Antioxidants- old age tonic

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एंटी ऑक्सीडेंट्स वृद्धावस्था में उपयोगी
एंटी – ऑक्सिडेंट्स खाद्य पदार्थ में मौजूद वे पोषक तत्व हैं, जो शरीर में ऑक्सीकरण संबंधी नुकसान की गति को कमजोर करने या उसे पूरी बेअसर करने में सक्षम होते है। ऑक्सीजन का इस्तेमाल करते समय शरीर की कोशिकाओं से ऐसे बाय-प्रोडक्ट उत्पन्न होते हैं, जो शरीर के लिए नुकसानदेह होने के साथ-साथ कई बीमारियों का जन्मस्थान बन सकते हैं। एंटी-ऑक्सिडेंट्स को हमसफाई करनेवाले समर्पित कर्मचारी कह सकते हैं।
कैंसर, हृदय रोग, पार्किसन, जोड़ों का दर्द, मोतियाबिंद, मांसपेशियों की थकान और याददाश्त कमजोर होने जैसी बीमारियों से बचे रहने और पूरी तरह फिट रहने के लिए ऐसे खाद्य पदार्थों का जमकर सेवन करना चाहिए, जिनमें एंटी-आक्सिडेंट्स की भरमार हो। एंटी-ऑक्सिडेंट्स इनके विरूद्ध सुरक्षा कवच प्रदान करते हैं। खाने-पीने की चीजों में मिलावट और कीटनाशक दवाओं के असर को कम करने के अलावा एंटी- ऑक्सडेंट्स सेहत पर तनाव, दबाव और प्रदूषण के जानलेवा असर की काट भी साबित होते हैं।
वृद्धावस्था व एन्टीऑक्सीडन्ट
वृद्धावस्था एक सामान्य प्रक्रिया है। यह बड़ी ही धीमी और दबे पांव जीवन में आती है। यह प्रक्रिया सारे शरीरावयवों पर प्रभाव डालती है। इसके कारण क्रमशः सभी क्रियाओं में कमी आती है। बहुत से वृद्ध व्यक्तियों को लगभग निरर्थक तौर पर ही अपना जीवन पूर्ण करना पड़ता है क्योंकि उम्र के इस पड़ाव पर वे मानसिक, शारीरिक और सामाजिक स्थिति के साथ-साथ व्यावहारिक कठिनाइयों का भी अनुभव सतत् रूप से करते हैं। इन सबसे बचने के लिए ही वृद्धावस्था से बचने के सारे प्रयास किए जाते रहे हैं। कोशिकाओं की कार्यहानि, संवेदी और परा संवेदी क्रियाओं, वाणी और अन्य इंद्रियों की क्षमता में कमी वृद्धावस्था की सामान्य पहचान है। दांतों का गिरना और बालों का पकना कभी बुुढ़ापे की आहट का प्रतीत हुआ करता था। उम्र के बढ़ने के साथ-साथ मानसिक दक्षता का ह्रास, शारीरिक शक्ति में कमी के साथ थकावट होना और उत्साह में कमी भी बुढ़ापे की ही पहचान है। शरीर की सतत् चलने वाली चयापचय प्रक्रिया में नयी कोशिकाओं की सतत् उत्पत्ति के बावजूद शरीर के तमाम अवयवों की कोशिकाओं को पुनर्निर्माण नहीं होता और प्राणी बूढ़ा हो ही जाता है। यह प्रक्रिया विशेष तौर पर मस्तिष्क और नेत्र की कोशिकाओं में महसूस की जा सकती है।
उच्च रक्तचाप, संधिगत वात, संधिशोथ व क्षय, बाधिर्य, अधिमंथ, मोतियाबिंद, प्रमेह, जीर्णक्षय, हृदयरोग, तंत्रिकीय क्षय, सारे शरीर की क्षमता में कमी और मन एवं शरीर के समन्वय के अभाव के कारण पार्किंसन्स रोग, अल्जाइमर्स रोग भी सामान्य तौर पर वृद्धावस्था में देखे जाते हैं। आज आधुनिक विज्ञान इन सबसे बेहद परेशानी अनुभव कर रहा है। उसने भी आयुर्वेद की तर्ज पर बुढ़ापे को सुरक्षित कैसे किया जाएं, इस पर ध्यान देना शुरू किया है।
आयुर्वेद सारे शरीर को एक इकाई मानता आया है। बुढ़ापे को आयुर्वेद के वर्गीकरण के साथ-साथ उसमें जरारोग चिकित्सा का विशेष अध्याय रख गया। जरारोग चिकित्सा विषयक विशदता और इसकी अद्वितीयता विश्व में किसी पद्धति में नहीं मिलती, जैसी भारतीय आयुर्वेद में है। आचार्य च्यवन द्वारा बुढ़ापे को रोक लेने के लिए अविष्कृत समस्त औषधियों जनमानस में न सिर्फ प्रचलित है, अपितु विश्वसनीय भी हैं। अष्टांग आयुर्वेद के प्रमुख विषय के रूप में आज भी जरारोग चिकित्सा प्रचलन में है। यह न सिर्फ उन्नत और विकसित है, अपितु वैज्ञानिक दृष्टि से पूर्णपरीक्षित भी है। आधुनिक विज्ञान आज इसकी एक-एक बात को न सिर्फ हू-बू-हू अपना रहा है बल्कि आश्चर्यचकित हो रहा है। उसका आयुर्वेद की ओर झुकाव आयुर्वेद की वैज्ञानिक दृष्टि का प्रतीक है।
आयुर्वेद ने बुढ़ापे को जीने और स्वस्थ तरीके से जीने के उपाय बताने के साथ-साथ वृद्धावस्था को बीमारी से रहित करने के भी आसान तरीके बताए हैं। रोगोत्पत्ति का कारण, उससे बचने के उपाय, औषधियों का चयन आदि छोटी-छोटी बातों को काफी सहज, सरल और रोचक तरीके से आयुर्वेद ने समझाया है।

एंटी – ऑक्सिडेंट्स: सेहत के लिए
बाजार में उपलब्ध एंटी-ऑक्सिडेंट्स की टैब्लेट्स का असर उतना नहीं होता, जितना खाने-पीने की चीजों के सेवन से होता है। बेहतर यही है कि आप एंटी-ऑक्सिडेंट्स से भरपूर फल-सब्जियों और अन्य पदार्थों का संतुलित आहार लेने की आदत ही डाल लें। विटामिन, मिनरल्स, कैरोटीनॉयड्स और पॉलीफिनॉल्स जैसे पोषक तत्वों में प्रचुर मात्रा में एंटी-आक्सिडेंट्स पाए जाते हैं।

विटामिन ई
ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं, हृदय रोगांे के खिलाफ सुरक्षा चक्र बनाकर रखते हैं, कोशिकाओं के क्षरण को रोकर त्वचा के कैंसर से बचाने में मददगार होते हैं, शरीर में झुर्रियां नहीं पड़ने देते। एक दिन में एक व्यक्ति को 0.8 मिलीग्राम विटामिन-ई की खुराक जरूर लेनी चाहिए। इसके प्रमुख स्त्रोत हैं: सोयाबीन ऑयल, बादाम, मूंगफली, आम, गोभी, सूखे मेवे आदि।

विटामिन – सी
इसे जुकाम का दुश्मन कहा जाता है। इससे हमारे डीएनए की रक्षा होती है, विटामिन-ई की खुराक का असर बढ़ता है और खून की धमनियां मजबूत बनती हैं। हर रोज 40 मिलीग्राम विटामिन-सी की खुराक शरीर को मिलनी चाहिए। इसके प्रमुख स्त्रोत हैं: खट्टे फल जैसे कि संतरा, नींबू, हरी पत्ती वाली सब्जियां, टमाटर, स्ट्रॅबेरी और फूलगोभी।

जिंक
जिंक बायो कैमिकल्स रिएक्शन से बचाता है, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और श्वेत रूधिर कशिकाओं की संख्या बढ़ाकर एंटी बाडीज के उत्पादन को सुगम बनाता है। समुद्री भोजन और दूध मेवे इसके प्रमुख स्त्रोत है।

कैरोटीनॉयड्स
कैरोटीनयुक्त लाल पौष्टिक तत्व हमारी आंखों और त्वचा को तेज धूप से सुरक्षा प्रदान करते हैं और कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने वाले एजेंटों से बचाकर रखते हैं गाजर, टमाटर, आलू, सीताफल, कद्दू, लौकी, आम, पालक आदि।

सेलेनियम
यह एक मिनरल है, जो शरीर में दूसरे एंटी-ऑक्सिडेंट्स उत्पन्न करने में मददगार कुदरती परिस्थितियों का निर्माण करता है। सेलेनियम युक्त खाद्य पदार्थ का प्रमुख स्त्रोत लहसुन हैं।

लाइकोपीन
लाइकोपीन टमाटर, अंगूर और तरबूज जैसे फलों और सब्जियों को लाल रंग देने वाला एंटी-ऑक्सिडेंट हैं जो हमें प्रोस्टेट कैंसर और दिल की बीमारियों से बचाता है। इसके प्रमुख स्त्रोत टमाटर, पपीता, अमरूद, अंगूर, संतरा और तरबूज आदि।

पोलीफिनाफल्स
याददाशत से जुड़ी डिमेंशिया व अल्जाइमर जैसी बीमारियों से बचाव में कारगर पोलीफिनोल्स, कोक से भरपूर चॉकलेट, चाय, कॉफी और रेड वाइन में पाए जाते हैं।
एंटी-ऑक्सिडेंटस की आवश्यक खुराक पाने के लिए आपको इन चीजों का सेवन नियमित काना चाहिए।

चाय
ग्रीन या ब्लैक चाय में वो ताकत है कि दिल की धमनियों की दीवार को क्षतिग्रस्त नहीं होने नहीं देती क्योंकि चाय से खून चिपचिपा नहीं हो पाता और धमनियों के अवरूद्ध होने का खतरा नहीं रहता।

गोभी
दो फूल ताजा गोभी के हल्की आंच पर पकाकर खाना अच्छा रहता है। इसमें मौजूद लुटीन तत्व आपकी उम्र के बढ़ने से होनेवाली समस्याओं को टालती।

सेब
सेब एंटी-आक्सिडेंट्स, खासकर विटामिन-सी का खजाना है। हर रोज एक सेब जरूर खाएं। इससे विटामिन-सी की दैनिक खुराक का बड़ा हिस्सा पूरा हो जाएगा।

इस प्रकार एन्टीऑक्सीडेन्ट उपरोग पोषक तत्वों से युक्त खाद्य पदार्थें का सेवन कर आप स्वस्थ रह सकते है व वृद्धावस्था को भी सुखद व स्वस्थ रूप से व्यतीत कर सकते हैं।

डॉ.अंजू ममतानी
जीकुमार आरोग्यधाम
आयुर्वेदिक पंचकर्म हॉस्पिटल अन्ड रिसर्च इन्स्टिट्यूट
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