Post Covid-Complications and Treatment

कुछ समय पूर्व पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के कारण तनाव, भय और अनिश्चितता का माहौल था। हर कोई भविष्य को लेकर चिंतित था। ऐसे में नकारात्मक विचार आने स्वाभाविक थे, लेकिन देशवासियो ने कोरोना वायरस महामारी का आत्मविश्वास और सकारात्मकता के साथ सामना किया। शरीर और दिमाग दोनों को मजबूत कर इस बीमारी को मात दी। स्वास्थ्य विभाग के तमाम दिशानिर्देशों का पूरे अनुशासन के साथ पालन किया। इस जंग में अंत में जीत हमारी हुई।

कोविड से ठीक होने के बाद भी शरीर काफी समय ले सकता हैं सामान्य स्थिति में लौटने के लिए। ब्रेन से लेकर हार्ट तक कुछ ऐसी खास शिकायतें हैं, जो पूरी तरह रिकवरी वक्त ले रही हैं। कुछ मामलों में तो बेहद गंभीर स्थितियां भी दिखाई दे चुकी हैं। इस बारे में अध्ययन करते हुए पाया गया है कि कुछ शिकायतें ऐसी हैं, जो लॉन्ग कोविड के लक्षणों को दर्शाती हैं और बड़ी संख्या में मरीज इन लक्षणों से लंबे समय तक जूझते हैं ।

थकान
दो साल के करीब समय खिंच गया कोविड 19 का दौर पूरी दुनिया के लए थकाने वाला साबित हो चुका हैं। इस संक्रमण से ग्रस्त होने वालों में थकान या खिंचाव जैसे लक्षण लंबे समय तक बने रहते हैं। बहुत सारे रुग्ण कमजोरी का अनुभव करते हैं, उनके रोजमर्रा के काम भी उनसे नहीं हो पाते हैं।बिना काम किये या भरपूर नींद लेने के बाद भी सुबह सोकर उठने पर भी रोगी को थकावट लगती है। करीब 63 फीसदी मरीजों ने बताया कि उन्हें थकान, कमजोरी, मांसपेशियों में दर्द जैसी शिकायतें 6 महीने तक भी पेश आती रहीं। यह लॉन्ग कोविड का प्रमुख लक्षण है जो रिकवरी में काफी टाइम लेता हैं और मरीज को सामान्य जीवन में लौटने में बहुत समय लग जाता है।

मांसपेशियों की कमजोरी व जलन
कोविड से रिकवर होने के बाद सबसे लंबे चलने वाले लक्षणों में मसल्स पेन यानी पेशीशूल की शिकायत आम हैं। जिन्हें कोविड गंभीर नहीं भी हुआ और हेल्दी लोग भी इस शिकायत से जूझ रहे हैं। चूंकि वायरस पूरे शरीर के हेल्दी टिशूज पर हमला करता है इसलिए जलन की शिकायत आम हो जाती हैं। पीठ और जोड़ों में दर्द भी इसी कारण एक बड़ी समस्या बन जाता है ।

ब्लैक फंगस
कोरोना वायरस की तबाही के बीच ब्लैक फंगस यानी म्यूकोरमाइकोसिस ने भी अपना कहर बरपाया। इस फंगस का खतरा लो-इम्यूनिटी वालों को सबसे अधिक हैं? ब्लैक फंगस नाक से शुरू होकर आपकी आंखों और मस्तिष्क तक पहुंचता है, जो बाद में जानलेवा साबित हो सकता है. ब्लैक फंगस के लक्षण में सिर दर्द, चेहरे पर दर्द, नाक बंद, गाल और आंखों में सूजन, नाक में काली पपड़ी इत्यादि होते है।

हड्डियों में कमजोरी
कोरोना संक्रमण से उबरने के बाद मरीजों में एवैस्कुलर नेक्रोसिस यानी बोन डेथ के मामले देखने को मिले हैं। एवैस्कुलर नेक्रोसिस में हड्डियां गलने लगती हैं। ब्लैक फंगस और एवैस्कुलर नेक्रोसिस के मामलों की प्रमुख वजह स्टेरॉयड्स को बताया जा रहा है।

बालों का झड़ना
पोस्ट कोविड में बाल झड़ने की समस्या आम हो रही है जिसके कई कारण हो सकते हैं। लोगों की जीवनशैली खराब होने पर बाल झड़ते हैं। लंबी बीमारी से ग्रस्त हार्मोन्स बदलाव होने पर भी बाल झड़ने की समस्या पैदा होती है।

कोरोना से स्वस्थ हो चुके लोगो में बाल झड़ने की समस्या का पता दो या तीन महीने बाद पता चल रहा है। कोरोना को इस समस्या से इसलिए जोडा जा रहा है कि इस समस्या से ग्रस्त लोग तनाव का शिकार हो चुके हैं। कोरोना त्रासदी के दौरान उन्होंने जो हालात देखे और वे स्वयं भुक्तभोगी रहें, इसका उनके दिमाग पर काफी असर हुआ है। उन दिनों का तनाव भी बाल झड़ने की समस्या को जन्म दे चुका है। इसके अलावा लोगों ने खानपान में पोषण आहार नहीं लेने से समस्या हो सकती है।

फेफड़ों का फाइब्रोसिस
पोस्ट कोविड में कई रूग्णों को फेफड़ों में सिकुडन पैदा हो रही है जिसे फाइब्रोसिस कहते हैं। इसकी वजह से ठीक हुए मरीजों को सांस लेने में परेशानी महसूस होती है। कई बार तो उन्हें ऑक्सीजन देने तक की नौबत आ जाती हैं। इस तरह के मामले अब बड़े पैमाने पर सामने आ रहे हैं। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि कोविड की नेगेटिव रिपोर्ट आने के बाद हम अपने शरीर में आ रहे बदलावों पर गौर करें ।

लक्षण :-
֍ सांस लेने में परेशानी
֍ बहुत थकान महसूस होना
֍ ऑक्सीजन लेवल में काफी उतार-चढाव
֍ कुछ दूर चलने पर सांस फूल जाना
֍ सूखी खांसी

पोस्ट कोविड पल्मोनरी फाइब्रोसिस तब होता है जब कोविड संक्रमण के कारण फेफड़ों के नाजुक हिस्सों को नुकसान पहुंचाता है और उनमें झिल्ली बन जाती हैं। इससे फेफड़ों की कार्यक्षमता घट जाती है। जाहिर सी बात है कि जब इनकी कार्यक्षमता घटेगी तो शरीर में ऑक्सीजन और कार्बन-डायऑक्साइड का संतुलन गड़बड़ाने लगेगा। इसे अगर समय रहते ठीक नहीं किया तो जीवनभर का रोग बन सकता है।

जो मरीज मोटापा, फेफड़ों की बीमारी, डायबिटीज इत्यादि से पीड़ित रहे हो उनको पल्मोनरी फाइब्रोसिस का खतरा ज्यादा होता है। इसके अलावा लंबे समय तक वेटिलेटर पर रह चुके लोगों में इसका खतरा होता हैं। ज्यादातर यह समस्या 60 साल से अधिक आयु के मरीजों में देखने को मिलती है लेकिन युवा मरीज भी इसके शिकार हो रहे हैं।

कोविड से उबर चुके ऐसे लोग जिनको थोडा बहुत चलने पर भी थकान हो जाती हो या सांस फूलने लगती हो। उन्हें तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। अगर खांसते या छींकते समय छाती में दर्द होता है तो भी हो सकता है कि आप पल्मोनरी फाइब्रोसिस के शिकार हुए हैं। बेहतर होगा आप किसी पोस्ट कोविड सेंटर में जाकर अपनी जांच करवाएं। सीटी स्कैन के जरिए जह पता लगाया जा सकता है कि आपके फेफड़ो को कितना नुकसान पहुंचा है और उसी हिसाब से इलाज किया जाता है।

खून में थक्के बनना – इस बीमारी में शरीर में छोटे छोटे खून के थक्के बनने लगते हैं और वे यदि हृदय, मस्तिष्क, किडनी, फेफड़े में चले जाएं तो उस अवयव का काम बंद होकर रुग्ण क्रिटिकल (Critical) हो सकता है। खून का थक्का दिल के मरीजों के लिए खासतौर पर खतरनाक होता है। केवल दिल ही नहीं, अगर थक्का दिमाग में जमे तो स्ट्रोक, फेफड़ों में होने से शरीर में ऑक्सीजन की कमी, पैरों की नसों में लिब स्कीमिया (Limb Ischaemia) जैसी और भी कई समस्याएं शरीर के अलग-अलग हिस्सों में थक्का बनने से पैदा हो सकती है।

शरीर और जोड़ों में दर्द – बुखार ठीक होने के बाद भी सारे – शरीर में दर्द होना या जोड़ों में दर्द, अकड़न होना ये लक्षण भी रोगियों में देखे जा रहे हैं।

दस्त या उल्टी होना – कुछ रुग्णों में महीनों तक उल्टी या दस्त के लक्षण दिखाई दे रहे हैं।

नींद से जुड़ी समस्याएं
कोविड 19 से पूरी तरह रिकवर हो पाना कम मुश्किल नहीं है, अगर केस गंभीर हो तो घर के रूटीन के काम करना तक भी आसान नहीं रह जाता। चूंकि थकान व कमजोरी के चलते आराम करना ही होता है, इसलिए नींद पूरी न होने, ठीक से न आने जैसी समस्याएं पैदा होती हैं। मरीज नींद को लेकर भी लंबे समय तक जूझते रहते हैं। नींद ठीक न होने से अन्य समस्याएं भी पैदा होती हैं।

मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित
मनोचिकित्सक के अनुसार सोशल डिस्टेंसिंग और अकेलेपन के कारण हार्मोन का नियंत्रण बिगड़ रहा है। इससे दिमाग में सेरोटोनिन का स्तर घट रहा है। एड्रेनिलिन और कार्टिसोल का सीक्रिशन बढ़ने से लोग तनावग्रस्त हो रहे है। हर 10 व्यक्ति में से दूसरा डिप्रशन से ग्रस्त है ।

कारण :-
֍ अकेलेपन के कारण अनियंत्रित हो रहे हार्मोन
֍ सोशल मीडिया में भ्रामक मैसेज
֍ कोविड काल में बेरोजगारी, नौकरियां गंवाना व सगे संबंधी की मृत्यु

तनाव के लक्षण :-
1) घबराहट महसूस होना
2) समय पर काम नहीं करना
3) चुप रहना
4) खानपान में अरुचि
5) नींद नहीं आना

तनाव डिप्रेशन से निकलने के उपाय
फैमिली और फ्रेंड्स के साथ समय बिताएं :- जब व्यक्ति तनाव में होता है, तो वह किसी से मिलना पसंद करता है। जब आपको लगे कि आप मानसिक तनाव – जुलना नहीं या डिप्रेशन के शिकार है, तो अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं ।

खुद को रखें व्यस्त :- तनाव और डिप्रेशन के शिकार लोगों को अपने आप को व्यस्त रखना चाहिए, इससे नकारात्मकता के शिकार नहीं होंगे।

नींद का पूरा ध्यान रखें :- तनावग्रस्त होने पर अपनी नींद का पूरा ध्यान रखे। 7-8 घंटे की नींद जरूर लें, ताकि दिमाग को आराम मिले। छोटे-मोटे तनाव के लिए नींद एकबेहतरीन इलाज है ।

परिवार के साथ बैठे :- तनाव दूर करने के लिए प्राकृतिक स्थान या घर के आंगन, बरामदे, बालकनी में परिवार के साथ बैठें। सुबह की धूप जरूर लें। इससे मन और मस्तिष्क को आराम मिलता है।

व्यायाम और ध्यान करें
सोशल मीडिया में कई भ्रामक चीजें देखकर उसे अपने दिमाग में बैठा लेते हैं, जिससे उन्हें रक्तचाप, मधुमेह का लेवल बढ़ना, पेट खराब होना, नजर कमजोर होना, भूख न लगना, रोने का मन करना, आत्महत्या करने का विचार आना आदि समस्या उत्पन्न हो जाती है। इन परिस्थितियों से निकलने के लिए अपने ऊपर तनाव को हावी न होने दें। खुद को ज्यादा से ज्यादा व्यस्त रखें, योग और ध्यान करें, संगीत सुनें. सात्विक भोजन करें। इससे काफी मदद मिलती है। हर रोज कुछ नया करने के बारे में विचार करें।

जुलाई 2020 में इटली में एक स्टडी हुई जिसमें कहा गया कि कोविड 19 से रिकवर होने वाले मरीजों में महिलाओं को पुरूषों की तुलना में मानसिक समस्याओं का खतरा ज्यादा होता है। डिप्रेशन के साथ ही, ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर संज्ञान संबंधी समस्या मेमरी लॉस और मूड डिसॉर्डर जैसी समस्याएं पेश आती हैं और कई केसों में बहुत लंबा समय इनसे जुझने में लगता है। पोस्ट कोविद्ध मुआयनों में देखा जा रहा है कि कई लोग इस तरह की समस्याएं लेकर आ रहे हैं।

चिंता और घबराहट
स्टडी में देखा गया कि 15 फीसदी मरीजों ने चिंता और डिप्रेशन की शिकायते बताई। हालांकि इससे पहले भी कई बार एक्सपर्ट कह चुके हैं कि लॉकडाउन और सामाजिक दूरी के चलते एंग्जाइटी की समस्या बहुत आम और लंबी चलने वाली हैं। कोविड से रिकवर होने के बाद मरीजों को दोबारा संक्रमण, सामान्य न रह पाने, शारीरिक समस्याओं और मेंटल हेल्थ को लेकर कई तरह के डर और चिताएं सताती हैं। गंभीर मामलों में खुदकुशी तक के नतीजे देखे जा चुके हैं। एक्सपर्ट्स की मानें तो कोविड से ठीक होने के बाद मरीजो को सपोर्ट, आराम, और शरीर को पूरा समय चाहिए होता है।

कुछ रुग्णों में ही उपरोक्त उपद्रव दिखाई दे रहे हैं। क्योंकि उनके शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता कम हो चुकी है। कोरोना से मुक्त होने के बाद रोगी सोचते हैं कि अब वे ठीक हो चुके हैं और पहले जैसी जीवनशैली अपनाने लगते हैं। कोरोना से शरीर के अंदर बहुत सारे शोथजन्य परिवर्तन (Inflammatory Changes) होते हैं। इसलिए इस समय योग्य चिकित्सक के मागदर्शन में आहार, विहार, औषधि इन तीनों का समन्वयात्मक रूप से सतर्कता से पालन करना चाहिए।

आहार – आहार में सुपाच्य, ताजा भोजन पोषणयुक्त समय पर लेना चाहिए। अधिक मिर्च मसालेदार युक्त, तले हुए. डिब्बा बन्द खाद्यपदार्थ, मैदे से निर्मित पकवान, अधिक शक्करवाली मिठाइयां, चाइनीज व्यंजन (जिसमें सॉस डाले हुए होते हैं) का सेवन न करें। ताजे फलों में मौसम्बी, संतरा, नीबू, आँवला, सेब, अनानास, पपीता इनका सेवन अधिक करें। सूखे मेवे भी खाना चाहिए। शक्कर के बदले गुड़ और शहद का प्रयोग उत्तम होता है। फल, सलाद, दही का सेवन फायेदमंद हो सकता है।

विहार – व्यायाम का कोरोना से ठीक होने (Recovery) में बहुत बड़ा योगदान होता है। आप की उम्र, अपनी बीमारी, सहनशक्ति के अनुसार व्यायाम का प्रकार और कितना किया जाना चाहिए। इसका परामर्श लेना श्रेयस्कर होता है। सामान्यतः प्रातः भ्रमण, सूक्ष्म व्यायाम, गहरी सांस लेना- छोड़ना, उदर श्वसन (स्टमक ब्रीदिंग ). प्राणायाम ये सभी रोगी कर सकते हैं। इससे फेफड़ों की क्षमता में सुधार होता हैं। गुब्बारे फुलाने की सरल सी कसरत भी फेफड़ों को ताकतवर बनाती हैं। शुरुआत में अल्प बाद में धीरे मात्रा बढ़ा सकते हैं, थकने से पहले तक व्यायाम करें। प्राणायाम को डॉक्टर के परामर्श के बाद ही करें। नींद भरपूर और गहरी होनी चाहिए। कम नींद लेने से भी अपनी इम्युनिटी पर बुरा असर पड़ता है। रहने के लिए ऐसी जगह का चुनाव करना चाहिए जहां ताजी हवा का आवागमन होता रहे। हो सके तो ए.सी. या कूलर का प्रयोग न करें।

नियमित जांच आवश्यक
कोविड से स्वस्थ होने के बाद स्वास्थ्य की तरफ अतिरिक्त ध्यान देना पड़ता है। हार्ट, किडनी, फेफड़ों की बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को नियमित जांच कराते हुए दवाएं लेते रहना चाहिए। मास्क आवश्यक दवाएं डॉक्टर की सलाह पर लेते रहें। जो स्वस्थ हुए है उन्हें दूसरों की मदद के लिए प्लाज्मा दान करने के लिए आगे आना चाहिए। चेस्ट फिजियोथेरेपिस्ट की भूमिका अहम हो गई है।

डॉ. जी.एम. ममतानी
एम.डी. (आयुर्वेद पंचकर्म विशेषज्ञ)

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