Agnikarma in corn

Agnikarma in corn

पैर के तलवे में होने वाली मामूली सी तकलीफ कॉर्न इतनी पीड़ादायक होती है कि रोगी का चलना भी मुश्किल कर देती है । जरा सी ठोकर लगने पर रोगी कराह उठता है । न जाने कितने उपाय व चिकित्सा करता है परंतु राहत नहीं पाता ऐसे केसेस में आयुर्वेद की अग्निकर्म चिकित्सा के उत्तम परिणाम मिलते है ।

कुछ वर्ष पूर्व हमारे आरोग्यधाम में प्रशांत जोशी नामक रूग्ण आया जो कॉर्न (कदर) से ग्रस्त था। दोनों पैरों में कॉर्न के कारण भयंकर पीड़ा व चलने में अत्यंत कष्ट था। हर तरह की दवा, इलाज कराया, कॉर्न कैप, केमिकल कैप, चीरा लगाया पर उसे संतोष न हुआ। हमने उसे आयुर्वेदिक औषधि के साथ अग्निकर्म किया जिसका उसे आश्चर्यजनक लाभ मिला। उसका दर्द तो एक बार किए अग्निकर्म से समाप्त हो गया। कॉर्न को जड़सहित दूर करने के लिए उसे 3-4 बार और अग्निकर्म करना पड़ा। इस तरह आज वह पूर्ण रूप से स्वस्थ है और उसे पुनः अब तक कॉर्न नहीं हुआ हैं। इस तरह के अनेक रूग्ण कॉर्न व अन्य तरह के रोगों से त्रस्त होकर सही चिकित्सा के लिए इधर-उधर घुमते हैं परंतु ये ही रूग्ण अग्निकर्म से ठीक होते है।

त्वचा के किसी भाग पर बार-बार दबाव पड़ने व उस स्थान का घर्षण होने से वहां की त्वचा मोटी व कड़क हो जाती हैं। ऐसी ही स्थिति पैर के तलवों के साथ होती है जिसके परिणामस्वरूप पैर के तलवों में कॉर्न (Corn) होता हैं। आयुर्वेद में इसे कदर, शर्करा, कंटक, कुरूप कहा जाता है। मराठी में इसे भोवरी कहते हैं। सामान्य भाषा में इसे गट्टा या गोरखुल भी कहते हैं। यह बाह्य त्वचा के कठिन होने पर ;भ्लचमतामतंजवेपेद्ध से उत्पन्न होता है। इसका रंग पीताभ या हल्का धूसर वर्ण (Yellowish) होता है। (Hyperkeratosis is the thickening of stratum corninum layer of the skin.)

कारण – तंग जूता पहनने से, पैर के तलवों मे कंकड पत्थर लगना, सूई, काँच का टुकड़ा, लोहे की कील या यंत्र चुभना, कांटा लगना व तीक्ष्ण वस्तु चुभने से, नंगे पैर चलने से कॉर्न होता हैं। इसके अलावा हथेली में भी यह हो सकता हैं। जैसे हाथ से मेहनत करनेवाले, मजदूर, बागवानी करने वाले, जमीन खोदने वाले, वायलन बजाने वाले की हथेली या उंगलियों में भी कॉर्न होता हैं।

लक्षण – तलवों में बेर के समान कठिन व उभरी हुई गांठ होती है जिसमें तीव्र वेदना होती है। चलते समय, धक्का लगने से दर्द बढ़ जाता है। चलते समय पैर में किला ठोकने जैसी पीड़ा होती हैं। कई बार इसमें संक्रमण होने पर पस निकलता हैं। हाथ की उंगलियों के मूल भाग का मांस मोटा हो जाता है तथा अधिक कार्य करने पर उस कठिन मांस के नीचे फफोला (Blister) बन जाता हैं।

आधुनिक मतानुसार इसके दो प्रकार है
1) कठोर कॉर्न (Hard Corn) – यह मोटी व मृत त्वचा की रचना होती है। जिसमें न्यूक्लियस भी रहता है।
2) मृदु कॉर्न (Soft Corn) – इसका आवरण पतला सा होता है यह उंगलियों के बीच में होता है।

उपाय
1) चप्पल मुलायम पहने व तंग जूता न पहने।
2) टंकण भस्म दही में मिलाकर लगाएं।
3) कॉर्न कैप लगाएं।
4) सैलीस्लीक एसिड (Salicylic Acid) का बीस प्रतिशत घोल रात्रि को पैर की त्वचा पर प्रयोग करें। एसिड प्रयोग के पश्चात गरम पानी में पैर डुबो कर रखें। यह प्रक्रिया 6, 7 दिन लगातार करें, इससे कॉर्न निकल जाता है।
5) फिटकरी, सुहागा, नौसादर, सिरके को पीसकर लगाएं।
6) नींबुु या टमाटर का गोल स्लाइस काटकर कॉर्न पर रात भर बांधकर रखें।
7) पपीते का जूस कॉर्न पर लगाएं। कई बार ऑपरेशन करने की भी नौबत आती हैं।

अनुभुत उपचार
1) शतधौत घृत कांसे की कटोरी से घिस कर रोज रात में लगाए या शुुद्ध घी भी लगा सकते है।
2 ) पिंड तेल कांसा या पीतल की कटोरी से घिसकर लगाएं।
3)एरंड या करंज के पत्ते पीसकर कॉर्न पर बांधे।
4) एलोविरा का गुदा कॉर्न पर रात भर बांधे।
5) करंज बीज या एरंड बीज में उपस्थित मगज रोज रात को कॉर्न पर घिस कर लगाएं।

ऑपरेशन
कदर को शस्त्र से काटकर फिर गर्म किये हुए तैल से जलाना चाहिए आधुनिक मतानुसार इसे पहले से तीक्ष्ण शस्त्र (Scalpel) से छिलते हैं। फिर उसे सैलीसिलिक अम्ल तथा ईथर का घोल (Colloidal Solution of Ether) लगा देते हैं या क्ष- किरण (X-ray-600r) की एक हल्की मात्रा देते है।

कॉर्न में फलदायी अग्निकर्म
ऑपरेशन से बेहतर है अग्निकर्म जिसके कॉर्न पर सर्वश्रेष्ठ परिणाम पाये गये हैं। कार्न के रोगी को ऑपरेशन की जरूरत ही नहीं हैं।
अग्निकर्म शब्द सुनते ही मन में एक सिरहन सी उठती है क्योंकि यह अप्राकृतिक, अनोखी,अघोरी व डरावनी चिकित्सा लगती है किंतु घबराने की तनिक भी आवश्यकता नहीं है। चूंकि अग्निकर्म पूर्णतः वैज्ञानिक व शास्त्रोक्त पद्धति है। इसका उपयोग कई व्याधियों में सफलतापूर्वक किया जाता हैं। बशर्ते कि हम योग्य व अनुभवी अग्निकर्म चिकित्सक के मार्गदर्शन में अग्निकर्म कराएं। इस अग्निकर्म से संधिवात, घुटनों का दर्द, फ्रोजन शोल्डर (Frozen Shoulder), पैर की एड़ी में स्पर (Spur) अर्थात हड्डी बढ़ जाना इत्यादि वात रोगों में अच्छे परिणाम मिलते है।

डॉ. जी.एम. ममतानी
एम.डी. (आयुर्वेद पंचकर्म विशेषज्ञ)

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