प्राचीन काल से मिर्गी का अस्तित्व माना गया है। किन्तु उस काल में मिर्गी के कारणों का ज्ञान नहीं था। इसलिए उसे भूतबाधा या ईश्वर की अकृपा माना जाता था। पर आज वह बात नहीं है। कई अनुसंधान हुए हैं और विज्ञान के नित नए आविष्कारों ने आज मनुष्य की अनेक गलतफहमियों को दूर किया है। आज मिर्गी का कारण भूतप्रेत नहीं, अपितु अनेक मस्तिष्कजन्य व अन्य विकार हैं। इसके उपरांत आज भी अनेक लोगों के मन में यह भ्रांति है कि मिर्गी या फिट भूतप्रेत का प्रकोप है। इस लेख के द्वारा हम मिर्गी के बारे में विस्तृत जानकारी देकर पाठकों की गलतफहमियों का निराकरण करने का हर संभव प्रयास करेंगे।
मिर्गी का इतिहास यीशु मसीह के जन्म के पूर्व मिलता है। इस व्याधि का ज्ञान रोमन व ग्रीककाल में भी था। इसका वर्णन बाइबल में भी आया है। इस व्याधि से इतिहास के अनेक महानुभाव ग्रस्त रहे। जैसे- एलेक्जेंडर, ज्युलियस सीजर, नेपोलियन आदि। इसके अलावा कुछ नामी लेखक, पेंटर व खिलाड़ी भी इस व्याधि का शिकार हुए, जिन्होंने समुचित उपचार के बाद स्वस्थ होकर अपने अपने क्षेत्र में कई कीर्तिमान रचे। इससे सिद्ध होता है कि मिर्गी के मरीज प्रतिष्ठित नागरिक के रूप में जीवन जी सकते हैं।
मिर्गी वह अवस्था है, जिसमें लघु मस्तिष्क के कार्यों में विकार आ जाता है। साथ में शरीर की गतियां, संवेदना और संज्ञा भी विकारग्रस्त होते हैं। इस रोग से हर आयु, लिंग, वर्ग तथा वैवाहिक स्थिति के लोग आक्रांत हो सकते हैं। हमारे देश में मिर्गी का प्रमाण इतना अधिक है कि अफ्रीका के पश्चात भारत में ही इसका प्रमाण अधिक पाया जाता है। हर 1000 में से 5 व्यक्ति मिर्गी से ग्रस्त हैं सामान्य भाषा में इसे फिट या झटके आना कहते हैं। मिर्गी स्वतंत्र रूप से व्याधि के रूप में भी हो सकती है, पर मस्तिष्कजन्य विकारों में यह व्याधि न होकर लक्षण कहलाती है।
इस रोग की उत्पत्ति के निम्न कारण प्रमुख हैं
- दुर्घटना : वर्तमान आपाधापी के युग में दुर्घटनाएं नित्य प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। यह दुर्घटनाएं गर्भावस्था में भ्रूण से लेकर जन्म के पश्चात तक होती रहती हैं। दुर्घटना की वजह से मस्तिष्क में आघात होकर मिर्गी के झटके आ सकते हैं।
- गर्भपात के असफल होने पर :- कई बार स्त्रियां गर्भ को गिराने के लिए औषधि सेवन करती हैं। किन्तु गर्भपात न होकर, उसके दुष्परिणामस्वरूप आगे चलकर बालक को फिट के झटके आ सकते हैं।
- आनुवंशिक : जीन्स व क्रोमोजोम्स में विकृति के फलस्वरूप होने वाली व्याधियों में भी मिर्गी के लक्षण मिल सकते हैं।
- मस्तिष्कगत संक्रमण : वायरल व बैक्टेरियल संक्रमण के साथ, टी.बी. का संक्रमण भी इस रोग में एक कारणीभूत घटक है। छोटे बच्चों में तेज बुखार चढने के कारण बुखार मस्तिष्कगत होकर मिर्गी के झटके आ सकते हैं।
- प्रसूति के समय फोरसेप्स का प्रयोग करने से मस्तिष्क में आघात होकर मिर्गी के लक्षण मिल सकते हैं।
- जन्मजात शारीरिक विकृतियाँ भी मिर्गी का प्रमुख कारण हो सकती हैं। इन विकृतियों के कारण रोगी विक्षिप्त हो जाता है। यह दोष जन्म के दौरान, जन्म के बाद तथा गर्भावस्था में भी विकसित हो सकते हैं।
- मादक द्रव्य व ड्रग्स का सेवन यह भी देखा गया है कि शराब तथा ड्रग्स के व्यसनियों को, विशेष रूप से विदड्राअल (नशा टूटने के बाद, मादक पदार्थ न मिलने के फलस्वरूप उत्पन्न स्थिति) के दौरान मिर्गी के समान दौरे आते हैं। इस प्रकार के दौरों का अचानक आना घातक हो सकता है। कुछ मादक व अमादक औषधियां भी मिर्गी का कारक बन सकती हैं। इनमें एमिनोफिलाइन, इन्सुलिन, आइसोनिआजिड केटमाइन, पेनिसिलिन, कार्टिकास्टेराइड्स आदि प्रमुख हैं।
- मस्तिष्कगत विकार :- मस्तिष्कगत अर्बुद, कैंसर, मस्तिष्क की नस का फटना, नसों में जन्मजात विकृति, रक्तवाहिनियों में थक्का इत्यादि के कारण भी मिर्गी के दौरे आते हैं। ऐसे रूग्णों के लिए जब औषधीय चिकित्सा अप्रभावी सिद्ध हो जाती है, तो उनके लिए डाक्टर शल्य चिकित्सा की सलाह देते हैं। किंतु सीमित रूग्णों की ही शल्यक्रिया की जाती है। इनमें से लगभग 50 प्रतिशत रुग्ण सामान्य (दौरा-मुक्त) होते पाए गए हैं। इस चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य मिर्गी रोग की उत्पत्ति के मूल कारण को विनष्ट करना है। इसके अलावा मस्तिष्कगत शल्यक्रिया के पश्चात भी कुछ रोगियों को मिर्गी के अटैक आ सकते हैं।
- कृमि (Worms) छोटे बच्चों में कृमि के कारण भी मिर्गी के झटके पाए जा सकते हैं।
- छोटी माता तथा कालरा के बाद दिए जाने वाले टीके इस रोग के जनक बन सकते हैं, यदि रोगी को तेज बुखार आ जाए।
- मिर्गी रोग की उत्पत्ति कतिपय क्षुद्र कारणों से भी हो सकती है। जैसे-हल्का दर्द, निरंतर वीडियो गेम्स खेलना, बिजली की चकाचौंध में अधिक समय तक रहना आदि। घूमता हुआ पंखा, अनियमित खान-पान व संभोग, वाशिंग मशीन का सान्निध्य, शतरंज आदि बौद्धिक खेलों में ज्यादा वक्त बिताना भी इसके कारण हो सकते हैं मिर्गी के जिन मरीजों में कोई कारण ज्ञात नहीं होता, ऐसे मरीजों को अज्ञातवर्ग में रखा जाता है।
सूचक लक्षण
मिर्गी के झटके आने से पहले एक विशेष प्रकार की अनुभूति मरीजों को होती है, जिसे सूचक लक्षण (Aura) कहते हैं। ये लक्षण मरीज खुद महसूस करता है, पर उस समय वह बेहोश नहीं रहता। ये लक्षण हैं-
शरीर के किसी भी भाग का सुन्न हो जाना, कुछ दिनों से सिरदर्द रहना, कभी-कभी हाथ-पैर की हलचल ठीक से न होना, कलेजे के पास दर्द, कभी-कभी उल्टी, चक्कर, अनिष्ट गंध का आना, आँखों के सामने अंधेरा छा जाना, अनावश्यक आवाजें कान में आना, पेट में मारीपन आदि। मानसिक तनाव के कारण रोगी अवसाद में रहता है। यह आवश्यक नहीं कि हर रोगी में सभी लक्षण मिलें। इस प्रकार मिर्गी के पूर्व उक्त लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं। यह आवश्यक नहीं कि हर रोगी को सूचक लक्षण महसूस हों। बिना इन लक्षणों के भी मिर्गी के झटके आ सकते हैं।
मिर्गी के मुख्य लक्षण
मिर्गी में हाथ पैर की अनावश्यक हलचल, मुंह से झाग निकलना, आँखें एक ओर पलट जाना, गर्दन में झटके, कभी-कभी जीभ बाहर निकलना, जीभ का दातों के बीच में आने के कारण जीभ में घाव हो जाना, संपूर्ण शरीर लकड़ी के समान कड़क हो जाना, कभी-कभी रोगी का बेहोश हो जाना, अनर्गल वार्तालाप आदि। बहुधा झटके के कारण मरीज फर्श पर गिरकर बेहोशी की अवस्था में चला जाता है। सांस लेने की गति अतितीव्र हो जाती है। आँखों की पलकों का बार-बार झपकना, रोशनी सहन न होना, उंगलियों की मुट्ठी कसना।
मिर्गी के झटके कभी अल्पकाल तक रहते हैं, तो कभी यह वेग काफी समय तक रहता है। मिर्गी का रोगी बिना इच्छा के पाखाना-पेशाब कर देता है। जब मिर्गी दूर हो जाती है, तब रोगी कमजोर होकर उठता है और सोना चाहता है। इस नींद से रोगी जल्दी नहीं उठता है। अटैक के बाद सिरदर्द होना आम बात है। महिलाओं में बहुधा मासिक धर्म के समय यह दौरे अत्यधिक होते हैं।
यह रोग मस्तिष्कजन्य व्रण का परिणाम है। फिट (दौरा) आने पर मस्तिष्क व शरीर के अन्य अवयवों को रक्तापूर्ति नहीं होती। इस वजह से उन अवयवों को नुकसान होने की आशंका होती है। फिट व निसर्ग का घनिष्ठ संबंध है। ऐसा पाया गया है कि बहुत से लोगों को पूर्णिमा या अमावस्या को ही फिट के झटके आते हैं।
विवाह के पश्चात मिर्गीपीड़िता को यदि गर्भधारणा हुई, तो गर्भपात करना ही बेहतर होता है। वरना भ्रूण को नुकसान होने का खतरा रहता है।
इस रोग के दो प्रकार होते हैं-
1) एक तरफा मिर्गी या फोकल फिट्स
2) सम्पूर्ण शरीर की मिर्गी या जनरलाइज्ड फिट्स
एक तरफा मिर्गी या फोकल फिट्स
इस तरह की मिर्गी में शरीर के केवल एक ही हिस्से में जकड़न पैदा होती है तथा कुछ ही मिनटों में दौरा दूर होकर व्यक्ति सामान्य हो जाता है। इस तरह का दौरा मस्तिष्क के केवल एक हिस्से में बहुत अधिक विद्युत तरंग पैदा होने के कारण पड़ता है।
सम्पूर्ण शरीर की मिर्गी या जनरलाइज्ड फिट्स
अचानक मस्तिष्क में पैदा होने वाली विद्युत तरंगों से जब सम्पूर्ण शरीर प्रभावित होता है, तो पूरे शरीर में जकड़न पैदा होती है और इसे सम्पूर्ण शरीर की मिर्गी या जनरलाइज्ड फिट्स कहा जाता है। रोगी के जबड़े एक-दूसरे पर सख्ती से जम जाते हैं, शरीर अकड़ जाता है, हलके झटके लगते हैं। कभी-कभी जीभ के दोनों जबड़ा के बीच आ जाने से जीभ कट जाती है।
र्वेदानुसार मिर्गी को अपस्मार कहते हैं। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है चेतना या स्मृति का नाश। महर्षि चरक ने इसके दोषों के आधार पर चार प्रकार बताए हैं- वातज, पित्तज, कफज, सन्निपातज ।
रोग निदान
मिर्गी के मरीज के बारे में विस्तृत जानकारी प्रत्यक्षदर्शी (झटके के समय उपस्थित व्यक्ति) ही दे सकता है। इसके अलावा निम्न परीक्षण चिकित्सक के परामर्शानुसार कर मिर्गी का निदान करना चाहिए।
1) मूत्र व रक्त की जांच कारण कि इस रोग में मुख्यतः सिरम प्रोलेक्टिन की मात्रा बढ़ी हुई पाई जाती है।
2) एम.आर.आई.
3) सी.टी. स्कैन
4) पी.ई.टी.
5) ई.ई.जी.
6) वीडियो ई.ई.जी.
उपचार शुरू करने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना जरूरी होता है कि रोग मिर्गी का है या नहीं। रोगी को लगातार लंबे समय तक दवा का सेवन करना पड़ता है। इससे करीब 75 प्रतिशत रोगी रोगमुक्त हो जाते हैं
घरेलू उपाय
1) पुराना देशी घी या पंचगव्य घी 1 चम्मच सुबह-शाम गोदुग्ध के साथ लें।
2) गाय के घी की 1-1 बूंद नित्य नाक में डालें।
3) वेगावस्था में प्याज के रस की 1-1 बूंद नाक में डालें।
4) रात में 2 बादाम भिगोकर सुबह छीलकर नित्य खाएं।
5) ब्राह्मी का स्वरस व वचाचूर्ण आधा चम्मच नित्य सुबह खाली पेट लें।
6) मिर्गीपीड़ित के सिर, पैर व तलवों की तिल तैल से मालिश करने पर शीघ्र लाभ होता है।
7) जटामांसी 1 भाग, वेखंड़ का चूर्ण 1/4 भाग, कोष्ठकुलिंजन 1/8 माग मिलाकर दिन में 3 बार आधा चम्मच शहद के साथ लें।
8) ब्राह्मी, जटामांसी, मंडुकपर्णी, शतावरी, वेखंड़ इत्यादि औषधियों से सिद्ध किया हुआ धी प्रतिदिन 2 चम्मच दिन में दो बार लें।
9) खुरासानी अजवायन 250 मि. ग्राम व सर्पगंधा 250 मि. ग्राम दिन में 3 बार दूध-शक्कर के साथ लें।
10) सोंठ, कालीमिर्च और पीपर को समान मात्रा में लेकर सेहुड के दूध में 20 दिन तक भिगोकर रखें। फिर निकालकर पानी के साथ सिलबट्टे पर पीस लें। इसकी नस्य लेने से मिर्गी चली जाती है।
11) निर्गुण्डी के पत्ते के रस की नस्य लेने से वेगवान मिर्गी भी दूर हो जाती है।
12) आक की जड़ की छाल बकरी के दूध में पीसकर एक कपड़े में रख लें और मिर्गी के झटके आने पर 3-4 बूंद नाक में टपकाएं। इससे मिर्गी नष्ट हो जाएगी। यह नुस्खा परीक्षित है।
13) अरीठे को पीस-छानकर रख लें। इसकी नस्य प्रतिदिन लेने से मिर्गी नष्ट हो जाती है।
14) मिर्गी के दौरे के समय राई पीसकर सुंघाने से मिर्गी से ग्रस्त रुग्ण को होश आ जाता है।
15) सफेद प्याज का रस नाक में डालने से मिर्गी में लाभ होता है।
16) 1 तोला लहसुन और 3 तोला काला तिल मिलाकर 21 दिन तक खाने से मिर्गी दूर होती है।
17) लहसुन को तेल के साथ, शतावरी को दूध के साथ और ब्राह्मी के रस को शहद के साथ सेवन करने से सब प्रकार की मिर्गी दूर होती है।
चिकित्सा
आधुनिक चिकित्साशास्त्र में मिर्गी के उपचार के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली औषधियां झटकों को कम अवश्य करती हैं, पर उनके सेवन से सिरदर्द, सुस्ती, भ्रम, स्मृतिभ्रंश, मसूढ़ों की तकलीफ, पाण्डु (खून की कमी), भूख न लगना, चक्कर, त्वचागत एलर्जी, दृष्टिदोष इत्यादि दुष्परिणाम किसी किसी मरीज में पाए जाते हैं। आयुर्वेद में वर्णित अपस्मार में प्रयुक्त मेध्य रसायन औषधियों के दुष्परिणाम नहीं होते हैं। इन औषधियों के सेवन से, आधुनिक औषधियों की आवश्यकता क्रमशः कम होती पाई गई है। अपस्मार के रुग्णों को आयुर्वेद में वर्णित संतुलित आहार-विहार आदि उपायों का नियमपूर्वक पालन करना चाहिए
औषधियाँ
1) सामान्यतः ब्राह्मी वटी सुवर्णयुक्त 1-1 सुबह-शाम सारस्वतारिष्ट 2 चम्मच भोजनोत्तर लें।
2) स्मृतिसागर रस 5 ग्राम, चतुर्भुज रस 1 ग्राम, ब्राह्मी वटी 5 ग्राम, उन्मादगज केसरी रस 5 ग्राम, भूतभैरव रस 5 ग्राम, हीरक भस्म 100 मि.ग्रा. की 60 पुड़िया बनाकर दिन में 3 बार, सारस्वतारिष्ट व अश्वगंधारिष्ट दो-दो चम्मच के साथ लें।
3) रसायन के रूप में ब्राह्मी रसायन या च्यवनप्राश 2 चम्मच सुबह-शाम लें। अधिक तकलीफ होने पर मरीज की प्रकृतिनुसार, चिकित्सक के परामर्श से चिकित्सा लेने से आशातीत लाभ मिलता है।
पंचकर्म
मिर्गी के मरीजों में वमन, शिरोधारा व नस्यकर्म करना चाहिए। कपिलवर्ण की गाय का मूत्र या ज्योतिष्मती तेल अपस्मार रोग में नस्य के लिए परम लाभकारी हैं। प्रतिदिन वचा सिद्ध तेल की अनुवासन बस्ति व रात को वचा सिद्ध तेल का नस्य दें।
योग चिकित्सा
योगासन में शवासन, मकरासन, ताड़ासन, शशांकासन, भुजंगासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन, नाड़ीशोधन प्राणायाम, शीतली प्राणायाम तथा ध्यान-प्रक्रिया की जाती है।
क्या न करें ?
- दवा नियमित रूप से लें। इसकी एक मात्रा भी न छोड़ें।
- चिकित्सक की सलाह के बिना कोई भी औषधि न लें। खाली पेट दवा न लें।
- देर रात तक सिनेमा देखते अथवा वीडियो गेम्स खेलते हुए न जागें।
- रोगी को अचानक नींद में से न जगाएं।
- दौरे के समय रोगी के मुंह में कोई भी वस्तु न डालें और न ही ठूसें।
- मिर्गी के आक्रमण के दौरान रोगी को जबरन जकड़कर न रखें।
- डाक्टर के परामर्श के बिना अचानक औषधि का लेना बंद न करें।
- मिर्गी की चिकित्सा के लिए तांत्रिकों या ओझाओं के चक्कर में न पड़ें।
- रोगी को शारीरिक अथवा मानसिक कष्ट की स्थिति में न रखें।
क्या करना चाहिए ?
- मिर्गी का दौरा प्रथम बार आते ही, तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें।
- दौरों की तिथि, अवधि आदि का रिकार्ड अपने पास अवश्य लिखकर रखें।
- प्रतिदिन आठ-दस घंटे की गहरी नींद जरूरी है।
- नियमित अंतराल में पर्याप्त भोजन करें क्योंकि हमारे मस्तिष्क को निरंतर ग्लूकोज की आवश्यकता होती है।
- दौरे के समय रोगी के लिए हवादार वातावरण बनाकर, उसके वस्त्र ढीले कर दें।
- दौरे बार बार आने अथवा रोगी के जख्मी हो जाने की स्थिति में तुरंत डाक्टर को बुलाएं।
- एक महीने तक की औषधियां अपने पास हमेशा जमा रखें।
- तेज रोशनी के आँखों में पड़ने से रोगी को बचाए रखें।
मिर्गी के व्यक्ति के लिए निषिद्ध कार्य
1)तैरना। 2) ड्राइविंग। 3) किसी मशीन आदि पर काम करना। 4) अनदेखी जगह पर घूमना, अधिक मानसिक कार्य, शारीरिक कष्ट, रात्रि प्रवास, तनाव, जागरण, रात में टी.वी. देखना, सिगरेट, दारू का सेवन इत्यादि निषिद्ध है।
सावधानियां
दौरा पड़ने पर रोगी के कसे हुए जबड़े खोलने का प्रयास नहीं करना चाहिए। अगर रोगी ने उल्टी की हो, तो उसे करवट के बल लिटाकर उसके कपड़े ढीले कर देने चाहिएं। रोगी जब तक पूरी तरह से चेतनावस्था में न आ जाए, तब तक उसके मुंह में कुछ नहीं डालना चाहिए। दौरे के समय रोगी के शरीर के लगने वाले झटके को रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए, अन्यथा शरीर की हड्डी टूट सकती है। रोगी के इर्द-गिर्द भीड़ इकट्ठा न होने दें तथा दौरे के समय रोगी को जूता न सुंघाएं।
रोगी को दवा लेने में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए और उसे नियमित समय पर दवा लेनी चाहिए। रोगी को 8 घंटा अवश्य सोना चाहिए।
गर्भवती महिला को इस रोग की दवा न्यूरोलाजिस्ट के मार्गदर्शन में ही लेनी चाहिए।
अन्य किसी बीमारी से ग्रसित होने पर अपने चिकित्सक से सलाह लेकर ही दवा का सेवन करें, अन्यथा नुकसान हो सकता है।
इस तरह संतुलित आहार-विहार, आयुर्वेदिक मेध्य औषधि, शरीर-शुद्धि व योगासनों के द्वारा मिर्गी के रूग्ण को सामान्य जीवन जीने के योग्य बनाया जा सकता है।।