Stress induced diseases

आज विश्व में अधिकाधिक लोग मानसिक तनाव से ग्रसित होते जा रहे हैं। यह आधुनिक औद्योगिक समाज की देन है। आज के तथाकथित सभ्य समाज और यांत्रिक युग में मानसिक बीमारी और तनाव आम बात हो गई हैं। निराशा, हताशा, कुंठा, चिन्ता, डिप्रेशन, ऊब, भय आदि तनाव के ही पर्याय बन गए हैं। आज के वैज्ञानिक युग को चिन्ता का युग कहा जाता है। वाल्टर टेम्पिल ने मनुष्य की जिंदगी पर सटीक टिप्पणी करते हुए कहा है- “मनुष्य रोते हुए पैदा होता है शिकायत करते हुए जीता है और अतंतः निराश होकर मर जाता है।’

जब शारीरिक रोगों की उत्पति मानसिक तनाव से होती है तो किसी औषधि व इंजेक्शन से लाभ नहीं होता है. मानसिक तनाव को नष्ट करने पर शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है। यह किसी भी परिस्थिति में प्रारम्भ हो सकता है. कुछ स्त्री-पुरुष अधिक संवेदनशील होने के कारण मानसिक तनाव से पीड़ित होते है छोटी-छोटी बातें भी उन्हें मानसिक तनाव से पीडित कर देती हैं। बस में अधिक भीड़ होने या किसी सड़क पर ट्रैफिक जाम होने की समस्या भी स्त्री-पुरूष को मानसिक तनाव से पीड़ित कर देती हैं. किशोर व नवयुवक अपनी पढ़ाई या परीक्षा को लेकर मानसिक तनाव से पीड़ित होते है।

मानसिक तनाव एक बहु प्रभावी कारण है, जो मन एवं शरीर को कुप्रभावित कर उन्हें रोगग्रस्त कर देता है। स्त्रियों की अपेक्षा पुरूष तनावग्रस्त अधिक होते है। यूँ तो किसी भी उम्र में तनाव हो सकता है किन्तु 40-50 वर्ष की आयु में लोग अधिक तनावग्रस्त होते हैं। अल्प आय (कमाई) एवं व्यसन की लत व्यक्ति को अधिक तनावग्रस्त बना देती है। राजस प्रकृति के व्यक्तियों में तनाव की अधिकता सात्विक भावों, ध्यान, योग की उपयोगिता सिद्ध करती है। मानसिक तनाव की उत्पत्ति चिन्ता, शोक व दुःख के कारण हो सकती है। ऑफिस में काम करते स्त्री-पुरूष ऑफिस में बॉस के व्यवहार से मानसिक तनाव से अधिक पीड़ित होते हैं।

मानसिक तनाव आज विश्वव्यापी समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया की आबादी के दो तीन प्रतिशत व्यक्ति किसी न किसी मानसिक रोग से पीड़ित है एवं वर्तमान समय में यह समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। आज के नवयुवक और वृद्ध सबसे अधिक पीड़ित, परेशान और बदहवास हैं। सामाजिक मूल्यों के निरंतर ह्रास और पश्चिमी सभ्यता का सीधा प्रभाव नई पीढ़ी पर पड़ रहा है. इनकी सोच और चिन्तन में परिवर्तन आ गया है, उनमें मानसिक असंतुलन व आत्महत्या की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ती जा रही है। इन सब का कारण तनाव है। आज हम सबके लिए तनाव प्रबंधन सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा है। एक स्वस्थ जीवनशैली आपका काम आसान कर देती है।

लक्षण :- बहुत सामान्य से लगने वाले शरीर दर्द, मांसपेशी में दर्द, सिरदर्द, बहुत ज्यादा डकारें, पैरों में दर्द, थकान, निढाल हो जाना कुछ लक्षण हो सकते है। पसीना आना, हथेलियों पर पसीना आना, सांस फूलना, पेट खराब होना, छोटी-मोटी बात पर चिढचिढ़ाना, उदासी, अवसाद, बैचेनी या बेकाबू हो जाना, उत्साह की कमी. हर वक्त नाराजगी कुछ सामान्य लक्षण हैं।

अमेरिका के मेयो क्लिनिक के अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक बहुत ज्यादा खाना या बहुत कम खाना, एकाएक गुस्से से फूट पड़ना, ड्रग्ज या शराब की आदत, तंबाकू का सेवन, एकाकीपन की आदत और एक्सरसाइज से बचना इत्यादि तनाव के कारण होता है। लंबी अवधि तक तनाव प्रजनन क्षमता को कम कर गर्भावस्था के दौरान भी समस्या की वजह बन सकता है। अस्थमा, सोरियासिस और मुहासों की समस्या और गंभीर रूप ले सकती है।

मानसिक तनाव से निम्नलिखित रोग होते हैं-हृदय रोग, हाइपरकोलेस्ट्राल, मधुमेह, हायब्लडप्रेशर, इरिटेबल बोवेल सिन्ड्रोम, माइग्रेन, एसिडिटी, अल्सर, एन्जाइटी, डिप्रेशन इत्यादि ।

हृदय रोग
ब्रिटिश मेडिकल जनरल की रिपोर्ट है कि पिछले 25-30 वर्षो से हृदय रोग से विशेषतः हृदय की गति बंद हो जाने से मरनेवालों की संख्या बढ़ती जा रही है, इसका कारण शारीरिक व मानसिक तनाव का अधिक होना है। आम तौर पर यह देखा जाता है कि हृदय रोग से डॉक्टर, वकील, राजनीतिज्ञ तथा फिल्मी कलाकार आदि पेशेवर लोग ही मृत्यु को प्राप्त होते है। आजकल अधिकांश लोग छाती के दर्द की शिकायत करते हैं। इसमें हृदय को ऑक्सीजन पोषक तत्व व रक्तप्रवाह कम होने के कारण छाती में दर्द होता है, यह दर्द एन्जाइना कहलाता है। इसके साथ ही छाती में भारीपन, खिंचाव, दर्द छाती से शुरू होकर हाथ, कंधे, गर्दन व पेट के उपरी हिस्से तक जाता है।

अपने हृदय की रक्षा कीजिए। उसे अनावश्यक तनाव से बचाइए । संयमित जीवनशैली अपनाइए, हड़बडी से बचिए। सात्विक एवं प्राकृतिक आहार का सेवन कीजिए। नियमित योगाभ्यास किजिए। आवश्यक विश्राम कीजिए, चिंता से स्वयं को कोसों दूर रखें। परोपकार के कार्य अवश्य कीजिए। अपने आस-पास का वातावरण आनंदित व आल्हाददायक बनाएं अर्थात मन में किसी प्रकार का तनाव न रखें।

हाइपरकोलेस्ट्राल
आधुनिक तनावयुक्त जीवन शैली के कारण आज स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याओं का सामना मनुष्य को करना पड़ रहा है जैसे हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, डायबिटिज आज के संघर्षशील युग की देन है। इसके अलावा आज हमें हायपरकोलेस्ट्राल (Hypercholestrol) के भी अधिकांश रोगी मिलते हैं, इसका कारण हमारे आहार-विहार में विषमता हैं। हमें ऐशोआराम की जिंदगी पसंद है, हम श्रम से कतराते हैं, ऐसी जिंदगी का ही परिणाम है- हायपरकोलेस्ट्राल । रक्तवाहिनियों में रूकावट या बंद होने का मुख्य कारण इनकी दीवारों पर वसायुक्त पदार्थों (कोलेस्ट्राल) का जमा हो जाना है। यह एकत्रीकरण धीरे-धीरे 15-20 वर्षों में होता है। इस वसा के जमा होने के कारण वाहिनियों का रास्ता संकरा हो जाता है व वाहिनियों का लचीलापन कम हो जाता है, इस वसा के एकत्रीकरण को एथेरोक्लेरोसिस (Athersclerosis) कहते है। हायपरकोलेस्ट्राल के कारण अधिकतर हृदयगत धमनियां (कोरोनरी आर्टरीस) प्रभावित होती है जिससे हृदयगत विकार जैसे छाती में दर्द (एन्जाइना) जैसी व्याधिया होती है।

इरिटेबल बोवेल सिंड्रोम (आई.बी.एस)
वर्तमान में अव्यवस्थित जीवनचर्या के फलस्वरुप असमय खान-पान, देर रात जागना, सुबह देर से उठना, बढ़ता हुआ मानसिक तनाव, व्यसन के अधीन होना तथा प्रतियोगिता के वातावरण में मानसिक तनाव से ग्रस्त होने से व्यक्ति के स्वास्थ्य का स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है। अनेक प्रकार की व्याधियों ने इंसान को अपनी चपेट में ले लिया है। पेट से संबंधित अनेक बीमारियां आम तौर पर पाई जा रही हैं। आहार की अशुद्धता के कारण भी हमें पेट की तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है।

काल के प्रवाह में एकत्रित होनेवाली अचेतन मन की उलझनें तनाव के रूप में हाईपोथेलेमस के जरिये पाचन संस्थान पर असर कर आईबीएस का रूप धारण करती हैं। आई.बी.एस. नाम की तकलीफ होने की संभावना वाले रोगी बेचैन, अति संवेदनशील, भयभीत और चिंतित होते हैं।

रोग के कारण इनके मल त्याग में बदलाव आ जाता है। पेट में मरोड़ के साथ दर्द होता है, मल के साथ आँव (म्यूकस) निकलता है, मल त्याग के बाद भी महसूस होता है, पेट साफ नहीं हुआ। इनके मल में खून नहीं निकलता, स्वयं को बीमार समझने के बाद भी इनका वजन कम नहीं होता।

यदि भोजन की आदतों, सोच को बदला जाए, जीवन को शांति से गुजारना सीखें, हड़बड़ी, चिंता, तनाव से बचें तो आई.बी.एस. से ग्रस्त रोगी बिना कष्ट के स्वस्थ रह सकता है ।

माइग्रेन
आज हर दसवां व्यक्ति किसी न किसी हद तक माइग्रेन से पीडित है। महिलाओं में यह रोग अधिक पाया जाता है। करीब 6 प्रतिशत पुरूष और 12 प्रतिशत महिलाएं कभी न कभी इसका सामना करते हैं।

यह एक ऐसे प्रकार का सिरदर्द है, जो आजकल मध्यमायु में अधिक प्रमाण में पाया जा रहा है l

माइग्रेन का रोगी सिरदर्द से छटपटाता रहता है। सामान्यतः लोग इसकी भयावहता को अनदेखा कर पेटेंट दवाओं के तात्कालिक लाभ से ही स्वयं को संतुष्ट कर देते है किंतु इसका उचित निदान व चिकित्सा न होने से कालांतर में यह अत्यंत कष्टप्रद सिद्ध हो सकता है। माइग्रेन शुरू करने वाले कारणों को ट्रिगर कहते हैं। जैसे-तनाव, अनिद्रा, तेज रोशनी आदि। रूग्ण को किसी प्रकार की आवाज सहन नहीं होती, किसी से बात करने या काम करने का मन नहीं करता तथा सिरदर्द होने के कारण रोगी में एकाग्रता नहीं रहती। प्रकाश व आवाज सहन नहीं होती। रोगी चिडचिडा हो जाता है, मस्तिष्क में सुन्नता प्रतीत होती है।

एसिडिटी
आयुर्वेद में आहार के विधान का विशेष रूप से वर्णन किया गया है। षड्रस का वर्णन आयुर्वेद के अंतर्गत ही आता है। मधुर, अम्ल, लवण, कटु तिक्त व कषाय इन 6 रसों का आहार में समावेश होना स्वास्थ्य के लिए हितकारी है, ऐसा आयुर्वेद के मनीषियों का कथन है परंतु आज स्थिति विपरीत है। भोजन में मसालेदार, तीखे खट्टे, चटपटे पदार्थों का ज्यादा समावेश कर उसे स्वादिष्ट बनाया जाता है, जो हमें उस समय तो स्वाद के कारण रोचक लगते हैं किंतु कालांतर में रोगकारी सिद्ध होते हैं। इससे ही एसिडिटी होती है।

मानसिक कारणों में अत्यधिक तनाव एवं अवसादावस्था भी एसिडिटी के लिए जिम्मेदार हैं। अतः यह केवल अहितकर आहार से ही होने वाली शारीरिक व्याधि नहीं है बल्कि इसे मानस शारीरिक व्याधि (Psychosomatic Disorder) भी कहा जाता है क्योंकि अम्लपित्त के रुग्णों में भय, चिंता, नींद न आना, बेचैनी, अनुत्साह इत्यादि मानसिक लक्षण भी मिलते हैं। कई चिकित्सक उन्हें निद्राजनक या मानसिक औषधियां देते हैं जबकि उनके यह लक्षण पित्तदुष्टि की वजह से होते हैं। इसलिए उन्हें पित्तशामक औषधि देनी चाहिए।

इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति में मुख्यतः अपचन, खट्टी डकारें आना, भोजन के पश्चात पेट में हल्का दर्द, गले में जलन, छाती में जलन, सुबह उठते ही खट्टा व कसैला पानी आना, भोजन के प्रति अनिच्छा उल्टी जैसा लगना, बिना परिश्रम vec 4 थकावट, सुस्ती, हल्का बुखार महसूस होना इत्यादि लक्षण मिलते हैं।

एसिडिटी का निवारण आहार-विहार के नियंत्रण से करें। साथ ही रात्रि जागरण, मानसिक तनाव, अवसाद आदि कारणों से दूर रहे।

एन्जाइटी
बिना कारण घबराहट होना एक ऐसा मानसिक रोग है जिसमें रोगी को बेवजह डर लगता है अथवा उसे जीवन के लिए खतरा महसूस होने लगता है। इसलिए उसे विशेष परिस्थितियों में घबराहट होने लगती हैं। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में इस रोग को एन्जाइटी डिसआर्डर (Anxiety Disorder) कहते है। जिसके शिकार कभी न कभी लगभग एक चौथाई लोग अवश्य होते हैं। लेकिन इससे युवा वर्ग (20 से 35 वर्ष की उम्र में) और महिलाएं अधिक पीड़ित होती. हैं। इस बीमारी का संबंध आनुवांशिकता से भी है और एक ही परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती है। युवा वर्ग में इस बीमारी का कारण यह है कि उम्र के इसी पड़ाव पर आकर लोगों को सर्वाधिक संघर्ष करना पड़ता है।

घबराहट (एग्ज़ाइटी) में दिल की धड़कन तेज हो जाती है l सीने में घुटन और मन में भारीपन बढ़ता ही जाता है। सांस की गति बढ़कर मौत का अहसास कराने लगती है। दिल के दौरे में भी इसी प्रकार के लक्षण दिखाई देते है। ई. सी. जी. तथा अन्य किसी प्रकार की जांच से किसी भी तरह की खराबी का पता पूरा नहीं चलता है।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार हम सभी कभी न कभी तनाव, उत्तेजना बेचैनी से गुजरते हैं। कुछ विशेष परिस्थितियों में हमें घबराहट भी खूब होती है जैसे बिना टिकट रेल में सफर करते समय टिकट चेकर का एकाएक आ जाना, लड़की वाले लड़के को देखने आ रहे हैं तब, पहली बार इंटरव्यू का सामना करने पर आदि, ये किसी बीमारी के लक्षण नहीं है। अकारण घबराहट बीमारी तब होती है, जब कोई अज्ञात भय मन में बैठ जाता है।

अकारण घबराहट के इलाज के लिए मनोचिकित्सक साइको थैरेपी के अंतर्गत व्यवहार चिकित्सा (बिहेवियर थैरेपी) की मदद लेते है। शिथिलीकरण के अभ्यास से भी (रिलेक्सेशन एक्सरसाइज) अकारण घबराहट में लाभ होता है। मनपसंद संगीत सुनने से रोगी शीघ्र ही इस रोग से निजात पा जाता है।

डिप्रेशन
वर्तमान समय में डिप्रेशन बहुत ही सामान्य मानसिक समस्या है। डिप्रेशन या अवसाद से ग्रसित व्यक्ति घर, ऑफिस, पड़ोस हर जगह मिल जाएंगे। डिप्रेशन विशेष रूप से एक मूड विकार है जो लगातार उदासी और किसी भी चीज से कोई लगाव न होने के कारण होता है। अवसाद या डिप्रेशन ग्रसित व्यक्ति की सोच, दृष्टिकोण निराशावादी होता है, जीवन में कोई उत्साह, उमंग नही होता है। इसके लिए दुनिया की सभी वस्तुएं बेकार लगती है। किसी भी कार्य में मन नही लगता है तथा किसी भी प्रकार से संतोष नही मिलता है। वह धीरे-धीरे मंद आवाज में बोलता है तथा नैराश्य का भाव प्रदर्शित करता है। उसे दूसरों से मिलना जुलना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है। दिन भर बिस्तर पर पड़ा रहता है। आत्मग्लानि होने लगती है क्योंकि अनेक कार्यों के लिए अपने को दोषी ठहराता है। रोगी अक्सर शिकायत करता है कि उसे कुछ याद नहीं रहता और अपना ध्यान किसी काम में लगाने में असमर्थ है

अल्सरेटिव कोलाइटीस
अल्सरेटिव कोलाइटीस के रुग्णों में अन्वेषण के द्वारा ज्ञात हुआ है कि जो लोग क्रोध को व्यक्त नहीं करते, जो लोग अत्यधिक विक्षोभशील प्रकृति के होते हैं, मन पर अधिक भार रखते हैं। बहुत ज्यादा चिंता करते हैं व अत्यधिक सोच विचार करते हैं व जो अपने कार्य में अत्यधिक संलग्न रहते हैं. ऐसे व्यक्तियों में मस्तिष्क स्थित हायपोथेलेमस (Hypothalams) उत्तेजित होकर बृहदांत्र के निम्न भाग में जानेवाली व आतों को गति देनेवाली नाड़ी विशेषतः विक्षुब्ध होती है, जिससे उनका बृहदांत्र अधिक गतिशील बना रहता है। इन विक्षोभों के कारण बृहदांत्र में म्युसीनेस (Mucinase) या लाइसोजाइम (Lysozyme) की उत्पत्ति भी अधिक मात्रा में होती है। जिससे बृहदांत्र की श्लेष्मकला की म्युकस (Mucus) नामक सरक्षक द्रव से रक्षा नहीं हो पाती है परिणाम स्वरूप बृहदांत्र व मलाशय में सूजन व छाले की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार हायपोथैलेमस के विक्षोभ या मानसिक विभोक्षशीलता को इस रोग का प्रधान कारण माना है।

प्रायः युवावस्था में 20-40 वर्ष की आयु यह रोग होता है, पतले दस्त होना इस रोग का प्रधान लक्षण है। कभी-कभी दस्त के साथ में रक्त और आंव भी आता है। मलत्याग करते समय प्रायः पेट के बायें व निचले हिस्से में वेदना होती है किंतु वेदना बहुत अधिक तीव्र किस्म की नहीं होती है। जीकुमार आरोग्यधाम में उपलब्ध चिकित्सा उपक्रम से कई रुग्णों को लाभ मिला है।

मधुमेह
आधुनिक समय में मनुष्य के रहन-सहन व आहार-विहार में जिस तीव्र गति से परिवर्तन हुआ है उससे भारतीय संस्कृति धीरे-धीरे स्वयं की पहचान खोती जा रही है। फास्ट फुड, अति गरिष्ठ भोजन, अति मिष्ठान्न का सेवन, मद्यपान व रासायनिक पेय पदार्थों का प्रचलन तथा साथ ही व्यभिचार तीव्र गति से अग्रसर हो रहा है। जिनके फलस्वरूप विश्व में मधुमेह की संख्या प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। आज अधिकाश घरों में मधुमेह से ग्रस्त रोगी हैं ही। मधुमेह से ग्रस्त रुग्ण को कई बार स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

विश्व में मधुमेह के बढ़ते हुए खतरे को देखते हुए जीकुमार आरोग्यधाम में एक विशेष चिकित्सा पैकेज बनाया। गया है, जिसके बेहतर परिणाम मिल रहे हैं। इस चिकित्सा पैकेज से कई मरीजों का इन्सुलिन डोज तक कम हो गया है। इस चिकित्सा पैकेज से कई मरीजों की इन्सुलिन छूट गई है साथ ही डायबिटीज के दुष्टपरिणामों से मुक्ति मिली है। इसमें शुरूआत में उनकी पुरानी एलोपैथी औषधियो के साथ ही साथ आयुर्वेदिक औषधिया दी जाती हैं। आयुर्वेदिक औषधियों का असर दिखने पर धीरे-धीरे उनकी पुरानी एलोपैथी औषधिया क्रमशः बंद की जाती है।

उच्च रक्तचाप (Hypertension)
शरीर में रक्तचाप का बढ़ना (उच्च रक्तचाप) शारीरिक व्यवस्था की एक विकृति होती हैं जिससे शरीर के महत्वपूर्ण अंग धीरे-धीरे क्षतिग्रत होते है और परिणाम स्वरूप शरीर कई जीर्ण गम्भीर रोगों से ग्रस्त हो जाता है।

शरीर में लम्बी अवधि तक उच्च रक्तचाप के बने रहने से हृदय, गुर्दे, मस्तिष्क, आंखों आदि अंगों की रक्तवाहिनियों को क्षति पहुंचने लगती है और परिणाम स्वरूप हृदयाघात (Heart Attack), हृदयपात (Congestive Heart Failure), लकवा (Stroke) वृक्क पात (Kidney Failure) जैसे कष्टकारी उपद्रवों की उत्पत्ति होती हैं।

कई बार अनियंत्रित या अल्पनियंत्रित उच्च रक्तचाप शारीरिक विकलागंता (Paralysis) और मृत्यु का कारण बन जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि इसके प्रति लापरवाही हमारे शरीर और जीवन दोनों के लिए घातक सिद्ध होती है।

गुर्दों के विकार और उच्च रक्तचाप में दो तरफा संबंध होता है। लम्बी अवधि तक बने रहने पर जहां उच्च रक्तचाप गुर्दों को विकार ग्रस्त कर देता है वही गुर्दो के रोग तथा विकृति कार्य द्वारा उच्च रक्तचाप उत्पन्न होता है।

उच्च रक्तचाप को मूक हत्यारा (Silent Killer) कहा जाता है। हालांकि बिना किसी कारण से सिर दर्द, सिर में भारीपन, चक्कर आना, धुंधला दिखना छाती व श्वास में तकलीफ, थकान व चेहरे पर तनाव, नींद न आना, जी घबराना आदि लक्षणों पर ध्यान दिया जाना चाहिए तथा तुरंत रक्तचाप चेक कराना चाहिए।

उचित आहार-विहार एवं आचार-विचार द्वारा जीवनशैली और दिनचर्या को स्वास्थ्यवर्द्धक बनाना इससे बचाव के लिए अत्यावश्यक होता है।

आज के दौर में लगभग हर व्यक्ति तनाव की गिरफ्त में है। इससे मुक्ति के लिए व्यायाम के साथ-साथ प्रतिदिन योग और ध्यान विधियों का अभ्यास करना चाहिए। देर रात तक जागने की आदत को त्यागना चाहिए और किसी भी हालत में पूरी नींद (7-8 घंटे) लेना चाहिए।

मनोवैज्ञानिक सच : अगर आपके मन में किसी बीमारी का थोडा सा भी डर है तो आपका दिमाग आपके शरीर में उस बीमारी के लक्षण उत्पन्न कर देगा क्योंकि हमारा दिमाग इतना शक्तिशाली है कि वह किसी बीमारी का इलाज भी कर सकता है और बीमारी पैदा भी कर सकता है इसलिए बीमारी से डरें नहीं क्योंकि डर आपकी बीमारी से लड़ने की शक्ति को कम कर देता है।

मानसिक तनाव से मुक्ति पाने के उपाय

  • तनाव मुक्त होने के लिए सरल और सहज उपाय है मनुष्य स्वविवेक से निर्णय लें तथा उस पर विश्वास रखें। किसी भी प्रकार के तनाव से दूर रहना ही तनाव से बचने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है।
  • मानसिक तनाव से राहत पाने के लिए व्यक्ति को विशेषकर युवाओं को अपने कर्तव्य एवं जीवन की प्राथमिकता के अनुसार ही आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। उन्हें अपनी प्राकृतिक व आदतजन्य विकृतियों पर यथासंभव विजय पाने की कोशिश करनी चाहिए।
  • शोध और अध्ययनों से यह सिद्ध हुआ है कि यदि तनाव व निराशा के मौके पर नेत्र मूंदकर किसी मनोहारी दृश्य का चिंतन किया जाए तो तनावमुक्त का अहसास होगा।
  • गार्डनिंग करें, बच्चों के साथ खेलिए, हंसी मजाक वाले प्रोगाम देखिए, सकारात्मक बातें करें।
  • दूसरों के साथ व्यक्तिगत रिश्ते बरकरार रखें। ऐसे लोगों की मानसिक स्थिति एकाकी जीवन व्यतीत करने वालों से अच्छी होती है।
  • अपने कार्य को योजनाबद्ध रूप से करें जो कार्य आपको करने हैं, उन्हीं पर ध्यान दीजिए।
  • मुस्कराने से हमारे मन का तनाव कम होता है और मन खुश रहता है। मुस्कान से मुख की नसों में गतिशीलता आती है जो मस्तिष्क के भावनात्मक केन्द्र पर असर डालती है एवं मस्तिष्क में न्यूरो केमिकल का संतुलन बना रहता है।
  • . कार्य को प्राथमिकता के आधार पर करें। मन के दबाव और भार को न्यून करने के दो विशेष साधन हैं- कलम और कागज आप देखेंगे कि हम जैसे-जैसे अपने विचारों को कलम से कागज पर लिखते जाएंगे, मन वैसे-वैसे शांत होता जाएगा।
  • ज्यादा काम का बोझ न उठाएं। खुशनुमा माहौल में संगीत और दूसरे मनोरंजन के अच्छे साधनों का प्रयोग करें। काम में व्यस्त रहें ।
  • . दुःख, उदासी तनाव की अवस्था में वसायुक्त आहार लेने से मस्तिष्क में सेरेटोनिन नामक हार्मोन के स्राव में वृद्धि हो जाती है जिससे प्रतिकूल आवेगों से राहत मिलती है।
  • तनाव से मुक्ति पाने के लिए आशावादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। अपने दिलो दिमाग से कारात्मक बातों को निष्कासित कर देना चाहिए तभी आप इससे छुटकारा पा सकते हैं।
  • ध्यान से एकाग्रता बढ़ती है एवं तनावजनित तकलीफों का निदान होता है। ध्यान करने से तनाव, नींद और थकान में भी कमी आती है।
  • काम के बीच-बीच में मन को विश्राम देना चाहिए। इसके लिए मनपसंद संगीत सुनना, चार बार आंखे मूंदना- खोलना, थोड़ी देर हास्य विनोद या गपशप करना चाहिए।
  • रिश्तेदारों, दोस्तों से नियमित मेल-मिलाप, शौक (पुस्तक, संगीत) के लिए वक्त निकालना, इंटरनेट, वीडियो गेम्स, टीवी वैसे तो आराम देने वाली बातें हैं, लेकिन इनका अतिरेक फिर तनाव का कारण बन सकता है। भरपूर नींद और संतुलित आहार तनाव मुक्ति में सहायक हैं। साथ ही तंबाकू, शराब और ज्यादा कैफीन का सेवन टालें ।
  • रोज डायरी लिखकर भावनाओं को बाहर आने दें, आनंद देने वाला काम करें, वर्तमान पर ध्यान केंद्रित कर भविष्य की चिंता छोड़ दें। ध्यान भी तनावमुक्ति में मददगार होता है।

उपचार

व्यायाम :- प्रतिदिन व्यायाम करने से शरीर में रोगों के विरूद्ध लड़ने की ताकत आती है अत सप्ताह में कम से कम तीन बार व्यायाम अवश्य करे। ये शरीर में शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ तनाव मुक्त में भी सहायक होते हैं। सवेरे कम से कम 20-25 मिनट भ्रमण व 20-30 मिनट हल्का व्यायाम या धीरे-धीरे योगासन कीजिए। पश्चिमोत्तानासन, वज्रासन, अर्द्ध- पवनमुक्तासन पूर्ण सुर्यनमस्कार, पवनमुक्तासन, सर्वांगासन, धनुरासन इत्यादि आसनों को धीरे-धीरे करने से बदहजमी, गैस आदि में आराम मिलता है। इससे प्रत्येक बीमारी जड़ समेत दूर होती है। प्राणायाम में कपालभाति, भस्त्रिका, अनुलोम-विलोम, उज्जयी, चंद्रभेदी प्राणायाम, भ्रामरी एवं पामिंग के साथ ओम ध्वनि 11 बार बोलकर प्रत्येक को 5-5 मिनट धीरे-धीरे करिए। जैसे-जैसे स्वास्थ्य लाभ होगा, उसमें तेजी लाइए। इससे ब्लडप्रेशर पर नियंत्रण होने के साथ ही मनोरोग में भी अत्यधिक आराम मिलेगा। घर, ऑफिस में या व्यावसायिक स्थान पर जब भी समय मिले, सूक्ष्म प्राणायाम कर सकते हैं। इसमें लंबी सांस लेकर धीरे-धीरे छोड़ सकते हैं एवं बीच में बंध लगा सकते हैं। मन-मस्तिष्क को ठीक ढंग से विश्राम दें ताकि शरीर की कोशिकाए नई ताकत से भर सकें। इसके लिए प्राणायाम एवं शवासन सबसे अच्छा उपाय है।

श्वसन का सही तरीका :- नाक से सांस लें। सांस पर ध्यान लगाएं। दिन में ऐसा एक-दो बार तो जरूर करें। सांस को धीमे-धीमे लेकर, धीरे से छोड़ने का अभ्यास करें। हल्की और धीमी सांस लें। इसके लिए दो व्यायाम भी कर सकते हैं। पहला, नाक से ठंडी वायु के प्रवेश पर ध्यान लगाएं और फिर गर्म श्वास के बाहर निकलने पर। दूसरे व्यायाम में तीन तक गिनती गिनते हुए सांस को नाक से भीतर लें, दो तक गिनते हुए सांस को बाहर छोडें। इस अभ्यास से रक्तचाप को कम करने में मदद मिलती है। किसी शारीरिक गतिविधि के दौरान उखड़ी सांस पर काबू पाने में सहायता होती है और रक्त का ऑक्सीजन सैचुरेशन बेहतर होता है।

सांस डायफ्राम के संग लें। डायफ्राम श्वास की मुख्य मांसपेशी होती है, जो एक छतरी के समान सीने और पेट के बीच मौजूद होती है। डायफ्राम के संग सास लेने को बेली ब्रीदिंग भी कहा जाता है। इसके अभ्यास के लिए पीठ के बल प्लेट जाए पैरों को हल्का-सा मोड़ें। पेट पर एक किताब रखें और पांच तक गिनते हुए सास छोडें। ध्यान इस पर देना है। कि सांस लेते समय किताब ऊंची हो जाए और छोड़ते समय नीचे आए। किताब की गति को जितना कम कर सके उतना बेहतर होगा। इस अभ्यास को पंद्रह मिनट के लिए संभव हो तो दिन में दो बार करें। रात को सोने से पहले करने से नींद की गुणवत्ता बेहतर हो जाएगी। इस अभ्यास को उन लोगों को जरूर करना चाहिए जिन्हें व्यग्रता, बेचैनी और उलझन होने की शिकायत रहती हो।

सांस को सुसंगत करें। यह हृदय रोगियों के लिए बेहतर फायदेमंद अभ्यास है। आमतौर पर हम तीन सेंकड में ही नाक से सांस लेकर छोड़ देते हैं यानी श्वसन का समय बहुत कम होता है। सांसों के समन्वय में पांच सेकड़ तक नाक से सांस को भीतर लेने का अभ्यास करना होता है, जिनके दौरान पेट के फूलने और घड़ यानी कंधे और सीने के फैलने को अनुभव करे फिर पांच सेकंड तक सांस छोडे जिस दौरान पेट पिचकने और धड़ के सिकुड़ने को महसूस करें। इससे सांस का चक्र दस सेकंड का हो जाएगा, जो कि हर मिनट की छह सांस vec Phi बराबर होगा।

शुरुआत अगर पांच सेकंड से ना कर पाए, तो तीन सेकंड से शुरू करें। लेकिन ध्यान रखें कि सांस लेने और छोड़ने का समय समान होना चाहिए। इस अभ्यास से सास की गति पर नियंत्रण पाया जा सकता है। पेल्पिटेशन के कारण बड़ी हृदय गति में यह श्वसन लाभप्रद है। मानसिक तनाव से बचने के लिए खुशियों की तलाश करते रहें

खुश होने के लिए निम्नलिखित उपाय करें
आभार जताइए :- धन्यवाद या थैंक्स ऐसे जादुई शब्द है जब जुंबा से निकलते है तो सामने वाले के चेहरे पर मुस्कान लाते। ही हैं। प्रसन्न रहना है तो किसी की छोटी-सी मदद पर इन शब्दों को बोलने की आदत डालिए। सुबह उठते ही पहले दो मिनट ठहरकर पिछले दिन हुई तमाम अच्छी बातों के लिए मन में ईश्वर, मित्रों और परिवार का आभार मानें। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया’ की प्रार्थना तो हमारी उदार संस्कृति का मूल आधार है। जो हमारे पास है उसके प्रति कृतज्ञता और आभार की प्रवृत्ति हमारी खुशी को बढ़ाने का काम करती है और अभावों से ध्यान हटाती है।

व्यायाम और ध्यान सहायक है :- ध्यान और व्यायाम आपके तनाव को काफी हद तक कम करते है। 74 वर्ष के बौद्ध भिक्षु मैथ्यु रिकार्ड को दुनिया का सबसे खुश व्यक्ति माना जाता है। वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि जब मैथ्यू दया पर आधारित ध्यान करते हैं तो उनके दिमाग में गामा तरंगें पैदा होती हैं जो उनकी खुशी को बढ़ाती है। हल्के व्यायाम. स्ट्रेचिंग, थोडी चहलकदमी या दिन में 4-5 गहरी सांसे लेना आपके स्वास्थ्य में सुधार करते हैं

मदद कीजिए :- खुश होने का सबसे कारगर तरीका है- मदद करना। मुसीबत, अवसाद या तनाव में किसी के स्नेह भरे हाथ की बहुत जरुत महसूस होती है। आज लोग होम क्वारंटाइन हैं परेशान हैं, ऐसे ही लोगों का सहारा बनकर देखिए, उन्हें पूछिए, छोटी-छोटी सहायता की पेशकश कीजिए आप खुशी महसूस करेंगे। देने का सुख अदभुत होता है ।

मित्रों संग हंसिए, बतियाइए :- मित्र ऐसा टॉनिक हैं जो जिंदगी की जंग में ताकत देते है राह की रोशनी होते हैं दोस्त जीवन में उनसे बाते करने पर आप ज्यादा खुश होते. है और ज्यादा बार हंसते भी हैं। हंसने से तात्कालिक प्रभाव होकर तनाव दूर होता है। रोज कुछ देर हंसने वाली बातें या काम करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

व्यस्त रहिए, व्यवस्थित रहिए :- स्वयं को व्यस्त एवं व्यवस्थित रखेंगे तो अपने आप को ज्यादा खुश रख पाएंगे और बेहतर महसूस करेंगे। संगीत सुनिए, पेटिंग या बागवानी कीजिए खाना बनाइए या ऑनलाइन कोई हुनर सीखिए। ऐसा करने से आपका ध्यान बुरी घटनाओं से हटकर अच्छी बातों में लगता है। जिससे तनाव कम होता है। हर वो गतिविधि जो आपको खुशी दे वह आपके लिए खास है। इसी तरह घर पर हैं तो अपनी वस्तुओं और अपनी आदतों को व्यवस्थित कीजिए व्यवस्थित दिनचर्या आपको राहत और सुकून देगी।

गैजेट्स का सीमित उपयोग : मोबाइल और टीवी के बिना इन दिनों मुश्किल है पर खुश रहना है तो दिन में कुछ देर तक तकनीकी से अपने आपको डिटॉक्स कीजिए। सुबह उठने के बाद और सोने से पहले एक या दो घंटे गैजेट्स से दूरी बना सकते है। सोशल मिडिया पर आपको सकारात्मक व सच बातें कम और उलझाने व गफलत वाली पोस्ट ज्यादा मिलती हैं। वैज्ञानिक तौर पर यह उपकरण शरीर की आंतरिक कुदरती घड़ी व नींद के लिए जरूरी मेलाटोनिन के उत्पादन को भी रोकते हैं। हर अच्छी और शांत नींद आपकी खुशी बढ़ाने में मददगार होती है। इसलिए गैजेट्स से दूरी बनाइए ।

गेंद से मसाज :- कुर्सी पर आराम से बैठ जाएं। मुलायम गेंद को पैर के तलवे के नीचे रखें। अब पैर को आगे-पीछे करते हुए गेंद को भी घुमाएं। इससे तलवों की मसाज होगी, जो तनाव दूर करने में सबसे ज्यादा असरदार है। यही प्रक्रिया दूसरे पैर से दोहराए।

मित्र की तरह सलाह दें :- मुश्किल हालातों में खुद को दोस्त की सलाह दें। फर्ज करें कि किसी मित्र को राय दे रहे हैं अब इसे अपने आप पर लागू करिए।

प्रकृति के पास जाएं :- जब भी वक्त मिले, बाहर मैदान में चले जाएं। पेड़ के नीचे बैठिए। घास पर चलिए। दिन में लाइट से ज्यादा रोशनी खिड़कियों से आने दें।

आयुर्वेदिक औषधि
मानसिक तनाव के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों में चिकित्सक परामर्शानुसार औषधि लें। मानसिक तनाव में उपयोगी मेध्य औषधियों का वर्णन शास्त्रों में किया गया है। इसमें ब्राह्मी, जटामासी, वचा, तगर, शंखपुष्पी, अश्वगंधा, यष्टीमधु इत्यादि उपयोगी वनौषधिया है ।

पंचकर्म
मानसिक तनाव में स्नेहन, स्वेदन, वस्ति, वमन, विरेचन, शिरोपिचु, शिरोभ्यंग, शिरोबस्ति, शिरोधारा, नस्य के उत्तम परिणाम मिलते है। तनाव से मुक्ति पाने का एक और अच्छा उपाय है शनैः-शनैः मालिश। आयुर्वेदीय पंचकर्म में इसे स्नेहन कहते है। इससे शारीरिक अति होती है।

तनाव जिंदगी का एक अभिन्न अंग है। तनाव पर नियंत्रण स्वस्थ व कामयाब जीवन की कुंजी हैं। हमें हर वक्त सजग, सक्रिय रखने के लिए हल्का तनाव जरूरी है। ज्यादा तनाव शरीर के लिए नुकसानदायक ही है। संक्षेप में सुपाच्य आहार, शांत माहौल, अच्छे लोगों की संगति और मस्तिष्क को शांत करने वाले साधन या परिवेश में परिवर्तन कर लेने के साथ योगाभ्यास, आयुर्वेदिक औषधि व पंचकर्म के द्वारा मानसिक तनाव से बचा जा सकता है।

डॉ. जी.एम. ममतानी
एम.डी. (आयुर्वेद पंचकर्म विशेषज्ञ)

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