Brain Haemorrhage – Ayurvedic Treatment

आधुनिक प्रतियोगिता के युग ने मनुष्य को मशीनवत बना दिया है, निरंतर काम ही काम, बस आगे बढ़ने की होड़ ! इस अनवरत भाग दौड़ से मनुष्य सदैव तनावग्रस्त रहता है। दिमाग में हमेशा तनाव रहना अर्थात उसका कुछ न कुछ परिणाम शरीर पर होता है, यह तनाव की स्थिति अनेक कष्टों को उत्पन्न कर सकती है। इसी तनाव से ब्लड प्रेशर बढ़कर दिमाग की नस फटती है, जिसका अंजाम लकवा हो सकता है।

लकवा शब्द सुनकर मन में सिहरन सी उठती है। वैसे तो लकवा वृध्दावस्था में अनेक कारणवश पाया जाता है पर युवा या मध्य वर्ग भी इसका शिकार हो सकता है। आयुर्वेद ग्रंथों में इस बात का उल्लेख है कि ब्रेन हेमरेज (रक्तस्राव) से लकवा हो सकता है जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ट है।

“तदति प्रवृत्तम …………
आक्षेपकं पक्षाघातमेंकांग विकारम्..………… जनयति”

अर्थात रक्तस्राव से आक्षेपक, पक्षाघात, एकांग विकार इत्यादि विकारों का प्रादुर्भाव होता है।
अधिक उम्र के व्यक्ति में ब्रेन हेमरेज (दिमाग की नस फटना का कारण उच्च रक्तचाप (हाय ब्लडप्रेशर) व मधुमेह (डायबिटीज) है। इसके साथ ही मोटापा, शराब, मानसिक तनाव, धूम्रपान इत्यादि गलत आदतें ब्रेन हेमरेज की संभावना को बढ़ाती है।
इसके अलावा धमनी काठिन्य (ऐथरोस स्केलोरोसिस) से पीडित किसी धमनी का फट जाना, संक्रमण के फलस्वरूप आघात, रक्तवाहिनी की जन्मजात विकृति, ब्रेन ट्यूमर, रक्तगत विकार जैसे परप्युरा, ल्यूकेमिआ (Leukemia) इत्यादि रक्तस्तंभक चिकित्सा के उपद्रव (Complication) व धमनी की सूजन से भी रक्तस्राव हो सकता है। युवाओं में लकवे का कारण मस्तिष्कगत रक्तवाहिनियों की विकृति है। बढ़ती हुई जनसंख्या में दुर्घटना (Accident) होने की वजह से मस्तिष्कगत रक्तस्राव (ब्रेन हेमरेज) होकर भी लकवा हो सकता है। प्लेटलेट काउंट (Platelet Count) कम होने से भी ब्रेन हेमरेज की संभावना रहती है।

हाय ब्लड प्रेशर के कारण ब्रेन हेमरेज
हायब्लड प्रेशर आधुनिक प्रतिस्पर्धात्मक युग की देन है। आज का युग फास्ट लाईफ वाला हो गया है। लोगों के पास अपने शरीर पर ध्यान देने का वक्त नहीं है। फलस्वरूप अनियमित खानपान रहन-सहन आम बातें हो गई हैं। साथ ही सतत चिंता, तनाव अतिमहत्त्वाकांक्षा, अनिद्रा, क्रोध इत्यादि स्थितियां ब्लडप्रेशर को बढ़ाती हैं।
जब ब्लड प्रेशर नार्मल से अत्यधिक बढ़ जाता है तब कभी-कभी मस्तिष्क से अचानक रक्तस्राव होता है। 80 प्रतिशत रुग्णों में इस रक्तस्राव के कारण हिमेटोमेटा (रक्त का गोला) मस्तिष्क के उपरी स्तर पर मिलता है व 20 प्रतिशत रुग्णो मे मस्तिष्क के पिछले हिस्से व भीतरी सतह पर यह हिमेटोमेटा मिलता है। गति के हिसाब से यह हिमेटोमेटा इस क्रम में पाये जाते है ।

1) प्यूटामेन व इन्टरनल कैप्सूल – 60%
2) थैलेमिक व सबथैलेमिक क्षेत्र – 10%
3) सेरिबेलम 10%
4) पॉन्स – 10%
5) सेरीब्रल श्वेत भाग 10 %

लक्षण
रोगी का ब्लड प्रेशर – 160 / 100 mmHg या इससे अधिक, आखें सूजी रहती है व हायपरटेन्सिव रेटीनोपॅथी के लक्षण मिलते है। इसमें तीव्र सिरदर्द व न्यूरालॉजिकल (Neurological) लक्षण पाए जाते है। मस्तिष्क के भिन्न- भिन्न भागों में आघात होकर रक्तस्राव होने पर निम्न लक्षण मिलते है।
प्यूटामिनल व कैप्सूलर हिमोरेज में वाणी लुप्त होना, बेहोशी, आंख की पुतली विस्फारित, मस्तिष्क के जिस ओर आघात हुआ है, उसके विपरीत बाजू का पक्षाघात, मस्तिष्क में सूजन के साथ हर्निया इत्यादि लक्षण मिलते है। इसमें रोगी के मृत्यु होने की आशंका भी रहती है। मस्तिष्क के थैलेमस भाग से रक्तस्राव होने पर पक्षाघात, नेत्र में अप्राकृत लक्षण के अलावा इत्यादि लक्षण मिलते हैं। मस्तिष्क के पोंटीन भाग में रक्तस्राव से बेहोशी, अधरांगघात (पॅराप्लेजिया), दोनों हाथ-पैर ढीले पड़ना (क्वाड्रीप्लेजिया) व इस भाग में हिमेटोमा होने पर मृत्यु की आशंका रहती है। सेरीब्रल हेमरेज में सिर के पीछे भाग में तीव्र दर्द, चक्कर, वेगयुक्त उल्टियाँ इत्यादि लक्षण मिलते है, इसमें पक्षाघात नहीं मिलता।

ब्लडप्रेशर के कारण ब्रेन हेमरेज का निदान
सिरदर्द, उल्टी, चेतावनी लक्षणों का अनुपस्थित रहना, न्यूरालॉजिकल लक्षण धीरे-धीरे बढ़ना, सुस्ती से बेहोशी में जाना, सेरीब्रोस्पाइनल फ्लुइड में ताजा रक्त मिलना इन लक्षणों के आधार पर ब्लड प्रेशर के कारण ब्रेन हेमरेज हुआ है, ऐसा निदान होता है ।
हाय ब्लड प्रेशर के अलावा युवाओं व मध्य वर्ग मे एन्यूरिजम व ए. वी. एम. (Arterio Venous Malfarmation) की स्थिति होने पर भी ब्रेन हेमरेज होकर लकवा होता है इसमें रोगी का ब्लडप्रेशर नार्मल रहता है । इसका संबंध तनाव इत्यादि से नहीं है। एन्यूरिजम (Aneurism) अर्थात दिमाग के रक्तवाहक नली के भीतर गुब्बारा होना, किसी व्याधिवश यह गुब्बारा फटने पर ब्रेन हेमरेज होकर लकवा होता है। ए.वी.एम. (आर्टिरियोवेनस मॉलफॉमेशन) अर्थात मस्तिष्क में खून की नसों का असामान्य गुच्छा। यह गुच्छा जन्मजात ही होता है, उम्र के बढ़ने के साथ इसका आकार भी बढ़ता जाता है। इसके आकार बढ़ने से मस्तिष्क का अधिकाधिक रक्त यहाँ पहुंचता है जिससे मस्तिष्क के अन्य भागों को रक्तापूर्ति नहीं या कम होती है। इस गुच्छे में अधिक रक्तस्राव जमा होने से ब्रेन हेमरेज होता है।
एन्युरिज्म या ए. वी. एम. के कारण होने वाले ब्रेन हेमरेज युवा और मध्यम उम्र के लोगों में ज्यादा पाया जाता है जबकि ब्लडप्रेशर व डायबिटिज के कारण होने वाला हेमरेज वृद्धावस्था में अधिक होता है। एन्युरिज्म और ए. वी. एम. अधिकतर 20 से 40 वर्ष के लोगों को ही होती है। यह पुरुष व महिलाओं में समान रूप से पाई जाती है। जबकि हायब्लड प्रेशर के कारण होने वाला हेमरेज अधिकतर पुरूषों में होता है।
बच्चों में एन्युरिज्म और ए. वी. एम. व्याधि जन्मदाता होती है। यह शरीर के अंदर बनावटी तौर पर खून की नसों की कमजोरी बढ़ती जाती है। मध्य वय में आते ही दिमाग की नस फट जाती है। नस फटने से रोगी को अचानक सिर दर्द होता है जिससे वह बेहोश हो जाता है। इससे लकवा भी होता है। इस बीमारी का किसी प्रकार के वातावरण, खानपान, रहन-सहन, जलवायु से कोई संबंध नहीं है। उक्त दोनों स्थितियों के अलावा बढ़ती हुई जनसंख्या में दुर्घटना (Accedent ) से मस्तिष्क पर आघात होने पर ब्रेन हेमरेज होकर पक्षाघात हो सकता है।
पंचकर्म के विशिष्ट चिकित्सोपक्रम से अनेक पक्षाघात के रुग्ण सामान्य जीवन व्यतीत कर रहें हैं, इतना ही नहीं बल्कि अनेक कोमा के रुग्ण भी लाभान्वित हुए हैं। इनमें से हमारी एक रुग्णा जो कि लगभग 80 प्रतिशत ब्रेनहेमरेज से ग्रस्त होकर कोमा में चली गई थी, आयुर्वेद व पंचकर्म के विशिष्ट चिकित्सोपक्रम से उसने 21 दिन में चेतनायुक्त होकर चमत्कारिक नया जीवन पाया, जो कि आयुर्वेदचिकित्सा शास्त्र की बड़ी उपलब्धि है।

डॉ. जी.एम. ममतानी
एम.डी. (आयुर्वेद पंचकर्म विशेषज्ञ)

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