्रत्येक कार्य को नियंत्रित करता है, इसलिए आयु के बढ़ने, रोग या हानिकारक तत्वों के कारण मस्तिष्क में परिवर्तन होते हैं, जो अनेक रोगों का कारण बन जाते हैं । कम्पवात भी इन्हीं कारणों से उत्पन्न होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि कम्पवात एक मस्तिष्क का रोग है । वैसे तो 60-65 वर्ष की आयु में स्त्री या पुरुष कम्पवात रोग से ग्रस्त होते हैं, लेकिन कभी-कभी स्नायु विकारों से ग्रस्त परिवारों के बच्चे भी इस रोग के शिकार हो जाते हैं।
कुछ शास्त्रज्ञों के मतानुसार यह रोग नहीं अपितु मस्तिष्कजन्य विकारों में होने वाला उपद्रव है। यह महिलाओं की अपेक्षा पुरूषों में अधिक होता है। वृद्धावस्था में 50 वर्ष के बाद लगभग 1 प्रतिशत व्यक्ति में कंपवात रोग पाया जाया जाता है, किंतु यह आवश्यक नहीं कि वृद्धावस्था में ही कंपवात होता है, यह रोग मध्यमायु में भी हो सकता है। सन 1817 में एक अंग्रेज चिकित्सक जेम्स पार्किन्सन ने इस रोग की ओर ध्यान आकृष्ट किया, अतः तब से यह पार्किन्सन नामक रोग से जाना जाता हैं। विश्व प्रसिद्ध बॉक्सर श्री मोहम्मद अली इस रोग से ग्रस्त हैं, इस तरह अनेक विश्व विख्यात हस्तियों में भी यह रोग पाया गया है। अतः यह कह सकते हैं कि कंपवात के रोगी सामान्य व सम्मानित जीवन व्यतीत कर सकते है ।
कंपवात रोग के मुख्य कारण बहुत ही सामान्य व अक्सर नजरअंदाज कर दिए जाने योग्य होते हैं। एक सामान्य व्यक्ति में 70-80 वर्ष की आयु में मस्तिष्क कोशिकाओं का क्षतिग्रस्त या कमजोर होना आरंभ हो जाता है, जिसके कारण कम्पवात रोग की तरह शारीरिक एवं मानसिक लक्षण देखे जाते हैं। किंतु इसे उम्र आदि कारणों को ध्यान में रखते हुए वृद्धावस्था की एक सामान्य प्रक्रिया माना जाता है। अतः इसमें कोई विशेष चिकित्सा कराने की भी आवश्यकता नहीं होती। यदि किसी व्यक्ति में समय से पहले वृद्धावस्था आने लगे, मतलब इसी तरह के लक्षण जैसे- शारीरिक क्रियाओं की मंदता, अंगों का कम्पन एवं जकड़ाहट आदि कम उम्र में दिखने लगें, तो यह कम्पवात (पार्किन्सन्स) रोग कहलाता है । सामान्य रूप से शरीर में ‘फ्री रेडिकल्स’ के उत्पादन को उम्र बढ़ने एवं शरीर के क्रमशः कमजोर होने का कारण माना जाता है। असम्यक आहार एवं दूषित वातावरण शरीर में फ्री रेडिकल्स के उत्पादन की प्रक्रिया को तेज कर देते हैं, जिससे समय के पूर्व व्यक्ति में वृद्धावस्था के लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं । परिणामस्वरूप कम्पवात रोग उत्पन्न होता है। दूषित जल एवं दूषित वातावरण वाले क्षेत्रों में इस रोग से ग्रसित रोगियों की संख्या अधिक पायी जाती है। किसी भी तरह के विषैले पदार्थों या शरीर में अवांछित पदार्थों का संग्रह फ्री रेडिकल्स के उत्पादन एवं सक्रियता में सहायक बनकर, तेजी से वृद्धावस्था लाता है और कम्पवात रोग उत्पन्न करता है।
11 अप्रैल को विश्व पार्किंसंस डे होता है। पार्किंसन रोग न्यूरोलॉजिकल सिस्टम का गंभीर रोग है, जो शरीर की गतिविधियों को प्रभावित करता है। शुरूआत में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं या ऐसे लक्षण जिन पर मुश्किल से ही ध्यान जाता है लेकिन यह बीमारी गंभीर होती जाती है। दरअसल वृद्धावस्था से अंगों में आयी क्षीणता के कारण शरीर अनेक रोगों से घिर जाता है। इनमें कम्पवात एक ऐसा रोग है, जिसमें रोगी धीरे-धीरे लाचार हो जाता है क्योंकि इसमें हाथ-पैर में कंपन के कारण वह कोई काम ठीक प्रकार से नहीं कर पाता। कम्प का अर्थ होता है कांपना, जिसे आम भाषा में हिलना या हिलते रहना भी कहते हैं यह वात प्रकोप से होता है, इसलिए इसे कम्पवात कहते हैं ।
कारण :- कंपवात के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं।
- अज्ञात – अधिकांश रोगियों में इसका कारण ज्ञात नहीं होता है।
- मस्तिष्कजन्य शोथ होने के पश्चात
- धमनीकाठिन्य (Atherosclerois) के फलस्वरूप मस्तिष्क में रक्तप्रवाह कम होने के कारण
- मस्तिष्कजन्य संक्रमण
- विषारी द्रव्य जैसे कार्बनमोनोआक्साईड, मैगनीज, कार्बनडायसल्फाईड संक्रमण
- खनिज लवण जैसे आयरन, कॉपर, जिंक, पारा, मैग्नेशियम आदि की अधिकता
- औषधिजन्य – रिसर्पीन, फिनोथिएजीन, अल्फा मिथिल डोपा इत्यादि.
- अन्य मस्तिष्कजन्य विकार जैसे – लघुमस्तिष्कजन्य डिजेनेरेशन, विल्सन रोग इत्यादि
- कुछ लोगों को वृद्धावस्था व मानसिक कारण से कंपन होता है।
लगभग तीन चौथाई मरीजों में रोग के सही कारण का ज्ञान नहीं हो पाता पर किसी शारीरिक चोट या मानसिक आघात की वजह से भी रोग हो सकता है या मनुष्य पहले से इस रोग से ग्रस्त है तो रोग गंभीर रूप धारण कर सकता है। वैज्ञानिकों का मत है कि मस्तिष्क के बेसल गैन्गलिआन भाग में कुछ पेशियां जो डोपामिन नामक न्यूरोट्रान्समीटर तैयार करती है, यह पेशी धीरे-धीरे किसी कारणवश कम होती जाती है। उसके उपद्रव स्वरूप इस रोग की उत्पत्ति होती है। डोपामिन नामक स्राव का कार्य शरीर की एच्छिक मांसपेशियों की गति को नियंत्रण याने कि टोन इत्यादि करना है ।
पार्किन्सन में बेसल गैन्गलिआन भाग में विकृती के परिणामस्वरूप डोपामीन नामक स्त्राव कम निर्माण होने से एच्छिक मांसपेशियों पर नियंत्रण न होकर कंपन इत्यादि लक्षण मिलते हैं । जैसे जैसे उम्र बढ़ती है यह पेशियां संख्या में कम होने से पार्किन्सन के लक्षण भी क्रमशः बढ़ने लगते हैं। डोपामीन की कमी के कारण मस्तिष्क में स्थित एक अन्य एसीटिल कोलीन नामक रसायन की सक्रियता में बढ़ोतरी बढ़ जाती है। डोपामीन की कमी एवं एसीटिल कोलीन की सक्रियता में बढ़ोतरी के कारण शरीर में असामान्य कम्पन एवं जकड़ाहट पैदा हो जाती है। इसके अतिरिक्त नॉर-इपीनैफरीन, सीरोटोनिन, सोमेटोस्टेटीन रसायन की भी कमी देखी जाती है। रसायनों की इन अनियमितताओं के कारण अनेक शारीरिक एवं डिप्रेशन जैसे मानसिक लक्षण पैदा होते है।
इसके अतिरिक्त पौष्टिक आहार का न लेना भी कम्पवात रोग का मुख्य कारण माना जाता है क्योंकि पौष्टिक आहार में उपस्थित विटामिन्स, खनिज लवण एवं एंजाइम्स ही फ्री रैडिकल्स को निष्क्रिय करनेवाले एंटीऑक्सीडेन्ट की भांति कार्य करते है । पौष्टिक आहार के अभाव में फ्री रैडिकल्स की सक्रियता बढ़ी रहती है।
सामान्य लक्षण
शरीर के एक बाजू में कड़कपन की शुरूआत होती है। तत्पश्चात यह कड़कपन सभी बाजू फैलता है। जिसके कारण तीव्र गति से चलना, दौड़ना, सीढ़ियां चढ़ना इत्यादि काम व्यक्ति नहीं कर सकता। धीरे-2 रोगी का चेहरा भी कड़क होता जाता है। उसके कारण चेहरे के हावभाव कम होते जाते है। जोर से हंसना, मस्तक पर रेखाएं (सिलवटें ) लाना नहीं होता। ऐसे व्यक्ति का चेहरा पुतले के समान दिखता है। आवाज धीमी हो जाती है। चलना उनसे नहीं जमता व चलते समय छोटे- 2 कदम लेकर चलते हैं। उनके शरीर को जबरदस्ती चलाना पड़ता हैं । चलते समय उन्हें रूकना नहीं जमता, उनके लिए मुड़ना भी असंभव होता है। रोगी शारीरिक संतुलन बनाये रखने में भी अक्षम हो जाता है। चलते समय बार-बार गिरने की आशंका बनी रहती है और शरीर आगे की ओर झुक जाता । रोगी का शाब्दिक उच्चारण धीरे-धीरे बिगड़ने लगता है व उसका चेहरा भावहीन हो जाता है। मुख की हलचल ठीक से नहीं होती है। मुंह से लार गिरती रहती है। ऐसे रोगी हाथ में रूमाल लेकर घूमते हैं । दुःख या सुख के प्रसंग में चेहरे पर प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर सकते। उनकी बुद्धि पर कोई परिणाम नहीं होता । अतः यह रोग होने पर हमेशा बुरा ही लगता है। कम्पवात के रोगियों में कब्ज, अधिक पसीना आना, मूत्र – त्याग में परेशानी, गर्दन घुमाने में दर्द, मांसपेशियों तथा पेट में दर्द आदि लक्षण दिखते हैं।
मुख्य लक्षण
कंपन :- इनमें से 75% रोगियों में कंपन मुख्यरूप से हाथों और पैरों में होता है । विश्राम अवस्था में यह कंप कम होता है, किंतु विश्राम के समय ऐच्छिक क्रिया करने से कंप के लक्षण अधिक तीव्र दिखाई देने लगते हैं । विश्राम की स्थिती में कलाई तथा उंगलियों की गति छोटी गोली घुमाने की तरह (Rolling Pills) होती है, कंपन के कारण लिखावट छोटी, आड़ी-तेड़ी व अस्पष्ट होती है। हाथों से प्लेट, चम्मच आदि कोई वस्तु पकड़ने पर कंप स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता है। हाथ पैर के अलावा मुख और जीभ आदि बिना इच्छा आकरण कांपते रहते है । मानसिक तनाव, विक्षोभ, थकावट व ठंड में कंप बढ़ जाता है।
स्तब्धता :- इसमें हाथ पैरों की मांसपेशियां स्तबद्ध होकर कड़क हो जाती हैं जिसमें व्यक्ति की गति (हिलना-डुलना ) मंद हो जाती है। पहले यह स्तब्धता चेहरे व गर्दन की पेशियों पर आती है। बाद में शाखाओं की पेशियां स्तब्ध होती है और उनमें भी पहले हाथों की और बाद में पैरों की पेशियां स्तब्ध होती है। साधारणतः चलते समय दोनों बाहें झूलती हैं । आँखें सामान्य से अधिक खुली हुई रहती है, जिससे रोगी घूरता हुआ दिखाई देता है। गर्दन की मांसपेशी अकड़ जाने के कारण सिर आगे झुका रहता है व गर्दन को किसी एक ओर मोडने में कठिनाई होती है। धीरे-धीरे शरीर की अन्य मांसपेशीयों में वेदना होती है।
गति मंद होना :- इसमें रोगी किसी भी ऐच्छिक क्रिया को करने के लिए धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ते है । अर्थात छोटे-छोटे कदम लेकर चलता है। रोगी को दिनचर्या के क्रियाकलाप जैसे नहाना, धोना, खाना, पीना आदि में सामान्य से अधिक समय लगता है तथा किसी किसी की आवाज भी मंद हो जाती है। सामान्य स्थिती में अनैच्छिक क्रियाएं जैसे पलकों का झपकना, मुख से लार टपकना आदि क्रियाओं की गति बढ़ जाती है ।
उपरोक्त तीनों लक्षणों के कारण पूरे शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है व रुग्ण अपने दैनिक कार्यों में मदद के लिए सहयोग की अपेक्षा रखता है।
अन्य लक्षणों में कब्ज, अतिस्वेद प्रवृत्ति, कमजोरी, श्वासकष्ट, चेहरा भावहीन, मानसिक रोग जैसे अनिद्रा, अवसाद, तनाव, स्मरणशक्ति, क्षीण होना इत्यादि लक्षण मिलते है । यह जरूरी नहीं है कि उपरोक्त सभी लक्षण सभी रुग्णों में मिले ।
राईटर क्रैम्प (Writer’s Cramp) :- यह रोग उन मध्यम आयु के व्यक्तियों को होता है जो कलाई, कोहनी या कंधे की मांसपेशियों पर दबाव डालकर लिखते है। रोगी पहले छोटे-छोटे अक्षरों में लिखता है, सीधा न लिख पाने के कारण लकीरें ऊंची या नीची हो जाती है । तत्पश्चात रोग बढ़ जाने पर उसके अक्षर पढ़ने योग्य नहीं रहते, इसे ही राईटर कैम्प कहते है ।
आधुनिक निदान (Modern Diagnosis)
जिस प्रकार एमआरआई, अल्ट्रा सांउड, एसपीईसीटी और पीईटी स्कैन जांच अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का निदान करने के लिए की जाती है । उसी प्रकार इमेजिंग टेस्ट के अंतर्गत सीटी स्कैन, एम.आर.आइ (MRI) इत्यादि विशेषरूप से कंपवात रोग का डायग्नोसिस करने में सहायक होता है।
कभी-कभी डायग्नोसिस करने में समय लगता है। डॉक्टर नियमित रूप से फॉलो-अप अपॉइंटमेंट का सुझाव दे सकते हैं। जो न्यूरोलॉजिस्ट मूवमेंट डिसआर्डर में प्रशिक्षित है, वह लंबे समय तक पीड़ित की हालत और लक्षणों का मूल्यांकन करेगा व पार्किंसंस रोग का डायग्नोसिस करेगा । चिकित्सा :- आधुनिक चिकित्सा विज्ञान अनुसार पार्किन्सन रोग की जो औषधियां मार्केट में उपलब्ध हैं उनका प्रयोजन डोपामिन के अभाव की आपूर्ति करना अथवा क्षतिग्रस्त पेशियों के नष्ट होने की दर को कम करके उन्हें डोपामिन के स्त्राव हेतु प्रेरित करना है। परिणामतः डोपामिन रिसेप्टर उद्दीप्त होकर शरीर की गति व चाल को नियंत्रित करता है। इस तरह जिंदगी भर दवाईयां खानी पड़ती हैं व इन दवाइयों के दुष्परिणाम अलग से सहने पड़ते हैं ।
डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन (डीबीएस)
पार्किंसन में डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन (डीबीएस) आधुनिक इलाज है। इसमें सर्जन मस्तिष्क के विशेष भाग में इलेक्ट्रॉड को कॉलर बोन के पास छाती में लगे जनरेटर से जोड़ा जाता है, जो मस्तिष्क को विद्युतीय स्पंदन भेजता है और पार्किंसंस रोग के लक्षणों को कम कर सकेगा। डीप ब्रेन रिम्युलेशन उन लोगों को दिया जाता है जिनकी बीमारी एडवांस स्तर तक पहुंच गई है और जो दवाईंयों के प्रति अस्थिर प्रतिक्रिया दे रहे हैं ।
डीबीएस का मरीज पर 24 घंटे लगातार प्रभाव होता है । यह अनैच्छिक मूवमेंट को रोक सकता है। इसके अतिरिक्त कंपकंपी में जो उतार-चढ़ाव आते हैं उसे डीबीएस नहीं होने देता है जैसा कि दवाइयों के साथ होता है । पार्किन्सन के रोगी में विश्रामावस्था में भी रूग्ण के हाथ-पैर कांपते हैं तब डी. बी. एस. उपयोगी है। इसके अलावा डी. बी. एस. मांसपेशियों की स्तब्धता को कम कर चलने की समस्या को हल करता है ।
आयुर्वेद चिकित्सा
स्थायी लाभ हेतु अनुसंधान की दृष्टि से जीकुमार आरोग्यधाम में कंपवात की चिकित्सा के अंतर्गत निम्नलिखित चिकित्सासूत्रों का समावेश किया है।
पार्किसन रोग को टालने के लिए सर्व प्रथम आयुर्वेद शास्त्र में निर्देशित दिनचर्या व ऋतु चर्या का पालन करना आवश्यक है।
1. पौष्टिक आहार द्रव्य : भोजन में प्रोटीन की मात्रा संतुलित, फाइबर एवं विटामिन्स की मात्रा ज्यादा लेनी चाहिए। इसके लिए ताजे फल, पानी और सब्जियों को पर्याप्त मात्रा में लेना आवश्यक है। भोजन हमेशा संतुलित, पौष्टिक गरम व ताजा होना चाहिए। पुदीना, अदरक, लहसून की चटनी का प्रयोग करें।
2. योग्य व्यायाम – नित्य प्रतिदिन योगासन व प्राणायाम जैसे व्यायाम अवश्य करना चाहिए। इससे उनकी मांसपेशियों में तनाव कम होगा और नित्य कार्य करने में उन्हें परेशानी कम होगी ।
3. आयुर्वेदिक औषधि – कम्पवात रोग में अनेक आयुर्वेदिक औषधियां हैं, जो चिकित्सक के परामर्शानुसार लंबे समय तक नियमित लेनी पड़ती हैं। पार्किन्सन में मुख्यतः बल्य, मेध्यरसायन, वातशामक औषधियों का प्रयोग किया जाता है।
- ब्राम्ही पत्र का चूर्ण, मंजिष्ठा, वचा का समभाग चुर्ण रोज एक चम्मच दूध के साथ लेने से लाभ होता है।
- इस रोग में बादाम का मधु के साथ सेवन करना लाभदायक होता है।
- चोपचीनी, अश्वगंधा, सोंठ, गुलाब के फूल प्रत्येक सम मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख लें और 5-5 ग्राम की मात्रा सुबह-शाम सनाय काढ़े के साथ लेने पर लाभ होता है।
- रोग पुराना हो जाने पर 500 ग्राम लहसुन को एक लीटर गाय के दूध में अच्छी तरह पकाएं। लहसुन के पक जाने पर 300 ग्राम शहद और 100 ग्राम गाय का घी मिलाएं। फिर ठंडा होने के बाद जावित्री, जायफल, छोटी इलायची, हरड़, सौंठ, दालचीनी, रूमीमस्तगी प्रत्येक 20-20 ग्राम लेकर सबको कपड़े में रख लें। इसमें अगर 5 ग्राम और केशर 5 ग्राम मिलाकर रखें। 5 से 10 ग्राम की मात्रा में दूध नित्य इसका सेवन करने से लाभ होता है।
औषधियों में डोपामीन ( Dopamine) की प्राकृतिक या रासायनिक रूप में पूर्ति ही इसकी लाक्षणिक चिकित्सा है। प्राकृतिक रूप से कौंच बीजों में डोपामीन पाया जाता है। यदि रोग की शुरुआत में प्राकृतिक एवं हल्की मात्रा में इसे प्रारंभ किया जाए तो वह रोगी के लिए उपयोगी होता है। इसमें कवच बीज घन के बेहतर परिणाम मिले हैं। साथ ही नारसिंह चूर्ण 1-1 चम्मच सुबह-शाम अश्वगंधारिष्ट 2 चम्मच के साथ लें। मानसिक तनाव होने पर ब्राम्ही वटी 1-1 सुबह-शाम ब्राम्हीरसायन 2 चम्मच के साथ लें । मलावरोध होने पर त्रिफला चूर्ण एक चम्मच रात में सोने के पहले लें। रक्तचाप बढ़ने पर आरोग्यवर्धिनी 5 ग्राम, श्रृंगभस्म 5 ग्राम, गोक्षुरादि गुग्गुल 5 ग्राम, वणमाक्षिक 5 ग्राम, सर्पगंधा घनवटी 5 ग्राम की 60 पुड़ियां बनाकर सुबह-शाम लें। कृश व्यक्ति 1-1 चम्मच अश्वगंधापक दूध के साथ । इसके अलावा बृहत वातचिंतामणि रस, योगेन्द्र रस, कृष्ण चतुर्मुख रस, स्वर्णमाक्षिक भस्म, रोप्य भस्म, रसायन चूर्ण, अश्वगंधारिष्ट, सारस्वतारिष्ट, स्मृतिसागर रस, कम्पवातार रस, महायोगराज गुग्गुल, चंद्रप्रभा वटी, ब्राह्मी वटी, चोपचीन्यादि चूर्ण, रास्नासप्तक क्वाथ, दशमूल क्वाथ, दशमूलारिष्ट आदि आयुर्वेदिक औषधियां कम्पवात में लाभकारी होती है। उक्त औषधियां चिकित्सक के परामर्शानुसार लेने से अधिक लाभ मिलता है।
4. पंचकर्म :- इसमें अभ्यंग, बस्ति, शिरोधारा, तर्पण नस्य, पिंड स्वेद, विरेचन, शिरोबस्ति व पिंषीचल धारा के प्रभावकारी परिणाम पाये गए हैं। मालिश या अभ्यंग के लिए महामाष तेल या सप्तप्रस्थ महामाष तेल, चंदन बलालाक्षादि तेल का उपयोग करने से कम्पवात रोग में लाभ होता है।
दिमाग का टॉनिक ब्राहमी
पार्किसन के लिए ब्राहमी को वरदान माना जाता है। यह दिमाग के टॉनिक की तरफ काम करती है । भारत में सदियों से कुछ चिकित्सक इसका उपयोग स्मृति वृद्धि के रूप में करते आ रहे हैं। मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के मेडिकल सेंटर के अध्ययन के अनुसार, ब्राहमी मस्तिष्क में ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करने के साथ मस्तिष्क कोशिकाओं की रक्षा करती है । पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन के द्वारा किए एक अन्य अध्ययन के अनुसार, ब्राहमी के बीज का पाउडर पार्किंसंस के लिए बहुत बढिया इलाज है । यह रोग को दूर करने और मस्तिष्क की नुकसान से रक्षा करने का दावा करती है ।
पथ्य : स्वच्छ एवं जल्दी पचने वाले शाकाहारी भोजन का सेवन करना चाहिए। जैसे- मूंग की दाल, गेहूं और जौ की पतली रोटी, पुराने चावल, लौकी, तोरई, कच्चा पपीता, सहजन की फली, परवल आदि की सब्जी का प्रयोग करना चाहिए। सेब, पका हुआ पपीता, गाय का दूध व देशी घी कम्पवात रोगी को अवश्य दें। स्वच्छ वातावरण में निवास व रोगी के प्रति सहयोगात्मक रवैया एवं खुशनुमा माहौल रोग को तेजी बढ़ने से रोकता है।
अपथ्य :- खटाई, मिर्च-मसालेदार पदार्थ, फ्रिज में रखी ठंडी चीजें, शीतल पेय पदार्थ, मांस, दही, चना, राजमा, मटर, उड़द, आलू, अरबी, बैंगन, नशीले पदार्थों का सेवन, रात्रि जागरण, अति परिश्रम आदि से कम्पवात रोगी को बचना चाहिए। कब्ज या मलावरोध बिल्कुल नहीं होने दें।
इस प्रकार पार्किंसन का आरम्भ आहिस्ता-आहिस्ता होता है। पता भी नहीं पड़ता कि कब लक्षण शुरू हुए। अनेक सप्ताह व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है। तब अहसास होता है कि कुछ गड़बड़ है। लेकिन घबराइए नहीं क्योंकि आयुर्वेदिक की मदद से पार्किंसंस के प्राकृतिक उपचार में मदद मिलती है। स्वच्छ वातावरण में निवास व रोगी के प्रति सहयोगात्मक रवैया एवं खुशनुमा माहौल रोग को तेजी से बढ़ने से रोकता है ।
आयुर्वेद चिकित्सोपक्रम से पार्किन्सन के रूग्णों को आशातीत, चमत्कारिक लाभ मिल रहा है व संशोधन जारी है । इन रूग्णों को चिकित्सा के साथ – साथ मानसिक रूप से सबल बनाकर स्वस्थ व सम्मानित जीवन जीने के लिये उनका आत्मविश्वास बढ़ाया जाता है।
डॉ. जी.एम. ममतानी
एम.डी. (आयुर्वेद पंचकर्म विशेषज्ञ)
‘जीकुमार आरोग्यधाम’,
238, नारा रोड, गुरु हरिक्रिशनदेव मार्ग,
जरीपटका, नागपुर-14 फोन : (0712) 2646700, 2646600
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