Panchkarma- key of Health

Panchkarma Swasthya Ki Kunji

इस धरती पर सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव है। आध्यात्मिक धारणाओं के अनुसार हमें मनुष्य जन्म चौरासी लाख योनियों में जन्म लेने के पश्चात मिलता है। मानव जीवन के 4 पुरुषार्थ है-धर्म, अर्थ, काम एंव मोक्ष। इन चारों पुरुषार्थो की प्राप्ति हेतु शरीर का स्वस्थ रहना अंत्यत आवश्यक है क्योंकि-

’’धर्मार्थ काम मोक्षाणां आरोग्यं मूलमुत्तमम्’’

’’शरीरमा़द्यं धर्म खलु साधनम्’’

   धर्म का पालन करने का माध्यम शरीर ही है। इस शरीर का स्वस्थ रहना अत्यंत आवश्यक है, तभी हम धर्म का पालन कर सकते हैं। इसलिए मनुष्य के सात सुखों में ’’पहला सुख निरोगी काया’’ अर्थात स्वस्थ शरीर को कहा गया है। चूंकि

आज पंचकर्म का प्रचलन भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी जोरों पर है। यह मुख्यतः शरीर को चिकित्सा के लिए तैयार करने की पद्धति है। इससे शरीर के प्रत्येक कोषाणु को नवजीवन प्राप्त होकर शरीर सतेज बनता है। शरीर की सूक्ष्मातिसूक्ष्म रूप से शुद्धि होकर प्रत्येक संस्थान का कार्य दुरूस्त होता है।

यह शरीर परमेश्वर की अमानत है, हमारा परम कर्तव्य बनता है कि उनकी अमानत को हिफाजत से रखें, शरीर को स्वस्थ रखें। शरीर का स्वस्थ रहना इसलिए भी आवश्यक हैं कि इसी के द्वारा हम दुनिया भर के कार्य कर सकते हैं। रोगी व्यक्ति शरीर से इतना त्रस्त रहता है कि कोई भी कार्य करने में असमर्थ होता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। जीवन के हर क्षेत्र में, चाहे शारीरिक, मानसिक अथवा आध्यात्मिक हो, शरीर का स्वस्थ रहना अत्यंत आवश्यक है।

स्वस्थ की परिभाषाः- रोगरहित शरीर का स्वामी ही स्वस्थ है, यह स्वस्थ व्यक्ति की अपूर्ण परिभाषा है। आयुर्वेद के मनीषियों ने स्वस्थ व्यक्ति की विस्तृत परिभाषा दी है-

’’समदोषः समाग्निश्च समधातु मलक्रियः

प्रसन्नात्मेन्द्रिय मनः स्वस्थ इत्यभिधीयते’’

  अर्थात् जिस व्यक्ति के दोष (वात, पित्त, कफ) अग्नि (जठराग्नि), धातु (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र), मल (मूत्र, पुरीष, स्वेद) इत्यादि समावस्था में हों, इसके अलावा आत्मा, इंद्रिय व मन प्रसन्न हो, वही व्यक्ति स्वस्थ कहलाता है। आयुर्वेद के सि़द्धांत इस परिभाषा को परिपूर्ण करते हैं।

   स्वस्थ रहने के महत्वपूर्ण स्वर्णिम सिद्धांतों का वर्णन आयुर्वेद में किया गया है। जैसे- दिनचर्या, ऋतुचर्या, उपस्तंभ, पंचकर्म इत्यादि। दिनचर्या अर्थात् दिन की शुरूवात कैसे की जाए व पूरे दिन में कौन-कौनसे क्रियाकलाप किए जाएं ताकि रोगों से बचा जा सके, इसका विस्तृत वर्णन है। ऋतुचर्या में भिन्न-भिन्न ऋतुओं में व्यक्ति का आहार-विहार किस तरह का हो ताकि उन ऋतुओं में होनेवाले रोगों से बचा जा सके, इसका भी विस्तृत वर्णन है। उपस्तंभ में आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसके अलावा संपूर्णतः स्वस्थ रहने के उद्देश्य से आयुर्वेद की महत्वपूर्ण शाखा पंचकर्म का वर्णन है, जिससे शरीर स्थित दूषित होनेवाले तत्वों को बाहर निकालकर रोगों से बचा जा सकता है।

पंचकर्म- पंचकर्म का शाब्दिक अर्थ ऐसे पांच कर्म जिनसे शरीर का शुद्विकरण हो अर्थात् शरीर स्थित दूषित तत्वों का निर्हरण। ये पांच कर्म हैं-

 1) वमन (शास्त्रोक्त पद्धति से उल्टी कराना)

 2) विरेचन(शास्त्रोक्त पद्धति से जुलाब देना)

 3) बस्ति (शास्त्रोक्त पद्धति से औषधियुक्त एनिमा देना)

 4) नस्य (शास्त्रोक्त पद्धति से नाक में औषधि प्रविष्ट कराना)

 5 रक्तमोक्षण (शास्त्रोक्त पद्धति से अशु़द्ध रक्त निकालना)

                हमारे शरीर के अवयवों (Organs) में अनेक चयापचयगत (Metabolism) क्रियाएं होती हैं, जिनके परिणामस्वरूप कुछ उत्सर्जक पदार्थ(Excretory Materials)भी निर्मित होते हैं। शरीर से इनका प्राकृतिक रूप से निकलना आवश्यक है। परंतु किसी कारणवश ये नहीं निकल पाए, तो शरीर को विकारग्रस्त करते हैं। अतः जब तक इनको शरीर से निकाला नहीं जाएगा, तब तक रोग यथास्थिति में कायम रहेगा। औषधि लेने पर बीमारी के लक्षण दब जरूर जाते हैं, परंतु मूल कारण (उत्सर्जक पदार्थ) रहने पर पुनः-पुनः रोगोत्पत्ति होगी। इसलिए पंचकर्म द्वारा इनको शरीर से बाहर निकालना चाहिए। 

पंचकर्म चिकित्सा पद्धति का मुख्य उद्देश्य- रोग को जड़ से हटाना है ताकि पुनः रोग होने की संभावना न हो क्योंकि इसके द्वारा शरीर निर्मित मल पदार्थो को बाहर निष्कासित किया जाता है। शरीर निर्मित मलिन पदार्थ स्वयं ही शरीर से बाहर निकलने की प्रवृत्ति रखते हैं। उदाहरण के तौर पर अजीर्ण होने पर उलटी होना। ऐसे दोषों को बाहर निकाल देना ही उचित है, यह शात्रोक्त सिद्धांत है। ये दोष शरीर में रहने पर अनेक रोगों को उत्पन्न करेंगे। यदि ये दोष बाहर निकलने में असमर्थ हैं, तो इसके लिए पंचकर्म की आवश्यकता होती है। 

                मलबद्धता (Constipation) में मल प्रवृत्ति न होने के दुष्परिणाम से सभी परिचित हैं। उसी प्रकार रक्तवाहिनियों में अत्यधिक कोलेस्टॅाल जमा होना, कैंसर में अनैच्छिक कोशिकाओं का बढ़ना, सायनोसायटिस में जमा कफ की तकलीफें व गाउट रोग में संधियों में जमा यूरिक एसिड के परिणाम की भी जानकारी है। इन बीमारियों में स्थायी लाभ के लिए इनका निर्हरण ही बीमारी से पूर्ण मुक्ति पाना है। यह निर्हरण केवल पंचकर्म की क्रियाओं से ही सभंव है।

                आयुर्वेद में ही पंचकर्म का उल्लेख है, अन्य किसी पैथी में नहीं। जिस प्रकार गाड़ी की समय-समय पर सर्विसिंग आवश्यक है ताकि गाड़ी लंबे समय तक बिना किसी कठिनाई के चल सके, ठीक उसी प्रकार शरीर की समय-समय पर शुद्धि आवश्यक है। यह शुद्धि पंचकर्म के द्वारा की जाती है। हम अपनी गाड़ी की सर्विसिंग अवश्य करवाते रहते हैं, पर बॉडी सर्विसिंग अर्थात् शरीर-शुद्धि पर ध्यान नहीं देते। हालांकि इसी शरीर के माध्यम से हम सुख प्राप्त करते हैं, उपभोग करते हैं, लेकिन अफसोस उसके लिए समय नहीं निकाल पाते। यह हमारे द्वारा किया गया शरीर के साथ अन्याय नहीं तो क्या है? क्या हमारा शरीर के प्रति कुछ कर्तव्य नहीं बनता कि हम इसका रखरखाव करें?

                रोग होने पर हम औषधि जरूर लेते हैं, फिर चाहे किसी भी पैथी की हो, परंतु शरीर शुद्धि की ओर हमारा या आयुर्वेद के अलावा अन्य किसी भी पैथी का ध्यान नहीं जाता। औषधि सेवन करने से शरीरगत विजातीय द्रव्य शरीर में यूं ही पड़े रहते हैं और पुनः-पुनः रोगों की उत्पति होती है। यदि विजातीय द्रव्यों को शरीर-शुद्धि कर निकाल दिया जाए, तो पुनः रोगोत्पत्ति होने का सवाल ही नहीं उठता और हमें पूर्ण स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है, जो हमारी जिंदगी की अमूल्य निधि है।

                पंचकर्म के द्वारा कष्टसाध्य व्याधियों में तुरंत लाभ तथा पूर्ण व्याधिनाश करने की क्षमता प्राप्त होती है। इसलिए आज पंचकर्म चिकित्सा अधिक प्रसिद्धि एवं बुलंदी पर है।

                आजकल सामान्य छोटी सी बीमारी में भी आधुनिक औषधि लेने पर उनके (औषधियों के) अनेक दुष्परिणामों (साइड इफेक्ट्स) का सामना करना पड़ता है। कई बीमारियों में रूग्ण को अत्याधुनिक चिकित्सा केद्रों में लाखों रुपए पानी की तरह बहाने पर भी अपेक्षानुरूप लाभ नहीं मिल रहा है। ऐसे कई रुग्ण पंचकर्म चिकित्सा से लाभान्वित हो रहे हैं, यह लेखक का स्वानुभव है।

                लोगों का यह भ्रम है कि पंचकर्म सिर्फ रोगी व्यक्ति पर ही किया जाता है, पर ऐसा नहीं है। पंचकर्म स्वस्थ व्यक्ति के लिए भी उपयोगी है क्योंकि पंचकर्म से शरीर शुद्ध होकर व्याधि प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। अतः स्वास्थ्य लाभ हेतु पंचकर्म आवश्यक है।

                आज पंचकर्म का प्रचलन भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी जोरों पर है। यह मुख्यतः शरीर को चिकित्सा के लिए तैयार करने की पद्धति है। इससे शरीर के प्रत्येक कोषाणु को नवजीवन प्राप्त होकर शरीर सतेज बनता है। शरीर की सूक्ष्मातिसूक्ष्म रूप से शुद्धि होकर प्रत्येक संस्थान का कार्य दुरूस्त होता है।

                पंचकर्म की क्रिया थोड़ी लंबी व जटिल अवश्य है, पर कष्टकारी नहीं है क्योंकि इसमें चीर- फाड व बेहोशी आदि की आवश्यकता नहीं पड़ती। पंचकर्म की तरह योग में भी धौति, नौलि, बस्ति, नेति, त्राटक तथा कपालभाति इन षटक्रियाओं का समावेश है। ठीक इसी तरह नेचरोपैथी की क्रियाओं से भी शरीर शुद्धि होती है, लेकिन पंचकर्म में काष्ठौषधियों का प्रयोग किया जाता है, जो शरीर के प्रत्येक सूक्ष्म से सूक्ष्म कोषाणुओं तक पहुंचकर शुद्धि के साथ ही साथ दोषों को साम्यावस्था में लाती है। इससे शरीर सचेत, चुस्त, फुर्तीला, दोषमुक्त होकर नवजीवन प्राप्त करता है।

                इस तरह निश्चित रूप से पंचकर्म द्वारा स्वास्थ्य में प्रगति होती है। रोगों पर तो पंचकर्म का चामत्कारिक प्रभाव पड़ता है। इससे शरीर शुद्ध होने पर औषधि शीघ्र लाभ करती है औऱ एक बार शुद्धि होने के बाद अन्य पैथी की भी औषघि शीघ्र लाभ करती है। पुराने रोगों को दूर करने में पंचकर्म ही सक्षम है। इसके द्वारा रोग को जड़ से निकालकर दूर किया जाता है ताकि रोगोत्पत्ति पुनः न हो और मनुष्य का स्वास्थ्य चिरकाल तक कायम रह सके।

इसके अलावा पंचकर्म में –

 1) भूख बढ़ना।

 2) संपूर्ण आरोग्यप्राप्ति।

 3) ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रिय की कार्यक्षमता बढ़ना।

 4) शरीर कांतिवान होना।

 5) मन तथा बुद्धि की क्रियाशीलता बढ़ना।

 6) बलवृद्धि, शरीर हृष्ट-पुष्ट होना।

 7) वीर्यवृद्धि।

 8) संतान बुद्धिमान, शक्तिशाली होना।

 9)वृद्धावस्था दूर भागना।

 10) आंतरिक ऊर्जा का विकास होना।

 11) पंचकर्म के बाद औषधि का अधिक लाभकारी होना।

 12) दीर्घायुष्य की प्राप्ति होना आदि अनेकों लाभ प्राप्त होते हैं। इससे सिद्ध होता है कि पंचकर्म स्वास्थ्य की कुंजी है।

डॉ. अंजू ममतानी
‘जीकुमार आरोग्यधाम’,
238, नारा रोड, गुरु हरिक्रिशनदेव मार्ग,
जरीपटका, नागपुर-14 फोन : (0712) 2646700, 2646600
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