Osteoporosis in Ladies

आयुर्वेदानुसार शरीर का मूल स्तंभ दोष धातु मल है। इनमें से धातु शरीर को धारण करती है “धारणाद् धातव:” । ये सात धातुएं है रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र । हम जो आहार नियमित सेवन करते हैं, उस आहार से निर्मित रस के द्वारा ही उत्तरोत्तर धातुएं निर्मित होती है अतः आहार श्रेष्ठ कोटि का होना अत्यंत आवश्यक है। जिन-जिन गुणों से भरपूर आहार का सेवन हम करेंगे वैसे ही धातुओं का निर्माण व पोषण होगा।

आस्टीओपोरोसिस व्याधि में उम्र के अनुसार हड्डियां घिसकर अस्थि की घनता में कमी होकर कमजोरी आती है। अस्थि का कठिन भाग सुषिर होकर हड्डियां खोखली होकर कमजोर हो जाती हैं। जिससे मात्र गिरने या स्वयं ही हड्डी के फ्रैक्चर होने की संभावना रहती है इसमें मुख्यतः कमर व कलाई की हड्डी पर अधिक प्रभाव पड़ता है।

कारण :-
1) बढ़ती उम्र-महिलाओं में 50 वर्ष से अधिक होने पर
2) आनुवांशिक
3) निष्क्रिय जीवन शैली या व्यायाम कम करना
4) कृश (दुबली पतली) और छोटी शरीर रचना
5) आहार में कैल्शियम की कमी
6) विटामिन ‘डी’. धूप की कमी
7) कम उम्र में मासिक धर्म का बंद होना या मेनोपोज
8) धूम्रपान,
9) अधिक मात्रा में मदिरा सेवन
10) कुछ बीमारियों में किडनी, लीवर के रोग, थायरॉइड, हायपर थायराडिसम, हायपर पैराथायराडिसम, कैंसर, आंतो की बीमारियों व गठियावात के रुग्णों को इस रोग का खतरा अधिक होता है। गैस्ट्रिक सर्जरी किए रोगी को ऑस्टियो पोरोसिस का आक्रमण हो सकता है।
11) कुछ दवाइयां स्टेराइड, अस्थमा, आर्थराइटिस, एपिलेप्सी की औषधि, नींद की गोलियां, कैन्सर की कुछ दवाइयां और कुछ हारमोन्स ।
12) माल न्यूट्रिशन (कुपोषण)
13) अति डाइटिंग (अतिअल्प आहार)

जीवनशैली से संबंध ?
सक्रिय रहने वाले लोगों की तुलना में ज्यादा वक्त बैठे रहने वाले लोगों में ओस्टियोपोरोसिस का खतरा ज्यादा होता है। पैदल चलना, दौड़ना, कूदना, नाचना, वेटलिफ्टिंग ज्यादा उपयोगी होते हैं। किसी भी रूप में अल्कोहल और तंबाकू का ज्यादा सेवन ओस्टियोपोरोसिस के खतरे को बढ़ा देता हैं ।

महिलाएं व ऑस्टीओपोरोसिस
ओस्टियोरोसिस और मेनोपॉज में गहरा संबंध होता है। तकरीबन 25-27 वर्ष की उम्र तक सभी हड्डियों का विकास हो जाता है। इस समय हड्डियां सबसे अधिक मजबूत व दृढ़ होती हैं। महिलाओं में हड्डियों के इस स्तर को बरकरार रखने के लिए एस्ट्रोजन नामक हार्मोन का बहुत बड़ा योगदान होता होता है। एस्ट्रोजन एक ऐसा हार्मोन होता है, जिसका निर्माण ओवरियों के द्वारा किया जाता है जो कि हड्डियों के क्षरण को रोकने में मददगार होता है। मेनोपॉज होने के बाद एस्ट्रोजन के स्तर में कमी आ जाती है और ओस्टियोपोरोसिस होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में हार्मोनल थेरपी की मदद से शरीर में एस्ट्रोजन को रिप्लेस किया जाता हैं, किंतु इस प्रक्रिया में कुछ खतरे भी जुड़े होते है l

शुरूआती दौर में कोई लक्षण नहीं होते लेकिन ओस्टियोपोरोसिस की समस्या गंभीर होते जाने के बाद पीठ में दर्द के अलावा रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर या अन्य परेशानियां शुरू हो जाती है।

ओस्टियोपोरोसिस एक ऐसी खामोश बीमारी है, जो कि धीरे-धीरे शरीर की हड्डियों को कमजोर करने लगती है इसमें हड्डियों की मज्जा घटने लगती है और उनमें मौजुद छोटे-छोटे ऊतक फटने लगते हैं। इस प्रकार हड्डियों में फ्रैक्चर होने का खतरा लगातार बना रहता है। वैसे यह रोग अधिकतर उम्रदराज महिलाओं में पाया जाता है। हालांकि ओस्टियोरोसिस की शुरूआत जीवन में बहुत पहले ही हो जाती है, लेकिन इसके दुष्परिणाम देर से दिखते हैं। इसलिए यह सुझाया जाता है कि हमें शुरू से ही अपने आहार का ध्यान रखते हुए कैल्शियम व विटामिन डी का सेवन अधिक करना चाहिए।
हड्डियों के विरल (थिनिंग) होने को ओस्टियोपोरोसिस कहते हैं हड़ियों के टिश्यू अनवरत नवीनीकृत होते रहते हैं नई हड्डियां पुरानी हड़ियों की जगह लेती रहती हैं 20 वर्ष की उम्र में बोन डेंसिटी शीर्ष पर होती है लेकिन 35 वर्ष की उम्र के बाद हड़ियों का कमजोर होना शुरू होता है बोन डेंसिटी कई मर्तबा इतने निचले स्तर पर आ जाती है कि जरा सा गिर जाने पर भी हड्डियां टूट जाती हैं।

ओस्टियोपोरोसिस की वजह बनने वाले खतरे ?
हमारी बढ़ती उम्र सबसे बड़ा खतरा है। महिलाओं में रजोनिवृति और पुरूषों में 60 वर्ष की उम्र के बाद ओस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है खासतौर पर गर अभिभावकों में कोई कूल्हे का फ्रैक्चर झेल चुका हो व कम कद-काठी के पुरुष-महिलाओं पर भी यह खतरा ज्यादा होता है पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन और महिलाओं में एस्ट्रोजेन का स्तर गिरना खतरे को बढ़ा देता है थाइरॉइड और पेराथाइरॉयड ग्लैंड्स के अलावा एड्रेनाल ग्लैंड का ज्यादा सक्रिय होना भी मुश्किल का सबक बन सकता है। स्टेरॉयड्स, मिर्गी की दवा, गैस्ट्रिक रिफ्लक्स, कैंसर भी ओस्टियोपोरोसिस की वजह बन सकते हैं। किडनी या लीवर की बीमारी, रयूमेटॉइड आर्थराइटिस और ल्यूपस के मरीजों पर खतरा बढ़ जाता है

लक्षण :- आयुर्वेदानुसार इसे अस्थि सुषिरता कहते है। ऑस्टियो पोरोसिस व्याधि से ग्रस्त वृद्धावस्था में स्त्री पुरूष दोनों हो सकते हैं परंतु महिलाओं में इसका प्रमाण अधिक पाया गया है। बढ़ती आयु में जिन महिलाओं में रजोनिवृत्ति 45 वर्ष से पूर्व ही पाई गई हो उनमें इस रोग की संभावना अधिक पाई गई है। दरअसल मेनोपॉस के पहले ईस्ट्रोजन हार्मोन इससे सुरक्षा प्रदान करता है। मेनोपॉस के बाद, ऑपरेशन से ओवरी (स्त्री बीज कोष) निकाल दी गई हो उस काल में ईस्ट्रोजन स्त्राव न होने से ऑस्टियोपोरोसिस की संभावना रहती है उनमें भी इस रोग की संभावना होती है। पुरूषों में 50 वर्ष से बढ़ी उम्र के पुरुषों को इससे सचेत रहना चाहिए। शुरूवात में ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षणों का पता नहीं चलता अतः इसे साइलेन्ट डिसिस कहते हैं। रूग्ण को इस रोग का पता तब चलता है जब हड्डी का फ्रैक्चर होता है। कमर के मनके टूटने से कमर व गर्दन में दर्द होता है। व्यक्ति की ऊंचाई कम होकर कमर में झुकाव आता है। छोटी सी चोट अथवा गिरने से शरीर की कोई भी हड्डी टूट सकती है जैसे कलाई, रीढ़ का निचला भाग इत्यादि ।

ओस्टियोपोरोसिस से परेशानियां ?
फ्रैक्चर, खासतौर पर कमर या रीढ़ की हड्डी के फ्रैक्चर सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं कूल्हे का फ्रैक्चर अधिकांशतया गिरने से होता है और यह विकलांगता के साथ-साथ कई बार मौत की भी वजह बन जाता है रीढ़ की हड्डी का फ्रैक्चर जरूरी नहीं कि हर बार गिरने की ही वजह से हो पीठ का दर्द और कमर से झूका जाना अन्य खतरे हैं।

ओस्टियोपोरोसिस से बचाव
अच्छे आहार और नियमित एक्सरसाइज के जरिए हम पूरी जिंदगी हड्डियों को मजबूत रख सकते हैं हमारा वजन न तो बहुत कम और न ही बहुत ज्यादा होना चाहिए। 18 से 50 वर्ष की उम्र के सामान्य व्यक्ति को प्रतिदिन 1000 मिलीग्राम कैल्शियम की जरूरत होती है। महिलाओं के 50 वर्ष और पुरूषों के 70 वर्ष के पार जाने के बाद यह मात्रा बढ़कर 1200 मिग्रा हो जाती हैं।

कैल्शियम सप्लीमेंट्स
50 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों में सप्लीमेंट्स और आहार मिलाकर एक दिन का कैल्शियम सेवन 2000mg प्रतिदिन से ज्यादा नहीं होना चाहिए। यदि आपको लगता है। कि आहार में उतना कैल्शियम नहीं मिल पा रहा, जितना आपके शरीर में होना चाहिए तो आप डॉक्टर से मिलकर अपने लिए कैल्शियम सप्लीमेंट ले सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि रोजाना 2000mg से अधिक कैल्शियम का सेवन न करें क्योंकि इससे गुर्दो पर विपरीत असर हो सकता है।

विटामिन डी का सेवन
विटामिन डी के सेवन से कैल्शियम का अवशोषण बेहतर होता है और यह कुल मिलाकर हड्डियों को बेहतर बनाता है। विटामिन डी का कुछ हिस्सा हमें सूरज की रोशनी से मिलता है शरीर में कैल्शियम को खपाने के लिए विटामिन डी की आवश्यकता होती है। रोजाना धूप में 20 मिनट रहने से शरीर को आवश्यकता के अनुसार विटामिन डी मिल जाता है। साल्मन जैसी मछली, अंडे व कुछ प्रकार के अनाजों से भी विटामिन डी प्राप्त किया है। 50 से 70 वर्ष के लोगों को रोजाना 400-800 आई. यू तक विटामिन डी सेवन करने की सलाह दी जाती है। लेकिन 2000 आई यू से अधिक विटामिन डी गुर्दों के लिए खतरनाक हो सकता है।

रोकथाम के उपाय
1) आहार में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम का सेवन बचपन से ही आहार में कैल्शियम का संतुलित प्रमाण होना आवश्यक है जिससे मजबूत व ठोस हड्डियां बनें ।
2) नियमित व्यायाम से शरीर की हड्डियां व संधियां मजबूत रहती हैं।
3) अल्कोहल व धूम्रपान से परहेज – अल्कोहल, धूम्रपान से शरीर की कैल्शियम ग्रहण करने की क्षमता कम हो जाती है।
4) चाय काफी का सेवन कम करें क्योंकि ये कैल्शियम के ग्रहण क्षमता को प्रभावित करते है।

कैल्शियम
कैल्शियम एक महत्वपूर्ण खनिज पदार्थ है जो हड्डियों व दाँतों की मजबूती के लिए आवश्यक है। भोजन में कैल्शियम का पर्याप्त प्रमाण होने से दांत व हड्डियां स्वस्थ रहती है। इतना ही नहीं मांसपेशियों को कार्यान्वित करने में भी कैल्शियम की अहम भूमिका है साथ ही कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करता है। कैल्शियम की कमी से बढ़ती उम्र में ऑस्टियोपोरोसिस रोग होने की आशंका रहती है। कैल्शियम के उत्तम स्त्रोत है दूध, दही, अनाज, दालें, चीज, पनीर, पत्तागोभी, हरी सब्जियां, सोयाबीन, बीन्स, बादाम, अंजीर आदि सूखे मेवे, अंकुरित अनाज, गाजर, मटर, टमाटर, सेव, मछली, कॉडलीवर आइल आदि । साथ ही नियमित योगाभ्यास करें।
मीट, अंडे, कोल्डड्रिंक, टिन फ्रूट जिसमें फास्फोरस व सल्फर अधिक होता है। वे कैल्शियम को शरीर द्वारा ग्रहण होने में बाधा पहुचाते हैं क्योकि इनमें अमीनो एसिड होता है। अतः इन भोज्य पदार्थो का सेवन कम करें। तंबाकू अल्कोहल का प्रयोग न करें। नमक, शक्कर का कम प्रयोग करें।

आयु अनुसार कैल्शियम की आवश्यक मात्रा
शरीर में जब कैल्शियम की कमी होती जाती है तो वह अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए हड्डियों से कैल्शियम लेना प्रारंभ करता है परिणामस्वरूप हडडियां कमजोर होकर आस्टियोपोरोसिस जैसी घातक बीमारी का सामना करना पड़ता है। अतः आहार में कैल्शियम की आवश्यक मात्रा लेना आवश्यक है तभी इस बीमारी से बचा जा सकता है। गर्भावस्था में शिशु की हड्डियों का सही विकास हो, व जन्म के पश्चात आसानी से बालक को मां का दूध प्राप्त हो इस उद्देश्य से कैल्शियम का पर्याप्त प्रमाण लेना आवश्यक है।

परीक्षण :- हड्डियों में कैल्शियम की जांच करने के लिए निम्नलिखित परीक्षण आवश्यक हैं।
1) सिरम कैल्शियम
2) ब्लड विटामिन डी
3) बोन मिनरल डेनसिटी टेस्ट (बी.एम.डी)

चिकित्सा : – ऑस्टियोपोरोसिस की चिकित्सा में आहार, व्यायाम, औषधि व पंचकर्म का समावेश होता है।

आहार :- आहार हल्का व सुपाच्य होना आवश्यक है। कैल्शियम व विटामिन डी की प्रचुरता वाला आहार ऑस्टियोपोरोसिस की तकलीफ से निजात पाने में सहायक होता है। आयुर्वेदानुसार मांसरस, औषधि सिद्ध दूध व घृत का सेवन लाभकारी है।

औषधि :- नैसर्गिक कैल्शियम की औषधि व औषधि युक्त घृत का नियमित सेवन करने से कैल्शियम की पूर्ति होकर ऑस्टियोपोरोसिस में लाभ होता है। प्रवाल भस्म, मुक्ताभस्म, कपर्दिक भस्म, श्रृंग भस्म, अस्थिपोषक वटी के प्रभावकारी परिणाम पाए गए है। मासिक धर्म नियमित होने के लिए औषधि का सेवन आवश्यक है।

व्यायाम :- ऑस्टियोपोरोसिस से ग्रस्त रुग्ण को नियमित व्यायाम करना भी आवश्यक है। ये व्यायाम सौम्य स्वरूप के होने आवश्यक हैं ताकि शरीर को सहन हो सके। जैसे संचालन में शरीर संचालन, संधि संचालन, पाद संचालन इत्यादि ।

पंचकर्म
आयुर्वेदिक पंचकर्म से ऑस्टियोपोरोसिस के रूग्ण को काफी हद तक लाभ मिलता है। पंचकर्म में मुख्यतः स्नेह चिकित्सा (तेल चिकित्सा) का महत्वपूर्ण योगदान है। इसमें अभ्यंग, सर्वाग तैल धारा, क्वाथधारा, दुग्धधारा दी जाती है। स्वेदन के अंतर्गत पिंडस्वेद किया जाता है। इसके अलावा वात रोगों के लिए आयुर्वेद में बस्तिकर्म का वर्णन किया गया है। ऑस्टियोपोरोसिस में बस्ति कर्म के अंतर्गत स्नेहन बस्ति, मांसरस बस्ति, दुग्धबस्ति दी जाती है।

1) अभ्यंग :- नियमित रूप से हल्के हाथ से मालिश करने को ही अभ्यंग कहते हैं। इसमें जड़ी बूटी से सिद्ध तेल का प्रयोग किया जाता है। अभ्यंग से तेल शोषित होकर ऑस्टियोपोरोसिस में लाभ होता है।

2) सर्वांग तैल धारा :- वात नाशक तेल का प्रयोग तैल धारा हेतु किया जाता है, जैसे बला, निर्गुडी, पंचगुण तैल इत्यादि । इसमें रूग्ण को लिटाकर विशिष्ट पद्धति से पूर्ण शरीर पर तेल की धारा का सिंचन किया जाता है। यह प्रक्रिया 40 मिनट तक लगातार की जाती है। जिससे ऑस्टियोपोरोसिस के रुग्ण की हड्डियां मजबूत होकर दर्द से राहत मिलती है। इसी प्रकार जड़ी बूटी से निर्मित काढा या दूध से दी जानेवाली धारा को क्वाथ धारा या दुग्ध धारा कहा जाता है।

3) पिंड स्वेद :- इसमें चावल, दूध व जड़ी बूटी का क्वाथ के एक साथ पकाकर उसकी पोटली बनाते हैं। यह पोटली कुनकुना क्वाथ व दूध में भिगाकर रूग्ण के अंग पर चालीस मिनट तक मालिश करते हैं। इससे हड्डियां मजबूत होकर मांसपेशियों को भी शक्ति मिलती है।

इस प्रकार ऑस्टियोपोरोसिस के रूग्ण उपरोक्त चिकित्सोपक्रम अपनाकर हड्डियों की कमजोरी व दर्द से राहत पा सकते हैं।

डॉ. अंजू ममतानी
‘जीकुमार आरोग्यधाम’,
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जरीपटका, नागपुर-14 फोन : (0712) 2646700, 2646600
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